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May Rashifal

know how may born people prediction 2023 astrologer arun ji

जाने कैसा होगा मई 2023 आपकी राशि के लिए!

सावधान हो जाइए! क्योंकि मई के महीने में ग्रहों की चाल तेजी से बदलने वाली है। ऐसे में सभी 12 राशियों पर बड़े ही रोचक प्रभाव देखे जाने वाले हैं, कुछ राशियों के लिए यह महीना खुशहाली से भरा होगा, लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनके लिए मई का यह महीना अशुभ परिणामों से भरा हो सकता है।

लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है… क्योंकि देश के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर Astro Arun Pandit सभी 12 राशियों पर किये गहन अध्ययन के बाद आपके लिए लेकर आ रहे हैं मई महीने का सटीक Prediction और सनातन शास्त्रों में बताये गए वे प्रभावी उपाय जिन्हें अपनाकर आप किसी भी तरह के अशुभ परिणामों से आगाह होकर छुटकारा पा सकते हैं।

इस ब्लॉग में मई के माह में बदलने वाली ग्रह दशाओं के कारण आपकी लाइफ के सभी पक्षों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। मई माह में अपनी राशि के बारे में और सभी राशियों का राशिफल विस्तार से जानने के लिए नीचे दी गई लिंक के माध्यम से आप हमारे youtube channel पर जा सकते हैं।

मेष-

  • जीवन में तनाव अधिक महसूस करेंगे।

  • व्यापार में हानि की संभावनाएं बन रही हैं।

  • आर्थिक स्थिति ठीक-ठाक रहेगी, खर्चों में संयम रखने की आवश्यकता है।

  • माता-पिता के स्वास्थ्य की चिंता बन सकती है। 

  • स्टूडेंट्स अपना समय व्यर्थ करने से बचें। 

  • प्रेमी संबंध में थोड़े-बहुत मनमुटाव की संभावनाएं हैं।

उपाय-सुबह जल्दी सोकर उठें,सूर्योदय के समय सूर्य की रोशनी में वक्त बिताएं।

वृषभ-

  • शनि के प्रभाव से आपके सभी कामों में देरी होगी।

  • आर्थिक स्थिति कमजोर होने वाली है, खर्च बढ़ सकते हैं।

  • जॉब ट्रांसफर के लिए यह महीना सही है।

  • पीठ, हाथ, पैर या घुटनों में दर्द की समस्या हो सकती है।

  • सिंगल रहने वालों के प्रेम संबंध बन सकते हैं।

  • विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में लगेगा, शुभ परिणाम मिलेंगे। 

उपाय-7 मुखी रुद्राक्ष धारण करें, पीपल के पेड़ की पूजा करें।

मिथुन-

  • जॉब में प्रमोशन, व्यापार में वृद्धि और आर्थिक पक्ष के लिए Golden Month है।

  • शेयर मार्केट, इनवेस्टमेंट या नया व्यापार शुरू करने के लिए सही वक्त है।

  • 1 से 17 मई तक कोई एक विचार आपका जीवन बदल सकता है।

  • वाहन चलाने में सावधानी रखें। चालानी कार्यवाही भी हो सकती है।

  • विद्यार्थियों के लिए मई अनुकूल महीना है।

  • पेट की तकलीफ़ से परेशान हो सकते हैं।

उपाय- रोज़ माता सरस्वती की उपासना कीजिए।

कर्क-

  • आपकी मासूमियत आपके दुख का कारण बन सकती है।

  • प्रेम संबंधों में दिल से नहीं दिमाग से काम लें। 

  • जॉब से जुड़ी समस्याएं बन सकती हैं, अपने आपको Prove करें। 

  • आर्थिक स्थिति से जुड़े निर्णय सोच समझकर ही करें।

  • आँख, बाल, कंधों से जुड़ी समस्याएं बन सकती है। 

  • इस महीने ग्रहों के लगातार परिवर्तन से जीवन में उतार चढ़ाव होंगे।

उपाय- शिव जी की पूजा करें, शिव चालीसा का पाठ करें।

सिंह-

  • सिंह राशि के लिए परिवार, प्रेम संबंध और विद्यार्थी पक्ष इस महीने बहुत मजबूत स्थिति में है।

  • यह महीना बिजनस और नौकरी के लिए उन्नति लेकर आया है।

  • इस महीने अपने विचारों की बदौलत व्यापार में वृद्धि के चांस हैं।

  • अपनी वाणी का सही उपयोग करें। अपनी वाणी को संयमित रखें, गुस्सा करने से बचें।

  • मन मुताबिक खरीदी ज़रूर करें और इन्वेस्ट करना शुरू करें।

  • आँख, कान और बालों से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती है।

उपाय- सूर्य को रोज़ जल का अर्घ्य दें। सूर्य उपासना करें।
अनुशासन का पालन करें।

कन्या-

  • यह महीना आपके कार्यों में सफलता लेकर आने वाला है।

  • बेफ़िजूली खर्चों और बेमतलब के काम में समय गँवाने से बचें।

  • नए विचारों को इम्प्लीमेंट करने से आर्थिक पक्ष मजबूत हो सकता है।

  • आलस करने से बचें और मेहनत करें वरना यह आपके सफलता में बाधक बनेगा।

  • महिलाओं को निचले शरीर में समस्याएं हो सकती हैं, सेहत का ध्यान रखने की आवश्यकता है।

  • पिता जी के साथ मुलाकात और चर्चाएं लगातार करते रहें। 

उपाय- 2 और 4 मुखी रुद्राक्ष धारण करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
दुर्गा जी की उपासना करें।

तुला-

  • कार्यक्षेत्र में मिले-जुले फल प्राप्त हो सकते हैं।

  • बिजनेस से जुड़े जातकों को व्यवसाय में फ़ायदा हो सकता हैं।

  • नौकरी पेशा से जुड़े हुए जातकों को अपने साथी से मानसिक तनाव पैदा हो सकता हैं।

  • राहु के गोचर से मानसिक तनाव रहेगा।

  • किसी को भी उधार देने से परहेज करें।

  • Back Pain होना या घुटने में चोट लगने की संभावना है

  • 50 k से अधिक रूपये की खरीदी सोच समझकर ही करें।

  • अपने परिवार के लोगों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

उपाय- बुध गायत्री मंत्र की उपासना, प्रतिदिन 11 बार गायत्री मंत्र का जप करें।

वृश्चिक-

  • शनि की ढैया से आप लेज़ी और लथार्जिक हो रहे हैं ।

  • आप अपने कार्य में ध्यान देकर कार्यक्षेत्र में और अधिक निखार ला सकते हैं।

  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में और अधिक मेहनत करके बहुत कुछ अच्छा कर सकते हैं।

  • स्वास्थ्य और रिलेशनशिप अच्छा रहेगा।

  • योजना बनाकर किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से सफलता प्राप्त होगी।

उपाय- शनि देव के बीज मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जप प्रतिदिन 108 बार करें। पीपल के वृक्ष पर जल अर्पित करें। सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें। Amethyst ब्रेसलेट धारण करें।

धनु-

  • इस महीने आप बहुत कुछ अचीवमेंट हासिल कर सकते हैं।

  • मई के महीने में थोड़ी सी स्लोनेस और डलेनेस आप महसूस कर सकते हैं।

  • शनि की साढ़ेसाती के चले जाने से आपके जीवन में अब सबकुछ ठीक होने वाला है।

  • नौकरी पेशा और व्यवसाय के लिए ये महीना बहुत शुभ रहेगा।

  • इस महीने सोच समझकर खर्च करें नहीं तो बजट बिगड़ सकता हैं।

  • मां के स्वास्थ्य को लेकर थोड़े चिंतित हो सकते हैं।

  • विद्यार्थियों का पढ़ाई में मन लगेगा और जल्द ही बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे।

  • आंखों से जुड़ी समस्याएं हो सकती है। आँखों का ध्यान रखें।

उपाय- हनुमान जी के मंदिर में जाकर दान पुण्य करें और जरूरतमंद की सेवा करें। भूखे जीवों को भोजन करवाएं।

मकर-

  • विदेश जाने के प्रबल संयोग बन रहे हैं ।

  • धन दौलत को लेकर आपको discipline बनाना होगा नहीं तो शनि देव समस्या खड़ी कर सकते हैं।

  • अपने शहर से बाहर नौकरी मिलने की संभावना है।

  • वृहस्पति के गोचर से कुछ बड़ा खरीदने का प्लान 17 मई के बाद ही करें।

  • प्रेमसंबंध में मनमुटाव होते हुए दिखाई दे रहे हैं।

  • पेट से संबंधित अंगो का ध्यान रखें नहीं तो समस्या हो सकती हैं।

  • सिद्ध कारक योग की वजह से विद्यार्थियो के लिए यह गोल्डन महीना साबित होने वाला है।

उपाय-सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें। शनि मंदिर जाकर शनि मंत्र का जप करें और पीपल वृक्ष पर जल अर्पित करें।

कुंभ-

  • ये लोग अपने आप में खुश रहने वाले होते हैं।

  • किसी एक विचार के कारण आपको अगले वर्ष फ़ायदा मिल सकता हैं।

  • ये महीना आपके आने वाले दिनों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता हैं।

  • स्वास्थ्य और परिवार अच्छा रहेगा।

  • अपनी मेहनत को लेकर आपके मन में प्रश्नचिन्ह खड़े हो सकते हैं। जिसकी वजह से आपके मन में डर उत्पन्न हो सकता हैं।

  • शनि की साढ़ेसाती का दूसरा फेज़ चल रहा है, जिस वजह से आपको lungs, Stomach और Heart की समस्या हो सकती है। सेहत का ध्यान रखें।

उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करें। हनुमान जी और शनि मंदिर जरुर जायें ।

मीन-

  • नई जगहों पर जाना और नए लोगों से मिलना-जुलना हो सकता हैं।

  • आपका घूमना-फिरना अनायास हो सकता है, लेकिन यह आपके लिए फायदेमंद साबित होगा ।

  • शनि की साढ़ेसाती का पहला फेज़ प्रारंभ हुआ है जिस वजह से सर्दी, गर्मी, गर्दन, गले का दर्द और आंख आदि समस्या से आपके स्वास्थ्य पर खराब प्रभाव हो सकता हैं ।

  • अपने सिबलिंग की वजह से गौरांवित महसूस करोगे।

  • विद्यार्थी अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें, नहीं तो समस्या खड़ी हो सकती है, बाहर के भोजन से परहेज़ करें।

  • आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा, व्यापारी वर्ग अपने कार्य में अधिक मेहनत करें सफ़लता ज़रुर मिलेगी।

उपाय- चंद्रमा की उपासना करें। चांदी के गिलास पर पानी पीना प्रारंभ करे।

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Mesh Rashi

मेष राशि

ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत 12 अलग-अलग राशियों का नाम हम सभी ने सुना है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि यह 12 राशियाँ होती क्या हैं और इनका निर्धारण आखिर होता कैसे है! आपकी जन्मकुंडली के निर्माण और सम्पूर्ण जीवन के आँकलन के लिए 12 राशियों बहुत महत्व रखती है। इनका ग्रहों और नक्षत्रों के साथ बनने वाले अलग-अलग योगों के आधार पर आपके स्वभाव, व्यवहार, पसंद-नापसंद, करियर, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति, रिश्ते-नातों सहित जीवन के सभी आवश्यक पहलुओं का आँकलन किया जाता है। जानिए क्या है राशियाँ और कैसे होते हैं इन राशियों में जन्म लेने वाले लोग।

क्या होती है राशियाँ-

राशि का अर्थ वास्तव में आसमान में मौजूद ग्रह और उनकी नक्षत्र शृंखला की एक विशेष आकृति और स्थिति का नाम है। ब्रह्मांड में मौजूद ग्रह, नक्षत्र और ताराबलों का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है इसे आसानी से समझने के लिए ज्योतिष शास्त्र में आकाश मण्डल यानि सौरमंडल को 360 अंशों में विभाजित किया जाता है। और इन्हें आसानी से पहचानने की सुविधा के लिए तारा समूहों की आकृति की समानता को ध्यान में रखकर सदियों पहले ज्योतिष के अनुभवी महर्षियों ने परिचित वस्तुओं के आधार पर 12 भागों में बांटकर राशियों का नाम रखा। 12 राशियों के समूह को राशि चक्र कहा जाता है।

 

राशियों को ठीक तरीके से पहचानने के लिए विद्वानों ने आकाश-मण्डल की दूरी को 27 भागों में बाँट कर प्रत्येक भाग का नाम एक-एक नक्षत्र रखा। इस तरह से 27 नक्षत्रों का निर्माण हुआ। इसे और बारीकी से समझने के लिए हर नक्षत्र के चार भाग किए गए, जिन्हें चरण कहते हैं। चन्द्रमा प्रत्येक राशि में दो दिन चलता है। उसके बाद वह अलग राशि में पहुँच जाता है।

चंद्र राशि-

चंद्रमा की चाल के अनुसार निर्धारित होने वाली राशि चंद्र राशि कहलाती है। यानी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में होता है, वही उसकी राशि मानी जाती है। भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र में इसी राशि को प्रधानता दी जाती है। इसलिए राशियों का विस्तार हम चंद्र राशि के अनुसार ही समझेंगे।

सूर्य राशि-

सूर्य की चाल के अनुसार निर्धारित की जाने वाली राशि सूर्य राशि कहलाती है। जिस प्रकार भारतीय ज्योतिषी चन्द्र राशि को ही व्यक्ति की जन्म राशि मानते हैं और उसी प्रकार विदेशी ज्योतिषी व्यक्ति की सूर्यराशि को अधिक महत्व देते हैं। पुराने समय में ज्योतिषी सूर्य को आधार मानकर व्यक्ति की राशि निकालते थे।

राशिचक्र-

राशि चक्र तारामंडलों का चक्र है जो क्रांतिवृत्त (ऍक्लिप्टिक) में आते हैं, यानि उस मार्ग पर आते हैं जो सूर्य एक वर्ष में खगोलीय गोले में लेता है। ज्योतिष] में इस मार्ग को बारह बराबर के हिस्सों में बाँट दिया जाता है जिन्हें राशियाँ कहा जाता है। हर राशि का नाम उस तारामंडल पर डाला जाता है जिसमें सूर्य उस माह में (रोज़ दोपहर के बारह बजे) मौजूद होता है। हर वर्ष में सूर्य इन बारहों राशियों का दौरा पूरा करके फिर शुरू से आरम्भ करता है। इन बारह राशियों के नाम- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन हैं।

राशिचक्र की पहली राशि- ‘मेष’

राशि चक्र की पहली राशि को मेष राशि कहते हैं, इस राशि का चिन्ह भेड़ है, इस राशि का विस्तार चक्र राशि चक्र के प्रथम 30 अंश तक है। यह अग्नि तत्व की राशि है। अग्नि त्रिकोण (मेष, सिंह, धनु) की यह पहली राशि है, इसका स्वामी मंगल ग्रह है, राशि और स्वामी का यह संयोग इसकी अग्नि या ऊर्जा को कई गुना बढा देती है, यही कारण है कि मेष राशि के जातक ओजस्वी, दबंग, साहसी, और दॄढ इच्छाशक्ति वाले होते हैं। मेष राशि वाले व्यक्ति बाधाओं को चीरते हुए अपना मार्ग बनाने की कोशिश करते हैं। ये आर्थिक रूप से जीवन भर सफल रहते हैं।



  • Date के अनुसार मेष राशि- 21 मार्च से 19 अप्रैल
  • नाम अक्षर- चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ
  • भाग्यशाली रत्न-  हीरा, पुखराज, बैरुज, ब्लडस्टोन, नीलम और सूर्यकांत मणि रत्न 
  • रुद्राक्ष-  दस मुखी और सात मुखी

 

मेष राशि के जातकों की मुख्य विशेषताएं-

विशेषताएं- मेष राशि के जातकों की मुख्य विशेषताएं-
  1. मेष राशि के पुरुषों में बहुत ऊर्जा और उत्साह होता है, इसलिए वे हमेशा नए विचारों और ऊर्जा से भरे रहते हैं।

  1. मेष राशि के लोग स्वतंत्र विचारधारा वाले होते हैं और हमेशा अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहते हैं। 

  1. ऐसे लोग स्वभाव तेज-तर्रार और आशावादी भी होते हैं, और अक्सर बहुत आत्म-केंद्रित होते हैं। इन्हें सबसे प्यारा स्वयं का स्वाभिमान होता है।

  1. मेष राशि के लोग हमेशा अपनी मान्यताओं से समझौता किए बिना, अपने तरीके से काम करना पसंद करते हैं। ये सोचते कम कर्म ज्यादा करते हैं।

  1. मेष राशि के जातक चैलेंज लेना बहुत पसंद करते हैं साथ ही लक्ष्य निर्धारित करने और उसके पीछे जाने को लेकर बहुत उत्साहित होते हैं।

  1. मेष राशि के लोगों का एक मजबूत सकारात्मक पक्ष होता है- वे अपने गुस्से और हताशा को जल्दी भूल जाते हैं।

  1. यदि मेष राशि के जातक अधिक धैर्यवान और कूटनीतिक होना सीखते है, तो वह एक बेहतरीन लीडर बन सकते है।


  1. ये अपने स्वरूप और व्यवहार के चलते समाज में अपना आकर्षक व्यक्तित्व बनाते हैं। हालांकि इन्हें दुनिया और समाज से ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ता।

  1. ये कला से जुड़े क्षेत्रों में बहुत नाम कमाने वाले व्यक्ति माने जाते हैं। ये हर एक क्षेत्र में एक बहुत अच्छे लीडर साबित होते हैं।

  2. ये ईमानदार और सहयोगी प्रवृत्ति के होते हैं और अपने परिवार के लिए बहुत समर्पित होते हैं।
 मेष राशि की कमज़ोरियाँ-
  1. ये हमेशा उचित गाइडेंस की तलाश में रहते हैं जो कई बार इनकी कमजोरी का बनती है। भ्रम की स्थिति भी अक्सर इनकी परेशानी का प्रमुख कारण होती है।
  2. दूसरों के कहे अनुसार हर बात मान लेना इनकी बड़ी कमजोरी है, इस वजह से ये दूसरों द्वारा शोषित होने लगते है और इन्हें पता भी नहीं चलता।
 
  1. ये रिश्ते नातों को लेकर बहुत ज़्यादा अभिव्यक्ति नहीं कर पाते जिस वजह से इन्हें लव रिलेशन में बोरिंग माना जाता है।
 
  1. मेष राशि के लोग क्रोध और आक्रामकता की वजह से अपना धैर्य खो बैठते हैं. इन लोगों की सोच में अनिश्चितता का भाव रहता है जो कभी-कभी दूसरों के लिए मुसीबत खड़ी कर देता है।
 
  1. इस राशि के लोग किसी को भी अपना मान लेते हैं तो उस पर पूरा अधिकार जताते हैं, अगर कभी इन्हें कोई चोट पहुंचाता है तो ये दुखी हो जाते हैं लेकिन बातों को भूलकर दोबारा उन्हीं पर विश्वास कर लेते हैं।
 
