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Saptam divas 2023

saptam divas maa kaalratri mantra stuti vastu expert arun ji

सप्‍तम दिवस - देवी कालरात्रि

माता कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इन्हें देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है। देवी के नाम का अर्थ- काल अर्थात् मृत्यु/समय और रात्रि अर्थात् रात है। देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली है।

माता कालरात्रि का स्वरूप

देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। वे गधे की सवारी करती हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक बाएँ दोनों हाथ में क्रमशः तलवार और खडग हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानव थे जिन्होंने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा। जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। तब देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो। माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं। आइए हम उनमें से एक बताते हैं कि देवी पार्वती दुर्गा में कैसे परिवर्तित हुईं? मान्यताओं के मुताबिक़ दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की लगातार कोशिश कर रहा था। इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसको मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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शनि उदय 2024

18 मार्च 2024 को होगा शनि का कुंभ में उदय। छात्रों की हो जाएगी बल्ले-बल्ले!

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Shashtam divas 2023

shastam divas maa katayani manyata astrologer arun ji

षष्‍टम दिवस - देवी कात्यायनी

कात्यायनी माता की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। देवी पार्वती ने यह रूप महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए धारण किया था। माता का यह रूप काफ़ी हिंसक माना गया है, इसलिए माँ कात्यायनी को युदध की देवी भी कहा जाता है।

माता कात्यायनी का स्वरूप

माँ कात्यायनी शेर की सवारी करती हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं, बाएँ दो हाथों में कमल और तलवार है, जबकि दाहिने दो हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। देवी लाल वस्त्र में सुशोभित हो रही हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी ने कात्यायन ऋषि को जन्म दिया था, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। कई जगह यह भी संदर्भ मिलता है कि वे देवी शक्ति की अवतार हैं और कात्यायन ऋषि ने सबसे पहले उनकी उपासना की, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। जब पूरी दुनिया में महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया और ब्रह्माण्ड को उसके आत्याचार से मुक्त कराया। तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देवी और दानव महिषासुर में घोर युद्ध हुआ। उसके बाद जैसे ही देवी उसके क़रीब गईं, उसने भैंसे का रूप धारण कर लिया। इसके बाद देवी ने अपने तलवार से उसका गर्दन धड़ से अलग कर दिया। महिषासुर का वध करने के कारण ही देवी को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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Pancham divas 2023

pancham divas maa skand mata ka swaroop numerologist arun ji

पंचम दिवस - देवी स्कंदमाता

माता स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पाँचवें दिन होती है। देवी के इस रूप के नाम का अर्थ, स्कंद मतलब भगवान कार्तिकेय/मुरुगन और माता मतलब माता है, अतः इनके नाम का मतलब स्कंद की माता है।

माता स्कंदमाता का स्वरूप

माँ स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। देवी दो हाथों में कमल, एक हाथ में कार्तिकेय और एक हाथ से अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। कमल पर विराजमान होने के कारण देवी का एक नाम पद्मासना भी है। माता की पूजा से भक्तों को सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवी की सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। देवी के इस रूप को अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है। जैसा की माँ ममता की प्रतीक हैं, इसलिए वे भक्तों को प्रेम से आशीर्वाद देती हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था जो ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करता था। एक दिन भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हो गए। तब उसने उसने अजर-अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। फिर उसने सोचा कि शिव जी तपस्वी हैं, इसलिए वे कभी विवाह नहीं करेंगे। अतः यह सोचकर उसने भगवान से वरदान माँगा कि वह शिव के पुत्र द्वारा ही मारा जाए। ब्रह्मा जी उसकी बात से सहमत हो गए और तथास्तु कहकर चले गए। उसके बाद उसने पूरी दुनिया में तबाही मचाना शुरू कर दिया और लोगों को मारने लगा। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण शिव जी के पास पहुँचे और विवाह करने का अनुरोध किया। तब उन्होंने देवी पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। जब भगवान कार्तिकेय बड़े हुए, तब उन्होंने तारकासुर दानव का वध किया और लोगों को बचाया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

