Vedic astrology Vs Western astrology
Astrology has fascinated humanity for centuries. Two of the most prominent systems are Vedic Astrology and Western Astrology. Both have unique approaches and cultural roots, but they aim to help
पुराणों के मुताबिक, भद्रा को शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री बताया गया है। स्वभाव में भद्रा भी अपने भाई शनि की तरह कठोर मानी जाती है। ब्रह्मा जी ने इनको काल गणना (पंचांग) में विशेष स्थान दिया है। हिंदू पंचांग को 5 प्रमुख अंगों में बांट गया है- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसमें 11 करण होते हैं, जिनमें से 7वें करण विष्टि का नाम भद्रा बताया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन मुहूर्त में भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। माना जाता है कि भद्रा का समय राखी बांधने के लिए अशुभ होता है। इसके पीछे भगवान शिव और रावण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि शूर्पनखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी, और इसी के प्रभाव से रावण के पूरे कुल का विनाश हो गया और रावण का अंत हुआ। इस कारण भद्राकाल में राखी नहीं बांधना निषेध बताया गया है। वहीं, ये भी कहा जाता है कि भद्रा के समय भगवान शिव तांडव करते हैं और वो काफी क्रोध में होते हैं, ऐसे में अगर उस समय कुछ भी शुभ काम करें तो उसे शिव जी के गुस्से का सामना करना पड़ेगा और उनके तांडव के प्रकोप से शुभ काम भी अशुभ होने लगेंगें।
राखी बांधने से पहले बहन और भाई दोनों व्रत रखते हैं। ऐसा आवश्यक तो नहीं है लेकिन सुबह कुछ भी करने से पहले स्नान-ध्यान करके भगवान की पूजा करें और फिर भाई की कलाई में राखी बांधते हुये उसके सुखी जीवन की कामना करें और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करें, तो आपके लिये शुभ होगा। भाई को राखी बांधते समय बहन पूजा की थाली में राखी, रोली, दीया, कुमकुम अक्षत और कुछ मिठा अवश्य रखें। राखी बांधने से पहले भाई के माथे पर रोली, चंदन और अक्षत का तिलक लगाएं। उसकी नज़र उतारे, और फिर अपने भाई के दाहिने हाथ में राखी बांधे। राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें ओर अगर भाई आपसे बड़ा है तो उसके पैर छूकर आर्शीवाद लें। वैसे कुछ स्थानों में भाई के पैर नहीं छूये जाते, तो आप अपनी रीतियों के अनुसार कर सकते हैं।
और हाँ अपने भाई से उपहार लेना न भूलें।
राखी पर तिलक का बहुत महत्व माना जाता है। पुराणों के अनुसार लाल चंदन, श्वेत चंदन, कुमकुम और भस्म का तिलक शुभ माना गया है। वहीं रक्षा बंधन पर कुमकुम का तिलक लगाया जाता है और कुमकुम के साथ चावल भी उपयोग तिलक के लिये किया जाता है। तिलक को माथे के बीचो-बीच लगाया जाता है। हिन्दु धर्म में तिलक विजय, मान-सम्मान और जीत का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, हवन में देवताओं को चढ़ाया जाने वाला सबसे शुद्ध अनाज चावल को माना जाता है। चावल से हमारे आसपास की सारी नकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। तिलक में कच्चे चावल का प्रयोग सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला माना गया है। कहा जाता है कि तिलक लगाते वक्त माथे के बीचो-बीच दवाब देना चाहिए। यह स्थान छठी इंद्री का स्थान माना गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, माथे के इस भाग पर दवाब देने से स्मरण शक्ति के साथ निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।
महाभारत में एक प्रसंग है जब राजसूय यज्ञ के अवसर पर भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया। उनका हाथ इस क्रिया में चोट खा गया। इसी समय द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा कृष्ण जी की चोट पर बांध दिया। भगवान कृष्ण ने उसके प्रति रक्षा का आश्वासन दिया। इस परिणामस्वरूप, जब हस्तिनापुर की सभा में दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया, तो भगवान कृष्ण ने उनके चीर को बढ़ा कर द्रौपदी के मान की रक्षा की।
रक्षाबंधन के अवसर पर भारत के बॉर्डर पर बालिकाओं और महिलाओं के द्वारा हमारे सैनिकों को राखी बांधी जाती है। ताकि देश की रक्षा में जुटे जवान भी अपनापन महसूस कर सके।
ओडिशा और पश्चिम बंगाल में लोग रक्षाबंधन के अवसर पर राधा और कृष्ण जी की मूर्तियों को पालने में रख के झूला झूलाते हैं। इसलिए इस दिन को इन क्षेत्रों में श्रावण पूर्णिमा को “झूलन पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है।
विशेषकर मध्य भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कछ भागों में पुत्रवती महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता है। जिससे महिलाओं द्वारा पत्तों के पात्र में खेत से लाई गई मिट्टी में जौ या गेहूं बोई (उगाई) जाती है। इसे इन क्षेत्रों में “कजरी पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।
केरल और महाराष्ट्र में विशेषकर तटीय क्षेत्रों में रहने वाले हिंदू मत्स्य पालकों के समुदायों द्वारा सावन पूर्णिमा के दिन चावल, फूल और नारियल से सागर की पूजा की जाती है। जिसे “नारली पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।
रक्षाबंधन के अवसर पर देश में प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वृक्षों की रक्षा बंधन भी किया जा रहा है। जिससे लोग प्रकृति की रक्षा के लिये प्रेरित हो सके।
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Astrology has fascinated humanity for centuries. Two of the most prominent systems are Vedic Astrology and Western Astrology. Both have unique approaches and cultural roots, but they aim to help
Karkotak Kaal Sarp Dosh is a unique astrological condition in Vedic astrology. It occurs when all the planets in a birth chart are placed between Rahu (the head of the
Astrology, a guiding light for many, offers insight into life’s challenges and opportunities. Among its concepts, Kaal Sarp Dosh is significant, with various types that influence individuals differently. Within these,
Astrology has been an important part of Indian culture for centuries, with the belief that the position of planets and stars can influence a person’s life. One important concept in
Astrology has always fascinated people, offering insights into the impact of celestial bodies on human lives. One such intriguing concept is the “Padam Kaal Sarp Dosh.” Rooted in Vedic astrology,
Astrology plays a significant role in shaping our understanding of life’s challenges. The concept of “Kaal Sarp Dosh” is often discussed among its many aspects. One of its forms, Shankhpal