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नवरात्र के नौं दिनों का महत्व | Importance of 9 Days of Navratri 2022

नवरात्र की पौराणिक कथा-

माँ एक ऐसा शब्द है जो है तो मात्र भाषा का एक अक्षर, पर भावनात्मक अर्थों में शायद सबसे बड़ा है। किसी भी समाज,धर्म या देश में माँ को लेकर एक अलग तरह की भावना और सम्मान दिखाई देता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति के हर तत्व को आध्यात्मिक नज़रिए से देखा जाता है और यही एक बात हमारी इस महान परंपरा को सबसे अलग बनाती है। माँ के बिना जीवन का एक क्षण भी असहनीय और अकल्पनीय हो जाता है। आध्यात्मिक तौर पर माँ को विशेष रूप से पूजा जाता है,माँ को देवी और शक्ति का दर्ज़ा दिया गया है। जो इस सृष्टि का पालन कर रही है। सनातन परंपरा और पुराणों के अनुसार देवी के कई रूप माने गए हैं जिन्होंने नकारात्मक असुरी शक्तियों को मिटाने और धर्म की रक्षा के लिए सहस्त्रों रूप लिए। देवी के इन्ही रूपों में से प्रमुख 9 रूपों की उपासना करने के लिए हिन्दू धर्म में पवित्र नवरात्र का त्यौहार विशेष रूप से मनाया जाता है,जिसमे देवी लक्ष्मी,देवी सरस्वती और देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा,आराधना और साधना की जाती है।

 

नवरात्र एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘नौ रातें’ होता है। इसलिए नवरात्र के नौ दिनों में नौ देवियों की शास्त्रीय विधि विधान के साथ पूजा की जाती है, जबकि दसवें दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध में विजय प्राप्त की थी, इसलिए इस दिन को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय सनातन परम्परा के अनुसार नवरात्र वर्ष में 4 बार मनाया जाता है, जिसमें से 2 बार गुप्त नवरात्र माघ और आषाढ़ मास में मनाई जाती है। गुप्त नवरात्र में माता की गुप्त रूप से पूजा की जाती है। भगवती की साधना करने वाले साधक सिद्धि प्राप्ति हेतु विशेषतः गुप्त नवरात्र में ही साधना करते हैं। जबकि चैत्र और अश्विन मास की नवरात्र को बड़े ही धूमधाम से और सार्वजनिक तौर पर भी मनाया जाता है।

नवरात्र का त्यौहार भारतीय हिन्दू परम्परा का सबसे बड़ा त्यौहार होता है जो कि वातावरण में सकारात्मकता का संचारक होता है।

देवी पुराण की कथा के अनुसार माँ दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। वहीं एक दूसरी कथा के अनुसार, भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले और रावण के संग युद्ध में जीत के लिए शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना की थी।

माँ दुर्गा का महिषासुर से पूरे नौ दिनों तक युद्ध हुआ इसी वजह से प्रतिपदा से लेकर प्रत्येक दिन देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

दुर्गा सप्तशती में वर्णित देवी कवच के अनुसार इन नौ देवियों के नाम इस प्रकार हैं-

इसके अनुसार नवरात्र के पहले दिन देवी शैलपुत्री, दूसरे दिन देवी ब्रम्हचारिणी, तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा,चौथे दिन देवी कूष्मांडा,पांचवे दिन देवी स्कंदमाता, छठे दिन देवी कात्यायनी,सातवें दिन देवी कालरात्रि,आठवें दिन देवी महागौरी और नवें दिन देवी सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रम्हचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

पञ्चमं स्कंदमातेति षष्ठम कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रिती महागौरीति चाष्टमम्।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः

नवरात्र के नौं दिनों का महत्व-

नवरात्र की नौ दिनों में तीनों देवियों – महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। प्रत्येक दिन की पूजन का एक महत्व है जिससे मनुष्य के सारे कष्ट और परेशानियों का निदान होने के साथ ही माँ की कृपा बनी रहती है।

प्रथम दिवस - शैलपुत्री (26 सितम्‍बर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

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श्लोक - वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् | वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||

नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को माता दुर्गा की माँ शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां स्वत: ही प्राप्त हो जाती हैं। माँ का वाहन वृषभ है। 

 

 पर्वतराज हिमालय की पुत्री माँ शैलपुत्री को शैल रूपी वस्तुऐं यानी सफेद वस्तुऐं प्रिय होती हैं। इसलिए माँ की पूजा में सदैव सफेद पूजन सामग्रियों का उपयोग करना चाहिए। विधिवत पूजन करके माता को सफेद फूलों से सुसज्जित कर सफेद वस्त्र अर्पित करें। भोग में माँ को सफेद मिष्ठान, बर्फी और गाय के घी से बने पकवान निवेदित किये जाते हैं।

