raksha bandhan 2023 mahurat, katha, astro arun ji
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रक्षा बंधन

रक्षाबंधन हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो भाई-बहन के प्रेम और बंधन का विशेष उत्‍सव है। यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसे विशेष उपहार देती हैं। रक्षाबंधन भाई-बहन के आपसी प्रेम का प्रतीक है, जो उनके रिश्तों को मजबूती देता है और सुरक्षित रखने का संकेत होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, रक्षाबंधन का महत्व भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी के संबंध पर आधारित है। प्राचीन काल में, द्रौपदी ने विष्णु अवतार श्रीकृष्ण के साथ अपने भाई के रक्षाबंधन के रूप में राखी बांधी थी और श्रीकृष्ण ने उसकी सुरक्षा की। इस प्रकार, यह उत्सव भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया है। राखी का त्योहार प्रेम, समृद्धि और खुशी के साथ मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहन के साझा किए गए प्यार भरे रिश्ते का जश्न मनाता है और इसे एक विशेष परिवर्तन दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव भारत और नेपाल में विशेष रूप से मनाया जाता है, लेकिन विभिन्न धार्मिक समुदायों के अनुसार नाम और परंपरा में थोड़े बदलाव हो सकते हैं।
रक्षा बंधन 2023 शुभ मुहुर्त-
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 30 अगस्त 2023 को प्रातः 10 बजकर 59 मिनट
तिथि समापन- 31 अगस्‍त सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर

भद्रा काल

इस वर्ष पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा काल का आरंभ भी हो जाएगा। शास्त्रों में भद्रा काल में श्रावणी पर्व यानी रक्षाबंधन का पर्व मनाना निषेध माना गया है। इस दिन भद्रा काल का समय रात्रि 09 बजकर 02 मिनट तक होगा। इसलिए विद्वानों के अनुसर, इस समय के बाद ही राखी बांधना ज्यादा उचित रहेगा।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राखी बांधने के लिए दोपहर का समय शुभ माना जाता है। लेकिन यदि दोपहर के समय भद्रा काल हो तो फिर भद्रा काल समाप्‍त होने के बाद प्रदोष काल में राखी बांधना शुभ होता है। ऐसे में 30 अगस्त के दिन भद्रा काल के कारण राखी बांधने का मुहूर्त सुबह के समय नहीं होगा। उस दिन रात में ही राखी बांधने का मुहूर्त है।

31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक है, इस समय में भद्रा का साया नहीं है। इस वजह से 31 अगस्त को सुबह के समय आप राखी बंधवा सकते हैं। ऐसे में इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 30 और 31 अगस्त दोनों दिन मनाया जा सकता है लेकिन आपको भद्रा काल का ध्यान रखना होगा।
रक्षाबंधन भद्रा पूँछ – शाम 05:30 – शाम 06:31 (30 अगस्‍त) रक्षाबंधन भद्रा मुख – शाम 06:31 – रात 08:11 (30 अगस्‍त) रक्षाबंधन भद्रा अंत समय – 30 अगस्‍त रात 09:01
राखी बांधने के लिए प्रदोष काल मुहूर्त – 30 अगस्त 2023 रात 09:01 – 31 अगस्त सुबह 07:05 तक।

कौन है भद्रा? और क्या है भद्रा काल?

पुराणों के मुताबिक, भद्रा को शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री बताया गया है।  स्वभाव में भद्रा भी अपने भाई शनि की तरह कठोर मानी जाती है। ब्रह्मा जी ने इनको काल गणना (पंचांग) में विशेष स्थान दिया है। हिंदू पंचांग को 5 प्रमुख अंगों में बांट गया है- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण  इसमें 11 करण होते हैं, जिनमें से 7वें करण विष्टि का नाम भद्रा बताया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन मुहूर्त में भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। माना जाता है कि भद्रा का समय राखी बांधने के लिए अशुभ होता है। इसके पीछे भगवान शिव और रावण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। 

भद्रा काल में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि शूर्पनखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी, और इसी के प्रभाव से रावण के पूरे कुल का विनाश हो गया और रावण का अंत हुआ। इस कारण भद्राकाल में राखी नहीं बांधना निषेध बताया गया है। वहीं, ये भी कहा जाता है कि भद्रा के समय भगवान शिव तांडव करते हैं और वो काफी क्रोध में होते हैं, ऐसे में अगर उस समय कुछ भी शुभ काम करें तो उसे शिव जी के गुस्से का सामना करना पड़ेगा और उनके तांडव के प्रकोप से शुभ काम भी अशुभ होने लगेंगें।

रक्षाबंधन पूजन विधि

राखी बांधने से पहले बहन और भाई दोनों व्रत रखते हैं। ऐसा आवश्‍यक तो नहीं है लेकिन सुबह कुछ भी करने से पहले स्‍नान-ध्‍यान करके भगवान की पूजा करें और फिर भाई की कलाई में राखी बांधते हुये उसके सुखी जीवन की कामना करें और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करें, तो आपके लिये शुभ होगा। भाई को राखी बांधते समय बहन पूजा की थाली में राखी, रोली, दीया, कुमकुम अक्षत और कुछ मिठा अवश्‍य रखें। राखी बांधने से पहले भाई के माथे पर रोली, चंदन और अक्षत का तिलक लगाएं। उसकी नज़र उतारे, और फिर अपने भाई के दाहिने हाथ में राखी बांधे। राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें ओर अगर भाई आपसे बड़ा है तो उसके पैर छूकर आर्शीवाद लें। वैसे कुछ स्‍थानों में भाई के पैर नहीं छूये जाते, तो आप अपनी रीतियों के अनुसार कर सकते हैं।
और हाँ अपने भाई से उपहार लेना न भूलें। 

रक्षाबंधन पर क्यों लगाया जाता है माथे पर अक्षत और कुमकुम का तिलक?

