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October Prediction-2023

अक्टूबर राशिफल 2023

सौगातों या समस्या से भरा रहेगा अक्टूबर का ये महीना आपके लिये। अक्टूबर के महीने में शनि कुछ राशियों में वक्री हो रहे है, जिससे कुछ राशियों में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते है। इस महीने ग्रहों की चाल तेजी से बदलने वाली है। ऐसे में सभी 12 राशियों पर बड़े ही रोचक प्रभाव देखे जाने वाले हैं, कुछ राशियों के लिए यह महीना खुशहाली से भरा होगा, लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनके लिए अक्टूबर का यह महीना अशुभ परिणामों से भरा हो सकता है।

मेष-

  • कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है। 
  • जॉब के लिये विदेश से शुभ समाचार प्राप्त हो सकते हैं। 
  • आर्थिक पक्ष ठीक-ठाक रहेगा। 
  • बिज़नेस में कुछ यूनिक करने से मिलेगा फायदा। 
  • इस महीने घबराहट और तनाव हो सकता है। 
  • प्रेमी जीवन शानदार रहेगा। 
  • विद्यार्थियों के लिये सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते है। 

मेष राशि के लिये उपाय- शनिवार को मंदिर जाकर हनुमान चालीसा या हनुमान अष्टक का पाठ करें। 

वृषभ-

  • कार्यक्षेत्र में संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। 
  • पेट की खराबी, आँखों में जलन और कंधों में चोट लग सकती है।
  • आर्थिक पक्ष में खर्च अधिक होंगे। 
  • शादीशुदा जीवन में अशांति हो सकती है। 
  • विद्यार्थी अपनी पढाई को लेकर कंफ्यूज हो सकते हैं। 
वृषभ राशि के लिये उपाय- 108 बार ॐ दुर्गाय नमः मंत्र का जाप करके दिन की शुरुवात करें।

मिथुन-

  • कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है।
  • इस माह आप अपने आप को निखारेंगे।  
  • आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। 
  • आपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • प्रेमी जीवन सुखद बीतेगा। 
  • किसी और की वजह से पढ़ाई में नुकसान हो सकता है। 
मिथुन राशि के लिये उपाय- रोज़ाना शाम के समय चंद्र साधना जरूर करें।

कर्क-

  • नई जॉब के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है। 
  • इस माह 12-18 तारीख का संघर्ष का समय होगा। 
  • किसी को उधारी देने से बचे। 
  • माता-पिता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 
  • गलतफहमी की वजह से रिश्ते खराब हो सकते हैं। 
  • विद्यार्थी किसी प्रेमी उलझन में फस कर अपना समय बर्बाद कर सकते है।

 

कर्क राशि के लिये उपाय- सोमवार के दिन ‘ॐ सोमाय नमः’ मंत्र का जप 21 बार करें। 

सिंह-

  • ये महीना कार्यक्षेत्र में सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला है। 
  • आर्थिक पक्ष में कमाई के नये अवसर बन सकते हैं।
  • इस माह पैसों को लेकर सतर्कता बरतें। 
  • बालों का झड़ना, आँखों में जलन हो सकती है। 
  • आपका लव रिलेशन और मजबूत हो जायेगा। 
  • विद्यार्थिओं का कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ेगा।
सिंह राशि के लिये उपाय- आदित्यह्रदयस्त्रोतं का पाठ करके दिन की शुरुवात करे।

कन्या-

  • कार्यक्षेत्र में वर्कलोड बढ़ सकता है। 
  • इस महीने आपके खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • सिरदर्द, और आँखों में दर्द हो सकता है।
कन्‍या राशि के लिये उपाय – माँ लक्ष्मी की पूजा और ‘श्रीं श्रीं श्रीं’  मंत्र का जप 108 बार प्रतिदिन करें। 

तुला-

  • कार्यक्षेत्र में कोई भी कार्य देरी से हो सकता है। 
  • आपके कार्य में अड़चने आ सकती है। 
  • आपकी कमाई में बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • Stress, anxiety हो सकती है। 
  • प्रेमी संबंध में अनबन हो सकती है।  
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर बहुत ईमानदार दिखेंगें।
तुला राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 41 बार ‘ॐ केतवाय नमः’ मंत्र का जप करे।

वृश्चिक-

  • कार्यक्षेत्र में फोकस की कमी दिखाई दे सकती है। 
  • ये महीना बिजनेसमैन के लिये साधारण रहेगा । 
  • जॉब में तनाव हो सकता है। 
  • खर्च करते समय ध्यान रखें। 
  • माँ को पेट की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। 
  • प्रेमी जीवन में सतर्कता बरते। 
  • विद्यार्थी अपनी भावनाओं में नियंत्रण रखे।
वृश्चिक राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 27 बार ‘ॐ हं हनुमते नमः’ मंत्र का जप करे।

धनु-

  • बेरोजगारों के लिए विदेश में नौकरी के संयोग बन रहे है।
  • इस महीने आपको भाग्य का सहारा मिलेगा। 
  • आपके विवाह के योग बन रहे है। 
  • परिवार में खुशनुमा माहौल रहेगा। 
  • विद्यार्थियों को बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।
धनु राशि के लिये उपाय- गरीब लोगों को भोजन जरूर करायें।   

मकर-

  • करियर में उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। 
  • बिज़नेस में नये अवसर प्राप्त होंगे। 
  • आर्थिक पक्ष को लेकर उतार चढ़ाव का सामना हो सकता है। 
  • आँखों में जलन और सिर दर्द हो सकता है। 
  • प्रेमी जीवन धीरे-धीरे ठीक हो रहा है। 
  • विद्यार्थियों को अपनी मेहनत के परिणाम मिलने लगेंगे। ।
मकर राशि के लिये उपाय- प्रतिदिन 21 बार ॐ हन: हनुमते नमः मंत्र का जप करे। 

कुंभ-

  • कार्यक्षेत्र में आप अपनी प्रयोरिटी को आगे रखकर कार्य करोगे। 
  • इस महीने आप कहीं घूमने जा सकते है। 
  • यह माह आर्थिक पक्ष के लिये ठीक ठाक रहेगा। 
  • पीट दर्द और आलस्य का सामना करना पड़ सकता है। 
  • प्रेमी जीवन में बहुत नोकझोंक दिखाई दे रही है। 
  • अपनी वाणी में नियंत्रण रखे। 
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में कुछ परिवर्तन कर सकते है। 
कुंभ राशि के लिये उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करे और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जाप प्रतिदिन 11 बार जरूर करे।

मीन-

  • शनि की साढ़ेसाती से कार्यक्षेत्र में भारीपन लगेगा। 
  • सेहत का बहुत ध्यान रखें। 
  • पैसों की बढ़ोत्तरी हो सकती है। 
  • परिवार में सभी लोग अपने कामों को लेकर व्यस्त रहेंगे।
  • विद्यार्थी अपनी पढाई को लेकर बहुत ध्यान दे रहे है। 
मीन राश‍ि के लिये उपाय- सात मुखी रुद्राक्ष धारण करे और हनुमान मंदिर में सिंदूर का दान करें और सिंदूर को माथे पर जरूर लगाये।

Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

चैत्र नवरात्रि: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र माह की पहली तिथि से नवरात्रि 2024 की शुरुआत होती है, जिस दिन हिन्दू नववर्ष का भी आरंभ होता है। इस दिन से

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चैत्र नवरात्रि 2024!

