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माघ अमावस्या

महत्व-

मौनी अमावस्या के दिन शास्त्रों में वर्णित पवित्र नदियों में स्नान, विभिन्न प्रकार के दान और पितृ देवों को तर्पण किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूरे मनोभाव से आराधना की जाती है। विद्वानों के अनुसार इस दिन  स्नान, दान, व्रत पूजन और आत्म साधना का विशेष महत्व है। ऐसा करने से हमारे सभी तरह के गृह दोष मिट जाते हैं और जाने-अनजाने किये सभी पापों से मुक्ति मिलती है। 

भारतीय हिन्दू पंचांग के अनुसार एक माह में दो पक्ष होते हैं, जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहा जाता है। प्रत्येक पक्ष 15 दिन का होता है। शुक्ल पक्ष के पंद्रहवें दिन को पूर्णिमा कहा जाता है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा पूरी तरह से दिखाई देता है। पूर्णिमा के अगले दिन से कृष्ण पक्ष की शुरुआत होती है। कृष्ण पक्ष के पन्द्रहवें दिन को अमावस्या कहा जाता है, क्योंकि इस दिन चन्द्रमा बिल्कुल भी नही दिखाई देता, इस दिन माह की सबसे घनी रात होती है। दोनों पक्षों का यह चक्र इसी तरह चलता रहता है। एक साल में 12 अमावस्या होती है। अमावस्या सूर्य और चन्द्रमा के मिलन का समय होता है। सनातन हिन्दू शास्त्रों में अमावस्या तिथि के स्वामी पितृ देव माने जाते है।

हिन्दू शास्त्रों में अमावस्या को बहुत पवित्र माना जाता है। हर महीने की अमावस्या का अपना महत्व है। प्रत्येक अमावस्या का नाम निर्धारण उसके दिन के अनुसार होता है, यानी सप्ताह के जिस भी दिन अमावस्या पड़ेगी, उसका नाम उस दिन के अनुसार रखा जाएगा। आज हम आपको बताने जा रहे माघ अमावस्या के बारे में-

 

पूजा विधि-

  • अमावस्या के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर अपने आसपास जो पवित्र नदियां बहती हों उसमें स्नान करें। 
  • यदि आपके घर के आसपास नदियां न हो तो अपने घर पर ही शुद्ध जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। 
  • अगर आप नदी में स्नान कर रहे हैं तो अपने हाथों से सूर्य देव को अर्घ्य दें और तिल प्रवाहित करें। 
  • अगर घर में स्नान कर रहे हैं तो स्नान के बाद तांबे के लोटे में चंदन, अक्षत और तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। 
  • इसके बाद भगवान विष्णु जी की संक्षिप्त या दीर्घ जो भी पूजा संभव हो ज़रूर करें। जैसे- सत्यनारायण व्रत, विष्णु सहस्रनाम पाठ आदि।
  • पूजन करने के बाद कथा श्रवण करें। इसके बाद आरती करें और सभी को प्रसाद वितरण करें।
  • सात्विक भोजन ही बनाये और विष्णु जी को भोग अर्पण करें, इसके बाद पहला भोजन गाय को खिलाएं। 
  • फिर ब्राह्मणों को और भूखों को भोजन करवाएं। 
  • आज के दिन अपने घर में पूरे उल्लास से भगवन नाम संकीर्तन अवश्य करें। 

 

मौनी अमावस्या की कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले कांचीपुरी में एक ब्राह्मण परिवार रहता था। परिवार के मुखिया का नाम देवस्वामी था। उसके 7 पुत्र और एक पुत्री थी। देवस्वामी की पत्नी का नाम धनवती और पुत्री का नाम गुणवती था। समय के साथ देवस्वामी ने अपने सभी बेटों का विवाह कर दिया। अब बेटी गुणवती के विवाह की जिम्मेदारी उस पर थी। उसने अपने बड़े बेटे को सुयोग्य वर देखने के लिए दूसरे नगर में जाने को कहा।

इधर देवस्वामी ने बेटी की कुंडली ज्योतिषाचार्य को दिखाई, तो उसने कहा कि विवाह पश्चात कन्या के विधवा होने का दुर्योग बन रहा है। यह सुनकर ब्राह्मण पिता दुखी हो गया। तब ज्योतिषाचार्य ने कहा कि सिंहलद्वीप में एक सोमा धोबिन है, यदि वह यहां आकर पूजा करे, तो गुणवती की कुंडली का दोष खत्म हो जाएगा।

उपाय जानने के बाद देवस्वामी ने अपने छोटे बेटे के साथ पुत्री गुणवती को सिंहलद्वीप धोबिन को लाने के लिए भेज दिया। दोनों सिंहलद्विप की ओर चल दिए। वे चलते चलते समुद्र के किनारे पर आ गए और उसे पार करने का उपाय सोचने लगे। भूख और प्यास से व्याकुल दोनों भाई और बहन एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने लगे।

उस वट वृक्ष पर एक गिद्ध परिवार रहता था। ​गिद्ध के बच्चों ने ​उन दोनों भाई-बहन को देखा था। जब उनकी मां भोजन लेकर आई तो, खाने से मना कर दिया और उन दोनों भाई-बहन के बारे में बताया। तब उनकी मां को दया आ गई, वह पेड़ के नीचे आराम कर रहे गुणवती और उसके भाई के पास गई। दोनों को भोजन दिया और उनकी मुश्किल हल करने का आश्वासन दिया। तब दोनो बहन भाई खुश हो गए और भोजन करने लगे।

सुबह होने पर मादा गिद्ध ने दोनों भाई-बहन को सोमा धोबिन के घर ले गई। गुणवती ने अपनी समस्या बताई, तो वह उसके घर जाने को तैयार हो गई। धोबिन गुणवती के घर गई और पूजा की। इसके बाद गुणवती का विवाह हुआ, दोष के कारण उसके पति की मृत्यु हो गई। उसके पश्चात सोमा धोबिन ने गुणवती को अपने पुण्य दान किए, जिसके प्रभाव से उसका पति फिर से जीवित हो गया। लेकिन जब सोमा धोबिन अपने घर लौटकर आई, तो उसे पुण्य में कमी के कारण उसके पति, बेटे एवं दामाद की मृत्यु हो गई, तब उसने नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा की और 108 बार पीपल की ​परिक्रमा की।

पूजा से महापुण्य प्राप्त हुआ और फिर से उसके पति, बेटे और दामाद जीवित हो गए। उसका परिवार सुखपूर्वक रहने लगा। इस प्रकार से हर मौनी अमावस्या के दिन भगवान विष्णु और पीपल के पेड़ की पूजा करने का​ विधान है।