प्रसिद्ध कथा के अनुसार प्राचीन समय में सिंधी समाज के व्यापारी लोग दूर देशों में व्यापार करने जब समुद्र मार्ग से जाते थे तब उनके घर की महिलाएं उनकी कुशलता के लिए झूलेलाल से प्रार्थना करती थी, कई मन्नतें मांगतीं थीं और जब उनकी मन्नतें पूरी हो जाती थीं तो भव्य रूप से उत्सव मनाये जाते थे। भगवान झूलेलाल के नाम से यह प्रथा आज भी चल रही है। आज भी समुद्र किनारे रहने वाले लोग जल के देवता भगवान झूलेलाल जी को मानते हैं। जिन मंत्रों से इनका आह्वान किया जाता है उन्हें लाल साईं जा पंजिड़ा कहते हैं। वर्ष में एक बार सतत चालीस दिन इनकी अर्चना की जाती है जिसे ‘लाल साईं जो चाली हो’ कहते हैं। इन्हें ज्योतिस्वरूप माना जाता है अत: झूलेलाल मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है, शताब्दियों से यह सिलसिला चला आ रहा है। ज्योति जलती रहे इसकी जिम्मेदारी पुजारी को सौंप दी जाती है। संपूर्ण सिंधी समुदाय इन दिनों आस्था व भक्ति भावना के रस में डूब जाता है।
पूजा विधि-
चेटी चंड के अवसर पर सिंधी समुदाय द्वारा भगवान झूले लाल की शोभा यात्रा निकाली जाती है। इसके अलावा इस दिन कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।