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श्रीरामनवमी

रामनवमी का महत्व-

भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र ही उनकी पूजन का सबसे बड़ा महत्व है। आज के दूषित परिवेश में अगर हम प्रभु के एक भी शिष्टाचार के अनुसार जीवन जियें तो हमारा जीवन समस्त दुखों से दूर हो जाता है। हम सुखी और शुद्ध विचारधारा लिए सुख से जीते हैं और मोहमाया से भरे इस पृथ्वी लोक को छोड़कर प्रभु में लीन हो जाते हैं। हमारे सनातन धर्म के पवित्र पुराण कहते हैं “रमंते सर्वत्र इति रामः” अर्थात जो सब जगह व्याप्त है वही राम है। सनातन धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने पावन नगरी अयोध्या में रघुकुल परिवार में श्री राम के रूप में मानव रूप में जन्म लिया था। मान्यता है कि राम नवमी पर भगवान राम की पूजा करने से यश और वैभव की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख समृद्धि हमेशा रहती है। साथ ही उनके जीवन चरित्र अनुसार खुद को ढ़ालकर जीवन जीने वालों का सर्वदा कल्याण होता है। भगवान राम की आराधना करने से जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है और सर्व कार्य सिद्ध हो जाते हैं। श्री रामनवमी के दिन श्रीरामचरितमानस का पाठ करना चाहिए। इस दिन से प्रतिदिन रामायण के अर्थ सहित कम से कम 11 दोहे अध्ययन किये जाने चाहिए। इस दिन श्रीराम और माता सीता की विधि पूर्वक पूजन करके राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की हर समस्याएं सुलझना शुरू हो जाती है।

 

पूजन विधि-

चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि के दिन प्रातःकाल उठकर दैनिक क्रियाओं से फुर्सत होकर स्नान करें। घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की तोरण लगाएं। स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूरे घर को साफ-सफाई करके गंगाजल से छिड़काव कर शुद्ध करें। नित्य पूजन करने वाली सभी सामग्रियां जैसे- पुष्प, माला, चन्दन सहित सभी गन्धक, अक्षत, पंचामृत, भोग, हवन सामग्री आदि एकत्रित करके रख लें। 

 

लकड़ी की चौरंग, पटा हो तो उसपर सुंदर सा साफ कपड़ा बिछाएं। उसपर पूरे रामदरबार का छाया चित्र या मूर्ति स्थापित करें। दाएं भाग में दीपक का कलश, और नारियल कलश रखें। सामने गणेश और गौरी स्थापित करें। अब हाथ में जल लेकर पवित्रीकरण करें, खुदपर और आसपास गंगाजल छिड़कें। पृथ्वी का पूजन करें। 3 बार जल ग्रहण कर आचमन करें। दीपक कलश प्रज्ज्वलित करें और दीप देवता का ध्यान करके पूजा करें। हाथ धोकर दाएं हाथ में पान लेकर उसमें पुष्प, अक्षत, जल, सिक्का, सुपारी रखें और पूजा संकल्प लें। अब सबसे पहले भगवान गणेश और गौरी का ध्यान, आवाहन और पूजन करें। इसके बाद नारियल कलश में वरुण देव की पूजन करें। इसके बाद श्रीरामस्तुति “श्रीरामचन्द्र कृपालु भजमन” जपते हुए भगवान श्रीराम दरबार की षोडशोपचार पूजन करें। धूप दीप दिखाकर पंचामृत और पान-फल आदि चढ़ाएं, शुद्ध स्नान करवाएं, जनेउ पहनाएं और नए वस्त्र अर्पित करें। सात्विक भोग और नैवेद्य निवेदित करें। पूजन के बाद श्री रामरक्षा स्तोत्र का पाठ करें। सभी देवी देवताओं और श्री राम के नाम से हवन क्रिया सम्पन्न करें। इसके बाद जन्म गीत के रूप में रामचरितमानस के छंद “भये प्रगट कृपाला दीनदयाला” का हर्षोल्लास से पाठ करें। अंत में कर्पूर आरती-पुष्पांजलि पढ़कर प्रसाद वितरण करें और भजन कीर्तन का आयोजन करें। पूरे दिन श्रीराम के ध्यान में मग्न रहें और उनके जीवन चरित्र को समझकर अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करें। 

 

श्रीराम आरती-

 

नखसिख छविधर की, आरती करिये सियावर की॥

आरती करिए सियावर की, आरती करिए रघुवर की।।

 

लालपीत अम्बर अति साजे

मुख निरखत पूरण शशि लाजे

तिलक तिलक भालन पर साजे।

केसर कुमकुम की, आरती करिए सियावर की॥

 

शीश मुकुट कुंडल झलकत है,

चन्द्रहार मोती लटकत है

कर कंकण की छवि दरसत है

जगमग दिनकर की, आरती करिए सियावर की॥

 

मृदु तरुवन में अधिक ललाई,

हास विलास ना कछु कही जाई

चितवन की गति अति सुखदाई,

मन ही मनहर की, आरती करिए सियावर की॥

 

सिंहासन पर चवर दुलत है,

वाद्य बजत जय जय उच्चरत है

सादर स्तुति भक्त करत है,

रघुकुल अनुचर की, आरती करिए सियावर की ॥

 

तुलसीदास प्रभु अर्ज करत है,

करी दंडवत चरण परसत है,

अंजुरीन देव सुमन बरसत हैं,

रघुकुल दिनमणि की, आरती करिए सियावर की।।

 

नखसिख छविधर की, आरती करिये सियावर की॥

 

सियावर रामचंद्र की जय