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Hanuman Jayanti 2023| 6 April

Hanuman Jayanti mahurat 2023 by astro arun ji

श्री हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जन्मोत्सव सनातन हिन्दू धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है। इस दिन भगवान शिव के अंशावतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। यह त्यौहार हर वर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी ने चैत्र मास की पूर्णिमा को चित्र नक्षत्र और मेष लग्न के योग में जन्म लिया था। हालाँकि कुछ स्थानों पर स्थानीय मान्यताओं के आधार पर यह पर्व कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के चौदवें दिन भी मनाया जाता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी 7 अमर देवों में से एक हैं। जो कि कलियुग में प्रत्यक्ष रूप से निवास करते हैं। वे श्रीराम के आदेश पर पृथ्वी पर मनुष्यों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। कहते हैं कलियुग में श्रीराम को प्राप्त करने का सबसे सुगम मार्ग हनुमान जी की उपासना ही है। हनुमान जन्मोत्सव पर किये जाने वाले विशेष कार्य वैसे तो हनुमान जी बल, बुद्धि और विद्या के दाता हैं लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे उपाय, जिनके करने से आप हनुमान जी के विशेष वरदान प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे उपाय जो आपको अमीर बना सकते हैं।

आपको यह रहस्य जानने के लिए सबसे पहले हनुमान जी की विधि पूर्वक पूजन करना आवश्यक है। पूजन करने के बाद आपको अभिजीत मुहूर्त में उस विशेष उपाय को करना है, जो आपको धनवान बनाता है।

शुभ मुहूर्त-
हनुमान जन्मोत्सव- 06-04-2023
पूर्णिमा आरम्भ- 5 अप्रैल 2023 सुबह 09:21 बजे से
पूर्णिमा समाप्त- 6 अप्रैल 2023 सुबह 10:06 बजे तक
श्री हनुमान पूजा मुहूर्त- 6 अप्रैल, सुबह 06:06 बजे से सुबह 07:40 बजे तक
अभिजित मुहूर्त- 6 अप्रैल दोपहर 12.02 से 12:53 तक

(नोट- क्योंकि हनुमान जी की शास्त्रोक्त पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 6 अप्रैल 2023 को बन रहा है, इसलिए हनुमान जन्मोत्सव का त्यौहार 6 अप्रैल को मान्य है।)

पूजा विधि-

1. हनुमान जन्मोत्सव की सुबह जल्दी नींद त्यागकर दैनिक क्रियाओं से निवृत हो जायें।
2. स्नान के बाद भगवान हनुमान का स्मरण कर ब्रह्मचर्य क्रियाओं का संकल्प लें।
3. किसी भी तरह के तामसिक भोजन से दूर रहकर केवल फल ग्रहण करके उपवास रखें।
4. पूजा स्थल में हनुमान जी की छोटी प्रतिमा या तस्वीर को लाल स्वच्छ कपड़े पर रखें।
5. घर में संभावना न होने पर आप मंदिर में भी यह पूजन कर सकते हैं।
6. सामग्री में- सिंदूर, लंगोट, चमेली का तेल, कर्पूर, गंगाजल, स्वच्छ ताज़ा पानी, तांबे की थाली, जनेऊ, अकोना के फूल, फूलमाला, अक्षत, मौसमी फल और हवन सामग्री इकट्ठा करके रखें।
7. अपने भाव शुद्ध रखने का संकल्प लेकर सबसे पहले गंगाजल मिश्रित स्वच्छ जल से हनुमान जी का स्नान करें। अब साफ कपड़े से मूर्ति या तस्वीर को साफ करें।
8. सिंदूर को किसी पात्र में चमेली के तेल मे मिलायें और हनुमान चालीसा पढ़ते हुए सिर से पैर तक मूर्ति पर लेपन करें। अगर मूर्ति न हो तो केवल तिलक करें।
9. इसके बाद जनेऊ और लंगोट धारण करवाकर फूलमाला पहनाएं और धूप और दीप जलाकर हाथ जोड़कर हनुमाष्टक का पाठ करे।
10. अब कर्पूर आरती करें और अपनी आसन पर बैठकर बजरंग बाण का 5 बार पाठ करें।
इसके बाद सभी तरह के सुखों की प्राप्ति हनुमान जी के मंत्र ॥ ॐ नमो भगवते हनुमते नम:॥ का 108 बार जाप करें।

