Tritiya divas 2023

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तृतीय दिवस - देवी चंद्रघण्टा

चंद्रघण्टा माता की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है। इनके नाम का अर्थ, चंद्र मतलब चंद्रमा और घण्टा मतलब घण्टा के समान। उनके माथे पर चमकते हुए चंद्रमा के कारण ही उनका नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इन्हें चंद्रखंडा नाम से भी जाना जाता है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को साहस और वीरता का अहसास कराता है और उनके दुःखों को दूर करता है। देवी चंद्रघण्टा माता पार्वती की ही रौद्र रूप हैं, लेकिन उनका यह रूप तभी दिखता है जब वे क्रोधित होती हैं, अन्यथा वे बहुत ही शांत स्वभाव की हैं।

माता चंद्रघण्टा का स्वरूप

माँ चंद्रघण्टा शेरनी की सवारी करती हैं और उनका शरीर सोने के समान चमकता है। उनकी 10 भुजाएँ हैं। उनके बाएँ चार भुजाओं में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमण्डलु विभूषित हैं, वहीं पाँचवा हाथ वर मुद्रा में है। माता की चार अन्य भुजाओं में कमल, तीर, धनुष और जप माला हैं और पाँचवा हाथ अभय मुद्रा में है। माता का अस्त्र-शस्त्र से विभूषित यह रूप युद्ध के समय देखने को मिलता है।

पौराणिक मान्यताएँ

जब भगवान शिव ने देवी से कहा कि वे किसी से शादी नहीं करेंगे, तब देवी को यह बात बहुत ही बुरा लगा। देवी की यह हालत ने भगवान को भावनात्मक रूप से बहुत ही चोट पहुँचाया। इसके बाद भगवान अपनी बारात लेकर राजा हिमावन के यहाँ पहुँचे। उनकी बारात में सभी प्रकार के जीव-जंतु, शिवगण, भगवान, अघोरी, भूत आदि शामिल हुए थे। इस भयंकर बारात को देखकर देवी पार्वती की माँ मीना देवी डर के मारे बेहोश हो गईँ। इसके बाद देवी ने परिवार वालों को शांत किया, समझाया-बुझाया और उसके बाद भगवान शिव के सामने चंद्रघण्टा रूप में पहुँचीं। उसके बाद उन्होंने शिव को प्यार से समझाया और दुल्हे के रूप में आने की विनती की। शिव देवी की बातों को मान गए और अपने आप को क़ीमती रत्नों से सुसज्जित किया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।
माता चंद्रघण्टा का मंत्र ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
प्रार्थना मंत्र पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
स्तुति या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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Dwitiya divas 2023

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द्वितीय दिवस - माँ ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन होती है। देवी के इस रूप को माता पार्वती का अविवाहित रूप माना जाता है। ब्रह्मचारिणी संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ, ब्रह्म के समान आचरण करने वाली है। इन्हें कठोर तपस्या करने के कारण तपश्चारिणी भी कहा जाता है।

माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बाएँ हाथ में कमण्डल है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।

पौराणिक मान्यताएँ

मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालाँकि इन सबके बावजूद देवी ने कामुक गतिविधियों के स्वामी भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान आगबबूला हो गए और उन्होंने स्वयं को जला दिया। कहानी यही ख़त्म नहीं होती है। उसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया। देवी पहाड़ पर गईं और वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की, लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।

ज्योतिषी के अनुसार

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह को नियंत्रित करती हैं। देवी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

देवी ब्रह्मचारिणी का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

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Pratham divas 2023

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प्रथम दिवस

माँ शैलपुत्री दुर्गा के नौ रूपों में पहला रूप हैं जिनकी भक्तगण नवरात्रि पर्व में पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के नौ दिन दुर्गा माँ के नौ रूपों को समर्पित होते हैं और इस पावन पर्व के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है।

