गुरु चांडाल योग ज्योतिष में एक विवादास्पद अवधारणा है। इसे अक्सर अशुभ माना जाता है। हालांकि, ज्योतिष सिर्फ भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि ग्रहों की ऊर्जा को समझने का एक उपकरण भी है। गुरु चांडाल योग की ज्योतिषीय स्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने पर इसमें निहित कुछ छिपी हुई क्षमताएं उभर कर आती हैं।
आइये सबसे पहले ‘गुरु चांडाल योग’ का मतलब समझते है। यहां “गुरु” का मतलब बृहस्पति ग्रह से है। देव गुरु बृहस्पति ज्ञान एवं बुद्धि के कारक ग्रह है। बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा जाता है। वही “चांडाल” शब्द का अर्थ है दानव या राक्षस, जबकि “योग” का मतलब होता है, जुड़ना यानि की देवताओं के गुरु बृहस्पति का दानवों के साथ जुड़ना।
गुरु चांडाल योग का निर्माण
- जब कुंडली में गुरु और राहु एक साथ किसी भाव में उपस्थित हो तब चांडाल योग का निर्माण होता है। अपने कई बार सुना होगा कि गुरु और केतु भी मिलकर चांडाल दोष का निर्माण करते है , लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है। गुरु और केतु मिलकर “गरुड़ध्वज योग” का निर्माण करते है। इस योग की चर्चा फिर कभी करेंगे।
- कुंडली में जब भी चांडाल दोष दृष्टि सम्बन्ध से बनता है तो वो उतना प्रभावी नहीं होता है जितना प्रभावी युति सम्बन्ध होने से होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि राहु अपनी 5, 7, 9 दृष्टि बृहस्पति के ऊपर डालता है तो यह दृष्टि सम्बन्ध से बनने वाला गुरु चांडाल योग कहलाता है।
गुरु चांडाल योग या दोष
- सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते है कि गुरु राहु की युति “योग” है या “दुर्योग”, क्योंकि जहां गुरु को पॉजिटिव ग्रह बोला जाता है तो राहु को नेगेटिव ग्रह।
- गुरु आपको ज्ञान, बुद्धि, विवेक और संतान की प्राप्ति करवाता है।
- ज्योतिष में, बृहस्पति को विस्तार, सकारात्मकता, शिक्षा, भाग्य, आशावाद और न्याय के कारक के रूप में देखा जाता है।
- एक मजबूत गुरु व्यक्ति को धर्मनिष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है।
- गुरु कुंडली में जहां पर भी बैठेगा उस भाव के फल को कई अधिक गुना बढ़ा देगा और यह काम राहु भी करता है।
- राहु आपकी इच्छा है। यह अहंकार, भ्रम, जुनून और असाधारण इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
- ज्योतिष में राहु को अक्सर अपरंपरागत और विद्रोही ऊर्जा से जोड़ा जाता है।
- राहु को छाया ग्रह बोला जाता है, क्योंकि राहु जिस भी ग्रह के साथ बैठता है उस ग्रह के सारे गुण अपना लेता है। और उसी ग्रह की तरह परिणाम देता है।
राजयोग
पाराशर ज्योतिष के आधार पर जब भी कोई केंद्र या त्रिकोण का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में राहु के साथ स्थित हो तो यह एक राजयोग कहलाता है। क्योंकि राहु उस ग्रह के सारे गुण अपना लेता है। इस योग का फल जानने के लिए सबसे पहले आपको यह देखना पड़ेगा कि- यह योग कुंडली के किस भाव में बना हुआ है तथा गुरु किन भावों का स्वामी है। गुरु अगर केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो तो गुरु चांडाल दोष आपके लिए एक राजयोग की तरह होगा। जैसे कि…
- गुरु आपके पंचम भाव का स्वामी होकर आपकी लग्न में राहु के साथ बैठ जाता है तो, यह युति आपके ज्ञान में वृद्धि करेगी। आपको कई तरह के विषयों का ज्ञान होगा।
- गुरु आपके नवम भाव का स्वामी होकर राहु के साथ अगर लग्न में बैठेगा तो, आपको धार्मिक बना देगा। आपको तरह-तरह के मंत्र याद होंगे।
गुरु चांडाल योग के सकारात्मक प्रभाव :
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नवाचार और रचनात्मकता:
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सामान्य से हटकर समस्या समाधान:
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आध्यात्मिक जागृति:
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दृढ़ संकल्प और महत्वाकांक्षा:
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अदृश्य क्षमताओं का विकास:
गुरु चांडाल योग के नकारात्मक प्रभाव :
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ज्ञान का दुरुपयोग:
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अधूरी शिक्षा और कौशल का अभाव:
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असंयमित महत्वाकांक्षा और लालच:
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कानूनी परेशानियां:
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आत्मसम्मान की कमी और हीन भावना:
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आध्यात्मिक पथ से भटकना:
ज्योतिषीय समाधान और आत्मिक सुधार
ज्योतिषीय समाधान-
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ग्रह मंत्र जप:
1. गुरु मंत्र–
“ॐ बृहस्पते नमः” या “ॐ गुरु नमः”
नोट: इस मंत्र के नियमित जाप से बृहस्पति ग्रह को मजबूत किया जा सकता है और ज्ञान, विवेक और सकारात्मक निर्णय लेने की क्षमता प्रदान होती है।2. विष्णु मंत्र–
“ॐ विष्णवे नमः”
नोट: भगवान विष्णु को भी गुरु का कारक माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास में सहायता मिलती है और नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचाता है।3. शिव मंत्र-
“ॐ नमः शिवाय”
नोट: भगवान शिव को भी गुरु का कारक माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को अहंकार और भ्रम से दूर रहने की शक्ति मिलती है।
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रत्न ज्योतिष:
1. पीला पुखराज-
नोट :यह पुखराज रत्न बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि माना जाता है। इसे सोने या पीतल की अंगूठी में धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और ज्ञान में वृद्धि होती है।2. पीला नीलम-
नोट :यह रत्न भी बृहस्पति ग्रह से संबंधित माना जाता है। पीले नीलम को धारण करने से भाग्य का समर्थन मिलता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।3. गोमेद-
नोट :राहु का कोई सीधा प्रतिनिधि रत्न नहीं है, लेकिन गोमेद रत्न इसकी छाया को संतुलित करने में सहायक माना जाता है। गोमेद को चांदी की अंगूठी में मध्यमा उंगली में धारण करने से अहंकार और भ्रम को कम करने में मदद मिलती है।-
पूजा-अनुष्ठान:
1. गुरुवार की पूजा-
नोट –गुरुवार बृहस्पति ग्रह का दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु या भगवान दत्तात्रेय की पूजा करना और पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।2. शिवलिंग अभिषेक
नोट :प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर जल या दूध से अभिषेक करना और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना राहु के अशुभ प्रभावों को कम करने में सहायक होता है।3. हवन-
नोट :वैदिक ज्योतिष में हवन का विशेष महत्व है। आप गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए पीले पुष्पों और पीली आहुति सामग्री से हवन करवा सकते हैं।-
नैतिक आचरण:
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ज्ञानार्जन:
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धैर्य और संयम:
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सकारात्मक दृष्टिकोण:
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सेवा और दान:
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योग और ध्यान: