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November Prediction-2023

november rashifal 2023 jaane kya hoga prabhav numerologist arun ji

नबम्‍बर राशिफल 2023| जाने नबम्‍वर के महीने में आपकी राशि पर क्‍या होगा प्रभाव!

इस शुभ दीपावली लाभ या हानि!!!!

क्या लेकर आया है नवंबर का ये महीना आपके लिये। इस महीने में 6 ग्रह अपना स्थान परिवर्तन कर रहे है, खासतौर पर राहु-केतु आपकी जिंदगी में उथल-पुथल मचा सकते है। साथ ही शनि कुछ राशियों में वक्री हो रहे है, जिससे कुछ राशियों में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते है। इस महीने ग्रहों की चाल तेजी से बदलने वाली है। ऐसे में सभी 12 राशियों पर बड़े ही रोचक प्रभाव देखे जाने वाले हैं, कुछ राशियों के लिए यह महीना खुशहाली से भरा होगा, लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनके लिए नवंबर का यह महीना अशुभ परिणामों से भरा हो सकता है। तो पूरा राशिफल ज़रुर देखें !!

मेष-

  • राहु और केतु के गोचर से कार्यक्षेत्र ठीक-ठाक रहेगा। 
  • शनि स्वयं की राशि में बैठे हैं।
  • बहुत ज्यादा व्यस्त हो सकते है। 
  • जॉब के लिये विदेश से शुभ समाचार प्राप्त हो सकते है। 
  • पैसों को लेकर समस्या रह सकती है। 
  • ख़र्चे कर सकते है परेशान !
  • विद्यार्थी पढ़ाई में कुछ Creative कर सकते है। 
  • सेहत का रखें ख्याल । 
  • केतु कर सकता है आपको हैरान!
  • इस महीने बन रहे है शादी के संयोग। 
मेष राशि के लिये उपाय- शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा और घर में यज्ञ और हवन करना होगा शुभ । 

वृषभ-

  • कार्यक्षेत्र में शनि देव कड़ी मेहनत कराने वाले है। 
  • ये महीना राहु-केतु के गोचर से बहुत व्यस्त रहेगा। 
  • पार्टनर के साथ रिश्ते बिगड़ सकते है ।
  • आर्थिक पक्ष में खर्च अधिक होंगे। 
  • विद्यार्थी बहुत भटकते हुये नज़र आ रहे है। 
  • सेहत ठीक-ठाक रहेगी। 
  • शादी करने का हो सकता है मन। 

वृषभ राशि के लिये उपाय-108 बार माँ दुर्गा का मंत्र “ॐ दुर्गाय नमः” का जाप करके दिन की शुरुवात करें।

मिथुन-

  • कार्यक्षेत्र में कम मेहनत में ज्यादा सफलता मिल सकती है। 
  • आर्थिक समस्याओं से निजात मिल सकती है। 
  • इस महीने आप बहुत Energetic महसूस करोगे। 
  • प्रेमी जीवन सुखद बीतेगा। 
  • किसी और की वजह से पढ़ाई में नुकसान हो सकता है। 
मिथुन राशि के लिये उपाय- ॐ बुधाय नमः मंत्र का जप प्रतिदिन 21 बार जरूर करें।

कर्क-

  • कार्यक्षेत्र में संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। 
  • जॉब और बिज़नेस में बेहतर परिणाम मिलेंगे।   
  • नये Business में नुकसान हो सकता है । 
  • ये महीना विद्यार्थियों के लिये बहुत अच्छा रहेगा । 
  • केतु के प्रभाव से Health में पैसा खर्च हो सकता है। 
  • परिवार के किसी सदस्य को हो सकता है घमंड !
कर्क राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 21 बार ॐ सोमाय नमः मंत्र का जप करें एवं चाँदी के बर्तन पर पानी पिये। 

सिंह-

  • नौकरी में प्रमोशन और करियर में चैलेंजेस। 
  • सीनियर ले सकते है आपकी परीक्षा
  • इस महीने कमाओगे ढ़ेर सारा पैसा 
  • दोस्तों की वजह से हो सकता है समय बर्बाद 
  • पेट और आँख से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • आपका लव रिलेशन अब शादी में बदल सकता है। 
  • परिवार में हो सकता है झगड़ा।
सिंह राशि के लिये उपाय- सूर्य देव को प्रतिदिन जल चढ़ाये और ॐ श्रीं सूर्याय नमः मंत्र का जप करें।

कन्या-

  • कार्यक्षेत्र में 15 तारीख के बाद मिल सकते है बेहतर परिणाम। 
  • इस महीने आपके खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • मेहनत करने से मिलेगी सफलता  
  • गुरु की सलाह मानने से होगा लाभ 
  • आपकी माँ हो सकती है आपसे नाराज़
  • सिरदर्द, और आँखों में दर्द हो सकता है। 
कन्‍या राशि के लिये उपाय – प्रतिदिन गणेश जी की पूजा करें और उन्हें दूर्वा अर्पित करें।  

तुला-

  • नौकरी में मिल सकती है नई Opportunity 
  • हर क्षेत्र में मिलेगी आपको सफलता। 
  • अपने प्रोडक्ट्स का करायें Market Checkup 
  • अपनी हेल्थ का रखें ध्यान 
  • विद्यार्थियों को अपने रिजल्ट में थोड़ा नाखुश होना पड़ सकता है। 
  • Love life और Married life में सकारात्मक रिजल्ट मिलेंगे।  
तुला राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 41 बार ॐ राहवे नमः और ॐ केतवे नमः मंत्र का जप करे।

वृश्चिक-

  • मंगल से संबंधित कार्य में यश मिलेगा । 
  • अचानक से मिलेगी आपको Opportunity 
  • विद्यार्थियों को हो सकती है Anxiety 
  • विद्यार्थी जीवन का दूसरा नाम है संघर्ष  
  • वाहन चलाते समय रखें ध्यान दुर्घटना होने की है संभावना  
  • केतु इस महीने करायेगा आपका मोहभंग 
  • परिवार में छोटा-मोटा झगड़ा हो सकता है।
वृश्चिक राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 21 बार ॐ हं हनुमते नमः मंत्र का जप करे।

धनु-

  • कार्यक्षेत्र में शुभ संयोग बन रहे है।
  • इस महीने आप आलसी हो सकते है। 
  • इस महीने आप ऊर्जा से भरे दिखाई देंगे। 
  • Love Relation में मिल सकती है खुशखबरी
  • परिवार का मिलेगा साथ
धनु राशि के लिये उपाय- भगवान गणेश की उपासना करें और गरीबों को भोजन जरूर करायें।    

मकर-

  • कार्यक्षेत्र में मिले जुले परिणाम मिल सकते है। 
  • इस महीने बिज़नस में लाभ होगा 
  • इस महीने आप अपनी limit को Cross करेंगे। 
  • जिंदगी में Management होता है जरुरी 
  • विदेश में पढ़ाई के लिये है शुभ संयोग।  
  • प्रेमी जीवन में तकलीफ हो सकती है। 
मकर राशि के लिये उपाय- भगवान शिव का पूजन करें और शिवलिंग पर जल से अभिषेक करे।  

कुंभ-

  • कार्यक्षेत्र में रहेगी चुनोतियाँ। 
  • इस महीने मेंटल स्ट्रेस परेशान कर सकती है। 
  • आर्थिक पक्ष ठीक-ठाक रहेगा। 
  • विद्यार्थी अपने समय को बर्बाद कर सकते हैं।
  • प्रेमी जीवन में बहुत अशांति दिखाई दे रही है। 
  • परिवार में हो सकता है मनमुटाव।
कुंभ राशि के लिये उपाय- राधाकृष्ण मंदिर में जाकर राधा नाम जप करें।

मीन-

  • कार्यक्षेत्र में office colleague से अनबन हो सकती है । 
  • इस महीने बहुत खर्च हो सकते हैं।  
  • Property लेने के लिये समय अनुकूल नहीं है। 
  • विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई से डर लग सकता है।  
  • अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • परिवार में नोक-झोंक हो सकती है।
मीन राश‍ि के लिये उपाय- हनुमान मंदिर में जाकर पूजा अर्चना जरूर करें और असहायों की सहायता करें।

Navam divas 2023

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नवम दिवस - देवी सिद्धिदात्री

माता सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्रि के नौवें दिन की जाती है। उनके नाम का अर्थ, सिद्धी मतलब आध्यात्मिक शक्ति और दात्री मतलब देेने वाली। अर्थात् सिद्धी को देने वाली। देवी भक्तों के अंदर की बुराइयों और अंधकार को दूर करती हैं और ज्ञान का प्रकाश भरती हैं।

माता सिद्धिदात्री का स्वरूप

माँ सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं और वे शेर की सवारी करती हैं। उनकी चार भुजाएँ हैं जिनमें दाहिने एक हाथ में वे गदा और दूसरे दाहिने हाथ में चक्र तथा दोनों बाएँ हाथ में क्रमशः शंख और कमल का फूल धारण की हुईं हैं। देवी का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने सभी प्रकार की सिद्धियों को पाने के लिए देवी सिद्धिदात्री की उपासना की थी। तब देवी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी को सभी सिद्धियाँ दीं। तब शिव जी का आधा शरीर देवी सिद्धिदात्री का हो गया। जिसके बाद शिव जी को अर्धनारीश्वर कहा गया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Ashtam divas 2023