हनुमान जन्मोत्सव पर धन प्राप्ति के रहस्य-

अगर आप हनुमान चालीसा पढ़ते हैं तो आपको हनुमान जी की ऐसी परम शक्तियों का एहसास होता है जो उन्हें अन्य देवों से अलग बनाती है। बल, बुद्धि और विद्या के दाता हनुमान जी के स्मरण और नाम जाप व पाठ से बुरी शक्तियां आपसे कोसों दूर रहती हैं, आप सत्कर्म करने की ओर आगे बढ़ते रहते हैं और आपका चरित्र भी शुद्ध होता है। हनुमान जी आठ सिद्धियों और नौ निधियों के देव हैं, वे निर्मोही और केवल राम भक्ति में रत रहते हैं। तो अगर आप प्रभु श्रीराम की पूजन और जाप नित्य प्रतिदिन करते हैं तो श्रीराम से भी पहले हनुमान जी आप पर प्रसन्न होते हैं। इसलिए आज से ही राम भक्ति में लीन हो जाइए, आप हनुमान तो नही बनेंगे लेकिन आपमें हनुमान जी की तरह गुण जरूर आ जाएंगे। हनुमान जी की कृपा से धनवान बनने के लिए और अपने घर-परिवार में समृद्धि पाने के लिए हनुमान जन्मोत्सव के दिन 5 पान के पत्तों को लेकर एक धागे में बांध ले और इसे अपने घर, व्यापार स्थल में पूर्व दिशा की ओर लगा दें। इसके बाद शुद्ध भाव से 108 बार इस मंत्र का जाप करें-
मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।
इस मंत्र को आप यकीनन धनप्राप्ति की अभिलाषा से जपेंगे लेकिन ध्यान रखें कि जाप के समय आपके मन में केवल भगवान श्रीराम की ही छवि हो, आपको बिना किसी स्वार्थ के पूरी निष्ठा के साथ इस उपाय को करना है। इसके बाद इसी उपाय को हर शनिवार को रिपीट करें। शनिवार के दिन पान के पत्ते भी बदलें और पान के पुराने पत्ते जल में प्रवाहित कर दें। इस उपाय को हमेशा करते रहने से नौकरी, व्यवसाय या आपके किसी भी आर्थिक क्षेत्र में मुनाफा होने लगता है और घर में भी समृद्धि होने लगती है।

हनुमान जन्मोत्सव पर विशेष कार्य -

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हनुमान जन्मोत्सव के इस शुभ दिन पर हनुमानजी की पूजा और पाठ करने से मानसिक और शारीरिक शक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख-शांति आती है। इस दिन नीचे दिए निम्नलिखित हनुमान स्तुति एवं स्त्रोतों का पाठ अवश्य करें।

1. सुंदरकांड-

सुंदर कांड रामायण के 7 कांड में से एक महत्वपूर्ण कांड है, जिसका रामायण में 5 वां स्थान है। इस काण्ड में हनुमान जी की सीता माता से भेंट और श्री राम के आगमन की सुचना देना, लंका से वापस आकर लंका तक रामसेतु निर्माण का वर्णन है। सुंदर कांड में 60 दोहे और 526 चौपाइयाँ हैं। जिनका रोज़ पाठ करने से बल और स्वास्थ्य में लाभ होता है। भारत में जब भी कोई मंगलकारी कार्य होते हैं तो कई स्थानों पर सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। इसके पाठ से घर से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जायें दूर भाग जाती हैं।

2. हनुमान चालीसा-

40 छंदों की हनुमान चालीसा का शक्तिशाली पाठ लगभग हर हिन्दू को कंठस्थ होता है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। हनुमान चालीसा के पाठ से सभी तरह के भय सहज ही दूर होते हैं, मन केंद्रित होता है, कार्य सफल होते हैं और जो भी 100 बार इसका पाठ करता है, वह जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है। डिप्रेशन दूर करने के लिए रात में सोते समय भी हनुमान चालीसा का पाठ कर लेना चाहिए, इससे अच्छी नींद आती है और आपका अगला दिन भी सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहेगा।