  1. मेष राशि की महिलाएं रिश्तों में हमेशा दूसरों पर हावी रहती हैं लेकिन इस राशि के पुरुष या तो स्पष्टभाषी नहीं होते या अति स्पष्टवादी होते है। जिस वजह से इनके रिश्तों में दिक्कतें आती है।
 
  1. स्वास्थ्य को लेकर ये बहुत लापरवाह माने जाते है जिस वजह से इस लग्न के लोगों को अपच, सिरदर्द, लू लगना, नसों का दर्द और अवसाद जैसे रोगों की शिकायत रहती है, इन पर किसी दुर्घटना का खतरा बना रहता है।
 
  1. इनका गुस्सैल और जिद्दी स्वभाव जैसे- मूड स्विंग होना, एकदम से हाइपर हो जाना इनके लिए बहुत नुकसान देह साबित हो जाता है। हालांकि ये अपनी कमी फेस करने में आगे रहते हैं। 
 
  1. ये लोग अपने मन की बातों को सही लोगों से न कहकर गलत लोगों को कह देते हैं जो इनके साथ-साथ इनके अपनों लिए भी अक्सर नुकसान देह साबित हो जाता है।

  2. सही परामर्श मिलने के बाद भी ये अक्सर गलत व्यक्ति, संगत या गलत कार्य पर अपना समय बर्बाद कर देते हैं, और काफी नुकसान होने के बाद ही इन्हें सच का अहसास होता है।

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Akshay Tritia 2023

akshay tritia mahurat puja vidhi of vishnu ji 2023 astro arun pandit

अक्षय तृ‍तीया के शुभ मुहुर्त में भी नहीं हो सकती शादियाँ !!

अक्षय का अर्थ है जो अविनाशी हो, क्षय रहित हो, अनश्वर हो, अनंत हो, शाश्वत हो। 

अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जानते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि अक्षय तृतीया के दिन किया गया दान-पुण्य कर्म का फल कभी नष्ट नहीं होता। अक्षय तृतीया के दिन विवाह करना, सोना खरीदना, माता लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।

अक्षय तृतीया के शुभ दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त माना गया है। इस तिथि पर किसी भी शुभ और मांगलिक कार्य के लिए मुहूर्त देखने के आवश्यकता नहीं होती है। आपके सभी काम बिना किसी बाधा के पूरे होते हैं। साथ ही इस दिन शुरू किये गये कामों में सफलता मिलती है। कोई नया व्‍यापार शुरू करने के लिए यह बहुत शुभ दिन माना जाता है।

इस साल अक्षय तृतीया शनिवार, 22 अप्रैल मनाई जायेगी। 

अक्षय तृतीया 2023 तिथि
वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि
तिथि आरंभ: 22 अप्रैल, शनिवार, प्रातः 07: 49 मिनट
तिथि समाप्त: 23 अप्रैल, रविवार, प्रातः 07: 47 मिनट

अक्षय तृतीया 2023 पूजा मुहूर्त
अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी-नारायण और कलश पूजन का समय
22 अप्रैल 2023
प्रातः 07:49 से दोपहर 12:20 मिनट तक पूजा की कुल अवधि: 04 घंटे 31 मिनट

तो अगर आप भी किसी मांगलिक कार्य के लिय शुभ मुहुर्त का इंतजार कर रहे हैं तो देर मत कीजिये। लेकिन हाँ इस अक्षय तृतिया की एक सबसे खास बात मैं आपको बता दें

इस साल अक्षय तृतीया में शादियाँ नहीं होगी!!

आपको लगेगा कि, अभी आपने कहा कि किसी भी शुभ काम के लिये अक्षय तृतीया का दिन बहुत शुभ होता है फिर शादियाँ क्‍यों नहीं हो सकती? तो हम आपको बता दें कि अक्षय तृतीया खासकर शादियों के लिये सबसे शुभ मुहुर्त माना जाता है, हर साल अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में लोग विवाह करते हैं। लेकिन इस बार अक्षय तृतीय को शादी का मुहूर्त नहीं है।

वर्षों बाद ऐसा संयोग बना है कि 27 अप्रैल यानी अक्षय तृ‍तीया पर गुरु अस्त है। गुरु अस्त होने की वजह से विवाह करना शास्त्र सम्मत नहीं होता। इस कारण इस वर्ष अक्षय तृतीय को शादी का मुहूर्त नहीं है। 27 अप्रैल के बाद विवाह का शुभ मुहूर्त है।

हिन्‍दु धर्म में एक साल में कितने सारे मुख्‍य त्‍यौहार और तिथियाँ आती है तो अक्षय तृतिया के दिन काे ही क्‍यों सबसे शुभ मुहुर्त माना जाता है और क्‍यों इस दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिये मुहुर्त देखने की ज़रूरत नहीं होती है???

हिन्‍दु धर्म में एक साल में कितने सारे मुख्‍य त्‍यौहार और तिथियाँ आती है तो अक्षय तृतिया के दिन काे ही क्‍यों सबसे शुभ मुहुर्त माना जाता है और क्‍यों इस दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिये मुहुर्त देखने की ज़रूरत नहीं होती है???

  • महाभारत के अनुसार इसी दिन सूर्य देवता से युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था जिसमें अन्न कभी खत्म नहीं होता है।
  • वहीं परशुरामजी का जन्म भी इसी दिन हुआ था, वे चिरंजीवी हैं अर्थात उनकी आयु का क्षय नहीं होता है इसलिए इस दिन को अक्षय तृतीया के साथ-साथ चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं।
  • इसी दिन से त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी, इसलिए भी इस दिन को अक्षय तृतीया कहते हैं।
  • धार्मिक शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही द्वापर युग का समापन हुआ था।
  • धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था।
  • इसी दिन रसोई एवं पाक (भोजन) की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और माँ से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है।
  • धार्मिक कथाओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे।
  • अक्षय तृतीया के शुभ दिन वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। साल में केवल एक बार इसी तिथि के दिन ही ऐसा होता है।
  • अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था।

इस अक्षय तृतीया पर बन रहे हैं 6 महायोग - आयुष्मान योग, सौभाग्य योग, त्रिपुष्कर योग,रवि योग,सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग

  • आयुष्मान योग- 22 अप्रैल को सूर्योदय से लेकर सुबह 09 बजकर 26 मिनट तक आयुष्मान योग रहेगा।
  • सौभाग्य योग- इसके बाद 9 बजकर 25 मिनट से 23 अप्रैल से सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा।
  • त्रिपुष्कर योग- 22 अप्रेल को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर सुबह 07 बजकर 49 मिनट तक त्रिपुष्कर रहेगा।
  • रवि योग- वहीं, 22 अप्रेल को रात में 11 बजकर 24 मिनट से शुरू होकर 23 अप्रैल 05 बजकर 48 मिनट तक रवि योग रहेगा।
  • सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग- रात 11 बजकर 24 मिनट से 23 अप्रैल सुबह 05 बजकर 48 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग का निर्माण होगा।

अक्षय तृतीया पर क्यों खरीदते हैं सोने के आभूषण?

हर वर्ष अक्षय तृतीया के त्योहार के दिन सोने के आभूषण खरीदने की परंपरा निभाई जाती है। मान्यता है इस दिन खरीदा गया सोना सुख,समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक होता है। ऐसा माना जाता है इस दिन खरीदा गया सोना या निवेश किया गया धन कभी भी खत्म नहीं होता। मान्यता है अक्षय तृतीया के दिन खरीदे गए सोने और निवेश का स्वयं भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी रक्षा और उसमें वृद्धि करते हैं।

अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का शुभ समय
22 अप्रैल 2023, शनिवार, प्रातः 07:49
23 अप्रैल 2023,रविवार, प्रातः 07:47

अक्षय तृतीया के दिन शुभ मुहूर्त में सोना और चांदी खरीदने का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन सोना व चांदी खरीदने का शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 49 मिनट से शुरू होगा जो कि अगले दिन 23 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगा। यानी पूरे दिन में कभी भी आप सोना आदि खरीद सकते हैं।

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Know when you will get married?

क्‍या होती है विवाह रेखा और अपनी हथेली से जाने कब होगा विवाह?
Know when you will get married?

कहां देखें विवाह रेखा

अपने विवाह और विवाह होने के बाद का जीवन कैसा गुजरेगा इसको लेकर हर किसी में उत्सुकता रहती है। समुद्रशास्त्र के मुताबिक, हमारी हथेली की रेखाओं के माध्यम से विवाह और दांपत्य जीवन से संबंधित काफी खास बातें जान सकते हैं।

कनिष्ठिका (सबसे छोटी उंगली) उंगली के नीचे, ह्रदय रेखा के ऊपर तथा बुध पर्वत पर हथेली के बाहरी ओर से आनेवाली रेखा विवाह रेखा कहलाती है यानी इस रेखा का संबंध आपकी शादीशुदा या प्रेम संबंधों से हो सकता है। तो आइए जानते हैं कि हाथ की विवाह रेखा के माध्यम से हम अपने शादीशुदा जीवन के बारे में क्या क्या जान सकते हैं।

कटी-फटी विवाह रेखा- विवाह में हो सकती है देरी ?

हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा को कोई अन्य रेखा काट रही है तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि आपकी शादी देर से हो सकती है। साथ ही विवाह में अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। यदि बुध पर्वत से आने वाली कोई रेखा विवाह रेखा को काट दे तो व्यक्ति का दाम्पत्य जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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दोनो हाथ में विवाह रेखा हो तो -

यदि किसी पुरुष के बाएं हाथ में दो विवाह रेखा है और दाएं हाथ में एक विवाह रेखा है तो समुद्रशास्त्र कहता है कि ऐसे लोगों की पत्नी सर्वगुण सम्पन्न होती है तथा इन लोगों की पत्नी पति का बहुत अधिक ध्यान रखती है और अधिक प्रेम करने वाली होती है। दोनों हाथों में विवाह रेखा एक जैसा हो तो ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन भी सुखी व्यतीत होता है। ऐसे लोगों का अपने जीवनसाथी से सामंजस्य बना रहता है।

जीवनसाथी से करते हैं अधिक प्रेम

यदि किसी व्यक्ति के दाएं हाथ में दो विवाह रेखा है और बाएं हाथ में एक विवाह रेखा है तो हस्तरेखा विज्ञान के हिसाब से ऐसे लोगों की पत्नी अपने पति का अधिक ध्यान रखने वाली नहीं होती है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा के आखिर में त्रिशूल के समान चिह्न दिखाई दे तो ऐसे लोग अपने जीवन साथी से बहुत अधिक प्रेम करते हैं।

किस उम्र में होगी शादी

यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा ह्रदय रेखा से बहुत कम दूरी पर हो तो यह व्यक्ति के 20 साल से पहले ही शादी होने का संकेत देती है और यदि विवाह रेखा छोटी उंगली तथा ह्रदय रेखा के मध्य में हो तो 22 वर्ष अथवा इसके बाद प्रणय सम्बन्ध होने की ओर इशारा करती है।

पार्टनर का स्वास्थ्य हो सकता है खराब

कनिष्ठिका उंगली के नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहा जाता है। विवाह रेखा एक या एक से अधिक भी हो सकती है। यदि किसी महिला के हाथ में विवाह रेखा की शुरुआत में कोई द्वीप का निशान हो तो उस व्यक्ति कि शादी किसी धोखे से होने की आशंका रहती है। साथ ही, यह द्वीप इस बात की ओर भी इशारा करता है कि आपके जीवनसाथी का स्वास्थ्य खराब हो सकता है।

शादी को लेकर हो सकते हैं दुखी

यदि किसी व्यक्ति के हाथ में विवाह रेखा हृदय रेखा को काटते हुए नीचे की ओर चली जाए तो ज्योतिषविद्या के मुताबिक यह अच्छा संकेत नहीं होता है। ऐसी रेखा आपके जीवन साथी के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। साथ ही यह भी हो सकता है कि व्यक्ति अपने विवाह को लेकर हमेशा दुखी या परेशान रह सकता है।

यदि हों एक से अधिक विवाह रेखा

यदि किसी जातक की हथेली में विवाह रेखा सूर्य पर्वत की ओर जा रही है या वहां तक पहुंच चुकी है तो यह उस बात का संकेत करता है कि उसका जीवन साथी अवश्य ही समृद्ध और सम्पन्न परिवार से होगा। यदि आपकी हथेली में एक से अधिक विवाह रेखाएं है तो व आपके सुखद प्रणय संबंध की ओर इशारा करती हैं।

कैसे देखें कि आपका प्रेम विवाह होगा ?

हाथ की रेखाओं के माध्यम से व्यक्ति के जीवन का खाका तैयार किया जा सकता है। हस्त रेखा विज्ञान में इस बात का विस्तृत रूप से उल्लेख मिलता है कि हथेली पर मौजूद आड़ी तिरछी रेखाएं इंसान के व्यक्तित्व से जुड़े कई राज खोलती हैं। इन रेखाओं से व्यक्ति की आयु, स्वभाव और भविष्य के बारे में जान सकते हैं। इसी तरह एक रेखा होती है, जो व्यक्ति के विवाह जीवन के बारे में बताती है। इस रेखा को प्रेम रेखा या विवाह रेखा कहते हैं। तो चलिए जानते हैं प्रेम रेखा की पहचान किस तरह से की जाती है….

हथेली में यह निशान- हो सकता है आपका प्रेम विवाह

विवाह हर मनुष्‍य के जीवन का सबसे अहम हिस्‍सा है। लड़का हो या लड़की हर एक के मन में यह सवाल जरूर उठता है कि उसका प्रेम विवाह होगा या फिर उसके माता-पिता उसका विवाह तय करेंगे। हस्‍तरेखा विज्ञान में भी इसके बारे में विस्‍तार से बताया गया है। हाथ में कुछ ऐसी रेखाओं और ऐसे चिह्नों के बारे में बताया गया है कि जो यह बताते हैं कि व्‍यक्ति का प्रेम विवाह होने की संभावना अध‍िक है। आइए कौन-कौन सी हैं ये रेखाएं और निशान जो प्रेम विवाह की प्रबलता के बारे में बताते हैं…

1. हृदय रेखा बनाए V निशान

हथेली पर उंगलियों की तरफ सबसे आखिर में हृदय रेखा V का निशान बनाए तो यह सुखी और सफल लव मैरिज का सं‍केत है। V के निशान को हिंदू हस्‍तरेखा में भगवान विष्‍णु का भी प्रतीह चिह्न माना जाता है। यह दर्शाता है कि जातक प्रेम और रिलेशनशिप के मामलों में सफलता प्राप्‍त करेगा। ऐसे लोग हमेशा उस व्‍यक्ति के साथ विवाह करते हैं जिनसे इन्‍हें उम्र भर प्‍यार और Suport की उम्‍मीद होती है। यदि भाग्‍य रेखा और हृदय रेखा आपस में मिलकर V का निशान बनाएं तो यह भी सुखी वैवाहिक जीवन को दर्शाता है।

2. इस स्‍थान पर हो क्रॉस का चिह्न

यदि व्‍यक्ति के हाथ में गुरु पर्वत पर क्रॉस का निशान हो तो यह सफल प्रेम विवाह का स्‍पष्‍ट संकेत माना जाता है। ऐसे जातकों को जीवनसाथी ऐसा मिलता है कि जो उन्‍हें भली प्रकार से समझ सके और उनका विशेष ध्‍यान रख सके।

3. चंद्र पर्वत पर इस प्रकार मिले कोई रेखा

यदि चंद्र पर्वत से कोई विशेष रेखा निकलकर भाग्‍य रेखा से आकर मिल जाए तो इसे भी लव मैरिज का ही विशेष संकेत माना जाता है। चूंकि यह रेखा चंद्र पर्वत की ओर से आ रही है इसलिए यह जातक के जीवन में भरपूर रोमांस को भी दर्शाती है।

यदि इस प्रकार के संयोग के साथ गुरु पर्वत पर क्रॉस का भी निशान हो तो इसे सोने पर सुहागा माना जाएगा। हालांकि चंद्र पर्वत से निकलने वाली यह रेखा भाग्‍य रेखा को काटनी नहीं चाहिए। अगर ऐसा होता है तो यह लव मैरिज के लिए खराब संकेत माना जाता है।

4. सूर्य रेखा का इस प्रकार से जुड़ना

कई बार ऐसा देखने में आता है कि हृदय रेखा से कुछ छोटी-छोटी रेखाएं निकलकर सूर्य रेखा से जाकर मिल जाती हैं। यह संयोग व्‍यक्ति के जीवन में प्रेम विवाह की मौजूदगी को दर्शाता है। ऐसे लोगों के जीवन में पार्टनर का सपॉर्ट और नाम उन्‍हें भी प्रसिद्धि दिलवाता है।

5. शुक्र पर्वत से कोई रेखा उठे

यदि शुक्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर भाग्‍य रेखा के साथ मिले तो यह सुखी और सफल लव मैरिज की ओर इशारा करता है। ऐसे लोगों के जीवन में प्‍यार की विशेष अहमियत होती है।

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Hanuman Jayanti 2023| 6 April

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श्री हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जन्मोत्सव सनातन हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है। इस दिन भगवान शिव के अंशावतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। यह त्यौहार हर वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी ने चैत्र मास की पूर्णिमा को चित्र नक्षत्र और मेष लग्न के योग में जन्म लिया था। हालाँकि कुछ स्थानों पर स्थानीय मान्यताओं के आधार पर यह पर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के चौदवें दिन भी मनाया जाता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी 7 अमर देवों में से एक हैं। जो कि कलियुग में प्रत्यक्ष रूप से निवास करते हैं। वे श्रीराम के आदेश पर पृथ्वी पर मनुष्यों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कहते हैं कलियुग में श्रीराम को प्राप्त करने का सबसे सुगम मार्ग हनुमान जी की उपासना ही है। हनुमान जन्मोत्सव पर किये जाने वाले विशेष कार्य वैसे तो हनुमान जी बल, बुद्धि और विद्या के दाता हैं लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे उपाय, जिनके करने से आप हनुमान जी के विशेष वरदान प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे उपाय जो आपको अमीर बना सकते हैं।

आपको यह रहस्य जानने के लिए सबसे पहले हनुमान जी की विधि पूर्वक पूजन करना आवश्यक है। पूजन करने के बाद आपको अभिजीत मुहूर्त में उस विशेष उपाय को करना है, जो आपको धनवान बनाता है।

शुभ मुहूर्त-
हनुमान जन्मोत्सव- 06-04-2023
पूर्णिमा आरम्भ- 5 अप्रैल 2023 सुबह 09:21 बजे से
पूर्णिमा समाप्त- 6 अप्रैल 2023 सुबह 10:06 बजे तक
श्री हनुमान पूजा मुहूर्त- 6 अप्रैल, सुबह 06:06 बजे से सुबह 07:40 बजे तक
अभिजित मुहूर्त- 6 अप्रैल दोपहर 12.02 से 12:53 तक