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Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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chaturth divas 2023

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चतुर्थ दिवस - माँ कूष्माण्डा

कूष्माण्डा माता की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन होती है। कूष्माण्डा संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ- कू मतलब छोटा/सूक्ष्म, ऊष्मा मतलब ऊर्जा और अण्डा मतलब अण्डा है। देवी के कूष्माण्डा रूप की पूजा से भक्तों को धन-वैभव और सुख-शांति मिलती है।

माता कूष्माण्डा का स्वरूप

माँ कूष्माण्डा की 8 भुजाएँ हैं जो चक्र, गदा, धनुष, तीर, अमृत कलश, कमण्डलु और कमल से सुशोभित हैं। माता शेरनी की सवारी करती हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

जब चारों ओर अंधेरा फैला हुआ था, कोई ब्रह्माण्ड नहीं था, तब देवी कूष्माण्डा ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए सृष्टि की उत्पति की। देवी का यह रूप ऐसा है जो सूर्य के अंदर भी निवास कर सकता है। यह रूप सूर्य के समान चमकने वाला भी है। ब्राह्माण्ड की रचना करने के बाद देवी ने त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) और त्रिदेवी (काली, लक्ष्मी और सरस्वती) को उत्पन्न किया। देवी का यही रूप इस पूरे ब्रह्माण्ड की रचना करने वाला है। ज्योतिषी के अनुसार कूष्माण्डा माँ सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं। अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है।

माँ कूष्माण्डा का मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

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Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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चैत्र नवरात्रि 2024!

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शनि उदय 2024

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Tritiya divas 2023

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तृतीय दिवस - देवी चंद्रघण्टा

चंद्रघण्टा माता की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। इनके नाम का अर्थ, चंद्र मतलब चंद्रमा और घण्टा मतलब घण्टा के समान। उनके माथे पर चमकते हुए चंद्रमा के कारण ही उनका नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इन्हें चंद्रखंडा नाम से भी जाना जाता है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को साहस और वीरता का अहसास कराता है और उनके दुःखों को दूर करता है। देवी चंद्रघण्टा माता पार्वती की ही रौद्र रूप हैं, लेकिन उनका यह रूप तभी दिखता है जब वे क्रोधित होती हैं, अन्यथा वे बहुत ही शांत स्वभाव की हैं।

माता चंद्रघण्टा का स्वरूप

माँ चंद्रघण्टा शेरनी की सवारी करती हैं और उनका शरीर सोने के समान चमकता है। उनकी 10 भुजाएँ हैं। उनके बाएँ चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमण्डलु विभूषित हैं, वहीं पाँचवा हाथ वर मुद्रा में है। माता की चार अन्य भुजाओं में कमल, तीर, धनुष और जप माला हैं और पाँचवा हाथ अभय मुद्रा में है। माता का अस्त्र-शस्त्र से विभूषित यह रूप युद्ध के समय देखने को मिलता है।

पौराणिक मान्यताएँ

जब भगवान शिव ने देवी से कहा कि वे किसी से शादी नहीं करेंगे, तब देवी को यह बात बहुत ही बुरा लगा। देवी की यह हालत ने भगवान को भावनात्मक रूप से बहुत ही चोट पहुँचाया। इसके बाद भगवान अपनी बारात लेकर राजा हिमावन के यहाँ पहुँचे। उनकी बारात में सभी प्रकार के जीव-जंतु, शिवगण, भगवान, अघोरी, भूत आदि शामिल हुए थे। इस भयंकर बारात को देखकर देवी पार्वती की माँ मीना देवी डर के मारे बेहोश हो गईँ। इसके बाद देवी ने परिवार वालों को शांत किया, समझाया-बुझाया और उसके बाद भगवान शिव के सामने चंद्रघण्टा रूप में पहुँचीं। उसके बाद उन्होंने शिव को प्यार से समझाया और दुल्हे के रूप में आने की विनती की। शिव देवी की बातों को मान गए और अपने आप को क़ीमती रत्नों से सुसज्जित किया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
माता चंद्रघण्टा का मंत्र ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
स्तुति या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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Dwitiya divas 2023

