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गुरु चांडाल योग कितना खतरनाक ? जानें क्या है इस दोष से बचने के उपाय !

गुरु चांडाल योग ज्योतिष में एक विवादास्पद अवधारणा है। इसे अक्सर अशुभ माना जाता है। हालांकि, ज्योतिष सिर्फ भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि ग्रहों की ऊर्जा को समझने का एक उपकरण भी है। गुरु चांडाल योग की ज्योतिषीय स्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने पर इसमें निहित कुछ छिपी हुई क्षमताएं उभर कर आती हैं।  आइये सबसे पहले ‘गुरु चांडाल योग’ का मतलब समझते है। यहां “गुरु” का मतलब बृहस्पति ग्रह से है। देव गुरु बृहस्पति ज्ञान एवं बुद्धि के कारक ग्रह है। बृहस्पति को देवताओं का गुरु कहा जाता है। वही “चांडाल”  शब्द का अर्थ है दानव या राक्षस, जबकि “योग” का मतलब होता है, जुड़ना यानि की देवताओं के गुरु बृहस्पति का दानवों के साथ जुड़ना।   

गुरु चांडाल योग का निर्माण 

  • जब कुंडली में गुरु और राहु एक साथ किसी भाव में उपस्थित हो तब चांडाल योग का निर्माण होता है। अपने कई बार सुना होगा कि गुरु और केतु भी मिलकर चांडाल दोष का निर्माण करते  है , लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है। गुरु और केतु मिलकर  “गरुड़ध्वज योग” का निर्माण करते है। इस योग की चर्चा फिर कभी करेंगे। 
  • कुंडली में जब भी चांडाल दोष दृष्टि सम्बन्ध से बनता है तो वो उतना प्रभावी नहीं होता है जितना प्रभावी युति सम्बन्ध होने से होता है। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि राहु अपनी 5, 7, 9 दृष्टि बृहस्पति के ऊपर डालता है तो यह दृष्टि सम्बन्ध से बनने वाला गुरु चांडाल योग कहलाता है। 
 

गुरु चांडाल योग या दोष

  • सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते है कि गुरु राहु की युति “योग” है या “दुर्योग”, क्योंकि जहां गुरु को पॉजिटिव ग्रह बोला जाता है तो राहु को नेगेटिव ग्रह। 
  • गुरु आपको ज्ञान, बुद्धि, विवेक और संतान की प्राप्ति करवाता है। 
  • ज्योतिष में, बृहस्पति को विस्तार, सकारात्मकता, शिक्षा, भाग्य, आशावाद और न्याय के कारक के रूप में देखा जाता है।
  • एक मजबूत गुरु व्यक्ति को धर्मनिष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। 
  • गुरु कुंडली में जहां पर भी बैठेगा उस भाव के फल को कई अधिक गुना बढ़ा देगा और यह काम राहु भी करता है। 
  • राहु आपकी इच्छा है। यह अहंकार, भ्रम, जुनून और असाधारण इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करता है। 
  • ज्योतिष में राहु को अक्सर अपरंपरागत और विद्रोही ऊर्जा से जोड़ा जाता है। 
  • राहु को छाया ग्रह बोला जाता है, क्योंकि राहु जिस भी ग्रह के साथ बैठता है उस ग्रह के सारे गुण अपना लेता है। और उसी ग्रह की तरह परिणाम देता है।  
 