शैलपुत्री का रूप

• माथे पर अर्ध चंद्र
• दाहिने हाथ में त्रिशूल
• बाएँ हाथ में कमल
• नंदी बैल की सवारी
शैलपुत्री का संस्कृत में अर्थ होता है ‘पर्वत की बेटी’। पौराणिक कथा के अनुसार माँ शैलपुत्री अपने पिछले जन्म में भगवान शिव की अर्धांगिनी (सती) और दक्ष की पुत्री थीं। एक बार जब दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन कराया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, परंतु भगवान शंकर को नहीं। उधर सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो रही थीं। शिवजी ने उनसे कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है लेकिन उन्हें नहीं; ऐसे में वहाँ जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुँचीं तो वहाँ उन्होंने भगवान शिव के प्रति तिरस्कार का भाव देखा। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक शब्द कहे। इससे सती के मन में बहुत पीड़ा हुई। वे अपने पति का अपमान सह न सकीं और योगाग्नि द्वारा स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया। फिर यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। हिमालय के राजा का नाम हिमावत था और इसलिए देवी को हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। माँ की सवारी वृष है तो उनका एक नाम वृषारुढ़ा भी है।

ज्योतिष के अनुसार

ज्योतिष के अनुसार माँ शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं, इसलिए उनकी उपासना से चंद्रमा के द्वारा पड़ने वाले बुरे प्रभाव भी निष्क्रिय हो जाते हैं।

माँ शैलपुत्री का मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
स्तुति: या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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Sharad Navratri 2023

शरद नवरात्रि, घटस्थापना

नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। एक वर्ष में पांच बार नवरात्र आते हैं, चैत्र, आषाढ़, अश्विन, पौष और माघ नवरात्र। इनमें चैत्र और अश्विन यानि शारदीय नवरात्रि को ही मुख्य माना गया है। इसके अलावा आषाढ़, पौष और माघ गुप्त नवरात्रि होती है। शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।

सांस्कृतिक परंपरा

नवरात्रि में देवी शक्ति माँ दुर्गा के भक्त उनके नौ रूपों की बड़े विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्र के समय घरों में कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू किया जाता है। नवरात्रि के दौरान देशभर में कई शक्ति पीठों पर मेले लगते हैं। इसके अलावा मंदिरों में जागरण और मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की झांकियां बनाई जाती हैं।

पौराणिक मान्यता

शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में ही भगवान श्रीराम ने देवी शक्ति की आराधना कर दुष्ट राक्षस रावण का वध किया था और समाज को यह संदेश दिया था कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। आइए जानते हैं कि 2023 में घटस्थापना/कलश स्थापना कब है व घटस्थापना/कलश स्थापना 2023 की तारीख व मुहूर्त। नवरात्र में घटस्थापना अथवा कलश स्थापना का विशेष महत्व है। सामान्य रूप से इसे नवरात्रि का पहला दिन माना जाता है। घटस्थापना के दिन से नवरात्रि का प्रारंभ माना जाता है। नवरात्रों (चैत्र व शारदीय) में प्रतिपदा अथवा प्रथमा तिथि को शुभ मुहुर्त में घट स्थापना पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार कलश को भगवान गणेश की संज्ञा दी गई है और किसी पूजा के लिए सर्वप्रथम गणेश जी की वंदना की जाती है।

घटस्थापना के नियम

  • दिन के एक तिहाई हिस्से से पहले घटस्थापना की प्रक्रिया संपन्न कर लेनी चाहिए
  • इसके अलावा कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है
  • घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र इस प्रकार हैं: पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु
घटस्थापना
घटस्थापना मुहूर्त रविवार अक्टूबर 15 सुबह :11:43:am से 12:29:pm तक

घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री

● सप्त धान्य (7 तरह के अनाज)
● मिट्टी का एक बर्तन जिसका मुँह चौड़ा हो
● पवित्र स्थान से लायी गयी मिट्टी
● कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल)
● पत्ते (आम या अशोक के)
● सुपारी
● जटा वाला नारियल
● अक्षत (साबुत चावल)
● लाल वस्त्र
● पुष्प (फ़ूल)