(नोट- क्योंकि हनुमान जी की शास्त्रोक्त पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 6 अप्रैल 2023 को बन रहा है, इसलिए हनुमान जन्मोत्सव का त्यौहार 6 अप्रैल को मान्य है।)

पूजा विधि-

1. हनुमान जन्मोत्सव की सुबह जल्दी नींद त्यागकर दैनिक क्रियाओं से निवृत हो जायें।
2. स्नान के बाद भगवान हनुमान का स्मरण कर ब्रह्मचर्य क्रियाओं का संकल्प लें।
3. किसी भी तरह के तामसिक भोजन से दूर रहकर केवल फल ग्रहण करके उपवास रखें।
4. पूजा स्थल में हनुमान जी की छोटी प्रतिमा या तस्वीर को लाल स्वच्छ कपड़े पर रखें।
5. घर में संभावना न होने पर आप मंदिर में भी यह पूजन कर सकते हैं।
6. सामग्री में- सिंदूर, लंगोट, चमेली का तेल, कर्पूर, गंगाजल, स्वच्छ ताज़ा पानी, तांबे की थाली, जनेऊ, अकोना के फूल, फूलमाला, अक्षत, मौसमी फल और हवन सामग्री इकट्ठा करके रखें।
7. अपने भाव शुद्ध रखने का संकल्प लेकर सबसे पहले गंगाजल मिश्रित स्वच्छ जल से हनुमान जी का स्नान करें। अब साफ कपड़े से मूर्ति या तस्वीर को साफ करें।
8. सिंदूर को किसी पात्र में चमेली के तेल मे मिलायें और हनुमान चालीसा पढ़ते हुए सिर से पैर तक मूर्ति पर लेपन करें। अगर मूर्ति न हो तो केवल तिलक करें।
9. इसके बाद जनेऊ और लंगोट धारण करवाकर फूलमाला पहनाएं और धूप और दीप जलाकर हाथ जोड़कर हनुमाष्टक का पाठ करे।
10. अब कर्पूर आरती करें और अपनी आसन पर बैठकर बजरंग बाण का 5 बार पाठ करें।
इसके बाद सभी तरह के सुखों की प्राप्ति हनुमान जी के मंत्र ॥ ॐ नमो भगवते हनुमते नम:॥ का 108 बार जाप करें।

हनुमान जन्मोत्सव पर धन प्राप्ति के रहस्य-

अगर आप हनुमान चालीसा पढ़ते हैं तो आपको हनुमान जी की ऐसी परम शक्तियों का एहसास होता है जो उन्हें अन्य देवों से अलग बनाती है। बल, बुद्धि और विद्या के दाता हनुमान जी के स्मरण और नाम जाप व पाठ से बुरी शक्तियां आपसे कोसों दूर रहती हैं, आप सत्कर्म करने की ओर आगे बढ़ते रहते हैं और आपका चरित्र भी शुद्ध होता है। हनुमान जी आठ सिद्धियों और नौ निधियों के देव हैं, वे निर्मोही और केवल राम भक्ति में रत रहते हैं। तो अगर आप प्रभु श्रीराम की पूजन और जाप नित्य प्रतिदिन करते हैं तो श्रीराम से भी पहले हनुमान जी आप पर प्रसन्न होते हैं। इसलिए आज से ही राम भक्ति में लीन हो जाइए, आप हनुमान तो नही बनेंगे लेकिन आपमें हनुमान जी की तरह गुण जरूर आ जाएंगे। हनुमान जी की कृपा से धनवान बनने के लिए और अपने घर-परिवार में समृद्धि पाने के लिए हनुमान जन्मोत्सव के दिन 5 पान के पत्तों को लेकर एक धागे में बांध ले और इसे अपने घर, व्यापार स्थल में पूर्व दिशा की ओर लगा दें। इसके बाद शुद्ध भाव से 108 बार इस मंत्र का जाप करें-
मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।
इस मंत्र को आप यकीनन धनप्राप्ति की अभिलाषा से जपेंगे लेकिन ध्यान रखें कि जाप के समय आपके मन में केवल भगवान श्रीराम की ही छवि हो, आपको बिना किसी स्वार्थ के पूरी निष्ठा के साथ इस उपाय को करना है। इसके बाद इसी उपाय को हर शनिवार को रिपीट करें। शनिवार के दिन पान के पत्ते भी बदलें और पान के पुराने पत्ते जल में प्रवाहित कर दें। इस उपाय को हमेशा करते रहने से नौकरी, व्यवसाय या आपके किसी भी आर्थिक क्षेत्र में मुनाफा होने लगता है और घर में भी समृद्धि होने लगती है।

हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष कार्य -

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हनुमान जन्मोत्सव के इस शुभ दिन पर हनुमानजी की पूजा और पाठ करने से मानसिक और शारीरिक शक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख-शांति आती है। इस दिन नीचे दिए निम्नलिखित हनुमान स्तुति एवं स्त्रोतों का पाठ अवश्य करें।

1. सुंदरकांड-

सुंदर कांड रामायण के 7 कांड में से एक महत्वपूर्ण कांड है, जिसका रामायण में 5 वां स्थान है। इस काण्ड में हनुमान जी की सीता माता से भेंट और श्री राम के आगमन की सुचना देना, लंका से वापस आकर लंका तक रामसेतु निर्माण का वर्णन है। सुंदर कांड में 60 दोहे और 526 चौपाइयाँ हैं। जिनका रोज़ पाठ करने से बल और स्वास्थ्य में लाभ होता है। भारत में जब भी कोई मंगलकारी कार्य होते हैं तो कई स्थानों पर सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। इसके पाठ से घर से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जायें दूर भाग जाती हैं।

2. हनुमान चालीसा-

40 छंदों की हनुमान चालीसा का शक्तिशाली पाठ लगभग हर हिन्दू को कंठस्थ होता है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। हनुमान चालीसा के पाठ से सभी तरह के भय सहज ही दूर होते हैं, मन केंद्रित होता है, कार्य सफल होते हैं और जो भी 100 बार इसका पाठ करता है, वह जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है। डिप्रेशन दूर करने के लिए रात में सोते समय भी हनुमान चालीसा का पाठ कर लेना चाहिए, इससे अच्छी नींद आती है और आपका अगला दिन भी सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहेगा।

3. हनुमान अष्टक-

संकटमोचन हनुमानाष्टक की संरचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। माना जाता है कि हनुमान जन्मोत्सव पर संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को अपनी हर बाधा और पीड़ा से मुक्ति मिलने के साथ उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए संकट मोचन हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए। घर से नकारात्मकता को दूर करने में हनुमान अष्टक का पाठ बहुत लाभकारी होता है। घर में सुख-शांति और हनुमान जी की कृपा पाने के लिए हनुमान अष्टक का नियमित पाठ अवश्य करना चाहिए।

4. बजरंग बाण-

बजरंग बाण तुलसीदास जी द्वारा रचित अति शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके पाठ से शत्रु विजय, कार्य सिद्धि और षड्यन्त्र से मुक्ति मिलती है। बजरंग बाण की साधना हनुमान जन्मोत्सव के दिन विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए की जाती है। बजरंग बाण का पाठ हनुमान चालीसा की तरह हर रोज करने की मनाही है क्योंकि इसका उद्देश्य किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए ही किया जाता है। इसके पाठ करने को लेकर बहुत सी सावधानियाँ रखनी होती है। जिसमें पवित्र मन, अहित भावना न होना, शुद्ध उच्चारण, उचित खानपान आदि शामिल हैं। अन्यथा इसके विपरीत प्रभाव देखने को मिलते हैं।

5. श्रीराम रक्षा स्तोत्र-

श्रीराम रक्षा स्त्रोत के रचियता बुद्धकौशिक ऋषि हैं। जिन्होंने भगवान शिव की प्रेरणा से इस स्तोत्र को 38 श्लोकों में रचकर उसे सिद्ध भी किया था। चैत्र की नवरात्रि के समय इसका पाठ करने से हजारों गुना शुभ फल की प्राप्ति होती है। श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने पर सभी प्रकार की आकस्मिक दुर्घटना, आकस्मिक संकट एवं अन्य सभी प्रकार की विपत्तियों से साधक सुरक्षित रहता है। इससे मंगल के कुप्रभाव समाप्त होते है। इसका प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति की प्राण रक्षा के लिए सर्वोत्तम होता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनता है,और यह सुरक्षा स्वयं भगवान हनुमान स्वयं निर्मित करते हैं।

6. रामायण-

रामायण के रचियता गोस्वामी तुलसीदास जी पर हनुमान जी की विशेष कृपा रही। उन पर कोई विपत्ति आई हनुमान जी ने उसका निराकरण स्वयं किया। कहते हैं जहां भगवान श्रीराम का नाम लिया जाता है वहाँ पवनपुत्र हनुमान सहज ही उपस्थित हो जाते हैं। जिस घर में प्रतिदिन सच्चे मन से रामायण का पाठ होता है, वहाँ हनुमान जी की कृपा सदैव बनी रहती है। हनुमान जन्मोत्सव पर आपको रामायण का सच्चे मन से पाठ अवश्य करना चाहिये। रामायण के अर्थ सहित प्रतिदिन 11 दोहे का पाठ घर में अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान श्री राम और हनुमान जी का आपके घर में सदैव निवास रहेगा और हर विपत्ति से आपकी रक्षा होगी।

॥ श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें ॥

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Holi 2023| 8 March

holi mehatav 2023 by astrologer arun ji

होली में करें ये विशेष उपाय, होगी हर मनोकामना पूरी !

होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

शुभ मुहूर्त-
होलिका दहन मुहूर्त – प्रदोष काल शाम 06:24 से 08:51 बजे तक

पूर्णिमा प्रारम्भ – 06 मार्च शाम 04:17 बजे से

पूर्णिमा समाप्त – 07 मार्च शाम 06:09 बजे तक

धुरेन्डी पर्व – 08 मार्च 2023 बुधवार

होलिका दहन के नियम-

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए –

1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।

2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

धार्मिक महत्व-

हिन्दू त्यौहारों में होली का त्यौहार प्रमुख रूप से मनाया जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी है। इसका धार्मिक और प्राकृतिक दोनों रूपों में विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन श्री हरि भक्त प्रह्लाद को राक्षसी होलिका मारने के उद्देश्य से आग में बैठी थी, होलिका को वरदान स्वरूप आग पर विजय प्राप्त थी, इसलिए आग से उसका बिल्कुल भी अहित नही होता था। लेकिन विष्णु जी परम प्रिय भक्त प्रह्लाद की हत्या के मकसद से जैसे ही होलिका आग में बैठी उसी वक्त वह जलकर भस्म हो गई जबकि भक्त प्रह्लाद का बाल भी बाँका नही हुआ। इस घटना के दूसरे दिन सभी तरफ लोगों ने रंग और गुलाल से भारी उत्सव मनाया। तब से लेकर आज तक इस दिन को रंगों के पर्व होली और दूसरे दिन धुरेन्डी के नाम से जाना जाने लगा। होली का त्यौहार समाजिक भाईचारा और प्रेम भाव को बढ़ाता है, दुश्मनी खत्म होकर दोस्ती में बदलती है। रंग खेलने का एक उद्देश्य यह भी होता है कि आपके सभी के जीवन में खुशियों के रंग भरे रहें। आज ही के दिन इस उत्सव को बसन्तोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। होली का त्योहार दीपावली की ही तरह पांच दिनों तक मनाया जाता है, पँचमी तिथि के दिन रंगपंचमी का त्यौहार मनाकर होली उत्सव समाप्त होता है।

वैज्ञानिक महत्व-

होलिका दहन की लपटें बहुत लाभकारी होती है, माना जाता है कि होलिका की पूजा करने से साधक की हर चिंता दूर हो जाती है। होलिका दहन की अग्नि नकारात्मकता का नाश करती है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इसकी लपटों से वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। होलिका की अग्नि ऊर्जा को तापना लोग स्वास्थ्य वर्धक उपाय भी मानते है।

होली क्यों मनाई जाती है?

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।
प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

होलिका दहन की विधि

होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है।

इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए (कंडे) गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए

लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है।

होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।

होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

होली विशेष उपाय

हालिका दहन के दिन करें ये उपाय होगी हर मनोकामना पूरी -

लंबी आयु के लिए

अपनी या आप जिस व्यक्ति की लंबी आयु की कामना चाहते हैं, उसकी लंबाई का काला धागा नापें और दो से तीन बार बराबर लपेटकर तोड़ लें। इस धागे को होलिका दहन की अग्नि में डाल दें। इससे सारी बलाएं दूर हो जाती है और आयु लंबी होती है।

आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए

रुपये-पैसों से जुड़ी परेशानी को दूर करने के लिए होलिका दहन के दिन घी में भिगोए हुए दो बताशे, दो लौंग और एक पान पत्ते को डाल दें। इन चीजों को होलिका की अग्नि में अर्पित करने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है।

शीघ्र विवाह के लिए

किसी कारण विवाह में देरी हो रही है या बार-बार अड़चने आ रही है तो इसके लिए होलिका की अग्नि में हवन सामग्री को घी में मिलाकर डाल दीजिए। इससे विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी और शीघ्र विवाह के योग बनेंगे।

रोग बीमारी दूर करने के लिए

यदि घर-परिवार में कोई लंबे समय से बीमार है और इलाज के बावजूद सेहत में सुधार नहीं हो रहा है तो एक मुट्ठी पीली सरसों, एक लौंग, काला तिल, फिटकरी, एक सूखा नारियल। इन चीजों को एक साथ लेकर बीमार व्यक्ति के सिर से सात बार घुमाएं और फिर होलिका की अग्नि में डाल दें। ऐसा करने से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए

पति-पत्नी के रिश्ते में मनमुटाव चल रहा है तो इसके लिए घी में 108 बाती को भिगोएं और इसे एक-एक कर परिक्रमा करते हुए होलिका की अग्नि में डालें। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।

सुख-समृद्धि के लिए

होलिका दहन की अग्नि में अनाज की आहूति देने का महत्व है. इससे घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है। आप भुट्टा, दाल, चावल, गेहूं आदि जैसी चीजों को होलिका की अग्नि में अर्पित कर सकते हैं।

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रामनवमी 2023

ram navmi mehatav yog 2023 by graphologist arun ji

रामनवमी 2023

हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष कि नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। वैसे तो रामनवमी का त्यौहार अपने आप में ही खास है, लेकिन इस वर्ष की रामनवमी हमारे लिए और भी अधिक खास होने वाली है, क्योंकि इस बार 30 मार्च को रामनवमी के दिन 3 बेहद शुभ योग बन रहे हैं, जो बहुत लाभकारी माने जाते है। दरअसल रामनवमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और गुरु पुष्य योग बन रहे हैं और इन शुभ योगों में की गई पूजा, उपाय और साधना का बेहद शुभ फल प्राप्त होता हैं।

सर्वार्थ सिद्धि योग-

सर्वार्थ सिद्धि योग, एक ऐसा योग है, जिसमें यदि किसी कार्य का आरंभ किया जाए तो उसमें विशेष लाभ मिलता है। जब हमें कोई विशेष मुहूर्त नहीं मिलता, तब इस योग में कार्य करने से सभी प्रकार के कार्यो में सफलता मिलती है।

अमृत सिद्धि योग-

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अमृत सिद्धि योग को बहुत शुभ माना जाता है। दिन और नक्षत्र के विशेष संयोजन से अमृत सिद्धि योग निर्मित होता है और इस दौरान किए गए सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। इस योग में भगवान राम की पूजन करने से आपके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

गुरु पुष्य योग-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नक्षत्र हर दिन बदलते हैं, इनमें पुष्य नक्षत्र भी शामिल है। हर 27 वें दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह जिस दिन भी आता है, उसी नाम से जाना जाता है। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने से गुरु पुष्य योग बनता है। इस योग में खरीदी गई वस्तु या संपत्ति से लंबे समय तक लाभ प्राप्त होते हैं।

भगवान विष्णु के 7वें अवतार माने गए श्रीराम हमारे इतिहास के सबसे महान आदर्श पुरुष माने जाते हैं। पुराणों में उन्हें श्रेष्ठ राजा बताया गया है। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। वह मनुष्य रूप में जन्मे और ऋषि विश्वामित्र से विद्योपार्जन के उपरांत पृथ्वी पर उन्होंने असंख्य राक्षसों का संहार कर किया। सत्य, धर्म, दया और मर्यादाओं पर चलते हुए राज किया। हमारे सनातन धर्मग्रंथ श्री राम के जीवन का महत्व बताते हुए हमें जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।

क्या राम काल्पनिक है?

शुभ मुहूर्त-

नवमी तिथि प्रारंभ- 29 मार्च 2023 रात 09:07 बजे से

नवमी तिथि समाप्त- 30 मार्च 2023 रात 11:30 बजे तक

रामनवमी पूजा का मध्याह्न मुहूर्त – सुबह 11:17 से दोपहर 01:46 तक

यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि जिस भारत को भगवान श्री राम ने एक सूत्र में पिरोया था, उन्ही राम के अस्तित्व को झुठलाने के भीषण षड्यन्त्र रचे जा रहे हैं। यह तो सर्व विदित है कि हमारे भारत का जो स्वरूप और संरचना आज हम देख रहे हैं वह कतई इस तरह की नहीं थी। आज जो भारत के आसपास के पड़ोसी देश हैं, वे कभी भारत का हिस्सा थे, लेकिन विदेशी आक्रान्ताओं और कुकर्मियों के अत्याचारों के फलस्वरूप भारतवर्ष की अखंडता को खंड-खंड करने में कोई कसर नहीं रखी गई। हमारे वेद, पुराण, उपनिषद, पवित्र ग्रंथ और अखंड भारत का अद्भुत बखान करने वाली सदियों से एकत्र की गई संपदाओं को नष्ट किया गया

पावन ग्रंथों में भगवान राम के पावन चरित्र को धूमिल करने के लिए भरसक षड्यन्त्र स्थापित किए गए, जिसकी वजह से आज के अज्ञानी जन उनके अस्तित्व पर ही बड़ा सवाल उठाते हैं। इसी विषय पर हम बताने जा रहें हैं वे प्रमाण जो साबित करते हैं कि श्रीराम और रामायण काल का वास्तव में अस्तित्व रहा है।