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द्वितीय दिवस - माँ ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन होती है। देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ, ब्रह्म के समान आचरण करने वाली है। इन्हें कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालाँकि इन सबके बावजूद देवी ने कामुक गतिविधियों के स्वामी भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान आगबबूला हो गए और उन्होंने स्वयं को जला दिया। कहानी यही ख़त्म नहीं होती है। उसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया। देवी पहाड़ पर गईं और वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

देवी ब्रह्मचारिणी का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

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चैत्र नवरात्रि 2024!

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शनि उदय 2024

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Pratham divas 2023

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प्रथम दिवस

माँ शैलपुत्री दुर्गा के नौ रूपों में पहला रूप हैं जिनकी भक्तगण नवरात्रि पर्व में पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के नौ दिन दुर्गा माँ के नौ रूपों को समर्पित होते हैं और इस पावन पर्व के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है।

शैलपुत्री का रूप

• माथे पर अर्ध चंद्र
• दाहिने हाथ में त्रिशूल
• बाएँ हाथ में कमल
• नंदी बैल की सवारी
शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। पौराणिक कथा के अनुसार माँ शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में भगवान शिव की अर्धांगिनी (सती) और दक्ष की पुत्री थीं। एक बार जब दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन कराया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, परंतु भगवान शंकर को नहीं। उधर सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो रही थीं। शिवजी ने उनसे कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है लेकिन उन्हें नहीं; ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँचीं तो वहाँ उन्होंने भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव देखा। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक शब्द कहे। इससे सती के मन में बहुत पीड़ा हुई। वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया। फिर यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। हिमालय के राजा का नाम हिमावत था और इसलिए देवी को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। माँ की सवारी वृष है तो उनका एक नाम वृषारुढ़ा भी है।

ज्योतिष के अनुसार

ज्योतिष के अनुसार माँ शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं, इसलिए उनकी उपासना से चंद्रमा के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभाव भी निष्क्रिय हो जाते हैं।

माँ शैलपुत्री का मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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Sharad Navratri 2023

शरद नवरात्रि, घटस्थापना

नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। एक वर्ष में पांच बार नवरात्र आते हैं, चैत्र, आषाढ़, अश्विन, पौष और माघ नवरात्र। इनमें चैत्र और अश्विन यानि शारदीय नवरात्रि को ही मुख्य माना गया है। इसके अलावा आषाढ़, पौष और माघ गुप्त नवरात्रि होती है। शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।

सांस्कृतिक परंपरा

नवरात्रि में देवी शक्ति माँ दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के समय घरों में कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है। नवरात्रि के दौरान देशभर में कई शक्ति पीठों पर मेले लगते हैं। इसके अलावा मंदिरों में जागरण और मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की झांकियां बनाई जाती हैं।

पौराणिक मान्यता

शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में ही भगवान श्रीराम ने देवी शक्ति की आराधना कर दुष्ट राक्षस रावण का वध किया था और समाज को यह संदेश दिया था कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। आइए जानते हैं कि 2023 में घटस्थापना/कलश स्थापना कब है व घटस्थापना/कलश स्थापना 2023 की तारीख व मुहूर्त। नवरात्र में घटस्थापना अथवा कलश स्थापना का विशेष महत्व है। सामान्य रूप से इसे नवरात्रि का पहला दिन माना जाता है। घटस्थापना के दिन से नवरात्रि का प्रारंभ माना जाता है। नवरात्रों (चैत्र व शारदीय) में प्रतिपदा अथवा प्रथमा तिथि को शुभ मुहुर्त में घट स्थापना पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कलश को भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है और किसी पूजा के लिए सर्वप्रथम गणेश जी की वंदना की जाती है।

घटस्थापना के नियम

  • दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले घटस्थापना की प्रक्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए
  • इसके अलावा कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है
  • घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र इस प्रकार हैं: पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु
घटस्थापना
घटस्थापना मुहूर्त रविवार अक्टूबर 15 सुबह :11:43:am से 12:29:pm तक

घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री

● सप्त धान्य (7 तरह के अनाज)
● मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
● पवित्र स्थान से लायी गयी मिट्टी
● कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
● पत्ते (आम या अशोक के)
● सुपारी
● जटा वाला नारियल
● अक्षत (साबुत चावल)
● लाल वस्त्र
● पुष्प (फ़ूल)

घटस्थापना विधि

● सर्वप्रथम मिट्टी के बर्तन में रख कर सप्त धान्य को उसमे रखें
● अब एक कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बाँधकर उसे उस मिट्टी के पात्र पर रखें
● अब कलश के ऊपर अशोक अथवा आम के पत्ते रखें
● अब नारियल में कलावा लपेट लें
● इसके उपरान्त नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें
● घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है

20 अक्टूबर, 2023 (शुक्रवार)

कल्पारम्भ

दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत षष्ठी से प्रारंभ होती है। मान्यता है कि देवी दुर्गा इस दिन धरती पर आई थीं। षष्ठी के दिन बिल्व निमंत्रण पूजन, कल्पारंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण और अधिवास की परंपरा है।

काल प्रारंभ

काल प्रारंभ की क्रिया प्रात: काल की जाती है। इस दौरान घट या कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना का संकल्प लिया जाता है।

बोधन

बोधन जिसे अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन की क्रिया शाम को संपन्न की जाती है। बोधन से तात्पर्य है नींद से जगाना। इस मौके पर मां दुर्गा को नींद से जगाया जाता है। दरअसल हिंदू मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा उत्सव साल के मध्य में दक्षिणायान काल में आता है इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के माध्यम से नींद से जगाया जाता है। बताया जाता है कि भगवान श्री राम ने सबसे पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और इसके बाद राक्षस राज रावण का वध किया था। चूंकि देवी दुर्गा को असमय नींद से जगाया जाता है इसलिए इस क्रिया को अकाल बोधन भी कहते हैं। बोधन की परंपरा में किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। बिल्व पत्र का शिव पूजन में बड़ा महत्व होता है। बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निंद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है। बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की वंदना को आह्वान के तौर पर भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता है।

24 अक्टूबर 2023 मंगलवार दुर्गा विसर्जन

दुर्गा विसर्जन मुहूर्त
24 अक्टूबर, मंगलवार
दुर्गा विसर्जन समय :06:27:am से 08:42:am तक

दुर्गा पूजा उत्सव का समापन

दुर्गा पूजा उत्सव का समापन दुर्गा विर्सजन के साथ होता है। दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर शुरू होता है। इसलिए प्रात: कालया अपराह्न काल में जब विजयादशमी तिथि व्याप्त हो, तब मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना चाहिए। कई सालों से विसर्जन प्रात:काल मुहूर्त में होता आया है लेकिन यदि श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि अपराह्न काल में एक साथ व्याप्त हो, तो यह समय दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के लिए श्रेष्ठ है। देवी दुर्गा के ज्यादातर भक्त विसर्जन के बाद ही नवरात्रि का व्रत तोड़ते हैं। दुर्गा विसर्जन के बाद विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने राक्षस राज रावण को मारा था। वहीं देवी दुर्गा ने इस दिन असुर महिषासुर का वध किया था। दशहरा के दिन शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन जैसी परंपराएं भी निभाई जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार ये सभी परंपरा अपराह्न काल में मनानी चाहिए।

24 अक्टूबर, 2023 (मंगलवार)

शरद नवरात्रि पारणा

आइए जानते हैं कि 2023 में शरद नवरात्रि पारणा कब है व शरद नवरात्रि पारणा 2023 की तारीख व मुहूर्त

शरद नवरात्रि पारणा का मुहूर्त
24 अक्टूबर 2023, मंगलवार
नवरात्रि पारणा का समय :06:27:am के बाद से

