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चैत्र नवरात्रि

पूजा विधि-

नवरात्र के दिन प्रातः जल्दी उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर 9 दिन तक व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष की शुरुआत करनी चाहिए। पूरे वर्ष मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहने का संकल्प लेना चाहिए और माँ दुर्गा का मन ही मन स्मरण करते हुए प्रत्येक कार्य करने चाहिये। सुबह माता दुर्गा की घर या मन्दिर में जाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए। माता को खीर का भोग लगाना चाहिए और सभी को प्रसाद देना चाहिए। यदि नवमी तिथि दो दिन पड़ रही हो, तब उस स्थिति में पहले दिन उपवास रखा जाएगा और दूसरे दिन पारण होगा। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। जैसा की नवमी नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की षोडषोपचार पूजा करके विसर्जन करना चाहिए।

 

चैत्र नवरात्रि के नौ दिन-

22 मार्च 2023 – चैत्र प्रतिपदा तिथि- मां शैलपुत्री पूजा

23 मार्च 2023 – चैत्र द्वितीया तिथि- मां ब्रह्मचारिणी पूजा

24 मार्च 2023 – चैत्र तृतीया तिथि- मां चंद्रघण्टा पूजा

25 मार्च 2023 – चैत्र चतुर्थी तिथि- मां कुष्माण्डा पूजा

26 मार्च 2023 – चैत्र पंचमी तिथि- मां स्कंदमाता पूजा

27 मार्च 2023 – चैत्र षष्ठी तिथि- मां कात्यायनी पूजा

28 मार्च 2023 – चैत्र सप्तमी तिथि- मां कालरात्री पूजा

29 मार्च 2023 – चैत्र अष्टमी तिथि- मां महागौरी पूजा, महाष्टमी

30 मार्च 2023 – चैत्र नवमी तिथि- मां सिद्धीदात्री पूजा, दुर्गा महानवमी

भारत के अलग-अलग राज्यों में नव वर्ष को अलग-अलग त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। कश्मीर में इसे नवरेह के नाम से जाना जाता है। जो कि चैत्र प्रतिपदा से ही मनाया जाता है।

 

उगादि

दक्षिण भारत में उगादि हिन्दू नववर्ष के आगमन की खुशी में मनाते हैं। वर्ष 2023 में तेलगु संवत्सर का नाम आनल 2080 है। इस दिन से नया संवत्सर शुरू होता है और इस बार यह बुधवार के दिन है, इसलिए इस वर्ष के स्वामी बुध हैं। उगादि दो शब्दों से मिलकर बना है युग और आदि, जिसका अर्थ है एक नई शुरुआत। इस दिन प्रतिपदा तिथि सूर्योदय के समय से मानी जाती है। उगादि कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश सहित पूरे दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। जहां उगादि कन्नड़ नव वर्ष मनाया जाता है। यह नौ दिनों का त्यौहार है। इसे ब्रह्मांड की रचना का पहला दिन कहा जाता है क्योंकि भगवान ब्रह्मा ने उगादि के दिन से ब्रह्मांड की रचना शुरू की थी। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी। इस दिन लोग तेल स्नान, घर की रंग-रौगन, पूजा-अनुष्ठान आदि करते हैं। 

अलग-अलग क्षेत्रों में उगादी को इन नामों से जाना जाता है-

  • गोवा और केरल में संवत्सर पड़वा या संवत्सर पड़वो
  • कर्नाटक के कोंकणी लोग युगादी कहते हैं
  • तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में उगादी
  • महाराष्ट्र में गुड़ी-पड़वा
  • राजस्थान में थापना
  • कश्मीर में नवरेह
  • मणिपुर में साजिबु नोंगमा पांबा या मेइतेई चेइराओबा
  • उत्तर भारत में चैत्र नवरात्रि आज से शुरू होती है

 

गुड़ी पाड़वा

हिन्दू नववर्ष प्रारंभ होने का महाराष्ट्रीयन स्वरूप गुड़ी पाड़वा कहलाता है। वर्ष के साढ़े 3 मुहुतारे में गुड़ी पाड़वा की गिनती है। शालिवाहन नाम के व्यक्ति ने मिट्टी से सैनिकों का निर्माण किया था और अपने शत्रु का नाश किया था। तब से शालिवाहन शक और शक संवत्सर की शुरुआत भी हुई। इसी दिन बाली के अत्याचार से श्री राम ने प्रजा को मुक्ति दिलाई तब लोगों ने घरों-Rघर ध्वज फहरा कर उत्सव मनाया। आज भी महाराष्ट्र में गुड़ी खड़ी करके सजाई जाती है, दरवाजों को तोरण आदि से सजाया जाता है और घर में तरह तरह के पकवान बनाये जाते हैं और नया साल मनाया जाता है। 

 

पूजा विधि-

  • नव वर्ष फल श्रवण (नए साल का भविष्यफल जानना)
  • तैल अभ्यंग (तैल से स्नान)
  • निम्ब-पत्र प्राशन (नीम के पत्ते खाना)
  • ध्वजारोपण
  • चैत्र नवरात्रि का आरंभ
  • घटस्थापना

 

संकल्प के समय नव वर्ष नामग्रहण यानी नए साल का नाम रखने की प्रथा को चैत्र अधिक मास में ही शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जा सकता है। इस संवत्सर का नाम ‘आनल’ है तथा वर्ष 2080 है। साथ ही यह श्री शालीवाहन शकसंवत 1945 भी है और इस शक संवत का नाम ‘शोभाकृत’ है।

 

महत्व-

  1. सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने की ख़ुशी में लोगों ने घरों पर गुड़ी को लगाया था।
  2. कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।
  3. यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है। इसे इन्द्र-ध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
  4. भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की याद में भी कुछ लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते हैं।
  5. माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।
  6. गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
  7. किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
  8. हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं। ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली को आधा मुहूर्त माना जाता है।