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29 मार्च 2025: अद्भुत ज्योतिषीय संयोग और षट्ग्रह योग का विश्लेषण

March 29, 2025

षट्ग्रह योग (Shat-graha Yoga/Six Planetary Conjunction): ज्योतिष शास्त्र में एक महत्वपूर्ण घटना

आज 29 मार्च 2025 ज्योतिष विज्ञान के दृष्टिकोण से एक अत्यंत विशिष्ट और दुर्लभ दिन है। गुरु बृहस्पति (Jupiter) की स्वराशि मीन (Pisces) में आज एक साथ छह ग्रह विराजमान हैं, जिसे षट्ग्रह योग कहते हैं। इस असाधारण योग में सूर्य (Sun), चंद्र (Moon), बुध (Mercury), शुक्र (Venus), शनि (Saturn) और राहु (Rahu/North Node) शामिल हैं।

महर्षि पराशर द्वारा रचित “बृहत पराशर होरा शास्त्र” में उल्लेख है कि जब छह या अधिक ग्रह एक राशि में आते हैं, तो “मंडल योग” (Mandal Yoga/Planetary Cluster) बनता है जो राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर परिवर्तनों का संकेत देता है।

इस षट्ग्रह योग की विशेषता यह है कि केतु (Ketu/South Node) की सप्तम दृष्टि (7th aspect) भी मीन राशि पर पड़ रही है।

“फलदीपिका” ग्रंथ के अनुसार, केतु की सप्तम दृष्टि को आध्यात्मिक जागृति (spiritual awakening) और मोक्ष प्राप्ति (liberation) का मार्ग प्रशस्त करने वाली माना गया है।

वराहमिहिर द्वारा रचित “बृहत् संहिता” में भी ऐसे दुर्लभ योगों का उल्लेख मिलता है जो कि राजकीय (political) और प्राकृतिक (natural) परिवर्तनों के सूचक माने जाते हैं।

उत्तराभाद्रपद नक्षत्र (Uttarabhadrapada Nakshatra) में सूर्य और आंशिक सूर्य ग्रहण

इसी दिन सूर्य ग्रह मीन राशि के उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थित हैं। “नक्षत्र दर्पण” के अनुसार, उत्तराभाद्रपद को “अहिर्बुधन्य” नक्षत्र भी कहा जाता है, जिसका अधिपति (ruling deity) अहिर्बुधन्य या सर्प देवता हैं। यह नक्षत्र आध्यात्मिक उन्नति और गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है।

“सूर्य सिद्धांत” में सूर्य ग्रहण (solar eclipse) के बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है। इस प्राचीन ग्रंथ के अनुसार, सूर्य ग्रहण के समय राहु द्वारा सूर्य का ग्रसित होना केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि सूक्ष्म ऊर्जाओं (subtle energies) में महत्वपूर्ण परिवर्तन का कारक होता है।

“ग्रह लाघव” में उल्लेख है कि ग्रहण के समय की गई साधना (spiritual practice) और ध्यान (meditation) विशेष फलदायी होते हैं।

शनि का मीन राशि में प्रवेश: एक महत्वपूर्ण ग्रह संक्रमण (Saturn’s transit)

आज ही शनि अपनी स्वयं की राशि कुंभ (Aquarius) से निकलकर मीन राशि में प्रवेश कर चुके हैं। शनि के इस संक्रमण के महत्व को “शनि चरित्र” और “जातक पारिजात” में विस्तार से बताया गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, शनि जब जल तत्व (water element) की राशि मीन में प्रवेश करते हैं, तो सामूहिक चेतना (collective consciousness) में गहराई और दार्शनिक विचारों (philosophical thoughts) का प्रसार होता है।

“साढ़े साती प्रकरण” में शनि की साढ़े साती (Sade-Sati) के विभिन्न चरणों का वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ के अनुसार, शनि की साढ़े साती मकर राशि (Capricorn) के लिए समाप्त होने और मेष राशि (Aries) के लिए प्रारंभ होने का अर्थ है कि प्रारब्ध (predestined karma/fate) और पुरुषार्थ (self-effort) का नया चक्र आरंभ हो रहा है। महर्षि जैमिनि के “जैमिनि सूत्र” में शनि के गोचर (transit) को विशेष महत्व दिया गया है और इसके परिणामों का विस्तृत विवरण दिया गया है।

यहाँ प्रारब्ध शब्द से मतलब है कि: पिछले जन्मों के कर्मों का वह हिस्सा है जो वर्तमान जन्म में फल देने के लिए निर्धारित है। इसे भाग्य या नियति भी कहा जा सकता है। यह वह कर्म है जिसका फल अवश्य भोगना पड़ता है, इसे टाला नहीं जा सकता।

जबकि पुरुषार्थ से अर्थ है कि: मनुष्य का स्वयं का प्रयास, पुरुष-प्रयत्न या स्व-प्रयास है। इसमें वर्तमान जीवन में किए गए कार्य और प्रयास शामिल हैं जो भविष्य को आकार दे सकते हैं। चार पुरुषार्थ हैं: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