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Purnima vrat 2023

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत

पूर्णिमा की तिथि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा की जाती है, साथ ही इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। यह पूर्णिमा इसलिए भी महत्व रखती है क्योंकि इसी दिन से पितृ पक्ष यानि श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, जो आश्विन अमावस्या पर समाप्त होते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत मुहूर्त

सितंबर 28, 2023 को 18:51:36 से पूर्णिमा आरम्भ
सितंबर 29, 2023 को 15:29:27 पर पूर्णिमा समाप्त

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत पूजा विधि

धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है-

● पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल जाग कर व्रत का संकल्प लें और किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करें।
● इसके बाद विधिवत तरीके से भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और उन्हें नैवेद्य व फल-फूल अर्पित करें।
● पूजन के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिये। इसके बाद पंचामृत और चूरमे का प्रसाद वितरित करना चाहिये।
● इस दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

उमा-महेश्वर व्रत

भविष्यपुराण के अनुसार उमा महेश्वर व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है लेकिन नारदपुराण के अनुसार यह व्रत भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इसकी पूजा विधि इस प्रकार है-

  1. इस व्रत के प्रभाव से बुद्धिमान संतान, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  2. यह व्रत विशेष महत्व रखता है, स्त्रियों के लिए। शिव और पार्वती जी की प्रतिमा को स्थापित करते हुए घर में पूजा स्थान पर उनका ध्यान करना चाहिए।
  3. उन्हें धूप, दीप, गंध, फूल तथा शुद्ध घी का भोजन अर्पण करना चाहिए।

कथा उमा-महेश्वर व्रत की

इस व्रत का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है। कहा जाता है कि एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के दर्शन करके लौट रहे थे। रास्ते में उनकी भेंट भगवान विष्णु से हो गई। महर्षिने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी। भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी। इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित होकर बोले कि ‘तुमने भगवान शंकर का अपमान किया है। इससे तुम्हारी लक्ष्मी चली जाएगी। क्षीर सागर से भी तुम्हे हाथ धोना पड़ेगा और शेषनाग भी तुम्हारी सहायता न कर सकेंगे।’ यह सुनकर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा। इस पर महर्षि दुर्वासा ने बताया कि उमा-महेश्वर का व्रत करो, तभी तुम्हें ये वस्तुएँ मिलेंगी। तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियाँ भगवान विष्णु को पुनः मिल गईं।

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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Anant Chaturdashi 2023

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अनंत चतुर्दशी

अनंत चतुर्दशी व्रत का सनातन धर्म में बड़ा महत्व है, इसे हम लोग अनंत चौदस के नाम से भी जानते है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनंत भगवान (भगवान विष्णु) की पूजा के पश्चात बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता है। ये कपास या रेशम से बने होते हैं और इनमें चौदह गाँठें होती हैं। साथ ही अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश प्रतिमा का विसर्जन भी किया जाता है इसलिए इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत के कई राज्यों में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान कई जगहों पर धार्मिक झांकियॉं निकाली जाती है।

अनंत चतुर्दशी पूजा मुहुर्त –

दिनॉंक – 28 सितम्‍बर 2023
सुबह 6 बजकर 12 मिनट – शाम 6 बजकर 51 मिनट तक

अनंत चतुर्दशी का नियम

  • यह व्रत भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। 
  • चतुर्दशी तिथि सूर्य उदय के पश्चात दो मुहूर्त में होनी चाहिए।
  • चतुर्दशी तिथि यदि सूर्य उदय के बाद दो मुहूर्त से पहले ही समाप्त हो जाए, तो अनंत चतुर्दशी पिछले दिन मनाये जाने का विधान है। इस व्रत की पूजा और मुख्य कर्मकाल दिन के प्रथम भाग में करना शुभ माने जाते हैं। यदि प्रथम भाग में पूजा करने से चूक जाते हैं, तो मध्याह्न के शुरुआती चरण में करना चाहिए। मध्याह्न का शुरुआती चरण दिन के सप्तम से नवम मुहूर्त तक होता है।

अनंत चतुर्दशी व्रत और पूजा विधि

अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा करने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है- ने का विधान है। यह पूजा दोपहर के समय की जाती है। इस व्रत की पूजन विधि इस प्रकार है-

  1. इस दिन प्रातःकाल स्नान ध्यान के बाद व्रत का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करें।
  2. कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करें या आप चाहें तो भगवान विष्णु की तस्वीर भी लगा सकते हैं।
  3. इसके बाद एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकरके अनंत सूत्र तैयार करें, और इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखें।
  4. अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें। पूजन के बाद अनंत सूत्र को बाजू में बांध लें।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

पुरुष अनंत सूत्र को दांये हाथ में और महिलाएं बांये हाथ में बांधे। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी का महत्व

पौराणिक कथाओ के अनुसार महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। यह श्रीहरि विष्णु का दिन माना जाता है। अनंत श्रीहरि भगवान ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। चौदह लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए वह स्वयं भी चौदह अवतार हुए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ यदि कोई व्यक्ति श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है, तो उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी की कथा

महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पांडवों को हरा दिया था। इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा। इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे। भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि, हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं। युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें।

इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि, अनंत भगवान कौन हैं? इनके बारे में हमें बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था। इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत: इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे। इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन: उन्हें हस्तिनापुर का राज-पाट मिला।

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Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

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चैत्र नवरात्रि 2024!

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Parivartini Ekadashi 2023

परिवर्तिनी एकादशी

parivartini ekadashi mahurat tithi astro arun pandit ji

परिवर्तिनी एकादशी

युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी का क्या नाम है तथा इसकी विधि और माहात्म्य क्या है? कृपा करके आप विस्तार-पूर्वक कहिए। तब श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन् ! इस पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष को देने वाली तथा सब पापों का नाश करने वाली, उत्तम वामन एकादशी का माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
परिवर्तिनी एकादशी की तिथि –
25 सितम्बर सोमवार, 2023 को 07:57:am से एकादशी आरम्भ
26 सितम्बर मंगलवार, 2023 को 05:27:am पर एकादशी समाप्त
परिवर्तिनी एकादशी व्रत 2023 व्रत पारण का समय
परिवर्तिनी एकादशी व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। परिवर्तिनी एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी व्रत 2023 पारण समय: 26 सितम्बर, मंगलवार प्रातः 13:24:pm से 15:49:pm तक।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत विधान-

  • प्रात: काल स्नान करने के पश्चात अच्छे वस्त्र धारण किए जाते हैं और सबसे पहले सूर्य देवता को प्रणाम कर, अर्घ्य दें 
  • पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करें। 
  • लकड़ी की चौकी बिछाकर उस पर पीला कपड़ा बिछायें। 
  • इस चौकी पर श्री हरि की मूर्ति स्थापित करें।
  • इसके बाद हाथ में जल लेकर मन में व्रत करने का संकल्प लें। 
  • भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए भगवान को हल्दी, अक्षत, रोली, चंदन, फल, पूष्‍प और पंचामृत  अर्पित करें। 
  • एकादशी के दिन प्रभु को तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं।
  • इसके बाद एकादशी की कथा पढ़ कर आरती की जाती है और प्रभु को भोग लगायें। 
  • श्री हरि को भोग लगाते समय तुलसी का पत्ता जरूरी होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान तुलसी के बिना भाेग पूर्ण नहीं होता। 
  • शाम की पूजा के बाद तुलसी के आगे घी का दीपक जलायें। 
  • इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा करवाने के बाद भोजन ग्रहण करें।