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अष्‍टम दिवस - देवी महागौरी

माता महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है। सच्चे मन से भक्तों द्वारा की गई प्रार्थना माँ अवश्य स्वीकर करती हैं। महागौरी के नाम का अर्थ, महा मतलब महान/बड़ा और गौरी मतलब गोरी। देवी का रंग गोरा होने के कारण ही उन्हें महागौरी कहा गया।

माता महागौरी का स्वरूप

देवी महागौरी की चार भुजाएँ हैं और वे वृषभ की सवारी करती हैं। वे दाहिने एक हाथ से अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं, वहीं दूसरे दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएँ एक हाथ में डमरू तथा दूसरे बाएँ हाथ से वे वर मुद्रा में है।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्याताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए गर्मी, सर्दी और बरसात का बिना परवाह किए कठोर तप किया था जिसके कारण उनका रंग काला हो गया था। उसके बाद शिव जी उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और गंगा के पवित्र जल से स्नान कराया जिसके बाद देवी का रंग गोरा हो गया। तब से उन्हें महागौरी कहा जाने लगा।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी महागौरी राहु ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Saptam divas 2023

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सप्‍तम दिवस - देवी कालरात्रि

माता कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। इन्हें देवी पार्वती के समतुल्य माना गया है। देवी के नाम का अर्थ- काल अर्थात् मृत्यु/समय और रात्रि अर्थात् रात है। देवी के नाम का शाब्दिक अर्थ अंधेरे को ख़त्म करने वाली है।

माता कालरात्रि का स्वरूप

देवी कालरात्रि कृष्ण वर्ण की हैं। वे गधे की सवारी करती हैं। देवी की चार भुजाएँ हैं, दोनों दाहिने हाथ क्रमशः अभय और वर मुद्रा में हैं, जबिक बाएँ दोनों हाथ में क्रमशः तलवार और खडग हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ नामक दो दानव थे जिन्होंने देवलोक में तबाही मचा रखी थी। इस युद्ध में देवताओं के राजा इंद्रदेव की हार हो गई और देवलोक पर दानवों का राज हो गया। तब सभी देव अपने लोक को वापस पाने के लिए माँ पार्वती के पास गए। जिस समय देवताओं ने देवी को अपनी व्यथा सुनाई उस समय देवी अपने घर में स्नान कर रहीं थीं, इसलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए चण्डी को भेजा। जब देवी चण्डी दानवों से युद्ध के लिए गईं तो दानवों ने उनसे लड़ने के लिए चण्ड-मुण्ड को भेजा। तब देवी ने माँ कालरात्रि को उत्पन्न किया। तब देवी ने उनका वध किया जिसके कारण उनका नाम चामुण्डा पड़ा। इसके बाद उनसे लड़ने के लिए रक्तबीज नामक राक्षस आया। वह अपने शरीर को विशालकाय बनाने में सक्षम था और उसके रक्त (खून) के गिरने से भी एक नया दानव (रक्तबीज) पैदा हो रहा था। तब देवी ने उसे मारकर उसका रक्त पीने का विचार किया, ताकि न उसका खून ज़मीन पर गिरे और न ही कोई दूसरा पैदा हो। माता कालरात्रि को लेकर बहुत सारे संदर्भ मिलते हैं। आइए हम उनमें से एक बताते हैं कि देवी पार्वती दुर्गा में कैसे परिवर्तित हुईं? मान्यताओं के मुताबिक़ दुर्गासुर नामक राक्षस शिव-पार्वती के निवास स्थान कैलाश पर्वत पर देवी पार्वती की अनुपस्थिति में हमला करने की लगातार कोशिश कर रहा था। इसलिए देवी पार्वती ने उससे निपटने के लिए कालरात्रि को भेजा, लेकिन वह लगातार विशालकाय होता जा रहा था। तब देवी ने अपने आप को भी और शक्तिशाली बनाया और शस्त्रों से सुसज्जित हुईं। उसके बाद जैसे ही दुर्गासुर ने दोबारा कैलाश पर हमला करने की कोशिश की, देवी ने उसको मार गिराया। इसी कारण उन्हें दुर्गा कहा गया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कालरात्रि शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शनि के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Shashtam divas 2023

shastam divas maa katayani manyata astrologer arun ji

षष्‍टम दिवस - देवी कात्यायनी

कात्यायनी माता की पूजा नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। देवी पार्वती ने यह रूप महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए धारण किया था। माता का यह रूप काफ़ी हिंसक माना गया है, इसलिए माँ कात्यायनी को युदध की देवी भी कहा जाता है।