घटस्थापना विधि

● सर्वप्रथम मिट्टी के बर्तन में रख कर सप्त धान्य को उसमे रखें
● अब एक कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बाँधकर उसे उस मिट्टी के पात्र पर रखें
● अब कलश के ऊपर अशोक अथवा आम के पत्ते रखें
● अब नारियल में कलावा लपेट लें
● इसके उपरान्त नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें
● घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान किया जाता है

20 अक्टूबर, 2023 (शुक्रवार)

कल्पारम्भ

दुर्गा पूजा की विधिवत शुरुआत षष्ठी से प्रारंभ होती है। मान्यता है कि देवी दुर्गा इस दिन धरती पर आई थीं। षष्ठी के दिन बिल्व निमंत्रण पूजन, कल्पारंभ, अकाल बोधन, आमंत्रण और अधिवास की परंपरा है।

काल प्रारंभ

काल प्रारंभ की क्रिया प्रात: काल की जाती है। इस दौरान घट या कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा-आराधना का संकल्प लिया जाता है।

बोधन

बोधन जिसे अकाल बोधन के नाम से भी जाना जाता है। बोधन की क्रिया शाम को संपन्न की जाती है। बोधन से तात्पर्य है नींद से जगाना। इस मौके पर मां दुर्गा को नींद से जगाया जाता है। दरअसल हिंदू मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा उत्सव साल के मध्य में दक्षिणायान काल में आता है इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के माध्यम से नींद से जगाया जाता है। बताया जाता है कि भगवान श्री राम ने सबसे पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और इसके बाद राक्षस राज रावण का वध किया था। चूंकि देवी दुर्गा को असमय नींद से जगाया जाता है इसलिए इस क्रिया को अकाल बोधन भी कहते हैं। बोधन की परंपरा में किसी कलश या अन्य पात्र में जल भरकर उसे बिल्व वृक्ष के नीचे रखा जाता है। बिल्व पत्र का शिव पूजन में बड़ा महत्व होता है। बोधन की क्रिया में मां दुर्गा को निंद्रा से जगाने के लिए प्रार्थना की जाती है। बोधन के बाद अधिवास और आमंत्रण की परंपरा निभाई जाती है। देवी दुर्गा की वंदना को आह्वान के तौर पर भी जाना जाता है। बिल्व निमंत्रण के बाद जब प्रतीकात्मक तौर पर देवी दुर्गा की स्थापना कर दी जाती है, तो इसे आह्वान कहा जाता है जिसे अधिवास के नाम से भी जाना जाता है।

24 अक्टूबर 2023 मंगलवार दुर्गा विसर्जन

दुर्गा विसर्जन मुहूर्त
24 अक्टूबर, मंगलवार
दुर्गा विसर्जन समय :06:27:am से 08:42:am तक

दुर्गा पूजा उत्सव का समापन

दुर्गा पूजा उत्सव का समापन दुर्गा विर्सजन के साथ होता है। दुर्गा विसर्जन का मुहूर्त प्रात:काल या अपराह्न काल में विजयादशमी तिथि लगने पर शुरू होता है। इसलिए प्रात: कालया अपराह्न काल में जब विजयादशमी तिथि व्याप्त हो, तब मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाना चाहिए। कई सालों से विसर्जन प्रात:काल मुहूर्त में होता आया है लेकिन यदि श्रवण नक्षत्र और दशमी तिथि अपराह्न काल में एक साथ व्याप्त हो, तो यह समय दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के लिए श्रेष्ठ है। देवी दुर्गा के ज्यादातर भक्त विसर्जन के बाद ही नवरात्रि का व्रत तोड़ते हैं। दुर्गा विसर्जन के बाद विजयादशमी का त्यौहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्री राम ने राक्षस राज रावण को मारा था। वहीं देवी दुर्गा ने इस दिन असुर महिषासुर का वध किया था। दशहरा के दिन शमी पूजा, अपराजिता पूजा और सीमा अवलंघन जैसी परंपराएं भी निभाई जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार ये सभी परंपरा अपराह्न काल में मनानी चाहिए।

24 अक्टूबर, 2023 (मंगलवार)

