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holi mehatav 2023 by astrologer arun ji

होली में करें ये विशेष उपाय, होगी हर मनोकामना पूरी !

होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

शुभ मुहूर्त-
होलिका दहन मुहूर्त – प्रदोष काल शाम 06:24 से 08:51 बजे तक

पूर्णिमा प्रारम्भ – 06 मार्च शाम 04:17 बजे से

पूर्णिमा समाप्त – 07 मार्च शाम 06:09 बजे तक

धुरेन्डी पर्व – 08 मार्च 2023 बुधवार

होलिका दहन के नियम-

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए –

1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।

2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

धार्मिक महत्व-

हिन्दू त्यौहारों में होली का त्यौहार प्रमुख रूप से मनाया जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी है। इसका धार्मिक और प्राकृतिक दोनों रूपों में विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन श्री हरि भक्त प्रह्लाद को राक्षसी होलिका मारने के उद्देश्य से आग में बैठी थी, होलिका को वरदान स्वरूप आग पर विजय प्राप्त थी, इसलिए आग से उसका बिल्कुल भी अहित नही होता था। लेकिन विष्णु जी परम प्रिय भक्त प्रह्लाद की हत्या के मकसद से जैसे ही होलिका आग में बैठी उसी वक्त वह जलकर भस्म हो गई जबकि भक्त प्रह्लाद का बाल भी बाँका नही हुआ। इस घटना के दूसरे दिन सभी तरफ लोगों ने रंग और गुलाल से भारी उत्सव मनाया। तब से लेकर आज तक इस दिन को रंगों के पर्व होली और दूसरे दिन धुरेन्डी के नाम से जाना जाने लगा। होली का त्यौहार समाजिक भाईचारा और प्रेम भाव को बढ़ाता है, दुश्मनी खत्म होकर दोस्ती में बदलती है। रंग खेलने का एक उद्देश्य यह भी होता है कि आपके सभी के जीवन में खुशियों के रंग भरे रहें। आज ही के दिन इस उत्सव को बसन्तोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। होली का त्योहार दीपावली की ही तरह पांच दिनों तक मनाया जाता है, पँचमी तिथि के दिन रंगपंचमी का त्यौहार मनाकर होली उत्सव समाप्त होता है।

वैज्ञानिक महत्व-

होलिका दहन की लपटें बहुत लाभकारी होती है, माना जाता है कि होलिका की पूजा करने से साधक की हर चिंता दूर हो जाती है। होलिका दहन की अग्नि नकारात्मकता का नाश करती है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इसकी लपटों से वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। होलिका की अग्नि ऊर्जा को तापना लोग स्वास्थ्य वर्धक उपाय भी मानते है।

होली क्यों मनाई जाती है?

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।
प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

होलिका दहन की विधि

होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है।

इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए (कंडे) गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए

लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है।

होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।

होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

होली विशेष उपाय

हालिका दहन के दिन करें ये उपाय होगी हर मनोकामना पूरी -

लंबी आयु के लिए

अपनी या आप जिस व्यक्ति की लंबी आयु की कामना चाहते हैं, उसकी लंबाई का काला धागा नापें और दो से तीन बार बराबर लपेटकर तोड़ लें। इस धागे को होलिका दहन की अग्नि में डाल दें। इससे सारी बलाएं दूर हो जाती है और आयु लंबी होती है।

आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए

रुपये-पैसों से जुड़ी परेशानी को दूर करने के लिए होलिका दहन के दिन घी में भिगोए हुए दो बताशे, दो लौंग और एक पान पत्ते को डाल दें। इन चीजों को होलिका की अग्नि में अर्पित करने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है।

शीघ्र विवाह के लिए

किसी कारण विवाह में देरी हो रही है या बार-बार अड़चने आ रही है तो इसके लिए होलिका की अग्नि में हवन सामग्री को घी में मिलाकर डाल दीजिए। इससे विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी और शीघ्र विवाह के योग बनेंगे।

रोग बीमारी दूर करने के लिए

यदि घर-परिवार में कोई लंबे समय से बीमार है और इलाज के बावजूद सेहत में सुधार नहीं हो रहा है तो एक मुट्ठी पीली सरसों, एक लौंग, काला तिल, फिटकरी, एक सूखा नारियल। इन चीजों को एक साथ लेकर बीमार व्यक्ति के सिर से सात बार घुमाएं और फिर होलिका की अग्नि में डाल दें। ऐसा करने से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए

पति-पत्नी के रिश्ते में मनमुटाव चल रहा है तो इसके लिए घी में 108 बाती को भिगोएं और इसे एक-एक कर परिक्रमा करते हुए होलिका की अग्नि में डालें। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।

सुख-समृद्धि के लिए

होलिका दहन की अग्नि में अनाज की आहूति देने का महत्व है. इससे घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है। आप भुट्टा, दाल, चावल, गेहूं आदि जैसी चीजों को होलिका की अग्नि में अर्पित कर सकते हैं।

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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