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भाद्रपद पूर्णिमा व्रत

पूर्णिमा की तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। यह पूर्णिमा इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन से पितृ पक्ष यानि श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, जो आश्विन अमावस्या पर समाप्त होते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत मुहूर्त

सितंबर 28, 2023 को 18:51:36 से पूर्णिमा आरम्भ
सितंबर 29, 2023 को 15:29:27 पर पूर्णिमा समाप्त

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजा विधि

धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-

● पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें।
● इसके बाद विधिवत तरीके से भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और उन्हें नैवेद्य व फल-फूल अर्पित करें।
● पूजन के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिये। इसके बाद पंचामृत और चूरमे का प्रसाद वितरित करना चाहिये।
● इस दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

उमा-महेश्वर व्रत

भविष्यपुराण के अनुसार उमा महेश्वर व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है लेकिन नारदपुराण के अनुसार यह व्रत भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसकी पूजा विधि इस प्रकार है-

  1. इस व्रत के प्रभाव से बुद्धिमान संतान, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  2. यह व्रत विशेष महत्व रखता है, स्त्रियों के लिए। शिव और पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करते हुए घर में पूजा स्थान पर उनका ध्यान करना चाहिए।
  3. उन्हें धूप, दीप, गंध, फूल तथा शुद्ध घी का भोजन अर्पण करना चाहिए।

कथा उमा-महेश्वर व्रत की

इस व्रत का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है। कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के दर्शन करके लौट रहे थे। रास्ते में उनकी भेंट भगवान विष्णु से हो गई। महर्षिने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी। भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी। इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित होकर बोले कि ‘तुमने भगवान शंकर का अपमान किया है। इससे तुम्हारी लक्ष्मी चली जाएगी। क्षीर सागर से भी तुम्हे हाथ धोना पड़ेगा और शेषनाग भी तुम्हारी सहायता न कर सकेंगे।’ यह सुनकर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा। इस पर महर्षि दुर्वासा ने बताया कि उमा-महेश्वर का व्रत करो, तभी तुम्हें ये वस्तुएँ मिलेंगी। तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियाँ भगवान विष्णु को पुनः मिल गईं।

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