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बसन्त पंचमी

भारतीय हिन्दू परम्परा के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसन्त पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। यह बसन्त ऋतु के आगमन का और शुभता का प्रतीक माना जाता है इसलिए इसे श्री पंचमी भी कहा जाता है। यह दिन माँ सरस्वती की आराधना और उपासना का होता है। धार्मिक और प्राकृतिक रूप से बसन्त पंचमी का बहुत बड़ा महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माँ सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था। माता सरस्वती को विद्या की देवी भी कहा जाता है, इसलिए आज भी इसी दिन से माता-पिता अपने बच्चों की स्कूली शिक्षा शुरू करवाते हैं। सनातन संस्कृति के 16 संस्कारों में से एक विद्यारम्भ संस्कार इसी दिन आयोजित किया जाता है। शास्त्रों में बसन्त पंचमी को ऋषि पंचमी भी कहा गया है। 

एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन प्रेम के देवता कामदेव अपनी पत्नी रति के साथ स्वयं पृथ्वी पर आकर विचरते हैं, इसलिए कई वैवाहिक दंपत्ति, कामदेव और देवी रति की कृपा प्राप्ति के लिए पूजा करते हैं, जिससे उनके वैवाहिक जीवन में कभी कोई परेशानी नही आती। पूरे वर्ष में इसी दिन सभी ऋतूएं सबसे ज़्यादा संतुलन में होती हैं। प्रकृति में सकारात्मक परिवर्तन होना शुरू होते हैं। पेड़ पौधों में बहार आने लगती है। हवाएं शुद्ध हो जाती है। बसन्त पंचमी का त्यौहार सिर्फ भारत ही नही कई एशियाई देशों में स्थानीय संस्कृति के अनुरूप मनाया जाता है।

 

महत्व-

बसन्त पंचमी के पवित्र त्यौहार के कई आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है।-

  • बसन्त पंचमी के दिन माँ सरस्वती का उद्भव हुआ था। माँ अज्ञान और मन के अंधेरे दूर करती हैं इसलिए इस दिन मुख्य रूप से सरस्वती पूजन किया जाता है।
  • इसी दिन माँ सरस्वती ने महाकवि कालिदास को विद्या का वरदान दिया था। इस दिन से बच्चों को शिक्षा देने की शुरुआत की जाती है।
  • बसन्त पंचमी के दिन से ही बसन्त ऋतु का प्रारम्भ होता है। इस दिन कोई भी शुभ काम शुरू करने से उसमें सफलता प्राप्त होती है।
  • किसानों के लिए यह दिन बहुत विशेष महत्व रखता है। इस दिन किसान अपने खेतों में नई फसलों की पूजा करते हैं।
  • बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की आराधना की जाती है। माँ सरस्वती की मंत्र साधना करके सिद्धि प्राप्त भी की जाती है।
  • कला से जुड़े क्षेत्रों जैसे संगीत, वादन, नृत्य, लेखन आदि इसी दिन से शुरू किया जाता है तो जीवन में सफलता अवश्य मिलती है।
  • माँ सरस्वती विद्या की देवी हैं इसलिए विद्यार्थी जन अपनी किताबों और पढ़ाई के संसाधनों को सरस्वती स्वरूप मानकर पूजा करते हैं।
  • माँ सरस्वती संगीत की देवी भी हैं इसलिए कलाकर जन अपने वाद्य यंत्रों की पूजन करके माँ सरस्वती की आराधना करते हैं और कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए वरदान मांगते हैं।
  • इस दिन प्रकृति के हर तत्व में सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार होता है, फसलें लहलहाने लगती हैं, गेंहू की फसल में बालियां आ जाती हैं, पौधों में नये-नये फूल आने शुरू हो जाते हैं, सरसों की फसल की सुंदरता देखते ही बनती है, आम के पेड़ में बौर आनी शुरू हो जाती है।
  • भगवान श्री राम आज ही के दिन माता शबरी के आश्रम (डांग,गुजरात) पहुंचे थे, जहां उन्होंने शबरी के जूठे बेर चखे थे।
  • इस दिन सरस्वती पूजन विश्व के कई देशों में किया जाता है जो कि नारी के प्रति सम्मान की भावना को बढ़ावा देता है।
  • बसन्त पंचमी का त्यौहार नयी शुरुआत और शुभ समय का बहुत बड़ा प्रतीक होता है। यह संदेश देता है कि हर काम शुभ हो, हर किसी में शुभता आये, हर शुभ का सफल हों।

