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कामदा एकादशी

कामदा एकादशी की पौराणिक कथा- 

प्राचीन समय में नाग लोक में भोगीपुर नाम का एक सुंदर नगर था जहां सोने के महल बने हुए थे। उस नगर में महा भयंकर नाग निवास करते थे। पुंडरीक नाम का नाग उन दिनों वहां राज्य करता था। अप्सराएं, गंधर्व और किन्नर सभी उस नगर में निवास करते थे। एक श्रेष्ठ अप्सरा ललिता अपने पति ललित नाम के गंधर्व के साथ उसी नगर में रहती थी। उनके घर में धन, ऐश्वर्य और वैभव की कोई कमी नहीं थी। वह दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे।

 

एक दिन ललित राजा पुंडरीक की सभा में नृत्य और गायन प्रस्तुत पर रहा था परंतु उसके साथ उसकी प्रिय पत्नी ललिता नहीं थी। नाचते और गाते हुए उसे अपनी पत्नी की याद आ गई और उसके पैरों की गति धीमी हो गई। उसकी जीभ लड़खड़ाने लगी। तब ही पुंडरीक के दरबार में कर्कोटक नाम का एक नाग देवता मौजूद थे। ललित को गाने का आदेश देकर राजा पुंडरीक कर्कोटक नाग देवता के साथ आनंद ले रहे थे।

 

ललित गाने में मग्न था। तभी उसे अपनी पत्नी की याद आ गई और वह भूल गया। नाग देवता ने ललित से हुई गलती को पकड़ लिया, जिसके बाद राजा पुंडरीक ने उसे राक्षस बनने का श्राप दिया। इतना कहते ही वह गंधर्व राक्षस बन गया। उसका रूप बहुत ही डरावना था। जब उसकी पत्नी ललिता को इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुई और वह मन ही मन सोचने लगे कि उनके पति बहुत ही कष्ट भोग रहे हैं।

 

अपने पति के पीछे-पीछे जंगल में घूमने लगी। तभी उसे एक सुंदर आश्रम दिखाई दिया जहां एक मुनि बैठे हुए थे। ललिता जल्दी से वहां पर पहुंच गई। तब तक मुनि ने ललिता को कामदा एकादशी व्रत के बारे में बताया। मुनि की बात मानकर ललिता ने उनके आश्रम में कामदा एकादशी व्रत किया और व्रत से मिलने वाले लाभ से अपने पति को ठीक कर दिया। कामदा एकादशी के लाभ से ललित अपने पापों से मुक्त हो गया और पहले की तरह सुंदर बन गया।

 

कामदा एकादशी व्रत विधान- 

 

  • प्रात: काल स्नान करने के पश्चात अच्छे वस्त्र धारण किए जाते हैं और सबसे पहले सूर्य देवता को प्रणाम कर, अर्घ्य दें। 
  • पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। 
  • लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर पीला कपड़ा बिछायें। 
  • इस चौकी पर श्री हरि की मूर्ति स्थापित करें।
  • इसके बाद हाथ में जल लेकर मन में व्रत करने का संकल्प लें। 
  • भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए भगवान को हल्दी, अक्षत, रोली, चंदन, फल, पूष्‍प और पंचामृत अर्पित करें। 
  • एकादशी के दिन प्रभु को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं।
  • इसके बाद एकादशी की कथा पढ़ कर आरती की जाती है और प्रभु को भोग लगायें। 
  • श्री हरि को भोग लगाते समय तुलसी का पत्ता जरूरी होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान तुलसी के बिना भाेग पूर्ण नहीं होता। 
  • शाम की पूजा के बाद तुलसी के आगे घी का दीपक जलायें। 
  • इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा देने के बाद भोजन ग्रहण करें।

 

कामदा एकादशी के दिन ध्‍यान रखें ये बातें- 

  • कामदा एकादशी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। 
  • कामदा एकादशी के दिन भूलकर भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इस दिन प्याज और लहसुन का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए और पूरा सात्विक आहार लेना चाहिए।
  • कामदा एकादशी के दिन गाय को हरा चारा खिलाना चाहिए।
  • एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व है इसलिए इस दिन तिल और फलों का दान करना चाहिए।
  • एकादशी के दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है।
  • विवाह में देरी हो रही हो तो एकादशी के दिन केसर, केला, गुड़ और चने की दाल का दान करना चाहिए।