

चैत्र नवरात्रि 2023
जानें शुभ मुहुर्त, महत्व और नौ देवियों के विशेष मंत्र
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र नवरात्रि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। साल में चार नवरात्रि मनाई जाती है दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष। चैत्र और अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना होती है वहीं आषाढ़ और माघ की गुप्त नवरात्रि में मां अंबे की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन गुड़ी पड़वा और चेती चांद का त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रि में देवी के भक्त घटस्थापना करते हैं, नौ दिनों तक व्रत रखकर शक्ति साधना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि 2023 शुभ मुहूर्त-
चैत्र प्रतिपदा प्रारम्भ – 21 मार्च, मंगलवार, रात 10:55 से
चैत्र प्रतिपदा समाप्त – 22 मार्च, बुधवार, रात 08:23 तक
चैत्र नवरात्रि – 22 मार्च 2023 (उदया तिथि की मान्यता के अनुसार)
घटस्थापना, व्रत मुहूर्त – 22 मार्च सुबह 06:23 से 07:32 बजे तक
नवरात्रि व्रत पारण – 31 मार्च, शुक्रवार, सुबह 06:13 बजे के बाद
हर साल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। यह भारतीय सनातन धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार है, इसी दिन से हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है। जिसकी स्थापना महाराज विक्रमादित्य ने की थी, इसलिए इसे विक्रम संवत कहा जाता है। इस दिन से ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन से सम्पूर्ण प्रकृति में भी नयी शुरुआत होती है। कई सकारात्मक परिवर्तन के साथ ही नव वर्ष की शुरुआत होती है। चैत्र प्रतिपदा से अगले 9 दिनों तक माँ भगवती के 9 रूपों की उपासना शुरू होती है जिसे चैत्र की नवरात्रि कहा जाता है। नवमी तिथि पर श्रीराम चन्द्र जी के जन्मदिवस रामनवमी के दिन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है और दशमी तिथि को व्रत पारण के साथ नवरात्रि का समापन होता है। इस पावन त्यौहार में कई तरह की आध्यात्मिक शक्तियों को पाने के लिए साधक गण माँ दुर्गा की विशेष पूजा-अनुष्ठान और साधना करते हैं।
पूजा विधि-
नवरात्र के दिन प्रातः जल्दी उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर 9 दिन तक व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष की शुरुआत करनी चाहिए। पूरे वर्ष मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहने का संकल्प लेना चाहिए और माँ दुर्गा का मन ही मन स्मरण करते हुए प्रत्येक कार्य करने चाहिये। सुबह माता दुर्गा की घर या मन्दिर में जाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए। माता को खीर का भोग लगाना चाहिए और सभी को प्रसाद देना चाहिए। यदि नवमी तिथि दो दिन पड़ रही हो, तब उस स्थिति में पहले दिन उपवास रखा जाएगा और दूसरे दिन पारण होगा। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। जैसा की नवमी नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की षोडषोपचार पूजा करके विसर्जन करना चाहिए।
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र नवरात्रि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। साल में चार नवरात्रि मनाई जाती है दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष। चैत्र और अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना होती है वहीं आषाढ़ और माघ की गुप्त नवरात्रि में मां अंबे की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन गुड़ी पड़वा और चेती चांद का त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रि में देवी के भक्त घटस्थापना करते हैं, नौ दिनों तक व्रत रखकर शक्ति साधना की जाती है।
चैत्र नवरात्रि के नौ दिन-
22 मार्च 2023 – चैत्र प्रतिपदा तिथि- मां शैलपुत्री पूजा
23 मार्च 2023 – चैत्र द्वितीया तिथि- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
24 मार्च 2023 – चैत्र तृतीया तिथि- मां चंद्रघण्टा पूजा
25 मार्च 2023 – चैत्र चतुर्थी तिथि- मां कुष्माण्डा पूजा
26 मार्च 2023 – चैत्र पंचमी तिथि- मां स्कंदमाता पूजा
