दिनांक | त्यौहार |
बुधवार, 04 जनवरी | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
गुरुवार, 19 जनवरी | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
गुरुवार, 02 फरवरी | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शनिवार, 18 फरवरी | शनि प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शनिवार, 04 मार्च | शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
रविवार, 19 मार्च | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
सोमवार, 03 अप्रैल | सोम प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
सोमवार, 17 अप्रैल | सोम प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
बुधवार, 03 मई | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
बुधवार, 17 मई | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
गुरुवार, 01 जून | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
गुरुवार, 15 जून | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शनिवार, 01 जुलाई | शनि प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शुक्रवार, 14 जुलाई | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
रविवार, 30 जुलाई | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
रविवार, 13 अगस्त | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
सोमवार, 28 अगस्त | सोम प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
मंगलवार, 12 सितंबर | मंगलवार, 12 सितंबर |
बुधवार, 27 सितंबर | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
बुधवार, 11 अक्टूबर | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
गुरुवार, 26 अक्टूबर | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
शुक्रवार, 10 नवंबर | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
शुक्रवार, 24 नवंबर | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
रविवार, 10 दिसंबर | प्रदोष व्रत (कृष्ण) |
रविवार, 24 दिसंबर | प्रदोष व्रत (शुक्ल) |
प्रदोष व्रत क्या है?
प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाते है अर्थात् प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद और रात्रि के आने से पहले का समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस व्रत में भगवान शिव के साथ माँ पार्वती की भी पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में व्रत, पूजा-पाठ, उपवास आदि को काफी महत्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि सच्चे मन से व्रत रखने पर मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। वैसे तो हिन्दू धर्म में हर महीने की प्रत्येक तिथि को कोई न कोई व्रत या उपवास होते हैं लेकिन लेकिन इन सब में प्रदोष व्रत की बहुत मान्यता है ।
प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया। एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त ‘अंशुमती’ नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए। कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया।
दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।