माता कात्यायनी का स्वरूप

माँ कात्यायनी शेर की सवारी करती हैं। इनकी चार भुजाएँ हैं, बाएँ दो हाथों में कमल और तलवार है, जबकि दाहिने दो हाथों से वरद एवं अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। देवी लाल वस्त्र में सुशोभित हो रही हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी ने कात्यायन ऋषि को जन्म दिया था, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। कई जगह यह भी संदर्भ मिलता है कि वे देवी शक्ति की अवतार हैं और कात्यायन ऋषि ने सबसे पहले उनकी उपासना की, इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा। जब पूरी दुनिया में महिषासुर नामक राक्षस ने अपना ताण्डव मचाया था, तब देवी कात्यायनी ने उसका वध किया और ब्रह्माण्ड को उसके आत्याचार से मुक्त कराया। तलवार आदि अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित देवी और दानव महिषासुर में घोर युद्ध हुआ। उसके बाद जैसे ही देवी उसके क़रीब गईं, उसने भैंसे का रूप धारण कर लिया। इसके बाद देवी ने अपने तलवार से उसका गर्दन धड़ से अलग कर दिया। महिषासुर का वध करने के कारण ही देवी को महिषासुर मर्दिनी कहा जाता है।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बृहस्पति के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥
स्तुति
या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Pancham divas 2023

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पंचम दिवस - देवी स्कंदमाता

माता स्कंदमाता की पूजा नवरात्रि के पाँचवें दिन होती है। देवी के इस रूप के नाम का अर्थ, स्कंद मतलब भगवान कार्तिकेय/मुरुगन और माता मतलब माता है, अतः इनके नाम का मतलब स्कंद की माता है।

माता स्कंदमाता का स्वरूप

माँ स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। देवी दो हाथों में कमल, एक हाथ में कार्तिकेय और एक हाथ से अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। कमल पर विराजमान होने के कारण देवी का एक नाम पद्मासना भी है। माता की पूजा से भक्तों को सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवी की सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। देवी के इस रूप को अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है। जैसा की माँ ममता की प्रतीक हैं, इसलिए वे भक्तों को प्रेम से आशीर्वाद देती हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था जो ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करता था। एक दिन भगवान उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हो गए। तब उसने उसने अजर-अमर होने का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। फिर उसने सोचा कि शिव जी तपस्वी हैं, इसलिए वे कभी विवाह नहीं करेंगे। अतः यह सोचकर उसने भगवान से वरदान माँगा कि वह शिव के पुत्र द्वारा ही मारा जाए। ब्रह्मा जी उसकी बात से सहमत हो गए और तथास्तु कहकर चले गए। उसके बाद उसने पूरी दुनिया में तबाही मचाना शुरू कर दिया और लोगों को मारने लगा। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण शिव जी के पास पहुँचे और विवाह करने का अनुरोध किया। तब उन्होंने देवी पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बनें। जब भगवान कार्तिकेय बड़े हुए, तब उन्होंने तारकासुर दानव का वध किया और लोगों को बचाया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से बुध ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

About The Author -

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chaturth divas 2023

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चतुर्थ दिवस - माँ कूष्माण्डा

कूष्माण्डा माता की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन होती है। कूष्माण्डा संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ- कू मतलब छोटा/सूक्ष्म, ऊष्मा मतलब ऊर्जा और अण्डा मतलब अण्डा है। देवी के कूष्माण्डा रूप की पूजा से भक्तों को धन-वैभव और सुख-शांति मिलती है।

माता कूष्माण्डा का स्वरूप

माँ कूष्माण्डा की 8 भुजाएँ हैं जो चक्र, गदा, धनुष, तीर, अमृत कलश, कमण्डलु और कमल से सुशोभित हैं। माता शेरनी की सवारी करती हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

जब चारों ओर अंधेरा फैला हुआ था, कोई ब्रह्माण्ड नहीं था, तब देवी कूष्माण्डा ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए सृष्टि की उत्पति की। देवी का यह रूप ऐसा है जो सूर्य के अंदर भी निवास कर सकता है। यह रूप सूर्य के समान चमकने वाला भी है। ब्राह्माण्ड की रचना करने के बाद देवी ने त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) और त्रिदेवी (काली, लक्ष्मी और सरस्वती) को उत्पन्न किया। देवी का यही रूप इस पूरे ब्रह्माण्ड की रचना करने वाला है। ज्योतिषी के अनुसार कूष्माण्डा माँ सूर्य का मार्गदर्शन करती हैं। अतः इनकी पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है।

