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संकष्टी चतुर्थी

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ 

संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय से मुक्ति पाना’।

इस दिन व्यक्ति अपने दुःखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की आराधना करता है। पुराणों के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना बहुत फलदायी होता है। इस दिन लोग सूर्योदय के समय से लेकर चन्द्रमा उदय होने के समय तक उपवास रखते हैं। संकष्टी चतुर्थी को पूरे विधि-विधान से गणपति जी की पूजा-पाठ की जाती है।

 

साल 2023 में कब-कब है संकष्टी चतुर्थी ?

संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चतुर्थी हर महीने में दो बार आती है जिसे लोग बहुत श्रद्धा से मनाते हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं, वहीं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने के लिए विशेष दिन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार माघ माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी बहुत शुभ होती है। यह दिन भारत के उत्तरी और दक्षिणी राज्यों में ज्यादा धूम-धाम से मनाया जाता है।

दिनांक

त्यौहार

मंगलवार, 10 जनवरी

अंगारकी चतुर्थी

गुरुवार, 09 फरवरी 

संकष्टी चतुर्थी

शनिवार, 11 मार्च

संकष्टी चतुर्थी

रविवार, 09 अप्रैल

संकष्टी चतुर्थी

सोमवार, 08 मई

संकष्टी चतुर्थी

बुधवार, 07 जून

संकष्टी चतुर्थी

गुरुवार, 06 जुलाई

संकष्टी चतुर्थी

शुक्रवार, 04 अगस्त

संकष्टी चतुर्थी

रविवार, 03 सितंबर

संकष्टी चतुर्थी

सोमवार, 02 अक्टूबर

संकष्टी चतुर्थी

बुधवार, 01 नवंबर

संकष्टी चतुर्थी

गुरुवार, 30 नवंबर

संकष्टी चतुर्थी

शनिवार, 30 दिसंबर

संकष्टी चतुर्थी

 

संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि

  • संकष्टी चतुर्थी व्रत के दिन प्रातः काल स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें। 
  • उसके बाद भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें। 
  • पूजा के दौरान श्री गणेशजी को तिल, गुड़, लड्डू, दूर्वा और चंदन अर्पित करें तथा मोदक का भोग लगाएं। 
  • अब श्री गणेश जी की स्तुति और मंत्रों का जाप करें। 
  • पूरे दिन फलाहार व्रत करते हुए शाम को चंद्रोदय के पहले पुनः गणेशजी का पूजन करें। 
  • चंद्रोदय के बाद चंद्र दर्शन करें और चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।



संकष्‍टी चतु‍र्थी महत्‍व 

प्रत्येक मास की दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। वहीं शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी को भगवान गणेश की आराधना करने से पर सभी संकट दूर हो जाते हैं और उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहता है। बहुत से लोग इस दिन निर्जला व्रत भी रखते हैं। मान्यता है कि इस व्रत के करने से संतान प्राप्ति का भगवान आशीर्वाद देते हैं। इसलिए धर्म शास्त्रों में इस व्रत को जनकल्याणकारी बताया गया है। चतुर्थी तिथि के दिन भगवान गणेश के मंत्र ॐ गणेशाय नम: या ॐ गं गणपते नम: लगातार जपते रहें। आप संकट मोचन का भी पाठ कर सकते हैं। साथ ही आप गणेशजी के 12 नाम का जप करें।

 

संकष्‍टी चतु‍र्थी व्रत कथा 

श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। यहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?”

उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गई। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया।

यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और क्रोध में उन्होंने बालक को लगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मागी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।

बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस

लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हो ।’

तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अतः देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दुर्वा, फूल और लहूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।