शरद नवरात्रि का पारणा अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। पारणा के साथ 9 दिनों तक चलने वाली शरद नवरात्रि का समापन हो जाता है। पारणा मुहूर्त को लेकर शास्त्रों में कुछ मतभेद हैं कि पारणा नवमी को होगा या दशमी को। मिमांसा (जिन्होंने शास्त्रों की व्याख्या की है) के अनुसार पारणा दशमी को करना चाहिए, क्योंकि कई शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि नवमी को उपवास रखा जाता है। यदि नवमी तिथि दो दिन पड़ रही हो, तब उस स्थिति में पहले दिन उपवास रखा जाएगा और दूसरे दिन पारणा होगा, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। नवमी नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की षोडषोपचार पूजा करके मूर्ति विसर्जन करना चाहिए। पूजा और विसर्जन के बाद ब्राह्मणों को फल, उपहार, वस्त्र, दान-दक्षिणा आदि (अपनी इच्छानुसार) देनी चाहिए। साथ ही उपरोक्त चीज़ें 9 बालिकाओं को भी कन्या पूजन करके देनी चाहिए।

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October Prediction-2023

अक्टूबर राशिफल 2023

सौगातों या समस्या से भरा रहेगा अक्टूबर का ये महीना आपके लिये। अक्टूबर के महीने में शनि कुछ राशियों में वक्री हो रहे है, जिससे कुछ राशियों में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते है। इस महीने ग्रहों की चाल तेजी से बदलने वाली है। ऐसे में सभी 12 राशियों पर बड़े ही रोचक प्रभाव देखे जाने वाले हैं, कुछ राशियों के लिए यह महीना खुशहाली से भरा होगा, लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनके लिए अक्टूबर का यह महीना अशुभ परिणामों से भरा हो सकता है।

मेष-

  • कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है। 
  • जॉब के लिये विदेश से शुभ समाचार प्राप्त हो सकते हैं। 
  • आर्थिक पक्ष ठीक-ठाक रहेगा। 
  • बिज़नेस में कुछ यूनिक करने से मिलेगा फायदा। 
  • इस महीने घबराहट और तनाव हो सकता है। 
  • प्रेमी जीवन शानदार रहेगा। 
  • विद्यार्थियों के लिये सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते है। 

मेष राशि के लिये उपाय- शनिवार को मंदिर जाकर हनुमान चालीसा या हनुमान अष्टक का पाठ करें। 

वृषभ-

  • कार्यक्षेत्र में संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। 
  • पेट की खराबी, आँखों में जलन और कंधों में चोट लग सकती है।
  • आर्थिक पक्ष में खर्च अधिक होंगे। 
  • शादीशुदा जीवन में अशांति हो सकती है। 
  • विद्यार्थी अपनी पढाई को लेकर कंफ्यूज हो सकते हैं। 
वृषभ राशि के लिये उपाय- 108 बार ॐ दुर्गाय नमः मंत्र का जाप करके दिन की शुरुवात करें।

मिथुन-

  • कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है।
  • इस माह आप अपने आप को निखारेंगे।  
  • आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। 
  • आपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • प्रेमी जीवन सुखद बीतेगा। 
  • किसी और की वजह से पढ़ाई में नुकसान हो सकता है। 
मिथुन राशि के लिये उपाय- रोज़ाना शाम के समय चंद्र साधना जरूर करें।

कर्क-

  • नई जॉब के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है। 
  • इस माह 12-18 तारीख का संघर्ष का समय होगा। 
  • किसी को उधारी देने से बचे। 
  • माता-पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • गलतफहमी की वजह से रिश्ते खराब हो सकते हैं। 
  • विद्यार्थी किसी प्रेमी उलझन में फस कर अपना समय बर्बाद कर सकते है।

 

कर्क राशि के लिये उपाय- सोमवार के दिन ‘ॐ सोमाय नमः’ मंत्र का जप 21 बार करें। 

सिंह-

  • ये महीना कार्यक्षेत्र में सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला है। 
  • आर्थिक पक्ष में कमाई के नये अवसर बन सकते हैं।
  • इस माह पैसों को लेकर सतर्कता बरतें। 
  • बालों का झड़ना, आँखों में जलन हो सकती है। 
  • आपका लव रिलेशन और मजबूत हो जायेगा। 
  • विद्यार्थिओं का कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ेगा।
सिंह राशि के लिये उपाय- आदित्यह्रदयस्त्रोतं का पाठ करके दिन की शुरुवात करे।