राखी पर तिलक का बहुत महत्व माना जाता है। पुराणों के अनुसार लाल चंदन, श्वेत चंदन, कुमकुम और भस्म का तिलक शुभ माना गया है। वहीं रक्षा बंधन पर कुमकुम का तिलक लगाया जाता है और कुमकुम के साथ चावल भी उपयोग तिलक के लिये किया जाता है। तिलक को माथे के बीचो-बीच लगाया जाता है। हिन्‍दु धर्म में तिलक विजय, मान-सम्मान और जीत का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, हवन में देवताओं को चढ़ाया जाने वाला सबसे शुद्ध अनाज चावल को माना जाता है। चावल से हमारे आसपास की सारी नकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। तिलक में कच्‍चे चावल का प्रयोग सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला माना गया है। कहा जाता है कि तिलक लगाते वक्त माथे के बीचो-बीच दवाब देना चाहिए। यह स्थान छठी इंद्री का स्‍थान माना गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, माथे के इस भाग पर दवाब देने से स्मरण शक्ति के साथ निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।

रक्षाबंधन का प्राचीन महत्व

प्राचीन काल में आरंभ हुआ रक्षाबंधन का त्योहार, जिसका आज भी उतना ही महत्व है। यह बंधन युद्ध में जाने वाले योद्धाओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है। राजा या सैनिक जब किसी युद्ध में भाग लेते थे, तो उनकी पत्नियां या माताएं उन्हें विजय की सूचना देने के लिए रक्षाकवच बांधती थीं, जैसे कि विजय तिलक, आरती और धागों के साथ। इससे योद्धाओं का सामर्थ्य बढ़ता और वे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते थे। समय के साथ, रक्षाबंधन ने भाई-बहन के त्योहार के रूप में भी बदलाव किया। रक्षाबंधन के पर्व में भाई-बहन के बीच प्यार और स्नेह का परिप्रेक्ष्य बढ़ता है। दूर रहने वाली बहनें भाई के लिए राखी बांधने के लिए उनके घर पहुंचती हैं, जिससे समाज में सभी के दिल में प्यार का भावना उत्पन्न होता है। रक्षाबंधन से प्रेरित होकर, वनस्पति प्रेमी अब “रक्षा बंधन” जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं और इसके माध्यम से पेड़ों की रक्षा और महत्व की दिशा में समाज को प्रेरित कर रहे हैं। इस वर्ष भी, रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में पेड़ों की सुरक्षा के लिए रक्षाबंधन के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

देवी लक्ष्मी और राजा बलि की कथा

कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राक्षस राज बलि से तीन कदमों में उनका सारा राज्य मांग लिया था और उन्हें पाताल लोक में निवास करने के लिए कहा था। इस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने अतिथि के रूप में पाताल लोक जाने का आदान प्रदान किया। जिसको भगवान विष्णु ने स्वीकार लिया। लेकिन जब समय बीतता गया और भगवान विष्णु न पार्वती गृहस्थ्यम लौटे, तो देवी लक्ष्मी को चिंता होने लगी। तब नारद मुनि ने देवी से सलाह दी कि वह राजा बलि को अपने भाई बनाने का प्रयास करें और उससे भगवान विष्णु को मांगने के लिए कहें। मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया और इस नये संबंध की पुष्टि के रूप में उन्होंने राजा बलि के हाथों में राखी या रक्षासूत्र बांध दिया।

भगवान कृष्ण और द्रौपदी की कथा

महाभारत में एक प्रसंग है जब राजसूय यज्ञ के अवसर पर भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया। उनका हाथ इस क्रिया में चोट खा गया। इसी समय द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा कृष्ण जी की चोट पर बांध दिया। भगवान कृष्ण ने उसके प्रति रक्षा का आश्वासन दिया। इस परिणामस्वरूप, जब हस्तिनापुर की सभा में दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया, तो भगवान कृष्ण ने उनके चीर को बढ़ा कर द्रौपदी के मान की रक्षा की।

रक्षाबंधन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  •  रक्षाबंधन के अवसर पर भारत के बॉर्डर पर बालिकाओं और महिलाओं के द्वारा हमारे सैनिकों को राखी बांधी जाती है। ताकि देश की रक्षा में जुटे जवान भी अपनापन महसूस कर सके।

  •  ओडिशा और पश्चिम बंगाल में लोग रक्षाबंधन के अवसर पर राधा और कृष्ण जी की मूर्तियों को पालने में रख के झूला झूलाते हैं। इसलिए इस दिन को इन क्षेत्रों में श्रावण पूर्णिमा को “झूलन पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है।

  • विशेषकर मध्य भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कछ भागों में पुत्रवती महिलाओं द्वारा यह त्‍यौहार मनाया जाता है। जिससे महिलाओं द्वारा पत्तों के पात्र में खेत से लाई गई मिट्टी में जौ या गेहूं बोई (उगाई) जाती है। इसे इन क्षेत्रों में “कजरी पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।

  • केरल और महाराष्ट्र में विशेषकर तटीय क्षेत्रों में रहने वाले हिंदू मत्स्य पालकों के समुदायों द्वारा सावन पूर्णिमा के दिन चावल, फूल और नारियल से सागर की पूजा की जाती है। जिसे “नारली पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।

  • रक्षाबंधन के अवसर पर देश में प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वृक्षों की रक्षा बंधन भी किया जा रहा है। जिससे लोग प्रकृति की रक्षा के लिये प्रेरित हो सके। 

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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