द्वितीय दिवस - ब्रम्हचारिणी (27 सितम्‍बर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी ब्रह्मचारिणी नमः॥

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श्लोक - दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||

नवरात्र की द्वितीया तिथि में माँ के ब्रह्मचारिणी एवं तपश्चारिणी रूप को पूजा जाता है। जो साधक माँ के इस रूप की पूजा करते हैं उन्हें तप, त्याग, वैराग्य, संयम और सदाचार की प्राप्ति होती है और जीवन में वे जिस बात का संकल्प कर लेते हैं उसे पूरा करके ही रहते हैं। 

 

हाथों में कमंडल और माला लिए माता ब्रम्हचारिणी का यह स्वरूप सर्वाधिक सौम्यतापूर्ण है, इन्होंने अपने तप से कई दैत्यों का संहार किया। माँ ब्रह्मचारिणी की शास्त्रीय विधि से पूजन की जानी चाहिये। तत्पश्चात इन्हें पीले या सफेद रंग के वस्त्र अर्पित कर गुड़हल या कमल के फूल चढ़ाने चाहिए तथा शक्‍कर व गाय के दूध से निर्मित पदार्थों का ही भोग लगाना चाहिए।

तृतीय दिवस - चन्द्रघंटा (28 सितम्‍बर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

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श्लोक - पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||

तृतीया तिथि को माँ के तीसरे स्वरूप चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है। इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र बना होने के कारण इनका नाम चन्द्रघंटा पड़ा तथा तीसरे नवरात्र में माँ के इसी रूप की पूजा की जाती है तथा माँ की कृपा से साधक को संसार के सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। शेर पर सवारी करने वाली माता सभी कष्‍टों को हर लेती हैं।

 

चंद्रघंटा का आशय है- जिसके मस्तक पर चाँद घंटा के रूप में शोभित है। नाम अर्थ के अनुसार चाँद शीतलता और ज्योत्स्ना का प्रतीक होता है। देवी चन्द्रघंटा को नारंगी रंग अतिप्रिय है। आराधक को इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहनकर पूजन करनी चाहिए और माता को भी नारंगी वस्त्र और पुष्पों से सुशोभित करना चाहिए। माँ को पंचामृत, दूध, खीर, हलवा का नैवेद्य निवेदित करना चाहिए।

चतुर्थ दिवस - कूष्मांडा (29 सितम्‍बर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥

चतुर्थी तिथि को अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली माँ कुष्मांडा की पूजा करने का विधान है। इनकी आराधना करने वाले भक्तों के सभी प्रकार के रोग एवं कष्ट मिट जाते हैं तथा साधक को माँ की भक्ति के साथ ही आयु, यश और बल की प्राप्ति भी सहज ही हो जाती है। 

 

ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा के रूप में पूजा जाता है। कूष्मांडा का अर्थ संस्कृत में कुम्हड़ा होता है जो कि ब्रह्मांड के आकार का होता है और ये ब्रह्मांड के मध्य में निवास करती हैं। इसलिए इन्हें कूष्माण्डा कहा जाता हैं। माता को लाल पुष्प और कुम्हड़े की बलि प्रिय होती है। देवी कूष्मांडा को भोग में सफेद पेठा, दही और मालपूये अत्यंत प्रिय होता है।

पंचम दिवस - स्कंदमाता (30 सितम्‍बर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

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श्लोक - सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया | शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ||

नवरात्र की पंचमी तिथि में आदिशक्ति माँ दुर्गा की स्कंदमाता के रूप में पूजा होती है। इनकी पूजा करने वाले साधक संसार के सभी सुखों को भोगते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं। उनके जीवन में किसी भी प्रकार की वस्तु का कोई अभाव कभी नहीं रहता। इन्हें पद्मासनादेवी भी कहते हैं। 

 

भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गा का यह रूप स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान होती हैं अतः इन्हें पद्मासना या पद्मासिनि भी कहा जाता है। ये सूर्य की अधिष्ठात्री देवी होती हैं इसलिए इनका पूजन नियमपूर्वक करने वाले साधकों में अलौकिक तेज का प्रवाह होता है। माता को केसरिया वस्त्र एवं पुष्प अर्पित करके विशेष रूप से काजू की बर्फी और केले का भोग अर्पित करना चाहिए।