अथ भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

यह एकादशी जयन्ती एकादशी भी कहलाती है। इसका व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पापियों के पाप नाश करने के लिये इससे बढ़कर और कोई उपाय नहीं। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन मेरी (वामन रूप की) पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। अतः मोक्ष की इच्छा करने वाले मनुष्य इस व्रत को अवश्य करें। जो कमलनयन भगवान् का कमल से पूजन करते हैं, वह अवश्य भगवान् के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अतः हरिवासर, अर्थात् एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान् करवट लेते हैं, इसलिए परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। भगवान् के वचन सुन कर युधिष्ठिर बोले कि भगवान्! मुझे अति सन्देह हो रहा है कि आप किस प्रकार सोते और करवट लेते हैं तथा किस तरह राजा बलि को बांधा और वामन रूप रख कर क्या-क्या लीलाएं की ? चातुर्मास के व्रत की क्या विधि है तथा आपके शयर करने पर मनुष्य का क्या कर्तव्य है। सो आप विस्तारपूर्वक मुझ से कहिए। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन्! अब आप सब पापों को नष्ट करने वाली कथा को श्रवण करें। त्रेतायुग में बलि नामक एक दैत्य था। वह मेरा परम भक्त था । विविध प्रकार से वेद सूक्तों से मेरा पूजन किया करता था और नित्व ही ब्राह्मणों का पूजन तथा यज्ञ किया करता था परन्तु इन्द्र से द्वेष के कारण उसने इन्द्र लोक तथा सभी देवताओं के लोकों को जीत लिया। तब सब देवता एकत्र होकर सोच-विचार कर भगवान् के पास गये और वृहस्पति सहित इन्द्रादिक देवता प्रभु के निकट जाकर और नतमस्तक होकर वंद मंत्रों द्वारा भगवान् का पूजन और स्तुति करने लगे। अतः मैंने वामन रूप धारण करके पांचवां अवतार लिया और फिर अत्यन्त तेजस्वी रूप से राजा बलि को जीत लिया।


इतनी वार्ता सुन कर राजा युधिष्ठिर बोले कि हे जर्नादन! आपने वामन रूप धारण करके उस महाबली दैत्य को किस प्रकार जीता ? श्रीकृष्ण कहने लगे ( मैंने वामन रूपधारी ब्रह्मचारी बालक ने ) बलि से तीन पग भूमि की याचना करते हुए कहा – ये मुझ को तीन लोक के समान हैं और हे राजन् यह तुम को अवश्य ही देनी होगी। राजा बलि ने इसको तुच्छ सी याचना समझ कर तीन पग भूमि का संकल्प मुझ को दे दिया और मैंने अपने त्रिविक्रम रूप को बढ़ा कर यहाँ तक कि भूलोक में पद, भुवर्लोक में जंघा, स्वर्गलोक में कमर, महः लोक में पेट, जनलोक में हृदय, यमलोक में कंठ की स्थापना कर सत्यलोक में मुख, उसके ऊपर मस्तक स्थापित किया। सूर्य, चन्द्रमा आदि सब ग्रह गण, योग, नक्षत्र, इन्द्रादिक देवता और शेष आदि सब नागगणों ने विविध प्रकार से वेद सूक्तों से प्रार्थना की। तब मैंने राजा बलि का हाथ पकड़ कर कहा कि राजन् ! एक पद से पृथ्वी दूसरे से स्वर्गलोक पूर्ण हो गए अब तीसरा पग कहाँ पर रखूँ ? तब बलि ने अपना सिर झुका लिया और मैंने अपना पैर उसके मस्तक पर रख दिया जिससे मेरा वह भक्त पाताल को चला गया। फिर उसकी विनती और नम्रता को देखकर मैंने कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे निकट ही रहूँगा। विरोचन के पुत्र बलि से कहने पर वहाँ पर भाद्रपद शुक्ल पक्ष परिवर्तिनी एकादशी के दिन बलि के आश्रम पर मेरी मूर्ति स्थापित हुई और दूसरी क्षीर सागर में शेष नाग के पष्ठ पर हुई।


परिवर्तिनी एकादशी का महात्मय
हे राजन् ! इस एकादशी को भगवान् शयन करते हुए करवट लेते हैं, इसीलिए तीनों लोकों के स्वामी भगवान् विष्णु का उस दिन पूजन करना चाहिए। ताँबा, चाँदी, चावल और दही का दान करना उचित है। रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए। जो विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत करते हैं, वे सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाकर चन्द्रमा के समान प्रकाशित होते हैं और यश पाते हैं। जो पाप-नाशक इस कथा को या सुनते हैं, उनको हज़ार अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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Ram Navami 2024| राम नवमी 2024

चैत्र नवरात्रि: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र माह की पहली तिथि से नवरात्रि 2024 की शुरुआत होती है, जिस दिन हिन्दू नववर्ष का भी आरंभ होता है। इस दिन से

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Hartalika Teej 2023

हरतालिका तीज

हरतालिका तीज व्रत सनातन धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है।यह त्योहार मुख्य रूप से महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।
हरतालिका तीज मुहूर्त
17 सितंबर रविवार 2023 तृतीया प्रारंभ – 11:15 am से
तृतीया समाप्त – 18 सितंबर सोमवार 2023 12:41pm तक
प्रातःकाल मुहूर्त- 06:07 am से 08:34 am तक
समय काल : 2 घंटे 27 मिनट

हरतालिका तीज व्रत के नियम

  • हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।
  • हर वर्ष हरतालिका तीज व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए। हरतालिका तीज व्रत एक रखने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। 
  • हरतालिका तीज व्रत के दिन रात में सोया नहीं जाता है। रात में भजन-कीर्तन एवं शिवजी और माँ पार्वती का पूजन करना चाहिए ।
  • हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, शादी शुदा स्त्रियां करती हैं। धर्मशास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।
  • हरतालिका तीज के दौरान महिलायें पूरे दिन व्रत रखती है, तथा इस दिन निर्जला व्रत रखती है अर्थात् पूरे दिन पानी भी नहीं पीती है।

हरतालिका तीज व्रत कथा

हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष तृतीया के दौरान मनाया जाता है। इस दिन, भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमाओं को रेत से बनाया जाता है, और वैवाहिक आनंद और संतान के लिए पूजा की जाती है। हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व पौराणिक क्था के अनुसार उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से करने प्रस्ताव रखा तब माता ने भगवान विष्णु से विवाह करने से मना कर दिया। क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। एक देवी पार्वती की सहेली ने उन्हें भगवान शिव से विवाह करने के लिए तपस्या करने के लिए कहा। माता पार्वती ने रेत से एक शिव लिंग बनाया और घोर तपस्या की। तपस्या के दौरान माता ने ना तो कुछ खाया और ना ही पानी पीया। भगवान शिव, देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा देवी पार्वती को दर्शन दियें। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने का वचन दिया। तब से इस दिन को हरतालिका तीज से रूप में मनाया जाने लगा।