केस स्टडी: इतिहास में महत्वपूर्ण ग्रह योग

“भृगु संहिता” और “नाड़ी ज्योतिष” जैसे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जब महत्वपूर्ण ग्रह योगों ने वैश्विक परिवर्तनों को जन्म दिया। फरवरी 1962 में जब छह ग्रह मकर राशि में एकत्रित हुए थे, तब विश्व ने क्यूबा मिसाइल संकट और वैश्विक शीत युद्ध की तीव्रता का अनुभव किया। यह संकट “सामूहिक प्रलंबन योग” (Collective Suspension Yoga) का परिणाम माना गया था, जिसका उल्लेख “कालचक्र दर्शन” में मिलता है।

वराहमिहिर की “पंचसिद्धांतिका” में ऐसे ग्रह योगों की विस्तृत व्याख्या की गई है और बताया गया है कि जब ग्रह एक विशेष पैटर्न में आते हैं, तो चक्रीय परिवर्तन (cyclical changes) होते हैं। “ज्योतिष रत्नाकर” में भी ऐसे योगों का विवरण मिलता है और उनके फलों का वर्णन किया गया है।

हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) का शुभारंभ

आज से ही हिंदू नववर्ष का भी शुभारंभ हो रहा है। “पंचांग प्रकाश” के अनुसार, नए वर्ष में मंगल राजा ग्रह (Mars as the king planet) और शनि मंत्री ग्रह (Saturn as the minister planet) होंगे। प्राचीन ग्रंथ “राजमार्तण्ड” में राजा और मंत्री ग्रहों के प्रभाव का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार, जब मंगल राजा और शनि मंत्री होते हैं, तो वर्ष में न्याय, अनुशासन और शक्ति का संतुलित प्रयोग देखने को मिलता है।

“समय तत्त्वम्” में मंगल के मुख्य गुणों – शौर्य, पराक्रम और ऊर्जा – का वर्णन है, जबकि “शनि तत्त्व विवेक” में शनि के गुणों – धैर्य, अनुशासन और न्याय – का विस्तृत वर्णन मिलता है। “गर्ग संहिता” के अनुसार, जब ये दोनों ग्रह सत्ता में होते हैं, तो समाज में आमूल परिवर्तन (radical changes) होते हैं जो दीर्घकालिक लाभ (long-term benefits) देते हैं।

ज्योतिषीय प्रभाव का विश्लेषण

“बृहत् जातक” में वराहमिहिर ने विभिन्न राशियों और ग्रहों के संयोग का विस्तृत विश्लेषण किया है। उनके अनुसार, जब इतने सारे ग्रह मीन राशि में एकत्रित होते हैं, तो जल तत्व से जुड़े क्षेत्रों, जैसे भावनात्मक स्वास्थ्य (emotional health), आध्यात्मिक विकास (spiritual growth) और भूजल संसाधनों (groundwater resources) से संबंधित मुद्दों में महत्वपूर्ण घटनाएँ होती हैं।

“लाल किताब” की विशिष्ट व्याख्या के अनुसार, जब मीन राशि में ग्रहों का यह प्रकार का संयोग होता है, तो मानवीय संवेदनाओं (human sensitivities) में वृद्धि, धार्मिक भावनाओं (religious sentiments) में जागृति और आध्यात्मिक ज्ञान के नए स्रोतों का उदय होता है। “प्रश्न मार्ग” में इस प्रकार के योगों को “जल प्लावन योग” (Water Flood Yoga) के नाम से जाना जाता है, जो जीवन के प्रवाह में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाते हैं।

“ज्योतिष फलादेश दर्पण” में बताया गया है कि मीन राशि में षट्ग्रह योग विशेष रूप से आध्यात्मिक और कलात्मक (artistic) क्षेत्रों के लिए अनुकूल होता है। “नीलकंठ चतुर्धर” के ग्रंथ “तैत्तिरीय ब्राह्मण भाष्य” में ऐसे योगों को “परिवर्तन के द्वार” (gateways of change) के रूप में वर्णित किया गया है।

निष्कर्ष

29 मार्च 2025 का यह अद्भुत ज्योतिषीय संयोग प्राचीन ग्रंथों में वर्णित कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को प्रमाणित करता है। “महर्षि अत्रि संहिता” के अनुसार, ऐसे दुर्लभ योग काल-चक्र (time cycle) में महत्वपूर्ण मोड़ बिंदु होते हैं। “उत्तर कालामृत” में उल्लेख है कि ऐसे समय में किए गए संकल्प और साधना विशेष फलदायी होते हैं।

“जैमिनि उपदेश सूत्र” और “भविष्य पुराण” दोनों में इस प्रकार के समय को आत्मनिरीक्षण (self-introspection) और आध्यात्मिक उन्नति (spiritual progress) के लिए सर्वोत्तम माना गया है। ये प्राचीन ग्रंथ हमें सिखाते हैं कि ब्रह्मांडीय शक्तियों (cosmic forces) का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है, और इन प्रभावों को समझकर हम अपने जीवन की दिशा बदल सकते हैं।

अंत में, “वसिष्ठ संहिता” से एक श्लोक याद करना उचित होगा:

“ग्रहाणां संयोगेन जायते विश्व परिवर्तनम्। ज्ञात्वा तद् योगविज्ञानं नरो मुक्तिं प्राप्नोति॥”

(ग्रहों के संयोग से विश्व में परिवर्तन होता है। इस योग-विज्ञान को जानकर मनुष्य मुक्ति (liberation) को प्राप्त करता है।)

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