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जानिए क्यों मनाई जाती है दुर्गाष्टमी | Know why Durgashtami is celebrated

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October 3, 2022

 

जानिए क्यों मनाई जाती है दुर्गाष्टमी | Know why Durgashtami is celebrated – Astro Arun Pandit

सनातन हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार माँ दुर्गा को सृष्टि की जननी माना जाता है। अलग-अलग स्थानों पर अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार देवी का पूजन किया जाता है।

पूरे वर्ष में चार बार नयी ऋतु के प्रारम्भ में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की शास्त्रोक्त पूजन का विधान है। वर्ष में चार बार आने वाली नवरात्र में से अश्विन मास की नवरात्र को बड़ी धूमधाम से सामूहिक रूप से मनाया जाता है। जो कि अश्विन माह की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है और दशमी तिथि के दशहरा पर्व तक मनाया जाता है। नवरात्र के प्रत्येक दिन नवदुर्गा की विस्तृत पूजा की जाती है, जिसमे कठोर नियम और सावधानी रखी जाती है।

इन नौ दिनों में से आठवे दिन मुख्य रूप से देवी महागौरी की आराधना की जाती है, साथ ही देवी महालक्ष्मी और देवी महासरस्वती की संयुक्त पूजा शास्त्रोक्त विधि से की जाती है। इस दिन को महाअष्टमी या दुर्गाष्टमी भी कहा जाता है। इस वर्ष 03 अक्टूबर 2022 को शाम 4:37 बजे अष्टमी तिथि प्रारम्भ हो रही है। महाष्टमी के विधान को जानने के लिए पूरा पढ़ें।

क्या है महाष्टमी-

पुराणों की कथा के अनुसार देवी पार्वती के ही दूसरे स्वरूप का नाम महागौरी है जो उन्हें भगवान शिव से प्राप्त हुआ था। जब देवी पार्वती भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या में लीन हो जाती है,जिससे उनका शरीर काला हो जाता है। तब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनको गौर वर्ण प्रदान करते हैं। तब उनका नाम महागौरी नाम से प्रख्यात हुआ। उस दिन अश्विन मास की अष्टमी तिथि थी जिसके कारण इस तिथि को देवी महागौरी की पूजन की जाती है। माता ने उत्पाती राक्षस चंड और मुंड का वध अष्टमी को ही किया था।

क्या है पूजन का विधान-

माता की पूजन के लिए लोग पूरी शुद्धता का पालन करते हैं, पूरे दिन उपवास रखते हैं और अपने परिवार और कुटुंब के साथ माता महागौरी और अपनी कुलदेवी की पूजन करते हैं।

पूरे दिन सात्विकता का पालन करते हुए माता का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इसके बाद शास्त्रोक्त हवन किया जाना चाहिए। इस हवन से घर और वातावरण शुद्ध होता है जबकि इस पूजन के बाद व्यक्ति की बुद्धि और विवेक में सकारात्मकता आती है।

भक्त हो या साधक सभी को इस दिन माता के बीज मंत्र “श्रीं क्लीं ह्रीं वरदायै नमः” का अधिक से अधिक जाप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप माता प्रसन्न होकर भक्तों को सुख-समृध्दि, तेज और सुंदरता के साथ साथ अभय वर प्रदान करतीं हैं।

महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए माता को साड़ी और श्रृंगार के साथ सुंदर चुनरी अर्पण करतीं है।

कई महिलाएं अपनी संतानों की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए अष्टमी को निर्जला उपवास रखते हैं।

इस दिन माता का उद्यापन भी किया जाता है और भोग में माता को नारियल और नारियल से बने पकवानों का भोग लगाते हैं। परन्तु खाने के प्रसाद के रूप में नारियल कभी नही दिया जाता।

कई लोग पूरे नवरात्र उपवास रखकर अष्टमी पूजन के बाद भजन,कीर्तन और उत्सव मनाकर भोजन ग्रहण करते हैं। जबकि कई लोग नवमी के दिन पारण करते हैं।

माता महागौरी अन्नपूर्णा का रूप मानी जाती है इसलिये इस दिन भक्त कन्या भोज आयोजित करते हैं। जिसमें कन्याओं को खीर और पूरी का भोज दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कन्या के रूप में देवी स्वयं घर आती है और सुख समृद्धि का आशीर्वाद देकर जाती है।

मुख्य रूप से देवी के नौ रूपों का प्रतीक मानकर 12 से कम उम्र की 9 कन्याओं को सात्विक भोजन कराया जाता है। उसके बाद उन्हें श्रृंगार और चुनरी और दक्षिणा भेंट करके विदा किया जाता है।

सनातन संस्कृति की यह परंपरा पूरी दुनिया को कन्याओं का सम्मान करने का संदेश देती है। इस दिन बिना कन्या भोज किये कोई भी पूजा सफल नही मानी जाती।

देवी भागवत महापुराण के अनुसार माता महागौरी की अष्टमी को शास्त्रीय पूजन को करने वाला व्यक्ति शत्रुओं पर हमेशा विजय प्राप्त करता है,सभी रोगों से मुक्त होता है और जीवन में हमेशा उन्नति की राह पर ही चलता है।

 

About The Author –

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 48+ years

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