हरितालिका तीज का महत्‍व

यह त्योहार माता पार्वती और भगवान शिव के प्रेम की कथा को याद करता है और महिलाओं की शक्ति, धर्मिक आदर्शों, और समाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रमोट करता है। निम्नलिखित महत्वपूर्ण तथ्य हरितालिका तीज के महत्व को विस्तार से समझाते हैं:

माता पार्वती और भगवान शिव की प्रेम कथा: हरितालिका तीज का महत्व मुख्य रूप से माता पार्वती और भगवान शिव की प्रेम कथा के संदर्भ में है। इसका महत्वपूर्ण हिस्सा तीज व्रत की कथा है, जिसमें माता पार्वती ने अपने प्रेम के लिए व्रत रखा था और भगवान शिव के साथ विवाह किया था। यह कथा प्रेम, समर्पण, और भगवान के प्रति विश्वास का प्रतीक है।

माता पार्वती की पूजा: हरितालिका तीज में माता पार्वती की पूजा की जाती है, जिसमें महिलाएं व्रत रखकर माता पार्वती के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण प्रकट करती हैं। यह उनकी शक्ति और सौन्दर्य की प्रतीक है और माता पार्वती की कृपा को प्राप्त करने का प्रयास होता है।

महिलाओं का त्योहार: हरितालिका तीज विशेष रूप से महिलाओं के बीच लोकप्रिय है, और वे इसे व्रत और पूजा के साथ मनाती हैं। यह महिलाओं की शक्ति और समर्पण को प्रमोट करता है और उन्हें उनके पारिवारिक और समाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका देता है।

धार्मिक और सामाजिक महत्व: हरितालिका तीज हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है, और यह धार्मिक आदर्शों और धार्मिकता की बढ़ती महत्वपूर्णता को दर्शाता है। साथ ही, यह समाज में समर्पण, परिपक्वता, और समाज सेवा की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है।

आरोग्य और सौन्दर्य के लिए: हरितालिका तीज के दिन महिलाएं अपने आरोग्य और सौंदर्य का ध्यान रखती हैं। वे खास रूप से नेम पत्ता, श्रृंगार, और विशेष रूप से हरिता पत्ती का उपयोग करती हैं, जो उनकी त्वचा के लिए उपयोगी होता है।

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गणेश चतुर्थी 2023

गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी व्रत हर भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाएगी। इस चतुर्थी को सिद्धि विनायक व्रत के नाम से भी जाना जाता है। देश के कई भागों में इस दिन गणेशजी की प्रतिमा को स्थापित कर भक्तजन गणेश जी की बहुत श्रद्धा भाव से पूजा करते हैं। 

गणेश चतुर्थी तिथि  

18 सितंबर सोमवार 2023 चतुर्थी प्रारंभ  – 11:20 am से

19 सितंबर मंगलवार 2023 चतुर्थी समाप्त – 01:26 pm तक

गणेश चतुर्थी मुहूर्त्त 

गणेश पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त :11:01am से 1:26 pm तक

18, सितंबर को जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है :12:41 pm से 08:10 pm तक 

19, सितंबर को जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है :09:45 pm से 08:42 pm तक

गणेश चतुर्थी का महत्व

गणेश चतुर्थी यानी भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व होने की वजह यह है कि इसी दिन मंगलमूर्ति, विघ्नहर्ता, गजानन गणेशजी का जन्म दोपहर के समय हुआ था। इसलिए गणेश चतुर्थी को गणेश जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करके कई भक्त 10 दिनों तक इनकी पूजा करते हैं जबकि कुछ भक्त एक दिन, तीन दिन, सात दिन, के लिए भी गणेश प्रतिमा को स्थापित करते हैं। 

मान्यता हैं कि गणेश चतुर्थी के दिन गणेशजी की प्रतिमा को घर में स्थापित कर इनकी श्रद्धा भाव से जो लोग पूजा करते हैं उनके तमाम संकट गणेशजी हर लेते हैं। गणेशजी को इन वस्‍तुओं का भोग गणेशजी की पूजा में मोदक का भोग लगाना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा मोतीचूर के लड्डू और बेसन के लड्डू भी बप्पा को बेहद प्रिय माने जाते हैं। गणेश उत्सव के पांचवें और छठे दिन खीर का भोग लगाना अच्छा माना जाता है। गणेशजी को मखाने से बनी खीर का भोग लगाया जाता है।

1. भगवान गणेश का महत्व:

गणेश चतुर्थी का महत्व प्राथमिक रूप से भगवान गणेश के महत्व में होता है। भगवान गणेश हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और उन्हें ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिदाता’ के नाम से जाना जाता है। वे आपके जीवन में आने वाले सभी विघ्नों को दूर करते हैं और सफलता, सुख, और संपत्ति की वरदान देते हैं।

2. आध्यात्मिक महत्व:

गणेश चतुर्थी धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होता है। इस त्योहार के माध्यम से, भक्त भगवान गणेश की पूजा और आराधना करते हैं, जिससे उनकी आत्मा को शुद्धि और शांति मिलती है। इसके बाद, वे अपने जीवन में धार्मिकता को बढ़ावा देते हैं और धार्मिक मूल्यों का पालन करते हैं।

3. परंपरागत महत्व:

गणेश चतुर्थी भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसे दिवाली, होली, और दुर्गा पूजा के साथ भारत के मुख्य त्योहारों में से एक माना जाता है। इस उत्सव को परंपरागत रूप से पूरे धूमधाम के साथ मनाया जाता है, और लोग अपनी परंपराओं और संस्कृति को महत्वपूर्ण रूप से महसूस करते हैं।

5. विविधता का प्रतीक:

गणेश चतुर्थी का महत्व भारत की विविधता का प्रतीक भी है। इस उत्सव को भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है, और वहाँ की स्थानीय परंपराओं और आदतों को प्रमोट करता है।

4. सामाजिक महत्व:

गणेश चतुर्थी का महत्व सामाजिक दृष्टिकोण से भी है। इस उत्सव के दौरान, लोग एक साथ आकर्षित होते हैं और समुदाय के सदस्यों के साथ वक्त बिताते हैं। यह उत्सव समाज में एकता और बंधुत्व की भावना को मजबूत करता है और समाज में सद्गुणों को प्रोत्साहित करता है।

6. विघ्नों के नाशक:
गणेश चतुर्थी के द्वारा, लोग अपने जीवन से आने वाले विघ्नों का नाश करते हैं। इस त्योहार के माध्यम से भगवान गणेश के आगमन के साथ ही सभी बुराईयों और दुखों का नाश होता है और सफलता की प्राप्ति होती है।

7. एकता का प्रतीक:

गणेश चतुर्थी के दौरान, लोग एक साथ आकर्षित होते हैं और समाज में एकता का प्रतीक प्रस्तुत करते हैं। इस त्योहार के माध्यम से लोग सामाजिक और सांस्कृतिक मिलन स्थापित करते हैं और आपसी सदयता को प्रमोट करते हैं।

गणेश चतुर्थी पर न करें ये काम

  1. मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए-

चन्द्र दर्शन दोष निवारण मंत्र –

सिंहःप्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। 

सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।। 

इस मंत्र के जाप और ऊपर बताए गए उपाय से आप चंद्रदर्शन के कलंक से दोषमुक्त हो सकते हैं।