शरद नवरात्रि पारणा

आइए जानते हैं कि 2023 में शरद नवरात्रि पारणा कब है व शरद नवरात्रि पारणा 2023 की तारीख व मुहूर्त

शरद नवरात्रि पारणा का मुहूर्त
24 अक्टूबर 2023, मंगलवार
नवरात्रि पारणा का समय :06:27:am के बाद से

शरद नवरात्रि का पारणा अश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। पारणा के साथ 9 दिनों तक चलने वाली शरद नवरात्रि का समापन हो जाता है। पारणा मुहूर्त को लेकर शास्त्रों में कुछ मतभेद हैं कि पारणा नवमी को होगा या दशमी को। मिमांसा (जिन्होंने शास्त्रों की व्याख्या की है) के अनुसार पारणा दशमी को करना चाहिए, क्योंकि कई शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि नवमी को उपवास रखा जाता है। यदि नवमी तिथि दो दिन पड़ रही हो, तब उस स्थिति में पहले दिन उपवास रखा जाएगा और दूसरे दिन पारणा होगा, ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। नवमी नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की षोडषोपचार पूजा करके मूर्ति विसर्जन करना चाहिए। पूजा और विसर्जन के बाद ब्राह्मणों को फल, उपहार, वस्त्र, दान-दक्षिणा आदि (अपनी इच्छानुसार) देनी चाहिए। साथ ही उपरोक्त चीज़ें 9 बालिकाओं को भी कन्या पूजन करके देनी चाहिए।

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Know How October Born People are | Personalities

Know How are October Born People | जानिए कैसे होते हैं अक्टूबर में जन्मे लोग | Facts | Personalities - 2023

What Your Birth Date Has to Say About You according to Astrology - October 1 to 31st 2023

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October Prediction-2023

अक्टूबर राशिफल 2023

सौगातों या समस्या से भरा रहेगा अक्टूबर का ये महीना आपके लिये। अक्टूबर के महीने में शनि कुछ राशियों में वक्री हो रहे है, जिससे कुछ राशियों में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते है। इस महीने ग्रहों की चाल तेजी से बदलने वाली है। ऐसे में सभी 12 राशियों पर बड़े ही रोचक प्रभाव देखे जाने वाले हैं, कुछ राशियों के लिए यह महीना खुशहाली से भरा होगा, लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनके लिए अक्टूबर का यह महीना अशुभ परिणामों से भरा हो सकता है।

मेष-

  • कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है। 
  • जॉब के लिये विदेश से शुभ समाचार प्राप्त हो सकते हैं। 
  • आर्थिक पक्ष ठीक-ठाक रहेगा। 
  • बिज़नेस में कुछ यूनिक करने से मिलेगा फायदा। 
  • इस महीने घबराहट और तनाव हो सकता है। 
  • प्रेमी जीवन शानदार रहेगा। 
  • विद्यार्थियों के लिये सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते है। 

मेष राशि के लिये उपाय- शनिवार को मंदिर जाकर हनुमान चालीसा या हनुमान अष्टक का पाठ करें। 

वृषभ-

  • कार्यक्षेत्र में संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। 
  • पेट की खराबी, आँखों में जलन और कंधों में चोट लग सकती है।
  • आर्थिक पक्ष में खर्च अधिक होंगे। 
  • शादीशुदा जीवन में अशांति हो सकती है। 
  • विद्यार्थी अपनी पढाई को लेकर कंफ्यूज हो सकते हैं। 
वृषभ राशि के लिये उपाय- 108 बार ॐ दुर्गाय नमः मंत्र का जाप करके दिन की शुरुवात करें।

मिथुन-

  • कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है।
  • इस माह आप अपने आप को निखारेंगे।  
  • आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। 
  • आपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • प्रेमी जीवन सुखद बीतेगा। 
  • किसी और की वजह से पढ़ाई में नुकसान हो सकता है। 
मिथुन राशि के लिये उपाय- रोज़ाना शाम के समय चंद्र साधना जरूर करें।