3. हनुमान अष्टक-

संकटमोचन हनुमानाष्टक की संरचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। माना जाता है कि हनुमान जन्मोत्सव पर संकटमोचन हनुमानाष्टक का पाठ करने से व्यक्ति को अपनी हर बाधा और पीड़ा से मुक्ति मिलने के साथ उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं। आत्मविश्वास को मजबूत करने के लिए संकट मोचन हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए। घर से नकारात्मकता को दूर करने में हनुमान अष्टक का पाठ बहुत लाभकारी होता है। घर में सुख-शांति और हनुमान जी की कृपा पाने के लिए हनुमान अष्टक का नियमित पाठ अवश्य करना चाहिए।

4. बजरंग बाण-

बजरंग बाण तुलसीदास जी द्वारा रचित अति शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके पाठ से शत्रु विजय, कार्य सिद्धि और षड्यन्त्र से मुक्ति मिलती है। बजरंग बाण की साधना हनुमान जन्मोत्सव के दिन विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए की जाती है। बजरंग बाण का पाठ हनुमान चालीसा की तरह हर रोज करने की मनाही है क्योंकि इसका उद्देश्य किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए ही किया जाता है। इसके पाठ करने को लेकर बहुत सी सावधानियाँ रखनी होती है। जिसमें पवित्र मन, अहित भावना न होना, शुद्ध उच्चारण, उचित खानपान आदि शामिल हैं। अन्यथा इसके विपरीत प्रभाव देखने को मिलते हैं।

5. श्रीराम रक्षा स्तोत्र-

श्रीराम रक्षा स्त्रोत के रचियता बुद्धकौशिक ऋषि हैं। जिन्होंने भगवान शिव की प्रेरणा से इस स्तोत्र को 38 श्लोकों में रचकर उसे सिद्ध भी किया था। चैत्र की नवरात्रि के समय इसका पाठ करने से हजारों गुना शुभ फल की प्राप्ति होती है। श्री राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने पर सभी प्रकार की आकस्मिक दुर्घटना, आकस्मिक संकट एवं अन्य सभी प्रकार की विपत्तियों से साधक सुरक्षित रहता है। इससे मंगल के कुप्रभाव समाप्त होते है। इसका प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति की प्राण रक्षा के लिए सर्वोत्तम होता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनता है,और यह सुरक्षा स्वयं भगवान हनुमान स्वयं निर्मित करते हैं।

6. रामायण-

रामायण के रचियता गोस्वामी तुलसीदास जी पर हनुमान जी की विशेष कृपा रही। उन पर कोई विपत्ति आई हनुमान जी ने उसका निराकरण स्वयं किया। कहते हैं जहां भगवान श्रीराम का नाम लिया जाता है वहाँ पवनपुत्र हनुमान सहज ही उपस्थित हो जाते हैं। जिस घर में प्रतिदिन सच्चे मन से रामायण का पाठ होता है, वहाँ हनुमान जी की कृपा सदैव बनी रहती है। हनुमान जन्मोत्सव पर आपको रामायण का सच्चे मन से पाठ अवश्य करना चाहिये। रामायण के अर्थ सहित प्रतिदिन 11 दोहे का पाठ घर में अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान श्री राम और हनुमान जी का आपके घर में सदैव निवास रहेगा और हर विपत्ति से आपकी रक्षा होगी।

॥ श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें ॥

About The Author -

Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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Holi 2023| 8 March

holi mehatav 2023 by astrologer arun ji

होली में करें ये विशेष उपाय, होगी हर मनोकामना पूरी !

होली त्यौहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।

शुभ मुहूर्त-
होलिका दहन मुहूर्त – प्रदोष काल शाम 06:24 से 08:51 बजे तक

पूर्णिमा प्रारम्भ – 06 मार्च शाम 04:17 बजे से

पूर्णिमा समाप्त – 07 मार्च शाम 06:09 बजे तक

धुरेन्डी पर्व – 08 मार्च 2023 बुधवार

होलिका दहन के नियम-

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन किया जाता है। इसके लिए मुख्यतः दो नियम ध्यान में रखने चाहिए –

1. पहला, उस दिन “भद्रा” न हो। भद्रा का ही एक दूसरा नाम विष्टि करण भी है, जो कि 11 करणों में से एक है। एक करण तिथि के आधे भाग के बराबर होता है।

