Libra Zodiac Sign Personality Traits
Welcome to the fascinating world of astrology, where the alignment of stars and planets shapes our personalities and influences every aspect of our lives. Among the twelve zodiac signs, each
हिन्दू कलैंडर के अनुसार हर वर्ष माघ-फागुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का पर्व महाशिवरात्रि सनातन हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व रखता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारम्भ भी इसी दिन से हुआ था। जो कि भगवान शिव के वृहद अग्निलिंग स्वरूप से शुरू हुआ था। यह साल की 12 शिवरात्रियों में सबसे बड़ी शिवरात्रि होती है, जिसे भारत के अलावा विश्व स्तर पर मनाया जाता है। इस दिन चारों तरफ खुशी और हर्ष का माहौल बना होता है। प्राकृतिक रूप से भी यह सकारात्मकता का कारक त्यौहार माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-आराधना के साथ ही तरह-तरह के धार्मिक आयोजन किए जाते है। हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा अपने घर और धार्मिक स्थलों पर रुद्राभिषेक के साथ ही साथ भजन, सांस्कृतिक उत्सव, भंडारे, जागरण आदि शुभ आयोजन आयोजित किए जाते हैं। महाशिवरात्रि की विशेष रात्रि के निशिता काल में ही की जाती है। वर्ष 2023 में 18 फरवरी, दिन शनिवार को महाशिवरात्रि का परम पावन त्यौहार मनाया जाएगा।
According to the Hindu calendar, Mahashivaratri festival is celebrated every year on the Chaturdashi date of Krishna Paksha of the month of Magha-Phagun. Mahashivaratri, the festival of union of Lord Shiva and Mother Parvati, holds great importance in Sanatan Hindu religion. It is believed that the beginning of the universe also took place from this day. Which started with the huge Agniling form of Lord Shiva. It is the biggest Shivaratri among the 12 Shivaratri of the year, which is celebrated globally apart from India. On this day, there is an atmosphere of happiness and joy all around. Naturally, this festival is considered to be a factor of positivity.
On this day, along with the worship of Lord Shiva and Mother Parvati, various religious events are organized. Along with Rudrabhishek, Bhajans, cultural festivals, Bhandaras, Jagran etc. auspicious events are organized by the people of Hindu religion at their homes and religious places. This is done only during the Nishita period of the special night of Mahashivaratri. In the year 2023, the most holy festival of Mahashivratri will be celebrated on 18th February, Saturday.
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ – 18 फरवरी, रात 08:02 बजे से
चतुर्दशी समाप्त – 19 फरवरी,शाम 04:18 बजे तक
निशिता काल पूजा मुहूर्त- 18 फरवरी, रात 12:09 से 01:00 बजे तक
अवधि- 50 मिनट
महाशिवरात्री पारणा मुहूर्त- 19 फरवरी, सुबह 06:57 बजे से दोपहर 03:25 बजे तक
Chaturdashi date starts – February 18, from 08:02
Chaturdashi ends- February 19, till 04:18 pm
Nishita Kaal Puja Muhurta- February 18, from 12:09 am to 01:00 am
Duration- 50 Minutes
Mahashivaratri Parana Muhurta – February 19, from 06:57 am to 03:25 pm
Chaturdashi Tithi i.e. the day before Amavasya falling in Krishna Paksha every month is known as Shivratri. This is called Masik Shivratri, in which Lord Shiva is worshipped. But among all the Shivratris that fall throughout the year, the Mahashivratri in the month of February-March is considered the most important, because it was on this night that the creation took place and the marriage of Mother Parvati and Lord Shiva took place. This auspicious day of union of Shiva and Shakti holds great importance in Sanatan Dharma. There is an atmosphere of joy everywhere. The ultimate energy of worship of Shiva and Shakti flows in the entire atmosphere, which infuses positivity in the mind and brain. Scientifically speaking, on the night of Mahashivaratri, the northern hemisphere of the earth is positioned in such a way that the energy within the human being naturally moves upwards. It is a day when nature helps man to reach his spiritual pinnacle through sadhana, penance, yoga and meditation. Therefore, to make good use of this time and in honor of this tradition, all people together celebrate this festival of Mahashivaratri, which lasts the whole night.