राजयोग

पाराशर ज्योतिष के आधार पर जब भी कोई केंद्र या त्रिकोण का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में राहु के साथ स्थित हो तो यह एक राजयोग कहलाता है। क्योंकि राहु उस ग्रह के सारे गुण अपना लेता है।  इस योग का फल जानने के लिए सबसे पहले आपको यह देखना पड़ेगा कि 
  1. यह योग कुंडली के किस भाव में बना हुआ है तथा गुरु किन भावों का स्वामी है। गुरु अगर केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो तो गुरु चांडाल दोष आपके लिए एक राजयोग की तरह होगा। जैसे कि…
  •  गुरु आपके पंचम भाव का स्वामी होकर आपकी लग्न में राहु के साथ बैठ जाता है तो, यह युति आपके ज्ञान में वृद्धि करेगी। आपको कई तरह के विषयों का ज्ञान होगा। 
  •  गुरु आपके नवम भाव का स्वामी होकर राहु के साथ अगर लग्न में बैठेगा तो, आपको धार्मिक बना देगा। आपको तरह-तरह के मंत्र याद होंगे।  
वही गुरु अगर 6 ,8 और 12 का स्वामी है तो तो यह योग आपके लिए दुर्योग साबित होगा। क्योंकि अगर इन तीनों ही भाव की अधिकता की जाए तो आपके जीवन में परेशानियां काफी ज्यादा हद्द तक बढ़ जाएँगी।    2 . दूसरी चीज़ जो आपको विशेष तौर पर ध्यान रखनी होगी कि गुरु और राहु की अंशात्मक दुरी कितनी है। दोनों ही ग्रह के बीच में 8 -10 डिग्री का अंतर होना चाहिए। अगर दोनों ही ग्रह का अंतर 10 डिग्री से कम है तो यह युति ज्यादा प्रभाव देगी। वहीं 10 डिग्री से ज्यादा का अंतर है तो आपको इस योग के फल कम देखने को मिलेंगे।  3 .आपको दोनों ग्रहों में से बलि ग्रह को देखना होगा। दोनों ही ग्रहों में से अगर गुरु बलि है तो गुरु चांडाल योग का प्रभाव सकारात्मक रूप में देखने को मिलेगा। वहीं राहु बलि हुआ तो आपको नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे।   4. आपकी कुंडली में चल रही दशा भी योग के प्रभाव को सक्रिय करती है। राहु या गुरु की महादशा या अंतर्दशा के दौरान गुरु चांडाल योग का प्रभाव अधिक प्रबल हो सकता है। 5. यदि गुरु कुंडली में राहु के नक्षत्र में विराजमान हो और राहु के साथ उपस्थित हो तब इस योग का प्रभाव अधिक देखने को मिलेगा।   

गुरु चांडाल योग के सकारात्मक प्रभाव : 

  • नवाचार और रचनात्मकता: 

गुरु ज्ञान और परंपरा का कारक ग्रह है। वहीं राहु विद्रोही स्वभाव और अपरंपरागत सोच का प्रतिनिधित्व करता है। गुरु चांडाल योग में इन दोनों ग्रहों की युति या दृष्टि एक ऐसी ऊर्जा का निर्माण करती है, जो नई चीजों को सीखने और परंपरागत तरीकों को चुनौती देने की प्रेरणा देती है। यह वैज्ञानिकों, कलाकारों, उद्यमियों और खोजकर्ताओं के लिए विशेष रूप से लाभदायक हो सकता है।
  • सामान्य से हटकर समस्या समाधान: 

राहु जहाँ जहाँ जाता है, वहां सवाल खड़ा करता है और परंपरा को चुनौती देता है। गुरु के मार्गदर्शन में, यह ऊर्जा अनूठे समाधान खोजने और रूढ़ीवादिता को तोड़ने में मदद कर सकती है। जटिल समस्याओं का समाधान निकालने के लिए नए तरीके अपनाने की क्षमता गुरु चांडाल योग का एक सकारात्मक पहलू है।
  • आध्यात्मिक जागृति: 

गुरु आध्यात्मिक ज्ञान और मार्गदर्शन का कारक है। वहीं राहु आध्यात्मिक जिज्ञासा जगाता है। यह योग गहन आत्म विश्लेषण और सच्ची समझ को जगाने में सहायक हो सकता है। परंपरागत धर्म के अलावा आध्यात्मिकता के नए आयामों को खोजने की प्रेरणा मिल सकती है।
  • दृढ़ संकल्प और महत्वाकांक्षा: 

राहु की महत्वाकांक्षा और गुरु का दृढ़ संकल्प मिलकर व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करने की प्रेरणा दे सकता है। यह जुनून और जल्दी सफलता पाने की इच्छा सकारात्मक हो सकती है, बशर्ते उसे नैतिक दिशा दी जाए।  
  • अदृश्य क्षमताओं का विकास: 

कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि गुरु चांडाल योग जातक में छिपी हुई प्रतिभाओं और अलौकिक क्षमताओं को उभारने में सहायक हो सकता है। यह अंतर्ज्ञान, टेलीपैथी या आभा देखने जैसी शक्तियों को जगा सकता है। हालांकि, इन क्षमताओं को विकसित करने के लिए साधना और सकारात्मक मार्गदर्शन जरूरी होता है।  

गुरु चांडाल योग के नकारात्मक प्रभाव : 

  • ज्ञान का दुरुपयोग:

गुरु ज्ञान और विवेक का कारक ग्रह है। राहु के प्रभाव में आने से व्यक्ति ज्ञान का दुरुपयोग कर सकता है। उदाहरण के लिए, कोई वकील अपनी कानूनी विशेषज्ञता का उपयोग झूठ बोलने या कानून को तोड़ने में कर सकता है। इसी प्रकार, शिक्षक ज्ञान का दुरुपयोग छात्रों को गुमराह करने के लिए कर सकता है।  
  • अधूरी शिक्षा और कौशल का अभाव: 

राहु भ्रम का कारक है। गुरु चांडाल योग के प्रभाव में व्यक्ति को लग सकता है कि वह किसी विषय में जानकार है।  जबकि वास्तव में उसकी समझ अधूरी हो सकती है। यह शिक्षा और कौशल विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।  
  • असंयमित महत्वाकांक्षा और लालच:

राहु महत्वाकांक्षा और जुनून का कारक है। जब भी गुरु राहु के प्रभाव में आता है तो व्यक्ति की  महत्वाकांक्षा अत्यधिक बड़ जाती है। वह व्यक्ति लालच पूर्ण हो सकता है। व्यक्ति जल्दी सफलता पाने के लिए गलत रास्ते अपना सकता है।
  • कानूनी परेशानियां: 

राहु कानून और अधिकार का विरोध करता है। गुरु चांडाल योग के प्रभाव में व्यक्ति कानूनी परेशानियों में फंस सकता है।
  • आत्मसम्मान की कमी और हीन भावना: 

राहु अहंकार और हीन भावना दोनों का कारक हो सकता है। गुरु चांडाल योग के प्रभाव में व्यक्ति अहंकारी बन सकता है या दूसरों से अपनी तुलना करके हीन भावना से ग्रस्त हो सकता है। यह दोनों ही स्थितियां आत्म-सम्मान को कम करती हैं।
  • आध्यात्मिक पथ से भटकना: 

गुरु ज्ञान और आध्यात्मिक विकास का कारक है। राहु के प्रभाव में व्यक्ति आध्यात्मिक पथ से भटक सकता है। वह गलत गुरु या पंथ के चक्कर में फंस सकता है।           

ज्योतिषीय समाधान और आत्मिक सुधार

ज्योतिषीय समाधान-

  • ग्रह मंत्र जप: 

ज्योतिष में, मंत्रों का जाप विशिष्ट ग्रहों की ऊर्जा को संतुलित करने और मजबूत करने के लिए किया जाता है। गुरु चांडाल योग के मामले में, निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना लाभकारी माना जाता है:

1. गुरु मंत्र

 “ॐ बृहस्पते नमः” या “ॐ गुरु नमः” 

  नोट: इस मंत्र के नियमित जाप से बृहस्पति ग्रह को मजबूत किया जा सकता है और ज्ञान, विवेक और सकारात्मक निर्णय लेने की क्षमता प्रदान होती है।  

2. विष्णु मंत्र– 

“ॐ विष्णवे नमः” 

नोट: भगवान विष्णु को भी गुरु का कारक माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक विकास में सहायता मिलती है और नकारात्मक प्रवृत्तियों से बचाता है।  

3. शिव मंत्र-

“ॐ नमः शिवाय”

नोट: भगवान शिव को भी गुरु का कारक माना जाता है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को अहंकार और भ्रम से दूर रहने की शक्ति मिलती है।

  • रत्न ज्योतिष: 