कर्क-

  • नई जॉब के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है। 
  • इस माह 12-18 तारीख का संघर्ष का समय होगा। 
  • किसी को उधारी देने से बचे। 
  • माता-पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • गलतफहमी की वजह से रिश्ते खराब हो सकते हैं। 
  • विद्यार्थी किसी प्रेमी उलझन में फस कर अपना समय बर्बाद कर सकते है।

 

कर्क राशि के लिये उपाय- सोमवार के दिन ‘ॐ सोमाय नमः’ मंत्र का जप 21 बार करें। 

सिंह-

  • ये महीना कार्यक्षेत्र में सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला है। 
  • आर्थिक पक्ष में कमाई के नये अवसर बन सकते हैं।
  • इस माह पैसों को लेकर सतर्कता बरतें। 
  • बालों का झड़ना, आँखों में जलन हो सकती है। 
  • आपका लव रिलेशन और मजबूत हो जायेगा। 
  • विद्यार्थिओं का कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ेगा।
सिंह राशि के लिये उपाय- आदित्यह्रदयस्त्रोतं का पाठ करके दिन की शुरुवात करे।

कन्या-

  • कार्यक्षेत्र में वर्कलोड बढ़ सकता है। 
  • इस महीने आपके खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • सिरदर्द, और आँखों में दर्द हो सकता है।
कन्‍या राशि के लिये उपाय – माँ लक्ष्मी की पूजा और ‘श्रीं श्रीं श्रीं’  मंत्र का जप 108 बार प्रतिदिन करें। 

तुला-

  • कार्यक्षेत्र में कोई भी कार्य देरी से हो सकता है। 
  • आपके कार्य में अड़चने आ सकती है। 
  • आपकी कमाई में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • Stress, anxiety हो सकती है। 
  • प्रेमी संबंध में अनबन हो सकती है।  
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत ईमानदार दिखेंगें।
तुला राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 41 बार ‘ॐ केतवाय नमः’ मंत्र का जप करे।

वृश्चिक-

  • कार्यक्षेत्र में फोकस की कमी दिखाई दे सकती है। 
  • ये महीना बिजनेसमैन के लिये साधारण रहेगा । 
  • जॉब में तनाव हो सकता है। 
  • खर्च करते समय ध्यान रखें। 
  • माँ को पेट की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • प्रेमी जीवन में सतर्कता बरते। 
  • विद्यार्थी अपनी भावनाओं में नियंत्रण रखे।
वृश्चिक राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 27 बार ‘ॐ हं हनुमते नमः’ मंत्र का जप करे।

धनु-

  • बेरोजगारों के लिए विदेश में नौकरी के संयोग बन रहे है।
  • इस महीने आपको भाग्य का सहारा मिलेगा। 
  • आपके विवाह के योग बन रहे है। 
  • परिवार में खुशनुमा माहौल रहेगा। 
  • विद्यार्थियों को बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।
धनु राशि के लिये उपाय- गरीब लोगों को भोजन जरूर करायें।   

मकर-

  • करियर में उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। 
  • बिज़नेस में नये अवसर प्राप्त होंगे। 
  • आर्थिक पक्ष को लेकर उतार चढ़ाव का सामना हो सकता है। 
  • आँखों में जलन और सिर दर्द हो सकता है। 
  • प्रेमी जीवन धीरे-धीरे ठीक हो रहा है। 
  • विद्यार्थियों को अपनी मेहनत के परिणाम मिलने लगेंगे। ।
मकर राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 21 बार ॐ हन: हनुमते नमः मंत्र का जप करे। 

कुंभ-

  • कार्यक्षेत्र में आप अपनी प्रयोरिटी को आगे रखकर कार्य करोगे। 
  • इस महीने आप कहीं घूमने जा सकते है। 
  • यह माह आर्थिक पक्ष के लिये ठीक ठाक रहेगा। 
  • पीट दर्द और आलस्य का सामना करना पड़ सकता है। 
  • प्रेमी जीवन में बहुत नोकझोंक दिखाई दे रही है। 
  • अपनी वाणी में नियंत्रण रखे। 
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में कुछ परिवर्तन कर सकते है। 
कुंभ राशि के लिये उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करे और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जाप प्रतिदिन 11 बार जरूर करे।