षष्ठम दिवस - कात्यायनी (1 अक्टूबर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥

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श्लोक - चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन । कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति माँ दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। षष्ठी तिथि नवरात्र माँ के इसी रूप की पूजा की जाती है। माँ की कृपा से साधक को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि चारों फलों की जहां प्राप्ति होती है वहीं वह आलौकिक तेज से अलंकृत होकर हर प्रकार के भय, शोक एवं संतापों से मुक्त होकर खुशहाल जीवन व्यतीत करता है। माँ का वाहन सिंह है और इन्हें शहद अति प्रिय है।

 

दानव महिषासुर का संहार करने के लिए त्रिदेवों ने अपने अंश से एक परम शक्ति को जन्म दिया, सबसे पहले इनकी पूजा महर्षि कात्यायन ने की थी,इसलिए इनका नाम कात्यायनी रखा गया। माँ कात्यायनी का स्वरूप अलौकिक सौंदर्य और तेज से भरा है। इन्हें लाल गुलाब अत्यधिक प्रिय है इसलिए इन्हें लाल पुष्प और लाल वस्त्र अर्पित करना चाहिए। माता को शहद और पॉंच तरह की मिठाई का भोग अवश्य निवेदित करना चाहिए।

सप्तम दिवस - कालरात्रि (2 अक्टूबर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

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श्लोक - एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी || वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||

सप्तमी तिथि में सभी राक्षसों के लिए कालरूप बनकर आई मां दुर्गा के इस रूप की पूजा नवरात्र में की जाती है। माँ के स्मरण मात्र से ही सभी प्रकार के भूत, पिशाच एवं भय समाप्त हो जाते हैं। इनकी कृपा से भानूचक्र जागृत होता है। माँ का वाहन गधा है। 

 

महाशक्ति का यह सातवां रूप नौ रूपों में सबसे अधिक विकराल है। इनका रूप अंधेरे से भी अधिक गहन है। जो भी साधक सच्चे मन से इनकी साधना करता है उसके सभी प्रकार के भय समाप्त हो जाते हैं। अपने रूप से उलट माँ सदैव अभय वर प्रदान करतीं हैं। इन्हें रातरानी का पुष्प बहुत प्रिय है। माँ को विशेष रूप से गुड़ का भोग अवश्य लगाना चाहिए।

अष्टम दिवस - महागौरी (3 अक्टूबर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी महागौर्यै नमः॥

श्लोक - श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः | महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||

आदिशक्ति माँ दुर्गा के महागौरी रूप का दिन आठंवा दिन होता है।  माँ ने काली रूप में आने के पश्चात घोर तपस्या की और पुन: गौर वर्ण पाया और महागौरी कहलाई। माँ का वाहन बैल है। मातारानी की कृपा से साधक के सभी कष्ट मिट जाते हैं और उसे आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है।

 

माता महागौरी शांत मुद्रा वाली देवी हैं। इनका स्वरूप अत्यंत गौर वर्ण का है। इनकी पूजा नवरात्र की अष्टमी को की जाती है। इस दिन सुहागन औरतें अपने सुहाग की समृद्धि के लिए देवी को श्रृंगार और चुनरी समर्पित करतीं हैं। पूजन के समय इन्हें पीले पुष्प और पीले वस्त्र अर्पित करना चाहिए। इन्हें नैवेद्य में हलवा जबकि भोज्य में काले चने से बने पकवानों और केसर की मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

नवम दिवस - सिद्धिदात्री (4 अक्टूबर 2022)

जप मंत्र- ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

श्लोक - सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमसुरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||

नवरात्र के अंतिम दिवस पर माँ के सिद्धिदात्री रूप की पूजा एवं आराधना की जाती है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है माता का यह रूप साधक को सभी प्रकार की ऋद्धियां एवं सिद्धियां प्रदान करने वाला है। जिस पर माँ की कृपा हो जाती है उसके लिए जीवन में कुछ भी पाना असंभव नहीं रहता। माँ सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर विराजमान होतीं है जबकि इनका वाहन भी सिंह है। 

 

सर्व सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी सिद्धिदात्री कहलाती हैं। माता सिद्धिदात्री में अष्टसिद्धियाँ “अणिमा, महिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, गरिमा, लघिमा, ईशित्व और वशित्व” समाहित हैं। भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप इन्ही के संग पूज्य है। इन्हें नौ प्रकार के फल एवं पुष्प अर्पित करना चाहिए जबकि भोग में नारियल, खीर-पुड़ी और हलवा निवेदित करना चाहिए।

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 48+ years.

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