माँ कूष्माण्डा का मंत्र
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

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Tritiya divas 2023

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तृतीय दिवस - देवी चंद्रघण्टा

चंद्रघण्टा माता की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। इनके नाम का अर्थ, चंद्र मतलब चंद्रमा और घण्टा मतलब घण्टा के समान। उनके माथे पर चमकते हुए चंद्रमा के कारण ही उनका नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इन्हें चंद्रखंडा नाम से भी जाना जाता है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को साहस और वीरता का अहसास कराता है और उनके दुःखों को दूर करता है। देवी चंद्रघण्टा माता पार्वती की ही रौद्र रूप हैं, लेकिन उनका यह रूप तभी दिखता है जब वे क्रोधित होती हैं, अन्यथा वे बहुत ही शांत स्वभाव की हैं।

माता चंद्रघण्टा का स्वरूप

माँ चंद्रघण्टा शेरनी की सवारी करती हैं और उनका शरीर सोने के समान चमकता है। उनकी 10 भुजाएँ हैं। उनके बाएँ चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमण्डलु विभूषित हैं, वहीं पाँचवा हाथ वर मुद्रा में है। माता की चार अन्य भुजाओं में कमल, तीर, धनुष और जप माला हैं और पाँचवा हाथ अभय मुद्रा में है। माता का अस्त्र-शस्त्र से विभूषित यह रूप युद्ध के समय देखने को मिलता है।

पौराणिक मान्यताएँ

जब भगवान शिव ने देवी से कहा कि वे किसी से शादी नहीं करेंगे, तब देवी को यह बात बहुत ही बुरा लगा। देवी की यह हालत ने भगवान को भावनात्मक रूप से बहुत ही चोट पहुँचाया। इसके बाद भगवान अपनी बारात लेकर राजा हिमावन के यहाँ पहुँचे। उनकी बारात में सभी प्रकार के जीव-जंतु, शिवगण, भगवान, अघोरी, भूत आदि शामिल हुए थे। इस भयंकर बारात को देखकर देवी पार्वती की माँ मीना देवी डर के मारे बेहोश हो गईँ। इसके बाद देवी ने परिवार वालों को शांत किया, समझाया-बुझाया और उसके बाद भगवान शिव के सामने चंद्रघण्टा रूप में पहुँचीं। उसके बाद उन्होंने शिव को प्यार से समझाया और दुल्हे के रूप में आने की विनती की। शिव देवी की बातों को मान गए और अपने आप को क़ीमती रत्नों से सुसज्जित किया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
माता चंद्रघण्टा का मंत्र ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
स्तुति या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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Dwitiya divas 2023

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द्वितीय दिवस - माँ ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन होती है। देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ, ब्रह्म के समान आचरण करने वाली है। इन्हें कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालाँकि इन सबके बावजूद देवी ने कामुक गतिविधियों के स्वामी भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान आगबबूला हो गए और उन्होंने स्वयं को जला दिया। कहानी यही ख़त्म नहीं होती है। उसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया। देवी पहाड़ पर गईं और वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

देवी ब्रह्मचारिणी का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Pratham divas 2023

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प्रथम दिवस

माँ शैलपुत्री दुर्गा के नौ रूपों में पहला रूप हैं जिनकी भक्तगण नवरात्रि पर्व में पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के नौ दिन दुर्गा माँ के नौ रूपों को समर्पित होते हैं और इस पावन पर्व के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है।

शैलपुत्री का रूप

• माथे पर अर्ध चंद्र
• दाहिने हाथ में त्रिशूल
• बाएँ हाथ में कमल
• नंदी बैल की सवारी
शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। पौराणिक कथा के अनुसार माँ शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में भगवान शिव की अर्धांगिनी (सती) और दक्ष की पुत्री थीं। एक बार जब दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन कराया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, परंतु भगवान शंकर को नहीं। उधर सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो रही थीं। शिवजी ने उनसे कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है लेकिन उन्हें नहीं; ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँचीं तो वहाँ उन्होंने भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव देखा। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक शब्द कहे। इससे सती के मन में बहुत पीड़ा हुई। वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया। फिर यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। हिमालय के राजा का नाम हिमावत था और इसलिए देवी को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। माँ की सवारी वृष है तो उनका एक नाम वृषारुढ़ा भी है।

ज्योतिष के अनुसार

ज्योतिष के अनुसार माँ शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं, इसलिए उनकी उपासना से चंद्रमा के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभाव भी निष्क्रिय हो जाते हैं।

माँ शैलपुत्री का मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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