  1. गणेश चतुर्थी पर अपने घर में भूलकर भी गणपति की आधी-अधूरी बनी या फिर खंडित मूर्ति की स्थापना या पूजा नहीं करना चाहिए। 
  2. गणेश चतुर्थी की पूजा में भूलकर भी तुलसी दल या केतकी के फूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 
  3. गणपति की पूजा में बासी या मुरझाए हुए फूल भी नहीं चढ़ाना चाहिए। 
  4. गणेश चतुर्थी के दिन व्रत एवं पूजन करने वाले व्यक्ति को तन-मन से पवित्र रहते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन गणपति की पूजा एवं व्रत रखने वाले व्यक्ति को भूलकर भी शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए
  5. गणेश चतुर्थी के दिन गणपति को चढ़ाए हुए प्रसाद एवं फलाहार का सेवन करना चाहिए।  गणपति की पूजा का पूरा फल पाने के लिए गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। गणपति की कृपा पाने के लिए व्यक्ति को मन ही मन में गणेश मंत्र का जप करते रहना चाहिए। 

 

गणेश चतुर्थी पर जरूर करें ये काम

  1. गणेश चतुर्थी के दिन गणपति को अपने घर के ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा में विधि-विधान से बिठाएं और इसी दिशा की ओर मुख करके पूजा भी करें। 
  2.  गणपति को लाल रंग बहुत ज्यादा प्रिय है, इसलिए आज गणेश चतुर्थी की पूजा लाल रंग के वस्त्र के पहनकर करें और गणपति की पूजा में लाल रंग के पुष्प, फल, और लाल चंदन का प्रयोग करें 
  3. जीवन में आ रही बाधाओं को दूर और मनचाहा वरदान पाने के लिए गणपति की पूजा में आप दूर्वा जरूर चढ़ाएं यदि आप गणेश चतुर्थी पर अपने घर में गणपति बिठा रहे हैं तो उनकी समय पर पूजा एवं आरती करें। 
  4. इसी प्रकार गणपति को दिन में 3 बार भोग लगाएं। 
  5. गणपति की पूजा का शीघ्र फल पाने के लिए आज उनका प्रिय भोग मोदक और मोतीचूर का लड्डू और केला फल जरूर चढ़ाएं।

गणेश स्‍थापना विधि 

सामग्री (Materials): गणेश मूर्ति (Ganesh Idol)

अच्छमनीय पूजन सामग्री (गंगाजल, गुड़, दूर्वा, इलायची, इलायची की दानी, तुलसी, फूल, गंध, सुपारी, पान, बत्ती, धूप, कलवा, अक्षत, रुपा, आदि)

पूजा थाली (Pooja Plate), गणेश चौरस (Ganesh Chauras),गणेश आरती किताब (Ganesh Aarti Book)

पूजा असन (Pooja Aasan),कपूर और आरती दिया (Camphor and Aarti Diya)

पुष्प (Flowers), फल (Fruits), नैवेद्य (Prasada), वस्त्र (Cloth), धूप (Incense Sticks)

गणेश स्थापना की विधि:

साफ़ सफाई (Cleaning): गणेश स्थापना के लिए सबसे पहले अपने घर का सफ़ाई धोबन, पोंछा, और सभी कमरों में साफ़ पानी से करें। गणेश की मूर्ति के लिए एक साफ़ और शुद्ध स्थान चुनें।

गणेश मूर्ति की स्थापना (Placing Ganesh Idol): अब गणेश मूर्ति को ध्यान से निकालें और उसे गणेश चौरस पर स्थापित करें। मूर्ति को आराधना के लिए जगह पर रखें, जिसमें वह पूज्य और दृढ़ रूप से स्थित हो सके।

पूजा स्थल की सजावट (Decorating the Pooja Area): गणेश स्थापना स्थल को सजाने के लिए वस्त्र, फूल, धूप, दिया, और अन्य पूजा सामग्री से सजाएं।

अच्छमनीय (Purification): पूजा की शुरुआत गणेश और पूजा सामग्री की शुद्धता से होती है। गणेश को गंगाजल और पानी से अच्छमन करें, फिर उसको सुखा लें।

गणेश पूजा की आरंभ (Starting the Puja): गणेश पूजा को आरंभ करने के लिए अच्छमनीय पूजन सामग्री का उपयोग करके गणेश मूर्ति की पूजा करें। इसमें गंगाजल, तुलसी, इलायची, सुगंध, दूर्वा, और फूल शामिल हो सकते हैं।

आरती (Aarti): गणेश की पूजा के बाद, आरती दिया और कपूर के साथ करें। आरती गाते समय, उच्चारण करते समय गणेश जी के सामने ही रहें।

प्रसाद (Prasada): गणेश को प्रसाद के रूप में फल और मिष्ठान्न (सुगंधित लड्डू आदि) दें। इसे गणेश को उपहार के रूप में अर्पित करें।

आरती किताब (Aarti Book): आरती की पाठ के लिए गणेश आरती की किताब का उपयोग करें और उसे ध्यान से पढ़ें।

धूप (Incense): धूप की राख को अपने घर की सुरक्षा और शुभता के लिए गणेश के पास फिरा दें।

आरती दिया (Camphor Aarti): गणेश की आरती के दौरान, कपूर के दिये को आरती दिया के सामने दीपित करें और गणेश जी की आरती करें।

मंत्र जाप (Mantra Chanting): गणेश मंत्रों को जाप करें, जैसे कि “ॐ गं गणपतये नमः” या अन्य गणेश मंत्र।

नैवेद्य (Offering Food): गणेश को फल और मिष्ठान्न के रूप में नैवेद्य के रूप में प्रसाद प्रदान करें।

आरती करना (Final Aarti): आरती के बाद, गणेश की मूर्ति के सामने ही आरती करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

गणेश स्थापना का विसर्जन (Immersion of Ganesh Idol): गणेश चतुर्थी उत्सव के बाद, गणेश मूर्ति का विसर्जन शास्त्रीय रूप से किया जाता है। आप उसे किसी निकट सरोवर या नदी में विसर्जित कर सकते हैं।

यहीं गणेश स्थापना की संपूर्ण विधि है। ध्यान दें कि यह विधि आपके स्थानीय परंपराओं और आदतों के अनुसार थोड़े बदल सकते हैं, लेकिन मूल रूप में यही विधि होती है। ध्यान से पूजा करें और गणेश चतुर्थी के इस अद्वितीय मौके का आनंद लें।

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September Prediction

सितम्‍बर राशिफल 2023

सावधान हो जाइए! शनि और बुध मचायेंगे उथलपुथल क्योंकि सितम्बर के महीने में शनि कुछ राशियों में वक्री हो रहे है, और कुछ राशि में बुध अपना प्रभाव दिखाएंगे साथ ही कुछ राशि में शुक्र का भी नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है जिससे ग्रहों की चाल तेजी से बदलने वाली है। ऐसे में सभी 12 राशियों पर बड़े ही रोचक प्रभाव देखे जाने वाले हैं, कुछ राशियों के लिए यह महीना खुशहाली से भरा होगा, लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं, जिनके लिए सितम्बर का यह महीना अशुभ परिणामों से भरा हो सकता है।

