Libra Zodiac Sign Personality Traits
Welcome to the fascinating world of astrology, where the alignment of stars and planets shapes our personalities and influences every aspect of our lives. Among the twelve zodiac signs, each
भारतीय सनातन हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर देवशयनी एकादशी मनाई जाती है, जिसमें भगवान विष्णु 4 महीने के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए जाते हैं जिसे चतुर्मास कहते हैं, इन चतुर्मास की गहरी नींद के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु सृष्टि का पालन करने के लिए फिर से उठते है इसलिए इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह त्यौहार दीपावली के बाद ठीक 11वें दिन बाद मनाया जाता है। भगवान विष्णु चतुर्मास के बाद सबसे पहले तुलसी से विवाह करते हैं इसलिए इस दिन तुलसी विवाह का त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। जिसके अंतर्गत तुलसी का पौधा और शालिग्राम जी का औपचारिक विवाह होता है। तुलसी विवाह के दिन लोग अपने घरों में सत्यनारायण कथा और भगवान विष्णु जी के अनुष्ठान आदि भी करते हैं। इसी दिन से हिन्दू समाज में शादी-विवाह के कार्यक्रम फिर से शुरू हो जातें है।
Ekadashi Devshayani Ekadashi is celebrated on the Ekadashi of Shukla Paksha of Ashadh month in Indian Sanatan Hindu religion, in which Lord Vishnu goes to sleep in Kshirsagar for 4 months, which is called Chaturmas, of these Chaturmas. After a deep sleep, on the day of Ekadashi of Shukla Paksha of Kartik month, Lord Vishnu wakes up again to follow the creation, hence it Devuthani Ekadashi also calledIt Prabodhini Ekadashi also calledThis festival is celebrated on the 11th day after Diwali. Lord Vishnu marries Tulsi first after Chaturmas, hence the festival of Tulsi Vivah is celebrated with great pomp on this day. Under which the formal marriage of Tulsi plant and Shaligram ji takes place. On the day of Tulsi Vivah, people also perform Satyanarayan Katha and rituals of Lord Vishnu in their homes. From this day onwards, the marriage programs in Hindu society start again.
माता तुलसी कौन थी इसके पीछे एक प्रसिद्ध कथा प्रचलित है। तुलसी जिसे आज हम सिर्फ एक पौधा समझते हैं वो अपने पूर्व जन्म में राक्षस कुल में जन्मी वृंदा नाम की लड़की थी, जो कि भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वृंदा का विवाह राक्षसों के राजा जलंधर से हुआ था। जलंधर एक दिग्विजय राक्षस था जिसके अत्याचारों से देवता बहुत परेशान थे। वह जब भी युद्ध में जाता तो वृंदा संकल्प लेकर युद्ध जीतने तक विष्णु जी की तपस्या में लीन हो जाती थी। ऐसे ही एक बार जब जलंधर और देवताओं भीषण युद्ध हुआ तो जलंधर के प्रकोप से देवता युद्ध में कमज़ोर पड़ गए। तब वे अपनी इस समस्या को लेकर श्री हरि विष्णु के पास गए।
A famous story behind the marriage of Tulsi- who was Maa Tulsi. Tulsi, which we consider only a plant today, was a girl named Vrinda, who was a devotee of Lord Vishnu, born in a demon clan in her previous birth. Vrinda was married to Jalandhar, the king of the demons. Jalandhar was a Digvijay demon whose atrocities caused the gods to be very upset. Whenever he went to war, Vrinda used to get absorbed in the penance of Vishnu ji till he won the war with determination. Similarly, once when Jalandhar and the gods fought fiercely, the gods were weakened by the wrath of Jalandhar. Then he went to Shri Hari Vishnu with his problem.