मीन-

  • शनि की साढ़ेसाती से कार्यक्षेत्र में भारीपन लगेगा। 
  • सेहत का बहुत ध्यान रखें। 
  • पैसों की बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • परिवार में सभी लोग अपने कामों को लेकर व्यस्त रहेंगे।
  • विद्यार्थी अपनी पढाई को लेकर बहुत ध्यान दे रहे है। 
मीन राश‍ि के लिये उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करे और हनुमान मंदिर में सिंदूर का दान करें और सिंदूर को माथे पर जरूर लगाये।

Purnima vrat 2023

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत

पूर्णिमा की तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। यह पूर्णिमा इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन से पितृ पक्ष यानि श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, जो आश्विन अमावस्या पर समाप्त होते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत मुहूर्त

सितंबर 28, 2023 को 18:51:36 से पूर्णिमा आरम्भ
सितंबर 29, 2023 को 15:29:27 पर पूर्णिमा समाप्त

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजा विधि

धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-

● पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें।
● इसके बाद विधिवत तरीके से भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और उन्हें नैवेद्य व फल-फूल अर्पित करें।
● पूजन के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिये। इसके बाद पंचामृत और चूरमे का प्रसाद वितरित करना चाहिये।
● इस दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

उमा-महेश्वर व्रत

भविष्यपुराण के अनुसार उमा महेश्वर व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है लेकिन नारदपुराण के अनुसार यह व्रत भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसकी पूजा विधि इस प्रकार है-

  1. इस व्रत के प्रभाव से बुद्धिमान संतान, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  2. यह व्रत विशेष महत्व रखता है, स्त्रियों के लिए। शिव और पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करते हुए घर में पूजा स्थान पर उनका ध्यान करना चाहिए।
  3. उन्हें धूप, दीप, गंध, फूल तथा शुद्ध घी का भोजन अर्पण करना चाहिए।

कथा उमा-महेश्वर व्रत की

इस व्रत का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है। कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के दर्शन करके लौट रहे थे। रास्ते में उनकी भेंट भगवान विष्णु से हो गई। महर्षिने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी। भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी। इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित होकर बोले कि ‘तुमने भगवान शंकर का अपमान किया है। इससे तुम्हारी लक्ष्मी चली जाएगी। क्षीर सागर से भी तुम्हे हाथ धोना पड़ेगा और शेषनाग भी तुम्हारी सहायता न कर सकेंगे।’ यह सुनकर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा। इस पर महर्षि दुर्वासा ने बताया कि उमा-महेश्वर का व्रत करो, तभी तुम्हें ये वस्तुएँ मिलेंगी। तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियाँ भगवान विष्णु को पुनः मिल गईं।

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Anant Chaturdashi 2023

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अनंत चतुर्दशी

अनंत चतुर्दशी व्रत का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है, इसे हम लोग अनंत चौदस के नाम से भी जानते है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं। साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत के कई राज्यों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान कई जगहों पर धार्मिक झांकियॉं निकाली जाती है।

अनंत चतुर्दशी पूजा मुहुर्त –

दिनॉंक – 28 सितम्‍बर 2023
सुबह 6 बजकर 12 मिनट – शाम 6 बजकर 51 मिनट तक

अनंत चतुर्दशी का नियम

  • यह व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। 
  • चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में होनी चाहिए।
  • चतुर्दशी तिथि यदि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा विधि

अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है- ने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है-

  1. इस दिन प्रातःकाल स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करें।
  2. कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें या आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं।
  3. इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकरके अनंत सूत्र तैयार करें, और इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें।
  4. अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी का महत्व

पौराणिक कथाओ के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह श्रीहरि विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत श्रीहरि भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। चौदह लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह अवतार हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी की कथा

महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं। युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें।

इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।

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Parivartini Ekadashi 2023

परिवर्तिनी एकादशी

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परिवर्तिनी एकादशी

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी का क्या नाम है तथा इसकी विधि और माहात्म्य क्या है? कृपा करके आप विस्तार-पूर्वक कहिए। तब श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन् ! इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि –
25 सितम्बर सोमवार, 2023 को 07:57:am से एकादशी आरम्भ
26 सितम्बर मंगलवार, 2023 को 05:27:am पर एकादशी समाप्त
परिवर्तिनी एकादशी व्रत 2023 व्रत पारण का समय
परिवर्तिनी एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत 2023 पारण समय: 26 सितम्बर, मंगलवार प्रातः 13:24:pm से 15:49:pm तक।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधान-

  • प्रात: काल स्नान करने के पश्चात अच्छे वस्त्र धारण किए जाते हैं और सबसे पहले सूर्य देवता को प्रणाम कर, अर्घ्य दें 
  • पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। 
  • लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर पीला कपड़ा बिछायें। 
  • इस चौकी पर श्री हरि की मूर्ति स्थापित करें।
  • इसके बाद हाथ में जल लेकर मन में व्रत करने का संकल्प लें। 
  • भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए भगवान को हल्दी, अक्षत, रोली, चंदन, फल, पूष्‍प और पंचामृत  अर्पित करें। 
  • एकादशी के दिन प्रभु को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं।
  • इसके बाद एकादशी की कथा पढ़ कर आरती की जाती है और प्रभु को भोग लगायें। 
  • श्री हरि को भोग लगाते समय तुलसी का पत्ता जरूरी होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान तुलसी के बिना भाेग पूर्ण नहीं होता। 
  • शाम की पूजा के बाद तुलसी के आगे घी का दीपक जलायें। 
  • इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा करवाने के बाद भोजन ग्रहण करें।

अथ भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

यह एकादशी जयन्ती एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पापियों के पाप नाश करने के लिये इससे बढ़कर और कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अतः मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमलनयन भगवान् का कमल से पूजन करते हैं, वह अवश्य भगवान् के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अतः हरिवासर, अर्थात् एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान् करवट लेते हैं, इसलिए परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। भगवान् के वचन सुन कर युधिष्ठिर बोले कि भगवान्! मुझे अति सन्देह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रख कर क्या-क्या लीलाएं की ? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयर करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप विस्तारपूर्वक मुझ से कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन्! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा को श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था । विविध प्रकार से वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्व ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ किया करता था परन्तु इन्द्र से द्वेष के कारण उसने इन्द्र लोक तथा सभी देवताओं के लोकों को जीत लिया। तब सब देवता एकत्र होकर सोच-विचार कर भगवान् के पास गये और वृहस्पति सहित इन्द्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वंद मंत्रों द्वारा भगवान् का पूजन और स्तुति करने लगे। अतः मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यन्त तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।


इतनी वार्ता सुन कर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जर्नादन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता ? श्रीकृष्ण कहने लगे ( मैंने वामन रूपधारी ब्रह्मचारी बालक ने ) बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा – ये मुझ को तीन लोक के समान हैं और हे राजन् यह तुम को अवश्य ही देनी होगी। राजा बलि ने इसको तुच्छ सी याचना समझ कर तीन पग भूमि का संकल्प मुझ को दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ा कर यहाँ तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महः लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। सूर्य, चन्द्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इन्द्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़ कर कहा कि राजन् ! एक पद से पृथ्वी दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए अब तीसरा पग कहाँ पर रखूँ ? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूँगा। विरोचन के पुत्र बलि से कहने पर वहाँ पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई और दूसरी क्षीर सागर में शेष नाग के पष्ठ पर हुई।


परिवर्तिनी एकादशी का महात्मय
हे राजन् ! इस एकादशी को भगवान् शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसीलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान् विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। ताँबा, चाँदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चन्द्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो पाप-नाशक इस कथा को या सुनते हैं, उनको हज़ार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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Hartalika Teej 2023

