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परिवर्तिनी एकादशी

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परिवर्तिनी एकादशी

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी का क्या नाम है तथा इसकी विधि और माहात्म्य क्या है? कृपा करके आप विस्तार-पूर्वक कहिए। तब श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन् ! इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि –
25 सितम्बर सोमवार, 2023 को 07:57:am से एकादशी आरम्भ
26 सितम्बर मंगलवार, 2023 को 05:27:am पर एकादशी समाप्त
परिवर्तिनी एकादशी व्रत 2023 व्रत पारण का समय
परिवर्तिनी एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत 2023 पारण समय: 26 सितम्बर, मंगलवार प्रातः 13:24:pm से 15:49:pm तक।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधान-

  • प्रात: काल स्नान करने के पश्चात अच्छे वस्त्र धारण किए जाते हैं और सबसे पहले सूर्य देवता को प्रणाम कर, अर्घ्य दें 
  • पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। 
  • लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर पीला कपड़ा बिछायें। 
  • इस चौकी पर श्री हरि की मूर्ति स्थापित करें।
  • इसके बाद हाथ में जल लेकर मन में व्रत करने का संकल्प लें। 
  • भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए भगवान को हल्दी, अक्षत, रोली, चंदन, फल, पूष्‍प और पंचामृत  अर्पित करें। 
  • एकादशी के दिन प्रभु को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं।
  • इसके बाद एकादशी की कथा पढ़ कर आरती की जाती है और प्रभु को भोग लगायें। 
  • श्री हरि को भोग लगाते समय तुलसी का पत्ता जरूरी होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान तुलसी के बिना भाेग पूर्ण नहीं होता। 
  • शाम की पूजा के बाद तुलसी के आगे घी का दीपक जलायें। 
  • इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा करवाने के बाद भोजन ग्रहण करें।

अथ भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

यह एकादशी जयन्ती एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पापियों के पाप नाश करने के लिये इससे बढ़कर और कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अतः मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमलनयन भगवान् का कमल से पूजन करते हैं, वह अवश्य भगवान् के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अतः हरिवासर, अर्थात् एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान् करवट लेते हैं, इसलिए परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। भगवान् के वचन सुन कर युधिष्ठिर बोले कि भगवान्! मुझे अति सन्देह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रख कर क्या-क्या लीलाएं की ? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयर करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप विस्तारपूर्वक मुझ से कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन्! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा को श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था । विविध प्रकार से वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्व ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ किया करता था परन्तु इन्द्र से द्वेष के कारण उसने इन्द्र लोक तथा सभी देवताओं के लोकों को जीत लिया। तब सब देवता एकत्र होकर सोच-विचार कर भगवान् के पास गये और वृहस्पति सहित इन्द्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वंद मंत्रों द्वारा भगवान् का पूजन और स्तुति करने लगे। अतः मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यन्त तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।


इतनी वार्ता सुन कर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जर्नादन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता ? श्रीकृष्ण कहने लगे ( मैंने वामन रूपधारी ब्रह्मचारी बालक ने ) बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा – ये मुझ को तीन लोक के समान हैं और हे राजन् यह तुम को अवश्य ही देनी होगी। राजा बलि ने इसको तुच्छ सी याचना समझ कर तीन पग भूमि का संकल्प मुझ को दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ा कर यहाँ तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महः लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। सूर्य, चन्द्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इन्द्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़ कर कहा कि राजन् ! एक पद से पृथ्वी दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए अब तीसरा पग कहाँ पर रखूँ ? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूँगा। विरोचन के पुत्र बलि से कहने पर वहाँ पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई और दूसरी क्षीर सागर में शेष नाग के पष्ठ पर हुई।


परिवर्तिनी एकादशी का महात्मय
हे राजन् ! इस एकादशी को भगवान् शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसीलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान् विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। ताँबा, चाँदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चन्द्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो पाप-नाशक इस कथा को या सुनते हैं, उनको हज़ार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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