विष्णु जी ने बताया कि वृंदा मेरी सच्ची भक्त है जिसके संकल्प के कारण जलंधर हमेशा विजय होता है और आपकी मदद करके मैं अपनी उस भक्त के साथ छल नही कर सकता। तब देवताओं के अनुग्रह पर और धर्म के अस्तित्व की रक्षा के लिए भगवान विष्णु जलंधर का ही रूप लेकर वृंदा के पास गए। उन्हें देखकर वृंदा ने अपना संकल्प तोड़ दिया और इधर देवताओं ने जलंधर का सिर धड़ से अलग कर दिया। तब वृंदा ने सच को जानकर विष्णु जी को पत्थर होने का श्राप दे दिया जिससे वे पत्थर के हो गए। इस घटना से चारों तरफ हाहाकार मच गया। तब माता लक्ष्मी के समझाने पर वृंदा ने विष्णु जी को श्राप से मुक्त कर दिया और जलंधर के सिर को लेकर सती हो गई, सती होने के बाद वृंदा की पवित्र राख से एक पौधा निर्मित हुआ। वृंदा की इतनी अनन्य भक्ति, तेज और पतिव्रता धर्म से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उस पौधे को तुलसी नाम दिया और उस पौधे के हर तत्व को संसार के कल्याण के लिए उपयोगी होने का वरदान दिया और अपने पत्थर के स्वरूप को शालिग्राम नाम देकर उस रूप को अपनी पत्नी स्वीकार किया।
Vishnu ji told that Vrinda is my true devotee, due to whose determination Jalandhar always wins and with your help I cannot deceive my devotee. Then on the grace of the gods and to protect the existence of religion, Lord Vishnu took the form of Jalandhar and went to Vrinda. Seeing them, Vrinda broke her resolve and here the gods beheaded Jalandhar. Then Vrinda, knowing the truth, cursed Vishnu to be a stone, due to which he turned to stone. There was outcry all around due to this incident. Then on the persuasion of Mother Lakshmi, Vrinda freed Vishnu from the curse and became sati with Jalandhar’s head, after being sati, a plant was made from the sacred ashes of Vrinda. Impressed by Vrinda’s devotion, fast and virtuous religion, Lord Vishnu named that plant as Tulsi and gave every element of that plant a boon to be useful for the welfare of the world and Shaligram by namingaccepted his wife.
हर साल कार्तिक मास की एकादशी पर भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ तुलसी के पौधे का विवाह किया जाता है। शालिग्राम जी पर हमेशा एक तुलसी का पत्ता अवश्य रखा जाता है, उसके बिना शालिग्राम पूजा सफल नही मानी जाती। भगवान विष्णु की मूर्ति पर भी हमेशा तुलसी का पत्ता और तुलसी मंजरी चढ़ाई जाती है। विष्णु जी के हर भोग और प्रसाद में तुलसी का पत्ता होना अनिवार्य माना जाता है। तुलसी विवाह का त्यौहार मांगलिक कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है।
Every year on the Ekadashi of Kartik month, a Tulsi plant is married with the Shaligram form of Lord Vishnu. A Tulsi leaf is always kept on Shaligram ji, without it Shaligram worship is not considered successful. Tulsi leaves and Tulsi Manjari are always offered on the idol of Lord Vishnu. It is considered mandatory to have a Tulsi leaf in every Bhog and Prasad of Vishnu. The festival of Tulsi Vivah marks the beginning of auspicious works.
