Ram Navami 2024| राम नवमी 2024
चैत्र नवरात्रि: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र माह की पहली तिथि से नवरात्रि 2024 की शुरुआत होती है, जिस दिन हिन्दू नववर्ष का भी आरंभ होता है। इस दिन से
यह एकादशी जयन्ती एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पापियों के पाप नाश करने के लिये इससे बढ़कर और कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अतः मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमलनयन भगवान् का कमल से पूजन करते हैं, वह अवश्य भगवान् के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अतः हरिवासर, अर्थात् एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान् करवट लेते हैं, इसलिए परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। भगवान् के वचन सुन कर युधिष्ठिर बोले कि भगवान्! मुझे अति सन्देह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रख कर क्या-क्या लीलाएं की ? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयर करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप विस्तारपूर्वक मुझ से कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन्! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा को श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था । विविध प्रकार से वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्व ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ किया करता था परन्तु इन्द्र से द्वेष के कारण उसने इन्द्र लोक तथा सभी देवताओं के लोकों को जीत लिया। तब सब देवता एकत्र होकर सोच-विचार कर भगवान् के पास गये और वृहस्पति सहित इन्द्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वंद मंत्रों द्वारा भगवान् का पूजन और स्तुति करने लगे। अतः मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यन्त तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।
इतनी वार्ता सुन कर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जर्नादन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता ? श्रीकृष्ण कहने लगे ( मैंने वामन रूपधारी ब्रह्मचारी बालक ने ) बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा – ये मुझ को तीन लोक के समान हैं और हे राजन् यह तुम को अवश्य ही देनी होगी। राजा बलि ने इसको तुच्छ सी याचना समझ कर तीन पग भूमि का संकल्प मुझ को दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ा कर यहाँ तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महः लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। सूर्य, चन्द्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इन्द्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़ कर कहा कि राजन् ! एक पद से पृथ्वी दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए अब तीसरा पग कहाँ पर रखूँ ? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूँगा। विरोचन के पुत्र बलि से कहने पर वहाँ पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई और दूसरी क्षीर सागर में शेष नाग के पष्ठ पर हुई।
परिवर्तिनी एकादशी का महात्मय
हे राजन् ! इस एकादशी को भगवान् शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसीलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान् विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। ताँबा, चाँदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चन्द्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो पाप-नाशक इस कथा को या सुनते हैं, उनको हज़ार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
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