श्रीराम और भाइयों के जन्म की तारीख-

वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम जी का जन्म चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ था। ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति को जब विश्व की सबसे बड़ी संस्था आई सर्व द्वारा खगोलीय घटनाओं के समय का  सटीक आँकलन करने वाले सॉफ्टवेयर प्लैनेटेरियम गोल्ड से मिलान किया गया, तब अंग्रेजी तारीख के अनुसार श्री राम का जन्म की तारीख 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व प्राप्त हुई। उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों में एक जैसी है। परिणामस्वरूप, रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि रामलाला का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ। इसके बाद भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के जन्म समय और ग्रह-नक्षत्रों के मिलान के अनुसार सही समय की प्राप्ति हो गई। आई सर्व के रिसर्चरों ने जब धार्मिक तिथियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चंद्र कैलेंडर की इस तिथि को आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो ये जान कर हैरान रह गए कि सदियों से भारतवर्ष में रामलला का जन्मदिन बिल्कुल सही तिथि पर मनाया जाता आया है। यही नहीं इसके बाद वनवास, रावण की मृत्यु और श्री राम के राज्याभिषेक की तारीखेँ भी उन्हीं तिथियों के अनुसार प्राप्त हो चुकी हैं।

रामसेतु-

आज के समय रामसेतु के बारे में कौन नहीं जानता, रामसेतु के बारे में सबसे बड़ी भ्रांति यह है कि यह रामायण काल के बहुत बाद में बनाया गया था। जबकि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट्स के अनुसार रामसेतु का निर्माण श्री राम के काल में ही हुआ था और इसकी बनावट भी पत्थरों से ही हुई थी। यह श्री राम के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता है।

द्रोणागिरि पर्वत के अंश -

मेघनाथ के शक्ति बाण से मूर्छित होकर जब लक्ष्मण जी जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे तब हनुमान जी हिमालय से समूचा द्रोणागिरि पर्वत उठा लाए थे और लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने पर वापस उसी स्थान पर रख दिया था। कहा जाता है कि हनुमान जी का संजीवनी बूटी लाना एक कहानी मात्र है। जबकि श्रीलंका में जिसे रामायण काल का युद्ध क्षेत्र कहा जाता है, उसी के समीप हिमालयीन जड़ीबूटी से युक्त पेड़ पौधे आज भी पाए जाते हैं जो पूरे श्रीलंका तो क्या हिमालय को छोड़कर भारत में भी नहीं पाए जाते। यह साक्षात उदाहरण है कि वर्षों पहले रची गई रामायण झूठ नहीं है।

अनेक रामायण-

श्रीराम जी के प्रमाण का प्रमुख सबूत वाल्मीकि रामायण है जो संस्कृत में लिखी गई है। लेकिन भारत की अनेकों भाषाओं में रामायण रची गई हैं।जैसे- तमिल भाषा में कम्बन रामायण, असम में असमी रामायण, उड़िया में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, बंगाली में रामायण पांचाली, मराठी में भावार्थ रामायण आदि। सबसे खास बात यह है कि इन भारतीय भाषाओं में प्राचीनकाल में ही सभी रामायण लिखी गई। मुगलकाल में गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरित मानस लिखी जो की हिन्दीभाषा और उससे जुड़े राज्यों में प्रचलित है।

वहीं विदेशी भाषाओं में कंपूचिया की रामकेर्ति रामायण, लाओस फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), मलयेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन और नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण आदि प्रचलीत है। इसके अलावा भी अन्य कई देशों में वहां की भाषा में रामायण लिखी गई है।

आज भी मौजूद हैं रामायण के सबूत-

भारत के इतिहासकार और पुरातत्व विभाग के एक्सपर्ट्स ने भारत में 250 से भी अधिक ऐसे स्थान खोजे हैं जो रामायण काल के ही हैं। कई स्थानों पर आज भी स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिकों ने की जो कि सबूत हैं कि श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण वहाँ रुके या रहे थे। जैसे- सरयू और तमसा नदी के पास के स्थान, प्रयागराज के पास श्रृंगवेरपुर तीर्थ, सिंगरौर में गंगा पार कुरई गांव, प्रयागराज, चित्रकूट (मप्र), सतना (मप्र), दंडकारण्य के कई स्थान, पंचवटी नासिक, सर्वतीर्थ, पर्णशाला, तुंगभद्रा, शबरी का आश्रम, ऋष्यमूक पर्वत, कोडीकरई, रामेश्‍वरम, धनुषकोडी, रामसेतु और नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला आदि कई ऐसे स्थान रामायण के साक्षात प्रमाण हैं।

आज भी जीवित हैं रामायण का वानर वंश-

अधिकतर लोग यह बात जानते ही होंगे कि 7 अमर पुरुषों में श्री हनुमान जी, विभीषण और जामवंत आज भी जीवित हैं। कई लोग इस बात को झुठलाते हैं परंतु बाली द्वीप में आज भी वानर समुदाय के वे लोग जीवित हैं जो खुद को रामायण कालीन वानर समाज का वंशज मानते है और उनके पूर्वजों के बताए अनुसार किष्किन्धा (आंध्रप्रदेश) को अपनी पुरानी राजधानी कहते हैं। इन लोगों की शारीरिक बनावट आज भी थोड़ी बहुत वानरों की तरह है और कुछ लोगों की 3 से 6 इंच की पूंछ भी जन्मजात होती है। वानर समाज के लोग मानसिक रूप बहुत तेज, चतुर और उपद्रवी किस्म के होते थे इसलिए मनुष्यों और बाहरी आक्रांताओं ने प्रभुत्व पाने के लिए रामायण काल के बाद वानर समाज को खत्म कर दिया पर इनमें से कुछ वानरों ने अलग-अलग द्वीप में शरण लेकर अपनी जान बचाई। जिसका उदाहरण बाली द्वीप है।

अयोध्या नगरी-

अयोध्या श्रीराम की जन्मस्थली है और कर्मभूमि भी। मुगल काल के समय क्रूर मुस्लिम शासकों के अत्याचारों के फलस्वरूप कई देवालयों को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था और जो मुख्य देवस्थल हैं वहाँ मस्जिदें बनाई गईं, इस अपराध का शिकार पावन अयोध्या नगरी भी हुई, जहां सालों चले वैचारिक युद्धों के बाद आज श्री राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस स्थान पर खुदाई में रामायण काल के कई अवशेष मिले साथ ही पुराने मंदिर के अंश भी प्राप्त हुए, जो श्रीराम की जन्मस्थली का सबसे बड़ा प्रमाण बने।

नेपाल और श्रीलंका में प्रमाण-

रामायण के प्रमाण केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी मिलते हैं। बिहार के सीतामढ़ी और और जनकपुरी में माता सीता से जुड़े कई साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। जनकपुरी में माता सीता के चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं। वहीं श्रीलंका मे स्थित अशोक वाटिका में हनुमान जी के विशाल पग चिन्ह भी स्पष्ट रूप से मिलते हैं। जिन्हें भारत और श्रीलंका के पुरातत्ववेताओं के अनुसार रामायण काल का ही माना गया है।

विदेशियों के आराध्य श्री राम-

भगवान श्रीराम के अस्तित्व के प्रमाण विदेशी ग्रंथों में भी मिलते हैं जो मानते हैं कि भगवान श्री राम और रामायण काल्पनिक नहीं हैं। इंडोनेशिया, कंबोडिया, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, जापान और अन्य देशों के निवासी भगवान श्री राम को अपना आराध्य मानते हैं और अपनी भाषाओं में रामायण की तरह ही कई ग्रंथ रचे गए हैं, जो कि रामयुग के साक्षात प्रमाण हैं।

भगवान राम के जीवन से सीखें ये आदर्श सूत्र-

प्रभु राम का चरित्र सामाजिक जीवन को जीने के लिए संपूर्ण ज्ञान है। रामायण में दिये गये प्रसंग हमें जीवन जीने के तरीकों के बारे में बताते हैं। प्रभु राम के चरित्र के ये गुण अपना लेने से आपका जीवन भी एक सार्थक जीवन बन सकता है। तो आइये जानते है आज के इस लेख में रामायण और प्रभु राम के चरित्र से हमें क्‍या शिक्षा मिलती है-

बुराई पर अच्छाई की जीत

रामायण में राम जी के जीवन की सबसे बड़ी सीख है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है। जिस तरह माता सीता पर रावण ने बुरी नज़र डाली और अंत में भगवान राम ने महाज्ञानी रावण को पराजित कर माता सीता को वापस पा लिया। 

कहानी का सार है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली या बड़ी क्यों ना हो लेकिन अपनी अच्छी नियत और गुणों के कारण सच्चाई की ही जीत होती है।

विनय ही सर्वोत्तम नीति है

राम जी सर्वश्रेष्‍ठ तीरंदाज थे। उनको अस्त्रों- शस्त्रों का पूरा ज्ञान था। लेकिन अपनी सारी शक्ति और ज्ञान का उन्हें कभी अहंकार नहीं हुआ, जिसकी वजह उनकी अद्वितीय विनम्रता थी। 

उन्होंने कभी भी अपने जीवन में अहंकार को जगह नहीं दी, वो हमेशा विनय के ही मार्ग पर चलते रहे थे और कितनी ही विप‍रीत परिस्थितियाें में अपनी नीतियों को खोने नहीं दिया।

ऐश्‍वर्य से बढ़कर रिश्‍ते

श्री राम पर भाइयों का प्रेम, लालच, गुस्सा या विश्वासघात कभी घर नहीं कर पाया, ये एक बड़ा उदाहरण है। एक ओर जहां लक्ष्मण ने 14 साल तक भाई राम के साथ वनवास किया, वहीं दूसरे भाई कैकयी पुत्र भरत ने राजगद्दी के अवसर को ठुकरा दिया। इसके बजाय, उन्होंने भगवान राम से क्षमा मांगी और उनसे वापस लौटकर राजकाज संभालने का आग्रह किया।

भाइयों के प्यार की ये सीख हमें लालच और सांसारिक सुखों के बजाय रिश्तों को महत्व देने के लिए प्रेरित करती है।