तुलसी का पौधा हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है, इसे तुलसी माँ कहकर संबोधित किया जाता है। हर किसी के आंगन में तुलसी का पौधा आपको लगा हुआ मिल जाएगा। यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है इसलिए इसे आयुर्वेद में भी बहुत आवश्यक औषधि माना जाता है। भारतीय पुरातन शास्त्रों में भी तुलसी के पौधे की खासियत और उसके आध्यात्मिक कारणों का प्रमाण मिलता है। तुलसी के पौधे को आँगन में लगाने मात्र से ही आसपास का वातावरण शुद्ध और सकारात्मक हो जाता है। यह कई बीमारियों की दवा है जिसका ऋषि-मुनि और वैद्यों ने सदियों से उपयोग किया है। आमतौर पर हमें कफ और सर्दी ज़ुकाम की समस्या के लिए तुलसी का काढ़ा, तुलसी की चाय या तुलसी के तेल जैसी दवाएं ही सूझती है।
Tulsi is sacred – Tulsi plant is considered very sacred in Hindu religion, it is addressed as Tulsi Maa. You will find a Tulsi plant planted in everyone’s courtyard. It is rich in many medicinal properties, so it is also considered a very essential medicine in Ayurveda. Evidence of the specialty of Tulsi plant and its spiritual reasons is also found in ancient Indian scriptures. By planting a Tulsi plant in the courtyard, the surrounding environment becomes pure and positive. It is a medicine for many diseases which has been used by sages and Vaidyas for centuries. Usually, we only understand medicines like Tulsi decoction, Tulsi tea or Tulsi oil for the problem of cough and cold.
विज्ञान भी कहता है कि रोज़ उठकर सबसे पहले अगर आप तुलसी की 5 पत्तियां खाते हैं तो आपको सांस से सबंधित कोई भी परेशानी कभी नही होंगी। इसका उपयोग दांत के रोगों और मसूड़ों की मरम्मत में भी किया जाता है। दिमागी कमज़ोरियों और तनाव को दूर करने में भी तुलसी बहुत कारगर है। तुलसी के पत्ते किसी घाव की मरहम का भी काम करते हैं, ये चोट को फैलने से रोकते हैं और बैक्टीरिया को पनपने नही देते हैं। त्वचा के रोगों को खत्म करने में भी तुलसी के पत्ते का उपयोग किया जाता है। मुंह के छालों, संक्रमण, दुर्गंध और गम्भीर रोगों के लिए तुलसी एक बहुत उपयोगी दवा है। इसके नियमित सेवन से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत मजबूत हो जाती है।
Science also says that if you eat 5 leaves of Tulsi first after waking up every day, then you will never have any problem related to breathing. It is also used in dental diseases and gum repair. Tulsi is also very effective in removing mental weaknesses and stress. Basil leaves also act as a wound ointment, they prevent the injury from spreading and do not allow bacteria to grow. Basil leaves are also used to cure skin diseases. Tulsi is a very useful medicine for mouth ulcers, infections, halitosis and serious diseases. With its regular consumption, your immunity becomes very strong.
यही नहीं, किसी के मृत्यु के समय तुलसी के पत्ते खिलाने का रिवाज़ है जिससे मृत्यु के बाद फैलने वाले रोगाणु नही पनपते। इंसान की मृत्यु के बाद सुखी तुलसी की लकड़ियों के साथ ही चिता को जलाया जाता है, मान्यता है कि ऐसा करने से उस आत्मा को भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है जिसके बाद वह जन्म और मृत्यु के चक्र से दूर हो जाता है।
Not only this, it is customary to feed basil leaves at the time of one’s death, so that the germs that spread after death do not grow. After the death of a person, the pyre is lit along with the sticks of Tulsi, it is believed that by doing so that soul gets a place in the Vaikunth Dham of Lord Vishnu, after which he gets away from the cycle of birth and death.
वनस्पति विज्ञान के अनुसार तुलसी की उत्पत्ति कब हुई थी इसका अनुमान नही लगाया जा सकता। पर इसका हर एक हिस्सा औषधि का काम करता है। यह बात साबित करती है कि तुलसी का पौधा हमारे लिए क्यों इतना महत्व रखता है। आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारणों में तुलसी का महत्व बराबर मायने रखता है।
According to botany, when Tulsi originated, it cannot be estimated. But every part of it acts as a medicine. This proves why the Tulsi plant is so important to us. The importance of Tulsi is equally important for both spiritual and scientific reasons.
Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 48+ years.
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