आइये विस्‍तार से जानते हैं सितम्‍बर 2023 कैसा होने वाला है आपकी राशि के लिये। साथ ही इस माह में आपकी राशि के लिये कुछ विशेष उपाय भी

मेष-

  • शनि कार्यक्षेत्र में वक्री हो रहे है। 
  • जॉब में Slow Progress हो सकती है । 
  • प्रशासनिक पद के लोगों के लिये बहुत अच्छा होगा। 
  • इस महीने फिजूल खर्च हो सकते है। 
  • सर्दी, खासी, बुखार हो सकता है। 
  • पिता जी के साथ बेहतर संबंध रहेंगे।
  • प्रेमी जीवन बहुत अच्छा व्यतीत होगा। 
  • विद्यार्थीयों के लिये यह माह उत्तम रहेगा। 

उपाय-ॐ हन हनुमते नमः प्रतिदिन 11 बार एवं मंगलवार को हनुमान मंदिर जरूर जायें।

वृषभ-

  • करियर में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। 
  • इस महीने धैर्य रखने की आवश्यकता है।
  • फिजूल खर्च हो सकते है। 
  • High BP की समस्या हो सकती है।
  • परिवार का पूरा सहयोग मिलेगा।
  • प्रेमी जीवन में झगड़ा हो सकता है।
  • विद्यार्थियों को अच्छे परिणाम मिल सकते है। 

उपाय- मां दुर्गा की उपासना अवश्य करे एवं ॐ दुर्गाय नमः का जप करे। 

मिथुन-

  • कार्यक्षेत्र मे लाभ हो सकता है। 
  • जॉब मिलने के संयोग है। 
  • आर्थिक पक्ष सामान्य रहेगा।
  • खयाल रखें, मां का स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। 
  • Students के लिये अच्छा रहेगा 

उपाय- श्री गणेश स्तुति करे 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

कर्क-

  • कार्यक्षेत्र में प्रतिस्पर्धा के बाद सफलता मिलेगी।  
  • जॉब में प्रमोशन मिल सकता है।
  • शनि के प्रभाव से आपके पैसे अचानक से खर्च हो सकते है। 
  • पैर में अचानक से दर्द या चोट लग सकती है।  
  • प्रेम संबंध सामान्य के साथ अच्छा रहेगा। 
  • परिवार में बुजुर्गो के साथ समय बितायें। 
  • विद्यार्थियों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा। 

उपाय- ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप प्रतिदिन 108 बार करे। 

सिंह-

  • कार्यक्षेत्र का माहौल गंभीर हो सकता है। 
  • व्यापार में साझेदारी से लाभ होगा।
  • आर्थिक पक्ष ठीक-ठाक रहेगा। 
  • 21- 28 सितम्बर तक पार्टनर के साथ मन मुटाव हो सकता हैं। 
  • स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

उपाय- शनि का नीलांजन मंत्र 

ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।

छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् || 11 या 21 बार जप करे।

कन्या-

  • कार्यक्षेत्र में संभलकर एवं जितना हो सके शंति बनाकर रखे।
  • व्यापारियों को बदलाव करने से लाभ मिलेगा। 
  • परिवार में सबकुछ ठीक ठाक रहेगा। 
  • प्रेमी जीवन बहुत ही यागगार रहेगा। 
  • विद्यार्थियों को संघर्ष का सामना करना पड़ सकता हैं। 

उपाय-योग जरूर करे एवं चाँदी की गिलास पर सादा पानी पियें।

तुला-

  • कार्यक्षेत्र में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
  • बड़े बदलाव से बचने का प्रयास करें। 
  • केतू के प्रभाव से गलत चीजों में Involve हो सकते है।
  • आर्थिक पक्ष सामान्य रहेगा। 
  • वैवाहिक जीवन बच्चों की वजह से तनावग्रस्त हो सकता है।
  • परिवारिक सामंजस्य बना रहेगा।
  • पेट दर्द और Back Pain हो सकता है।
  • विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को और मजबूत कर सकते है।

 उपाय- शाम को चंद्र साधना 15 मिनिट जरूर करे।

वृश्चिक-

  • कार्यक्षेत्र में मिला-जुला परिणाम मिल सकता हैं। 
  • जॉब में बदलाव करने का मन होगा। 
  • आर्थिक पक्ष मजबूत हो रहा है। 
  • पिजा जी के साथ मनमुटाव हो सकता है। 
  • प्रेमसंबंध सामान्य रहेगा   
  • पढाई के लिये विदेश जाना हो सकता है।

उपाय- ॐ प्रां प्रीं प्रौं शः शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करे।

धनु-

  • कार्यक्षेत्र के लिये बहुत अच्छा है।
  • विदेश जाने के संयोग बन रहे है।
  • अर्थिक पक्ष सामान्य रहेगा।
  • विद्यार्थी गलत दिशा में मेहनत कर रहे है। 
  • वाहन चलाने से बचे या सावधानी रखें। 

उपाय- केले के वृक्ष की पूजा करें, और पीली दालों का दान करें।

 

मकर-

  • कार्यक्षेत्र में आप तार्किक हो सकते हैं।
  • विदेश में जॉब के लिये जा सकते है।
  • घर परिवार में अधिक खर्च हो सकता है।
  • आप अकेलापन महसूस करेंगे।
  • इस महीने खर्च अधिक और कमाई कम हो सकती है
  • परिवार में सभी लोग तंदरुस्त रहेंगे ।  
  • प्रेमी संबंधो में उठापठक हो सकती है। 
  • विद्यार्थी बहुत चिंतित रह सकते है।

उपाय- सातमुखी रुद्राक्ष धारण करे एवं शनि नीलांजनम मंत्र के जप के साथ पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाये। 

 

कुंभ-

  • कार्यक्षेत्र में आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम मिल सकते है।
  • लंबी यात्रा हो सकती है। 
  • आपकी सेहत खराब हो सकती है। 
  • आर्थिक पक्ष बहुत फायदेमंद रहेगा।
  • परिवार से दूरी हो सकती है। 
  • प्रेमी संबंध खराब हो सकते हैं। 
  • विद्यार्थियों को अपनी मेहनत से अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे।

उपाय- सातमुखी रुद्राक्ष धारण करे एवं हनुमानजी के मंदिर में बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करे। 

मीन-

  • कार्यक्षेत्र में नई-नई जगहों पर जा सकते हैं। 
  • आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा 
  • आपको अपनी सेहत पर ध्यान देना है। 
  • वैवाहिक जीवन सुखमय व्यतीत होगा।
  • सेहत का ध्यान रखना होगा। 
  • छोटे भाई बहन की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

उपाय- ॐ गुं गुरुवे नमः का जप प्रतिदिन करे।

 

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चैत्र नवरात्रि 2024!