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बड़ा ही गहरा महत्व है।
वैज्ञानिक खोजों के अनुसार ब्रह्मांड में एक अज्ञात और रहस्यमयी ऊर्जा मौजूद है, जो हम सभी को चला रही है। प्रकृति का स्वयं बनना आज भी एक रहस्य है। विश्व भर के सारे वैज्ञानिकों ने कई तरह से अनुमान लगाया पर किसी तरह के निष्कर्ष पर पहुँच पाना संभव नहीं हो पाया और न ही वे अभी तक इसे कोई नाम दे पाए हैं। हालांकि, प्राचीन काल के संतों ने इस अज्ञात ऊर्जा को शिव कहा है और अपने ठोस आध्यात्मिक कारण भी दिए हैं।
Mahashivaratri has a very deep significance from the spiritual and scientific point of view.
According to scientific discoveries, there is an unknown and mysterious energy present in the universe, which is driving all of us. Nature’s becoming itself is still a mystery. All the scientists around the world have speculated in many ways but it has not been possible to reach any kind of conclusion nor have they been able to give any name to it yet. However, sages of ancient times have called this unknown energy as Shiva and have also given their solid spiritual reasons.
नवग्रह प्रार्थना मंत्र/ Navagraha Prayer Mantra-
ब्रह्मा मुरारीत्रिपुरान्तकारी
भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥
Shiva is believed to be the animating energy of every living being. We are able to breathe, eat, walk and do our daily activities because of Shiva. This energy not only drives living beings, but it also resides in non-living things as their energy. Thus, Shiva governs the entire existence. Mahashivaratri is the day when the element Shiva touches the earth. Consciousness, the aura or the etheric world which is always ten inches above the physical ground, touches the earth element on the day of Mahashivaratri. It is the marriage of materiality with spirituality.
पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। हालांकि, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भांति स्थिर व निश्चल हो गए थे। योगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन उन्होंने ज्ञान की चरम सीमा को छुआ और वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए, वही दिन महाशिवरात्रि का था।
People engaged in family situations celebrate Mahashivaratri as a festival of the marriage of Shiva. People engrossed in worldly ambitions celebrate Mahashivratri as the day of Shiva’s victory over his enemies. However, for the Sadhaks, it is the day they became one with Mount Kailash. He had become stable and motionless like a mountain. In the Yogic tradition, Shiva is not worshiped as a deity. He is considered the Adi Guru, the first Guru, from whom knowledge originated. After several millennia of meditation, one day he touched the pinnacle of knowledge and became completely still, that day being Mahashivaratri.
भगवान शिव को जितना अधिक सांसारिक लोग मानते हैं, उससे कहीं ज़्यादा आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले लोग भी मानते हैं। इसके अलावा वैरागी लोग भी भगवान शिव को एक वैरागी ही मानते हैं, जो सांसारिक जीवन से दूर है। कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार भगवान शिव एक सत्य रूप है और यह पूरा संसार केवल मोहमाया है। विशेष आराधना के माध्यम से हम सभी लोग इस मोह माया से दूर होकर सत्य रूप को प्राप्त कर सकते हैं और शिव में मिल सकते हैं। योगिक परम्परा में भगवान शिव को एक ज्ञानी और वैरागी माना गया हैं। यह परम्परा शांति में विश्वास रखती हैं, इस वजह से महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से भी काफी खास हैं। अलग-अलग विचारधारा और विश्वास के बावजूद पूरा विश्व समुदाय भगवान शिव को ही पूजता है और शिवजी को पाने के मार्गों पर चलने का प्रयत्न करता है।
Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.
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