परिचय एवं महत्व-
जैन कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के 13वें ‘सूद’ दिन को ‘वीर तेरस’ के रूप में भी जाना जाता है। महावीर को ‘वर्धमान’ नाम दिया गया था, जिसका अर्थ है ‘‘जो बढ़ता है’’ क्योंकि उनके जन्म के समय राज्य की समृद्धि बढ़ी थी। महावीर स्वामी का जन्म कुंडाग्रमा के राजा सिद्धार्थ, इक्ष्वाकु वंश और रानी त्रिशला के पुत्र के रूप में हुआ था।
कुछ इतिहासकार मानते है कि भगवान महावीर का जन्म लगभग ढाई हजार साल पहले बिहार के चंपारण जिले के कुण्डलपुर में हुआ था, और कुछ लोग मानते है, कि महावीर का जन्म को लोकतांत्रिक राज्य वाजजी में हुआ था तथा इसकी राजधानी वैशाली थी। भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व हुआ था। 30 वर्ष की आयु में महावीर जी ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें सृष्टि का परम ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
महावीर स्वामी के आदर्शों पर चलकर उनके बताए मार्ग को प्रसारित करने के लिए इस दिन जैन धर्म के लोग देश भर में रथयात्रा निकालते है, जिसमे महावीर जी के अहिंसा के संदेश का प्रचार किया जाता है और महावीर जी की मूर्ति पूजन और अभिषेक किया जाता है।