27 मार्च 2023 – चैत्र षष्ठी तिथि- मां कात्यायनी पूजा
28 मार्च 2023 – चैत्र सप्तमी तिथि- मां कालरात्री पूजा
29 मार्च 2023 – चैत्र अष्टमी तिथि- मां महागौरी पूजा, महाष्टमी
30 मार्च 2023 – चैत्र नवमी तिथि- मां सिद्धीदात्री पूजा, दुर्गा महानवमी
नौ दिन नौ देवियां और सिद्ध मंत्र
चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा 2 अप्रैल 2022 को है। नवरात्रि व्रत कुल नौ दिन तक चलेंगे। नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक अलग -अलग देवियों की पूजा की जाती है। हर देवी का स्वरुप और महत्व अलग-अलग है। ऐसे ही देवियों की पूजा विधि और उन्हें प्रसन्न करने के मंत्र भी अलग-अलग है। एस्ट्रो अरूण पंडित के द्वारा यहां बताया जा रहा है चैत्र नवरात्रि में देवि के नौ स्वरूप और उन्हें प्रसन्न करने के विशेष मंत्र-
शैलपुत्री-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शैलपुत्री देवी, देवराज हिमालय की बेटी हैं। यही मां नव दुर्गा का प्रथम रूप हैं। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा अर्चना की जाती है।
शैलपुत्री का मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
मंत्र का फल- मान्यता के अनुसार, इस मंत्र के जाप से शरीर निरोगी रहता है और बीमारियां पास नहीं आती हैं।
ब्रह्मचारिणी -
नवदुर्गा का दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी हैं। इनके हाथों में कमण्डल और माला है। मान्यता के अनुसार, माता पार्वती के घोर तप करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इसी कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी देवी पड़ा।
ब्रह्मचारिणी माता का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मंत्र का फल – इस मंत्र के सटीक जाप से सौभाग्य का वरदान मिलता है।
मां चंद्रघंटा-
मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। देवी अपने दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और सिंह पर बैठी हुई असुरों के संहार के लिए तैयार रहती हैं।
मां चंद्रघंटा का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने। श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥
मंत्र का फल – इस मंत्र के प्रभाव से जातक के पाप और परेशानियों का क्षय होता है।
मां कुष्मांडा-
कुष्मांडा माता का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मंत्र का फल- इस मंत्र के प्रभाव से जातक के यश में वृद्धि होती है और व्याधियों का नाश होता है।
मां स्कंदमाता-
स्कंदमाता का मंत्र- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
मंत्र का फल – ये मंत्र भक्तों को शुभ फल देने वाला और उनकी इच्छा पूरी करने वाला माना जाता है।
मां कात्यायनी-
मां कात्यायनी का मंत्र- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 3। कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।
मंत्र का फल – विवाह में बाधा आ रही है तो इस मंत्र का जाप करें।
मां कालरात्रि–
मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। हाथ में खड्ग और नरमुण्ड धारण करने वाली कालरात्रि दुष्टों का नाश कर भक्तों की डर से मुक्त करने वाली मानी गई हैं।
मां कालरात्रि का मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊँ कालरात्रि दैव्ये नम:।
मंत्र का फल- मान्यता है कि मंत्र के जाप से जातक को शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है।
मां महागौरी-
नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरुप की पूजा का विधान है। मान्यता के अनुसार, तपस्या के कारण देवी का शरीर श्याम हो गया था लेकिन शिव जी ने जब उन पर अभिमंत्रित जल छिड़का तो वे पुनः गौर वर्ण हो गईं।
मां महागौरी का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मंत्र का फल- ये मंत्र जातक की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है।
मां सिद्धिदात्री-
मां सिद्धिदात्री का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
मंत्र का फल- मान्यताओं के अनुसार इस मंत्र के विधिवत जाप से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।


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