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Kajri Teej 2023

kajri teej 2023 vrat ka niyam pauranik mehetav astrologer arun ji
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कजरी तीज

कजरी तीज के दिन शादीशुदा स्त्रियाँ पति परमेश्वर की लंबी आयू के लिए उपवास करती है और किशोरियाँ इस त्यौहार पर अच्छा पति पाने के लिए उपवास करती हैं।आज के दिन चने की दाल का सत्तू,जौ, चने, चावल और और उसमें घी और मेवा मिलाकर कई प्रकार के भोजन बनाते हैं। साथ ही चंद्र देव की पूजा करने के बाद उपवास तोड़ते हैं। कजरी तीज भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, और जहाँ-जहाँ पर हिंदू धर्म के अनुयायी रहते हैं वहाँ पर मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार भगवान शिव और पार्वती के उत्साह से मनाया जाता है।

कजरी तीज की तिथि-
1सितंबर शुक्रवार, 2023 को 23:52:pm से तृतीया आरम्भ
2 सितंबर शनिवार, 2023 को 20:51:pm पर तृतीया समाप्त

पौराणिक मान्यतायें

आज के दिन शादीशुदा महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए कजली तीज का व्रत रखती हैं जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं। कजरी तीज पर जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। चंद्र देव के दर्शन के बाद भोजन करके व्रत तोड़ती हैं। इस दिन गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाने के बाद भोजन किया जाता है। इस दिन घर मे उत्सव का माहोल होता है घर की स्त्रियाँ आपस में एकत्रित होकर नृत्य गीत का आयोजन करती है।

पूजन की विधि

 

पूजन से पहले मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है (घी और गुड़ से पाल बांधकर) और उसके पास नीम की टहनी को रोप देते हैं। तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं और किनारे पर एक दीया जलाकर रखते हैं। थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि रखे जाते हैं। इसके अलावा लोटे में कच्चा दूध लें और फिर शाम के समय श्रृंगार करने के बाद नीमड़ी माता की पूजा इस प्रकार करें 

  1. सबसे अपने हाथ पैर धोकर नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे के साथ चावल चढ़ाएं।
  2. नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए।
  3. नीमड़ी माता को कोई फल और पैसे चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर रोली अच्छे से बांधें।
  4. पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और सच्चे मन से अपनी मनोकामना भगवान चंद्र देव के सामने रखें।  

कजरी तीज में व्रत का नियम

1.इस व्रत को  सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है। हालांकि गर्भवती स्त्री फलाहार का सेवन कर सकती हैं।
  1. यदि चांद उदय होते नहीं दिख पाये तो रात्रि में लगभग 11:30 बजे आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोला जा सकता है।
  2. पूजन के बाद संपूर्ण उपवास अगर संभव नहीं हो तो फलाहार भी किया जा सकता है।

  3. इस दिन महिलाएं रक्षा बंधन से 15 दिन बाद अपनी सुहागिन औरत के रूप में धूमधाम से त्योहार मनाती हैं। वे पूजा-अर्चना करती हैं, भगवान शिव का व्रत रखती हैं, और शिवलिंग पर जल अर्पित करती हैं। उन्हें कजरी गीत गाने का भी बड़ा शौक होता है। इस दिन अपनी दोस्तों और परिवार के साथ महिलाएं सजग रहती हैं और अपने सुहाग का ख्याल रखती हैं। वे सुहागिनों के बीच में ख़ुशी और प्यार बाँटती हैं।

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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Raksha Bandhan 2023

raksha bandhan 2023 mahurat, katha, astro arun ji
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रक्षा बंधन

रक्षाबंधन हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो भाई-बहन के प्रेम और बंधन का विशेष उत्‍सव है। यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और उसे विशेष उपहार देती हैं। रक्षाबंधन भाई-बहन के आपसी प्रेम का प्रतीक है, जो उनके रिश्तों को मजबूती देता है और सुरक्षित रखने का संकेत होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, रक्षाबंधन का महत्व भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी के संबंध पर आधारित है। प्राचीन काल में, द्रौपदी ने विष्णु अवतार श्रीकृष्ण के साथ अपने भाई के रक्षाबंधन के रूप में राखी बांधी थी और श्रीकृष्ण ने उसकी सुरक्षा की। इस प्रकार, यह उत्सव भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया है। राखी का त्योहार प्रेम, समृद्धि और खुशी के साथ मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहन के साझा किए गए प्यार भरे रिश्ते का जश्न मनाता है और इसे एक विशेष परिवर्तन दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह उत्सव भारत और नेपाल में विशेष रूप से मनाया जाता है, लेकिन विभिन्न धार्मिक समुदायों के अनुसार नाम और परंपरा में थोड़े बदलाव हो सकते हैं।
रक्षा बंधन 2023 शुभ मुहुर्त-
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 30 अगस्त 2023 को प्रातः 10 बजकर 59 मिनट
तिथि समापन- 31 अगस्‍त सुबह 07 बजकर 05 मिनट पर

भद्रा काल

इस वर्ष पूर्णिमा तिथि के साथ ही भद्रा काल का आरंभ भी हो जाएगा। शास्त्रों में भद्रा काल में श्रावणी पर्व यानी रक्षाबंधन का पर्व मनाना निषेध माना गया है। इस दिन भद्रा काल का समय रात्रि 09 बजकर 02 मिनट तक होगा। इसलिए विद्वानों के अनुसर, इस समय के बाद ही राखी बांधना ज्यादा उचित रहेगा।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, राखी बांधने के लिए दोपहर का समय शुभ माना जाता है। लेकिन यदि दोपहर के समय भद्रा काल हो तो फिर भद्रा काल समाप्‍त होने के बाद प्रदोष काल में राखी बांधना शुभ होता है। ऐसे में 30 अगस्त के दिन भद्रा काल के कारण राखी बांधने का मुहूर्त सुबह के समय नहीं होगा। उस दिन रात में ही राखी बांधने का मुहूर्त है।

31 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा सुबह 07 बजकर 05 मिनट तक है, इस समय में भद्रा का साया नहीं है। इस वजह से 31 अगस्त को सुबह के समय आप राखी बंधवा सकते हैं। ऐसे में इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 30 और 31 अगस्त दोनों दिन मनाया जा सकता है लेकिन आपको भद्रा काल का ध्यान रखना होगा।
रक्षाबंधन भद्रा पूँछ – शाम 05:30 – शाम 06:31 (30 अगस्‍त) रक्षाबंधन भद्रा मुख – शाम 06:31 – रात 08:11 (30 अगस्‍त) रक्षाबंधन भद्रा अंत समय – 30 अगस्‍त रात 09:01
राखी बांधने के लिए प्रदोष काल मुहूर्त – 30 अगस्त 2023 रात 09:01 – 31 अगस्त सुबह 07:05 तक।

कौन है भद्रा? और क्या है भद्रा काल?