अच्छी संगति का महत्व

रामायण हमें अच्छी संगति के महत्व को बताता है। कैकयी राम को अपने पुत्र राम से ज़्यादा चाहती थी लेकिन दासी मंथरा की बुरी सोच और गलत बातों में आकर वह राम के लिए 14 वर्षों का वनवास मांग लेती है।
इसलिए हमें सीख मिलती है कि हमें अच्छी संगति में रहना चाहिए ताकि नकारात्मकता हम पर हावी न हो।

पूर्वाग्रह का कभी समाधान नहीं होता है

जब रावण के भाई विभीषण राम के पास आए क्योंकि उन्हें अपने ही राज्य से भगा दिया गया था, राम को कभी भी उनके लिये कोई पूर्वाग्रह नहीं था, भले ही वहां कुछ लोग इसके बारे में निश्चित नहीं थे। परंतु जब वे सभी विभीषण के ज्ञान और विशेषज्ञता के मूल्य को समझ गए और उन्हें राम की दूरदर्शिता दिखाई दी।
पूर्वाग्रह किसी काम का हल नहीं होता है। आपने जो सामना किया है, उसके बारे में कुछ गलत लग सकता है, लेकिन सामान्य विशेषताओं को पहचानें तब आप लोगों और स्थितियों के वास्तविक मूल्यों को देखेंगे।

सच्ची भक्ति और समर्पण

हनुमान जी ने भगवान राम के प्रति अटल विश्वास और प्यार का परिचय दिया। उनकी अपार लगन और भगवान राम के प्रति निःस्वार्थ सेवा हमें सिखाती है, कि एक दोस्त की ज़रूरत के समय किस तरह मदद की जाती है।
यह बताता है कि हमें अपने आराध्य के चरणों में बिना किसी संदेह के अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए। जब हम अपने आपको उस सर्वव्यापक के चरणों में समर्पित कर देते हैं, तो हमें निर्वाण या मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण से छुटकारा मिलता है।

भगवान में विश्वास की शक्ति

राम, लक्ष्मण और वानर सेना द्वारा भारत और श्रीलंका के बीच तैयार किया गया रामसेतु पुल चमत्कार की ही निशानी है। जिस तरह से भगवान का नाम लिखने से ही पत्थर पानी में तैरने लगे, वैसे ही ईश्‍वर पर अटूट भरोसा असंभव काम को भी संभव कर देता है।
ये भी एक बड़ी सीख है कि जिस भगवान का नाम लेने से पूरी राम सेना हस्त निर्मित पुल से सागर पार कर गईं, वैसे ही भगवन नाम लेने से हम भी इस भवसागर से पार हो सकते हैं और हर क्षेत्र में जीत हासिल कर सकते हैं।

सबके साथ समान व्यवहार

भगवान राम ने सभी के साथ समान व्यवहार किया। शबरी के झूठे बेर खाना आज के जातिवादी समाज पर वह तमाचा है, जो सीख देता है कि जातियाँ या भेदभाव इंसान ने ही बनाए हैं। राम हमेशा लोगों के प्रति दयालु, विनम्र और समभाव रखते थे। हमें उनसे इस गुण को अपनाना चाहिए।
श्री राम ने घर, परिवार, समाज, राज्य और पूरे विश्व में सभी से प्यार और सम्मान अर्जित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके प्रमुख गुणों में से एक था कि कोई व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा, गरीब या अमीर, अपना हो या पराया वह सभी के लिए एक जैसा है।

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Know how March born People are | Personalities -Astro Arun Pandit

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What Your Birth Date Has to Say About You according to Astrology - March 1 to 31st 2023-

01 March 2023

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04 March 2023

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गुड़ी पड़वा 2023| Gudi Padwa 2023| 22 March

gudi padwa mahurat 2023 by astrologer arun ji

गुड़ी पड़वा

हिन्‍दु नववर्ष की शुरूवात, हर हिन्‍दु के लिये होता है ये दिन खास

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस दिन से हिन्दू नव वर्ष आरंभ होता है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरू होता है। अतः इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरंभ भी होता है।

प्रतिपदा तिथि- 

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 21 मार्च, 10:55 pm

प्रतिपदा तिथि समाप्‍त – 22 मार्च, 08:23 pm

चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।

कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया।

गुड़ी पड़वा का त्योहार 22 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। इस दिन को कर्नाटक में उगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है। कश्मीर में ‘नवरेह’, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा कहा जाता है। वहीं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो का पर्व मनाते हैं। सिंधि समुदाय के लोग इस दिन चेती चंड का पर्व मनाते हैं।

गुड़ी पड़वा या नव संवत्सर के दिन प्रातः नित्य कर्म कर तेल का उबटन लगाकर स्नान आदि से शुद्ध एवं पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर देश काल के उच्चारण के साथ पूजन करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

 

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा में, गुड़ी का अर्थ है विजय पताका, और पड़वा का अर्थ है प्रतिपदा। 

 

इस त्योहार पर लोग अपने घरों को पताका, ध्वज और बंधनवार से सजाते हैं। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। 

गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से महाराष्ट्र में हिंदू नव वर्ष की शुरुआत या नए साल की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है।

पंचांग के अनुसार नए साल की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है और इस दिन इस पर्व को मनाने की परंपरा है। गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में खुशी के साथ मनाया जाता है। 

  • सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने की ख़ुशी में लोगों ने घरों पर गुड़ी को लगाया था।
  • कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।
  • यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है। इसे इन्द्र-ध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
  • वहीं पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने इसी दिन बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से छुटकारा दिलाया था। इस दिन को लोग विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। यही वजह है कि इस खुशी के मौके पर घरों के बाहर रंगोली बनाई  हैं और विजय पताला लहराकर जश्न मनया जाता है।
  • भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की याद में भी कुछ लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते हैं।
  • माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।
  • गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
  • किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
  • हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं। ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली को आधा मुहूर्त माना जाता है।

हिन्‍दु नववर्ष का महत्‍व

हिन्दू नववर्ष हजारों वर्षो से हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिनों में शामिल रहा है। हिन्दू धर्म में नववर्ष को नवीनताऔर नवाचार का प्रतीक माना गया है एवं इस अवसर पर पूजा-पाठ एवं विभिन प्रकार के शुभ कार्यो को करने की परंपरा रही है। हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है जिसकी शुरुआत उज्जैन के महान शासक विक्रमादित्य द्वारा शकों को पराजित करने के उपलक्ष में 58 ई. पू. (58 B.C) में की गयी थी।

वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर आधारित है जहाँ नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में मनाया जाता है। चैत्र माह में प्रकृति में चारों ओर उत्साह एवं सौंदर्य प्रदर्शित होता है एवं बसंत ऋतु का आगमन होता है। हिन्दू नववर्ष के अवसर पर सम्पूर्ण प्रकृति ही नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार प्रतीत होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी हिन्दू नववर्ष को बहुत महत्‍वपूर्ण माना जाता है। 

हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। यह दिवस हिन्दू समुदाय में नवीन उत्साह का संचार करता है एवं नवीन वर्ष के अवसर विभिन प्रकार के नए संकल्प लिए जाते है। हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाने के पीछे ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्राकृतिक एवं नैसर्गिक कारण कारण है। 

चैत्र माह की शुक्‍ल पक्ष की प्रि‍तपदा तिथि को नववर्ष मनाने के पीछे महत्‍वपूर्ण बिन्‍दु निम्‍न प्रकार है-

ऐतिहासिक कारण

हिन्दू नववर्ष को विक्रम सम्वत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है। इस कैलेंडर की शुरुआत भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा शकों को पराजित करने एवं राज्याभिषेक के अवसर पर 58 ई.पू. में की गयी थी। प्रतिवर्ष विक्रम सम्वत के आधार पर हिन्दू नववर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।

पौराणिक कारण

ब्रह्मांड निर्माण का दिवस- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नववर्ष के अवसर पर ही ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यही कारण है की इस दिवस को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू नववर्ष के प्रारम्भ होने के पौराणिक कारणों में विभिन तथ्यों को माना जाता है जिनमे में कुछ कारण निम्न है-

  • माना जाता है की इस दिन प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था।
  • इस दिवस के अवसर पर ही प्रभु राम द्वारा बाली का वध किया गया था।
  • धर्मराज युधिष्ठर का राज्याभिषेक दिवस भी हिन्दू नववर्ष के दिन माना जाता है।
  • लंकापति रावण के विजय के अवसर पर इस दिवस अयोध्यावासियों ने अपने घरो पर भगवान राम के सम्मान में विजय पताका फहराई थी।
  • नवरात्र की शुरुआत भी नववर्ष से मानी जाती है।

आध्यात्मिक कारण

हिन्दू नववर्ष के अवसर पर जीवन में नवीनता एवं उत्साह की शुरुआत मानी जाती है। भारतीय अध्यात्म में नवीनता एवं बदलाव को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग माना गया है ऐसे में नववर्ष को जीवन में नवीन शुरुआत के आरम्भ के रूप में भी माना जाता है।

प्राकृतिक कारण

हिन्दू नववर्ष हमारे देश में बसंत ऋतु के आगमन का अवसर होता है ऐसे में प्रकृति में चारों ओर हरियाली छायी रहती है। शरद ऋतु के पतझड़ के बाद वृक्षों पर नयी कोपलें जीवन की नवीनता का संदेश देती है। चारों ओर नए फूल, फल एवं पत्तियाँ मानों नए साल के स्वागत का संदेश लेकर आयी हुयी प्रतीत होती है।

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