रत्न ज्योतिष में, विभिन्न रत्नों को विशिष्ट ग्रहों से संबंधित माना जाता है। गुरु चांडाल योग को संतुलित करने के लिए आप निम्नलिखित रत्नों में से कोई एक धारण कर सकते हैं:  

1. पीला पुखराज-

नोट :यह पुखराज रत्न बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि माना जाता है। इसे सोने या पीतल की अंगूठी में धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और ज्ञान में वृद्धि होती है।  

2. पीला नीलम- 

नोट :यह रत्न भी बृहस्पति ग्रह से संबंधित माना जाता है। पीले नीलम को धारण करने से भाग्य का समर्थन मिलता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।  

3. गोमेद- 

नोट :राहु का कोई सीधा प्रतिनिधि रत्न नहीं है, लेकिन गोमेद रत्न इसकी छाया को संतुलित करने में सहायक माना जाता है। गोमेद को चांदी की अंगूठी में मध्यमा उंगली में धारण करने से अहंकार और भ्रम को कम करने में मदद मिलती है।
  • पूजा-अनुष्ठान: 

ज्योतिषीय अनुष्ठान और पूजा-पाठ करना भी गुरु चांडाल योग के प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं। आप कर सकते हैं:  

1. गुरुवार की पूजा-

नोट –गुरुवार बृहस्पति ग्रह का दिन माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु या भगवान दत्तात्रेय की पूजा करना और पीले वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है।  

2. शिवलिंग अभिषेक 

नोट :प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर जल या दूध से अभिषेक करना और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना राहु के अशुभ प्रभावों को कम करने में सहायक होता है।  

3. हवन- 

नोट :वैदिक ज्योतिष में हवन का विशेष महत्व है। आप गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए पीले पुष्पों और पीली आहुति सामग्री से हवन करवा सकते हैं।
  • नैतिक आचरण: 

गुरु ज्ञान और धर्म का कारक ग्रह है। नैतिक आचरण बनाए रखना और सत्य के मार्ग पर चलना गुरु ग्रह को प्रसन्न करता है। झूठ, धोखा और अनैतिक कार्यों से बचें।
  • ज्ञानार्जन: 

गुरु ज्ञान का कारक ग्रह है। निरंतर ज्ञानार्जन और शिक्षा ग्रहण करना गुरु को मजबूत करता है। नई चीजें सीखने की जिज्ञासा रखें, पुस्तकें पढ़ें और ज्ञानी लोगों का संग करें।
  • धैर्य और संयम: 

धैर्य और संयम रखना गुरु ग्रह के गुण हैं। जल्दबाजी में निर्णय लेने से बचें। क्रोध, लोभ, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं पर नियंत्रण रखें।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण: 

सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखें और आशावादी बने रहें। नकारात्मक विचारों को अपने ऊपर हावी न होने दें। हर परिस्थिति में सकारात्मक पक्ष खोजने का प्रयास करें।
  • सेवा और दान: 

गुरु दान और परोपकार का भी कारक ग्रह है। जरूरतमंदों की सहायता करें और दान का कार्य करें। गुरुवार के दिन पीले रंग की वस्तुओं का दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • योग और ध्यान: 

योग और ध्यान का अभ्यास न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि ग्रहों के प्रभाव को भी संतुलित करने में सहायक होता है। नियमित रूप से योगाभ्यास करें और ध्यान लगाए।   

इन जानें-मानें लोगों की कुंडली में हैं चांडाल योग

1. राहुल गांधी:

 जन्म तिथि- 18 जून 1970, जन्म समय- 21:52 pm, जन्म स्थान- दिल्ली   राहुल गांधी की मकर लग्न है। इनके द्वितीय भाव में राहु विराजमान है। वही देखें तो द्वितीय भाव के स्वामी शनिदेव महाराज इनके चतुर्थ भाव में नीच राशि में स्थित है। यहां राहु नीच शनि के जैसे परिणाम देगा। राहु अपनी नवम दृष्टि से गुरु को देख रहा है। गुरु दशम भाव में विराजमान है। इसके चलते इनको अपने कार्यक्षेत्र में अत्यधिक मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है।   

