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ज्येष्ठ अमावस्या

ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व

ज्येष्ठ अमावस्या को न्याय प्रिय ग्रह शनि देव की जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि दोष से बचने के लिये इस दिन व्रत-उपवास करते हुए पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर शनि मंत्र का जाप और पेड़ की 108 परिक्रमा करने का विधान है।

 

इस दिन पितरों की पूजा करने और गरीबों को दान करने से पुण्य मिलता है। पापों का नाश होता है। इस दिन पवित्र जल में स्नान और व्रत रखने की भी परंपरा है। बहुत से लोग इसे स्नान-दान की अमावस्या के रूप में भी पूजते हैं। शनि जयंती और स्नान-दान के साथ महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस दिन वट सावित्री व्रत भी रखती हैं। इसलिए उत्तर भारत में तो ज्येष्ठ अमावस्या को विशेष रूप से सौभाग्यशाली एवं पुण्य फलदायी माना जाता है।



वट सावि‍त्री का महत्‍व

 

वट सावित्री व्रत यह एक हिन्दू धर्म का महत्‍वपूर्ण त्‍यौहार है जो विवाहित महिलाओं के लिये विशेष महत्‍व का माना जाता है। इस त्यौहार को वट अमावस्या भी कहा जाता है। यह त्योहार विवाहित महिलाओं द्वारा बहुत  उत्‍साह से मनाया जाता है। इस त्यौहार में विवाहित महिलायें अपने पति के लिए एक बरगद के पेड़ के चारों ओर एक धागा बांधकर अपने प्यार का प्रतीक बनाती है। वट सावि‍त्री की कथा सावित्री और सत्यवान पर आधारित है। जैसा कि महाभारत में वर्णित है, इसलिए यह व्रत भारतीय संस्कृति में एक आदर्श नारित्व का प्रतीक माना जाता है। 

 

वट सावित्री व्रत विधान 

 

  • वट वृक्ष के नीचे मिट्टी की बनी सावित्री और सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यम की प्रतिमा स्थापित करें। 
  • बड़ की जड़ की पूजा कर उसमें पानी दें।
  • फिर जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप आदि अर्पित करें। 
  • जल से वट वृक्ष को सींच कर तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करें। 
  • इसके पश्चात् सत्यवान-सावित्री की कथा सुनें। 
  • इसके पश्चात् भीगे हुए चनों का बायना निकालकर उस पर दक्षिणा स्‍वरूप प्रसाद रखकर अपनी सास को देने की मान्‍यता है।