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माघ पूर्णिमा व्रत

महत्व-

हिंदू धर्म में माघ पूर्णिमा को सभी पूर्णिमा की तिथियों में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म ग्रंथों में कार्तिक और माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि की महत्ता और उसकी श्रेष्ठता के बारे बताया गया है। पौराणिक मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा तिथि को देवलोक से देवतागण पृथ्वी पर आते हैं और भक्तों को अपने आशीर्वाद से अभिभूत करते हैं। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है।

 

माघ पूर्णिमा पूजा विधि-

माघ पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे किसी भी पवित्र नदी में स्‍नान करना चाहिए। यदि ऐसा न हो सके तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगा जल मिला लें। ऐसा करने से भी पव‍ित्र नदी के स्‍नान का पुण्‍य मिलता है। स्‍नान के बाद जल में रोली डालकर सूर्य देव को अर्घ्‍य दें। इसके बाद श्रीविष्‍णु का ध्‍यान करके व्रत का संकल्‍प लें। दिन के दूसरे प्रहर यानी कि दोपहर में ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं। यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें। ध्‍यान रखें कि काले तिल का विशेष रूप से दान करें। मान्‍यता है इस विधि से पूजा करने से भगवान विष्‍णु अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं।

 

माघ पूर्णिमा व्रत कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण रहता था। भिक्षा मांगकर ही वे अपना निर्वाह करता था. ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान न थी। एक दिन नगर में भिक्षा मांगने के दौरान लोगों ने ब्राह्मण की पत्नी को बांझ कहकर ताने मारे। साथ ही, उसे  भिक्षा देने से भी इनकार कर दिया। इससे ब्राह्मण की पत्नी बहुत दुखी हो गई। इस घटना के बाद उसे किसी ने 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा।

ब्राह्मण दंपत्ति ने 16 दिनों तक नियमों का पालन करते हुए पूजन किया। दंपत्ति की पूजा से प्रसन्न होकर 16वें दिन मां काली प्रकट हुईं और उसे गर्भवती होने का वरदान दिया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाना और धीरे-धीरे हर पूर्णिमा पर एक-एक दीपक बढ़ा देना। ऐसा कम से कम 32 संख्या तक जलाएं और दोनों पति-पत्नी मिलकर पूर्णिमा का व्रत रखें।

मां काली के कहे अनुसार ब्राह्मण दंपति ने पूर्णिमा को दीपक जलाने शुरू कर दिए और व्रत रखे। ऐसा करने से ब्राह्मणी गर्भवती हो गई। कुछ समय बाद ब्राह्मणी ने एक पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र का नाम देवदास रखा। लेकिन देवदास अल्पायु था। देवदास के बड़े होने पर उसे मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा दिया।

काशी में एक दुर्घटना में घटी जिस कारण धोखे से उसका विवाह हो गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया, लेकिन उस दिन पूर्णिमा थी और ब्राह्मण दंपति ने उस दिन पुत्र के लिए व्रत रखा था। इस कारण काल चाहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका। इससे उसके पुत्र को जीवनदान मिल गया। इस ​तरह पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।