2 . पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जनरल परवेज मुशर्रफ-  

जन्म तिथि- 11 अगस्त 1941, जन्म समय- 05:00 AM, जन्म स्थान- दिल्ली     जनरल मुशर्रफ़ की कर्क लग्न है। इनकी लग्न में ही गुरु चांडाल दोष बना हुआ है। यहां राहु लग्न में बैठकर लग्नेश की तरह व्यवहार करेगा। वही गुरु इनके छठे और नवम भाव के स्वामी है। राहु ने गुरु को महाबली बना दिया है। इनके द्वितीय भाव [धन भाव] के स्वामी सूर्य देव लग्न में स्थित है। ग्रहों की यह स्थिति इनकी कुंडली में महाधनी योग बनती है। लेकिन राहु की महादशा में गुरु ने छठे भाव के परिणाम दिए और इनको कोर्ट कचहरी के चक्कर लगवाए।

14 मार्च को बनेगा “सबसे खतरनाक ग्रहण योग”! अरुण पंडित जी बताएंगे इसके नकारात्मक प्रभाव से बचने के उपाय।

मार्च 2024 ज्योतिषियों घटनाओं के हिसाब से कई मायनों में बेहद ख़ास रहने वाला है। क्योंकि मार्च में कुछ ग्रह मिलकर एक ऐसा अद्भुत संयोग बनाएंगे, जिससे न केवल देश-दुनिया में बल्कि सभी जातकों के जीवन में बहुत उथल-पथल देखने को मिलेगी।

कब होगी सूर्य-राहु की युति  

एस्ट्रो अरुण पंडित जी की मानें तो 14 मार्च 2024, गुरूवार की दोपहर 12 बजकर 46 मिनट पर सूर्य और राहु का अद्भुत मिलन होगा। इस दौरान ग्रहों के राजा माने जाने वाले सूर्य देव गुरु बृहस्पति की मीन राशि में गोचर करते हुए, वहां पहले से उपस्थिति अपने नैसर्गिक शत्रु व छायाग्रह राहु के साथ मिलकर युति करेंगे, जिससे “ग्रहण योग” का निर्माण होगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस संयोग का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस ग्रहण योग के दौरान कुछ जातकों को इस दौरान खासतौर से बचकर रहने की हिदायत दी जाती है।

क्या होता है ग्रहण योग?

ज्योतिष में ग्रहण योग उस स्थिति में बनता है जब सूर्य और राहु कुंडली के किसी भी भाव में एक साथ उपस्थित होते हुए युति बनाते हैं। बता दें कि ग्रहण योग अशुभ योगों की श्रेणी में आता है। क्योंकि ग्रहण योग का निर्माण जातक के जीवन की शुभता पर ग्रहण लगाने का कार्य करता है।

ज्योतिष विज्ञान में सूर्य से जहाँ हमारी आत्मा का प्रतिनिधित्व किया जाता है, जबकि राहु को काल की शक्ति का प्रतिनिधित्व माना गया है। ऐसे में इन दोनों ही विशेष ग्रहों का संयोग हमें अपनी आत्मिक ऊर्जा को सकारात्मक और सतत रखने का संदेश देता है।

तो चलिए अब नीचे सभी 12 राशियों के लिए कुछ विशेष उपायों पर डालते हैं एक नज़र, ताकि इस ग्रहण योग की मदद से सभी जातक अपनी ऊर्जा का सही इस्तेमाल करते हुए अपने उद्देश्यों की ओर अग्रसर होने के लिए एक अद्वितीय अवसर प्राप्त कर सके।

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12 राशियों के लिए ग्रहण योग के उपाय:-

मेष राशि 

मेष जातकों के लिए सूर्य पंचम भाव के स्वामी होते हैं और अब राहु-सूर्य की ये युति आपकी राशि के द्वादश यानी बारहवें भाव में होगी।

उपाय: अगले एक माह तक रोजाना 19 बार ‘ॐ भास्कराय नमः’ इस मंत्र का शुद्ध उच्चारण करें।

 

