हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र माह की पहली तिथि से नवरात्रि 2024 की शुरुआत होती है, जिस दिन हिन्दू नववर्ष का भी आरंभ होता है। इस दिन से लोग माँ दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं, जो हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, माँ कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। साल में चार नवरात्रि मनाई जाती है दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष। चैत्र और अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना होती है वहीं आषाढ़ और माघ की गुप्त नवरात्रि में मां अंबे की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन गुड़ी पड़वा और चेती चांद का त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रि में देवी के भक्त घटस्थापना करते हैं, नौ दिनों तक व्रत रखकर शक्ति साधना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि 2024 की प्रथम तिथि पर कलश की स्थापना की जाती है, और उसके बाद 9 दिनों तक उस कलश का पूजन किया जाता है। नवरात्रि 2024 की अष्टमी और नवमी पर छोटी कन्याओं का भोज कराया जाता है, जो माँ दुर्गा के स्वरूप मानते हुए उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया जाता है।
घटस्थापना मुहूर्त : 06:01:45 से 10:15:47 तक
अवधि : 4 घंटे 14 मिनट
नवरात्र का धार्मिक महत्व चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति के नौ रूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। देशभर में इस त्योहार को बड़े ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। माना जाता है कि चैत्र नवरात्र की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर ही आदिशक्ति ने अपने नौ रूपों में प्रकट हुई थीं। इसलिए इस तिथि के अगले नौ दिनों तक माता रानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिनका अपना-अपना महत्व है। साथ ही चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है, अर्थात इस दिन से हिन्दू नववर्ष की भी शुरुआत होती है।
नवरात्रि का ज्योतिष महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्योतिष शास्त्र में चैत्र नवरात्रि को विशेष ध्यान दिया जाता है। क्योंकि चैत्र नवरात्र के बाद सूर्य का राशि बदलता है। यह समय ऐसा होता है जब सूर्य 12 राशियों को चक्कर लगाकर मेष राशि में पहुंचता है। सूर्य और मंगल दोनों की राशि मेष को अग्नि का प्रतीक माना जाता है। इस कारण इनके संयोग से गर्मी की आगाज होती है।
नवरात्रि के पूजन का तरीका बहुत सरल है। सबसे पहले, नवरात्रि के पहले दिन अपने घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाएं और दरवाजे पर आम के पत्ते का तोरण लगाएं। ऐसा करने से माता लक्ष्मी को आपका घर पसंद आता है। फिर, माता की मूर्ति को लकड़ी की चौकी या आसन पर स्थापित करें। उसके बाद, मूर्ति के स्थान पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं और रोली और अक्षत से टीकें। फिर, माता की पूजा करें। वास्तुशास्त्र के अनुसार, पूजा के लिए ईशान कोण को सर्वोत्तम माना जाता है, इसलिए कलश को उसी दिशा में स्थापित करें। नवरात्रि के दिनों में पूरे घर में मां दुर्गा का वास माना जाता है, जिससे भक्तिमय वातावरण बना रहता है।
चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा 2 अप्रैल 2022 को है। नवरात्रि व्रत कुल नौ दिन तक चलेंगे। नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक अलग -अलग देवियों की पूजा की जाती है। हर देवी का स्वरुप और महत्व अलग-अलग है। ऐसे ही देवियों की पूजा विधि और उन्हें प्रसन्न करने के मंत्र भी अलग-अलग है। एस्ट्रो अरूण पंडित के द्वारा यहां बताया जा रहा है चैत्र नवरात्रि में देवि के नौ स्वरूप और उन्हें प्रसन्न करने के विशेष मंत्र-
शैलपुत्री-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शैलपुत्री देवी, देवराज हिमालय की बेटी हैं। यही मां नव दुर्गा का प्रथम रूप हैं। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा अर्चना की जाती है।
शैलपुत्री का मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
मंत्र का फल –
मान्यता के अनुसार, इस मंत्र के जाप से शरीर निरोगी रहता है और बीमारियां पास नहीं आती हैं।
ब्रह्मचारिणी –
नवदुर्गा का दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी हैं। इनके हाथों में कमण्डल और माला है। मान्यता के अनुसार, माता पार्वती के घोर तप करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इसी कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी देवी पड़ा।
ब्रह्मचारिणी माता का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मंत्र का फल –
इस मंत्र के सटीक जाप से सौभाग्य का वरदान मिलता है।
मां चंद्रघंटा-
मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। देवी अपने दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और सिंह पर बैठी हुई असुरों के संहार के लिए तैयार रहती हैं।
मां चंद्रघंटा का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने। श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
मंत्र का फल –
इस मंत्र के प्रभाव से जातक के पाप और परेशानियों का क्षय होता है।
मां कुष्मांडा-
देवी दुर्गा का चौथा रूप कुष्मांडा देवी का है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण जगत जननी भी कहा जाता है। मां की आठ भुजाएं हैं जिनमें वे कई शस्त्र धारण करती हैं और मां सिंह पर सवार रहती हैं।
कुष्मांडा माता का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मंत्र का फल –
इस मंत्र के प्रभाव से जातक के यश में वृद्धि होती है और व्याधियों का नाश होता है।
मां स्कंदमाता-
स्कंदमाता मां नव दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। स्कंदमाता की गोद में शिव जी के पुत्र कार्तिकेय बैठे रहते हैं। स्कंदमाता को कार्तिकेय की मां कहा गया है।
स्कंदमाता का मंत्र-
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
मंत्र का फल –
ये मंत्र भक्तों को शुभ फल देने वाला और उनकी इच्छा पूरी करने वाला माना जाता है।
मां कात्यायनी-
कात्यायन ऋषि की साधना और तप से उत्पन्न होने वाली कात्यायनी देवी को मां दुर्गा का छठा रूप माना गया है। कात्यायनी की उपासना से पापों का नाश होता है।
मां कात्यायनी का मंत्र-
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 3। कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
मंत्र का फल –
विवाह में बाधा आ रही है तो इस मंत्र का जाप करें।
मां कालरात्रि –
मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। हाथ में खड्ग और नरमुण्ड धारण करने वाली कालरात्रि दुष्टों का नाश कर भक्तों की डर से मुक्त करने वाली मानी गई हैं।
मां कालरात्रि का मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊँ कालरात्रि दैव्ये नम:।
मंत्र का फल –
मान्यता है कि मंत्र के जाप से जातक को शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है।
मां महागौरी –
नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरुप की पूजा का विधान है। मान्यता के अनुसार, तपस्या के कारण देवी का शरीर श्याम हो गया था लेकिन शिव जी ने जब उन पर अभिमंत्रित जल छिड़का तो वे पुनः गौर वर्ण हो गईं।
मां महागौरी का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मंत्र का फल –
ये मंत्र जातक की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है।
मां सिद्धिदात्री-
दुर्गा माता का नवां रूप मां सिद्धिदात्री है। मान्यता है कि इनकी पूजा से सिद्धियों की प्राप्ति होती है साथ ही जीवन में सुख और सौभाग्य बना रहता है।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
मंत्र का फल –
मान्यताओं के अनुसार इस मंत्र के विधिवत जाप से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।