पुराणों के मुताबिक, भद्रा को शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री बताया गया है।  स्वभाव में भद्रा भी अपने भाई शनि की तरह कठोर मानी जाती है। ब्रह्मा जी ने इनको काल गणना (पंचांग) में विशेष स्थान दिया है। हिंदू पंचांग को 5 प्रमुख अंगों में बांट गया है- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण  इसमें 11 करण होते हैं, जिनमें से 7वें करण विष्टि का नाम भद्रा बताया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन मुहूर्त में भद्रा काल का विशेष ध्यान रखा जाता है। माना जाता है कि भद्रा का समय राखी बांधने के लिए अशुभ होता है। इसके पीछे भगवान शिव और रावण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। 

भद्रा काल में क्यों नहीं बांधी जाती राखी?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि शूर्पनखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल में ही राखी बांधी थी, और इसी के प्रभाव से रावण के पूरे कुल का विनाश हो गया और रावण का अंत हुआ। इस कारण भद्राकाल में राखी नहीं बांधना निषेध बताया गया है। वहीं, ये भी कहा जाता है कि भद्रा के समय भगवान शिव तांडव करते हैं और वो काफी क्रोध में होते हैं, ऐसे में अगर उस समय कुछ भी शुभ काम करें तो उसे शिव जी के गुस्से का सामना करना पड़ेगा और उनके तांडव के प्रकोप से शुभ काम भी अशुभ होने लगेंगें।

रक्षाबंधन पूजन विधि

राखी बांधने से पहले बहन और भाई दोनों व्रत रखते हैं। ऐसा आवश्‍यक तो नहीं है लेकिन सुबह कुछ भी करने से पहले स्‍नान-ध्‍यान करके भगवान की पूजा करें और फिर भाई की कलाई में राखी बांधते हुये उसके सुखी जीवन की कामना करें और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करें, तो आपके लिये शुभ होगा। भाई को राखी बांधते समय बहन पूजा की थाली में राखी, रोली, दीया, कुमकुम अक्षत और कुछ मिठा अवश्‍य रखें। राखी बांधने से पहले भाई के माथे पर रोली, चंदन और अक्षत का तिलक लगाएं। उसकी नज़र उतारे, और फिर अपने भाई के दाहिने हाथ में राखी बांधे। राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें ओर अगर भाई आपसे बड़ा है तो उसके पैर छूकर आर्शीवाद लें। वैसे कुछ स्‍थानों में भाई के पैर नहीं छूये जाते, तो आप अपनी रीतियों के अनुसार कर सकते हैं।
और हाँ अपने भाई से उपहार लेना न भूलें। 

रक्षाबंधन पर क्यों लगाया जाता है माथे पर अक्षत और कुमकुम का तिलक?

राखी पर तिलक का बहुत महत्व माना जाता है। पुराणों के अनुसार लाल चंदन, श्वेत चंदन, कुमकुम और भस्म का तिलक शुभ माना गया है। वहीं रक्षा बंधन पर कुमकुम का तिलक लगाया जाता है और कुमकुम के साथ चावल भी उपयोग तिलक के लिये किया जाता है। तिलक को माथे के बीचो-बीच लगाया जाता है। हिन्‍दु धर्म में तिलक विजय, मान-सम्मान और जीत का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, हवन में देवताओं को चढ़ाया जाने वाला सबसे शुद्ध अनाज चावल को माना जाता है। चावल से हमारे आसपास की सारी नकारात्मक ऊर्जा, सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। तिलक में कच्‍चे चावल का प्रयोग सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला माना गया है। कहा जाता है कि तिलक लगाते वक्त माथे के बीचो-बीच दवाब देना चाहिए। यह स्थान छठी इंद्री का स्‍थान माना गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, माथे के इस भाग पर दवाब देने से स्मरण शक्ति के साथ निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है।

रक्षाबंधन का प्राचीन महत्व

प्राचीन काल में आरंभ हुआ रक्षाबंधन का त्योहार, जिसका आज भी उतना ही महत्व है। यह बंधन युद्ध में जाने वाले योद्धाओं के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है। राजा या सैनिक जब किसी युद्ध में भाग लेते थे, तो उनकी पत्नियां या माताएं उन्हें विजय की सूचना देने के लिए रक्षाकवच बांधती थीं, जैसे कि विजय तिलक, आरती और धागों के साथ। इससे योद्धाओं का सामर्थ्य बढ़ता और वे शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते थे। समय के साथ, रक्षाबंधन ने भाई-बहन के त्योहार के रूप में भी बदलाव किया। रक्षाबंधन के पर्व में भाई-बहन के बीच प्यार और स्नेह का परिप्रेक्ष्य बढ़ता है। दूर रहने वाली बहनें भाई के लिए राखी बांधने के लिए उनके घर पहुंचती हैं, जिससे समाज में सभी के दिल में प्यार का भावना उत्पन्न होता है। रक्षाबंधन से प्रेरित होकर, वनस्पति प्रेमी अब “रक्षा बंधन” जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं और इसके माध्यम से पेड़ों की रक्षा और महत्व की दिशा में समाज को प्रेरित कर रहे हैं। इस वर्ष भी, रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में पेड़ों की सुरक्षा के लिए रक्षाबंधन के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

देवी लक्ष्मी और राजा बलि की कथा

कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राक्षस राज बलि से तीन कदमों में उनका सारा राज्य मांग लिया था और उन्हें पाताल लोक में निवास करने के लिए कहा था। इस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने अतिथि के रूप में पाताल लोक जाने का आदान प्रदान किया। जिसको भगवान विष्णु ने स्वीकार लिया। लेकिन जब समय बीतता गया और भगवान विष्णु न पार्वती गृहस्थ्यम लौटे, तो देवी लक्ष्मी को चिंता होने लगी। तब नारद मुनि ने देवी से सलाह दी कि वह राजा बलि को अपने भाई बनाने का प्रयास करें और उससे भगवान विष्णु को मांगने के लिए कहें। मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया और इस नये संबंध की पुष्टि के रूप में उन्होंने राजा बलि के हाथों में राखी या रक्षासूत्र बांध दिया।

भगवान कृष्ण और द्रौपदी की कथा

महाभारत में एक प्रसंग है जब राजसूय यज्ञ के अवसर पर भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया। उनका हाथ इस क्रिया में चोट खा गया। इसी समय द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा कृष्ण जी की चोट पर बांध दिया। भगवान कृष्ण ने उसके प्रति रक्षा का आश्वासन दिया। इस परिणामस्वरूप, जब हस्तिनापुर की सभा में दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया, तो भगवान कृष्ण ने उनके चीर को बढ़ा कर द्रौपदी के मान की रक्षा की।

रक्षाबंधन से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  •  रक्षाबंधन के अवसर पर भारत के बॉर्डर पर बालिकाओं और महिलाओं के द्वारा हमारे सैनिकों को राखी बांधी जाती है। ताकि देश की रक्षा में जुटे जवान भी अपनापन महसूस कर सके।

  •  ओडिशा और पश्चिम बंगाल में लोग रक्षाबंधन के अवसर पर राधा और कृष्ण जी की मूर्तियों को पालने में रख के झूला झूलाते हैं। इसलिए इस दिन को इन क्षेत्रों में श्रावण पूर्णिमा को “झूलन पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है।

  • विशेषकर मध्य भारत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कछ भागों में पुत्रवती महिलाओं द्वारा यह त्‍यौहार मनाया जाता है। जिससे महिलाओं द्वारा पत्तों के पात्र में खेत से लाई गई मिट्टी में जौ या गेहूं बोई (उगाई) जाती है। इसे इन क्षेत्रों में “कजरी पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।

  • केरल और महाराष्ट्र में विशेषकर तटीय क्षेत्रों में रहने वाले हिंदू मत्स्य पालकों के समुदायों द्वारा सावन पूर्णिमा के दिन चावल, फूल और नारियल से सागर की पूजा की जाती है। जिसे “नारली पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है।

  • रक्षाबंधन के अवसर पर देश में प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए वृक्षों की रक्षा बंधन भी किया जा रहा है। जिससे लोग प्रकृति की रक्षा के लिये प्रेरित हो सके। 

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