कन्या-

  • कार्यक्षेत्र में वर्कलोड बढ़ सकता है। 
  • इस महीने आपके खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • सिरदर्द, और आँखों में दर्द हो सकता है।
कन्‍या राशि के लिये उपाय – माँ लक्ष्मी की पूजा और ‘श्रीं श्रीं श्रीं’  मंत्र का जप 108 बार प्रतिदिन करें। 

तुला-

  • कार्यक्षेत्र में कोई भी कार्य देरी से हो सकता है। 
  • आपके कार्य में अड़चने आ सकती है। 
  • आपकी कमाई में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • Stress, anxiety हो सकती है। 
  • प्रेमी संबंध में अनबन हो सकती है।  
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत ईमानदार दिखेंगें।
तुला राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 41 बार ‘ॐ केतवाय नमः’ मंत्र का जप करे।

वृश्चिक-

  • कार्यक्षेत्र में फोकस की कमी दिखाई दे सकती है। 
  • ये महीना बिजनेसमैन के लिये साधारण रहेगा । 
  • जॉब में तनाव हो सकता है। 
  • खर्च करते समय ध्यान रखें। 
  • माँ को पेट की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • प्रेमी जीवन में सतर्कता बरते। 
  • विद्यार्थी अपनी भावनाओं में नियंत्रण रखे।
वृश्चिक राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 27 बार ‘ॐ हं हनुमते नमः’ मंत्र का जप करे।

धनु-

  • बेरोजगारों के लिए विदेश में नौकरी के संयोग बन रहे है।
  • इस महीने आपको भाग्य का सहारा मिलेगा। 
  • आपके विवाह के योग बन रहे है। 
  • परिवार में खुशनुमा माहौल रहेगा। 
  • विद्यार्थियों को बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।
धनु राशि के लिये उपाय- गरीब लोगों को भोजन जरूर करायें।   

मकर-

  • करियर में उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। 
  • बिज़नेस में नये अवसर प्राप्त होंगे। 
  • आर्थिक पक्ष को लेकर उतार चढ़ाव का सामना हो सकता है। 
  • आँखों में जलन और सिर दर्द हो सकता है। 
  • प्रेमी जीवन धीरे-धीरे ठीक हो रहा है। 
  • विद्यार्थियों को अपनी मेहनत के परिणाम मिलने लगेंगे। ।
मकर राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 21 बार ॐ हन: हनुमते नमः मंत्र का जप करे। 

कुंभ-

  • कार्यक्षेत्र में आप अपनी प्रयोरिटी को आगे रखकर कार्य करोगे। 
  • इस महीने आप कहीं घूमने जा सकते है। 
  • यह माह आर्थिक पक्ष के लिये ठीक ठाक रहेगा। 
  • पीट दर्द और आलस्य का सामना करना पड़ सकता है। 
  • प्रेमी जीवन में बहुत नोकझोंक दिखाई दे रही है। 
  • अपनी वाणी में नियंत्रण रखे। 
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में कुछ परिवर्तन कर सकते है। 
कुंभ राशि के लिये उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करे और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जाप प्रतिदिन 11 बार जरूर करे।

मीन-

  • शनि की साढ़ेसाती से कार्यक्षेत्र में भारीपन लगेगा। 
  • सेहत का बहुत ध्यान रखें। 
  • पैसों की बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • परिवार में सभी लोग अपने कामों को लेकर व्यस्त रहेंगे।
  • विद्यार्थी अपनी पढाई को लेकर बहुत ध्यान दे रहे है। 
मीन राश‍ि के लिये उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करे और हनुमान मंदिर में सिंदूर का दान करें और सिंदूर को माथे पर जरूर लगाये।

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