हरतालिका तीज

हरतालिका तीज व्रत सनातन धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है।यह त्योहार मुख्य रूप से महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।
हरतालिका तीज मुहूर्त
17 सितंबर रविवार 2023 तृतीया प्रारंभ – 11:15 am से
तृतीया समाप्त – 18 सितंबर सोमवार 2023 12:41pm तक
प्रातःकाल मुहूर्त- 06:07 am से 08:34 am तक
समय काल : 2 घंटे 27 मिनट

हरतालिका तीज व्रत के नियम

  • हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
  • हर वर्ष हरतालिका तीज व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए। हरतालिका तीज व्रत एक रखने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। 
  • हरतालिका तीज व्रत के दिन रात में सोया नहीं जाता है। रात में भजन-कीर्तन एवं शिवजी और माँ पार्वती का पूजन करना चाहिए ।
  • हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, शादी शुदा स्त्रियां करती हैं। धर्मशास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।
  • हरतालिका तीज के दौरान महिलायें पूरे दिन व्रत रखती है, तथा इस दिन निर्जला व्रत रखती है अर्थात् पूरे दिन पानी भी नहीं पीती है।

हरतालिका तीज व्रत कथा

हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष तृतीया के दौरान मनाया जाता है। इस दिन, भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमाओं को रेत से बनाया जाता है, और वैवाहिक आनंद और संतान के लिए पूजा की जाती है। हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व पौराणिक क्था के अनुसार उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने प्रस्ताव रखा तब माता ने भगवान विष्णु से विवाह करने से मना कर दिया। क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। एक देवी पार्वती की सहेली ने उन्हें भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या करने के लिए कहा। माता पार्वती ने रेत से एक शिव लिंग बनाया और घोर तपस्या की। तपस्या के दौरान माता ने ना तो कुछ खाया और ना ही पानी पीया। भगवान शिव, देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा देवी पार्वती को दर्शन दियें। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने का वचन दिया। तब से इस दिन को हरतालिका तीज से रूप में मनाया जाने लगा।

हरितालिका तीज का महत्‍व

यह त्योहार माता पार्वती और भगवान शिव के प्रेम की कथा को याद करता है और महिलाओं की शक्ति, धर्मिक आदर्शों, और समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रमोट करता है। निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्य हरितालिका तीज के महत्व को विस्तार से समझाते हैं:

माता पार्वती और भगवान शिव की प्रेम कथा: हरितालिका तीज का महत्व मुख्य रूप से माता पार्वती और भगवान शिव की प्रेम कथा के संदर्भ में है। इसका महत्वपूर्ण हिस्सा तीज व्रत की कथा है, जिसमें माता पार्वती ने अपने प्रेम के लिए व्रत रखा था और भगवान शिव के साथ विवाह किया था। यह कथा प्रेम, समर्पण, और भगवान के प्रति विश्वास का प्रतीक है।

माता पार्वती की पूजा: हरितालिका तीज में माता पार्वती की पूजा की जाती है, जिसमें महिलाएं व्रत रखकर माता पार्वती के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट करती हैं। यह उनकी शक्ति और सौन्दर्य की प्रतीक है और माता पार्वती की कृपा को प्राप्त करने का प्रयास होता है।

महिलाओं का त्योहार: हरितालिका तीज विशेष रूप से महिलाओं के बीच लोकप्रिय है, और वे इसे व्रत और पूजा के साथ मनाती हैं। यह महिलाओं की शक्ति और समर्पण को प्रमोट करता है और उन्हें उनके पारिवारिक और समाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका देता है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व: हरितालिका तीज हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है, और यह धार्मिक आदर्शों और धार्मिकता की बढ़ती महत्वपूर्णता को दर्शाता है। साथ ही, यह समाज में समर्पण, परिपक्वता, और समाज सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है।

आरोग्य और सौन्दर्य के लिए: हरितालिका तीज के दिन महिलाएं अपने आरोग्य और सौंदर्य का ध्यान रखती हैं। वे खास रूप से नेम पत्ता, श्रृंगार, और विशेष रूप से हरिता पत्ती का उपयोग करती हैं, जो उनकी त्वचा के लिए उपयोगी होता है।

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