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फाल्गुन पूर्णिमा व्रत एवं होलिका दहन

व्रत विधि-

  1. पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें, सम्भव न हो तो शुद्ध ताज़े जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और व्रत का संकल्प करें।
  2. इस दिन चन्द्रमा की मुख्य रूप से पूजा होती है। प्रातः सूर्योदय से लेकर संध्या काल में चंद्र दर्शन तक व्रत रखें। रात्रि में चंद्रमा की पूजा करें।
  3. चन्द्रमा की पूजा करते समय “ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नमः” का मंत्र जाप करें।
  4. पूरे दिन भगवान विष्णु का नाम जाप करें। पुरुष सूक्त, श्री हरि स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
  5. नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा को लकड़ी व उपलों को एकत्रित कर हवन करें। हवन के बाद विधिपूर्वक होलिका पर लकड़ी और उपलों को डालकर उसे जला दें। होलिका की परिक्रमा करते हुए हर्ष और उत्सव मनाएं।
  6. होलिका दहन के समय भगवान विष्णु व भक्त प्रह्लाद का स्मरण करना चाहिए। होलिकादहन के साथ ही होलाष्टक भी समाप्त हो जातें हैं।

 

विष्णु पूजन मंत्र-

ॐ नमो नारायणाय।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

ॐ हूं विष्णवे नमः।

ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात।

 

चन्द्रमा पूजन मंत्र-

ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।

ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।

ॐ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम:

 

फाल्गुन पूर्णिमा व्रत

पूर्णिमा तिथि में चंद्रमा आकाश में अपनी संपूर्ण कलाओं से पूर्ण होता दिखाई देता है। हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है और हर पूर्णिमा का पूजन में थोड़ी-थोड़ी भिन्नता भी दिखाई दे सकती है, लेकिन इसकी महत्ता सदैव एक स्वरुप में विद्यमान होती है। इस तिथि पर पूजा-पाठ, दान, पवित्र नदियों एवं धर्म स्थलों पर स्नान-दान का अत्यंत शुभदायक बताया गया है। यह जीवन और प्रकृति के साथ हमारे संबंधों की घनिष्ठा को भी पूर्णता देता है। पूर्णिमा तिथि के दिन गंगा व यमुना नदि के तीर्थस्थलों पर स्नान और दान करना मोक्षदायी एवं पुण्यदायी माना गया है।

इस दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा की कथा होली पर्व को भी दर्शाती है, यह कथा राक्षस हरिण्यकश्यपु और प्रह्लाद से संबंध रखती है। इस कथा अनुसार हरिण्यकश्यपु अपने पुत्र प्रह्लाद को मृत्युदण्ड देना चाहता है, क्योंकि उसका पुत्र श्री विष्णु का भक्त था और हरिण्यकश्यपु को ये बात सहन नहीं थी. वह श्री विष्णु को अपना शत्रु मानता था और जो भी श्री विष्णु की भक्ति करता उन्हें वह कष्ट व यातनाएं देता था। ऎसे में जब उसका पुत्र प्रह्लाद श्री विष्णु की भक्ति करता है, तो वह अपने पुत्र से नफरत करने लगता है, और अनेक प्रकार के कष्ट देता है. पर श्री विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कोई कष्ट नहीं होता है।

इस कारण हरिण्यकश्यपु अपनी बहन होलिका को ब्रह्मा से मिले वरदान का लाभ उठाने को कहता है। होलिका को वरदान मिला था की वह अग्नि में नहीं जल सकती। ऎसे में राक्षसी होलिका, प्रह्लाद को जलाने के लिए अग्नि में बैठ जाती है, पर श्री हरि की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहता है और होलिका जल जाती है।

इसलिए प्राचीन समय से ही फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन व पूजन किया जाता है, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकड़ी-उपलों से होलिका का निर्माण किया जाता है, शुभ मुहूर्त समय के दौरान होलिका दहन किया जाता है और पूजन संपन्न होता है।