 

पूजा विधि-

  • सुबह जल्दी सोकर उठें, नित्यकर्मों से निवृत होकर साफ पीले वस्त्र धारण करें। सरस्वती पूजन के लिए आवश्यक पूजा सामग्री एकत्रित करें।
  • एक साफ पटा या चौरंग लेकर उसमें लाल कपड़ा बांधें, एक मुट्ठी चावल रखें और माँ सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर रखें।
  • सरस्वती जी के सामने गणेश जी की गोबर से बनी मूर्ति और गौरी जी की प्रतिमा रखें। गोबर की मूर्ति न हो तो सुपारी में मौली लपेट कर रखें।
  • सरस्वती जी की दाहिनी तरफ एक मुट्ठी चावल रखें, उसपर तांबे का पात्र में शुद्ध जल भरकर रखें। उस तांबे के पात्र में गंगाजल, एक सुपारी, एक हल्दीगांठ, एक सिक्का डालें।
  • तांबे के पात्र में सिंदूर/कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं, कंठ में 3 राउंड मौली धागा लपेट कर रखें, फिर आम के 5 पत्ते या एक पान का पत्ता डालकर नारियल रखें। यह जल कलश कहलाता है, जिसमें सात नदियों, त्रिदेवों और वरुण देवता का आवाहन किया जाता है।
  • इसके बाद सरस्वती जी के सामने नवग्रह बनाकर रखें।  (पटे पर चौकौर आकर में थोड़े चावल फैलाएं 9 सुपारी पर मौली लपेटकर, 9 हल्दीगांठ और 9 सिक्कों के साथ 3-3 के क्रम में जमाकर रखें।)
  • पूजन के लिए दूर्वा,अक्षत, चन्दन, पीले, सफेद, लाल पुष्प, मौसमी फल एकत्र करें, सात्विक और ताज़ा भोजन बनाएं, जैसे खीर-पूरी। इसके साथ ही मौसमी फसल जैसे- बेर, आंवला, सरसों, गेंहू की बाली भी पूजा में रखें।
  • हाथ धुलकर ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः कहकर 3 बार आचमन करें।
  • जल, पुष्प, अक्षत और चंदन से अपनी आसन के नीचे पृथ्वी पूजन करें।
  • स्वयं पर और पूजा की सभी सामग्रियों पर शुद्ध जल में गंगाजल मिलाकर पुष्प या दूर्वा से छिड़काव करें।
  • अब दाहिने हाथ में जल लेकर मन ही मन सभी देवी देवताओं और माता सरस्वती की पूजन करने का संकल्प लें और जल को माता के पास छोड़ें।
  • इसके बाद क्रमशः गणेश, गौरी, वरुण देव (जल कलश), नवग्रह और मां सरस्वती की सभी सामग्रियों कुमकुम, सिंदूर, चन्दन, पुष्प, आदि से पूजन करें।
  • एक पान में सुपारी, हल्दी, सिक्का, अक्षत, नारियल, फल लेकर पूरे भाव से गौरी गणेश, नवग्रह और माँ सरस्वती को अर्पित करें। पूजन के बाद मिठाई, नैवेद्य, फल और भोजन का भोग लगाएं।
  • इसके बाद एक छोटे हवन कुंडी में गोबर के उपले या आम की लड़की की अग्नि प्रज्वलित करें और सभी देवी देवताओं के नाम से यथा शक्ति शुद्ध हवन की आहुति अर्पित करें।
  • इसके बाद आरती करें, पुष्पांजलि अर्पित करें, माता की प्रार्थना करें और सभी को प्रसाद वितरण करें। इसके बाद भजन-गीतों का आयोजन करें।

 

सरस्वती पूजन मंत्र-

किसी भी क्षेत्र के विद्यार्थियों को सरस्वती पूजन के समय इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।

  1. ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः।
  2. ॐ वाग्देव्यै विद्महे ब्रहप्रियाय च धीमहि,
    तन्नो सरस्वती प्रचोदयात्।
  3. या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
    या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
    या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
    सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
  4. शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
    वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥
    हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌।
    वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