वृषभ राशि

वृषभ जातकों के लिए सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होते हैं और अब वे अपना गोचर करते हुए आपकी राशि के एकादश यानी ग्यारहवें भाव में, वहां पहले से उपस्थित राहु के साथ युति करेंगे।

उपाय: प्रत्येक मासिक शिवरात्रि विधि अनुसार शिव महिम्न स्त्रोत का पाठ करें।

 

मिथुन राशि

आपके लिए ग्रहों के राजा सूर्य तीसरे भाव के स्वामी होते हैं और 14 मार्च को वे अपना गोचर करते हुए आपके दशम भाव में विराजमान होते हुए राहु के साथ युति करेंगे।

उपाय: रोज़ाना घर से निकलने से पहले अपने माथे पर लाल चन्दन का तिलक करें।

 

कर्क राशि

सूर्य आपकी राशि के दूसरे भाव के स्वामी हैं और अब वे अपना गोचर कर राहु के साथ युति करेंगे। जिससे आपकी कुंडली के नवम भाव में ग्रहण योग का निर्माण होगा।

उपाय: भगवान शिव जी की पूजा-अर्चना करते हुए, हर सोमवार शिवलिंग पर कच्चे दूध से अभिषेक करें।

 

सिंह राशि

सिंह राशि का आधिपत्य सूर्य देव के पास ही होता है। ऐसे में अब वे अपना गोचर कर राहु के साथ मिलकर आपके अष्टम भाव में ग्रहण योग बनाएंगे।

उपाय: रोज़ाना सूर्य देव की उपासना कर प्रतिदिन सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें।

 

कन्या राशि 

सूर्य आपकी राशि के द्वादश भाव के स्वामी होते हैं और अब राहु के साथ वे आपकी कुंडली के सप्तम भाव में युति करेंगे।

उपाय: रविवार के दिन भगवान सूर्य को समर्पित हवन व यज्ञ करना आपके लिए अनुकूल रहेगा।

 

तुला राशि 

तुला जातकों के लिए सूर्य एकादश भाव के स्वामी माने गए हैं। अब वे अपना गोचर मीन राशि में करते हुए राहु के साथ युति आपके छठे भाव में बनाएंगे।

उपाय: सप्ताह में किसी भी एक दिन वृद्धाश्रम जाकर बुजुर्गों की सेवा करें।

 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक जातकों के लिए सूर्य दशम भाव के स्वामी होते हैं। और अब उनका गोचर आपके पांचवे घर में होने से आपके पंचम भाव में ही राहु-सूर्य की युति बनेगी।

उपाय: महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

 

धनु राशि 

सूर्य आपके नवम भाव के स्वामी हैं और वे अपना गोचर आपके चतुर्थ भाव में करते हुए ग्रहण योग का निर्माण करेंगे।

उपाय: अपनी मां को कोई भी सफ़ेद वस्तु उपहार में देना आपके लिए अनुकूल रहेगा।

 

मकर राशि 

मकर जातकों के लिए सूर्य अष्टम भाव के स्वामी माने गए हैं। अब उनका गोचर आपके तृतीय भाव में होगा, जहाँ वे वहां पहले से उपस्थित राहु के साथ युति करेंगे।

उपाय: रोज़ाना एक माला ‘ॐ मांडाय नमः’ मंत्र की जप करें।

 

कुंभ राशि

कुंभ जातकों के लिए सूर्य सप्तम भाव के स्वामी हैं। 14 मार्च को अपने गोचर के दौरान वे आपके द्वितीय भाव में राहु के साथ युति बनाएंगे।

उपाय: रोज़ाना सूर्योदय के समय 108 बार “ॐ रां राहवे नमः” मंत्र की जप करें।

 

मीन राशि

राशिचक्र की अंतिम राशि मीन के लिए सूर्य छठे भाव के स्वामी होते हैं। अब उनका गोचर इसी राशि में होने से लग्न में उपस्थित राहु के साथ उनकी युति बनेगी।

उपाय: ग्रहण योग निवारण पूजा करवाएं।

हम आशा करते हैं कि ये लेख आपको पसंद आया होगा। एस्ट्रो अरुण पंडित जी की टीम की ओर से आपको उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं। ,