2. दूसरा, पूर्णिमा प्रदोषकाल-व्यापिनी होनी चाहिए। सरल शब्दों में कहें तो उस दिन सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्तों में पूर्णिमा तिथि होनी चाहिए।

धार्मिक महत्व-

हिन्दू त्यौहारों में होली का त्यौहार प्रमुख रूप से मनाया जाता है। होली बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी है। इसका धार्मिक और प्राकृतिक दोनों रूपों में विशेष महत्व माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन श्री हरि भक्त प्रह्लाद को राक्षसी होलिका मारने के उद्देश्य से आग में बैठी थी, होलिका को वरदान स्वरूप आग पर विजय प्राप्त थी, इसलिए आग से उसका बिल्कुल भी अहित नही होता था। लेकिन विष्णु जी परम प्रिय भक्त प्रह्लाद की हत्या के मकसद से जैसे ही होलिका आग में बैठी उसी वक्त वह जलकर भस्म हो गई जबकि भक्त प्रह्लाद का बाल भी बाँका नही हुआ। इस घटना के दूसरे दिन सभी तरफ लोगों ने रंग और गुलाल से भारी उत्सव मनाया। तब से लेकर आज तक इस दिन को रंगों के पर्व होली और दूसरे दिन धुरेन्डी के नाम से जाना जाने लगा। होली का त्यौहार समाजिक भाईचारा और प्रेम भाव को बढ़ाता है, दुश्मनी खत्म होकर दोस्ती में बदलती है। रंग खेलने का एक उद्देश्य यह भी होता है कि आपके सभी के जीवन में खुशियों के रंग भरे रहें। आज ही के दिन इस उत्सव को बसन्तोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। होली का त्योहार दीपावली की ही तरह पांच दिनों तक मनाया जाता है, पँचमी तिथि के दिन रंगपंचमी का त्यौहार मनाकर होली उत्सव समाप्त होता है।

वैज्ञानिक महत्व-

होलिका दहन की लपटें बहुत लाभकारी होती है, माना जाता है कि होलिका की पूजा करने से साधक की हर चिंता दूर हो जाती है। होलिका दहन की अग्नि नकारात्मकता का नाश करती है, वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो इसकी लपटों से वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। होलिका की अग्नि ऊर्जा को तापना लोग स्वास्थ्य वर्धक उपाय भी मानते है।

होली क्यों मनाई जाती है?

होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।
प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

होलिका दहन की विधि

होली का पहला काम झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास ही होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफ़ी दिन पहले से ही यह सब तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहाँ कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहाँ होली जलाई जाती है।

इसमें लकड़ियाँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए (कंडे) गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी जल जाए

लकड़ियों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है।

होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।

होली से अगला दिन धूलिवंदन कहलाता है। इस दिन लोग रंगों से खेलते हैं। सुबह होते ही सब अपने मित्रों और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं। गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी ईर्ष्या-द्वेष की भावना भुलाकर प्रेमपूर्वक गले मिलते हैं तथा एक-दूसरे को रंग लगाते हैं। इस दिन जगह-जगह टोलियाँ रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती-गाती दिखाई पड़ती हैं। बच्चे पिचकारियों से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज होली के रंग में रंगकर एक-सा बन जाता है। रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते हैं और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे मिलने जाते हैं। प्रीति भोज तथा गाने-बजाने के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।

होली विशेष उपाय

हालिका दहन के दिन करें ये उपाय होगी हर मनोकामना पूरी -

लंबी आयु के लिए

अपनी या आप जिस व्यक्ति की लंबी आयु की कामना चाहते हैं, उसकी लंबाई का काला धागा नापें और दो से तीन बार बराबर लपेटकर तोड़ लें। इस धागे को होलिका दहन की अग्नि में डाल दें। इससे सारी बलाएं दूर हो जाती है और आयु लंबी होती है।

आर्थिक तंगी से मुक्ति के लिए

रुपये-पैसों से जुड़ी परेशानी को दूर करने के लिए होलिका दहन के दिन घी में भिगोए हुए दो बताशे, दो लौंग और एक पान पत्ते को डाल दें। इन चीजों को होलिका की अग्नि में अर्पित करने से आर्थिक संकट दूर हो जाता है।

शीघ्र विवाह के लिए

किसी कारण विवाह में देरी हो रही है या बार-बार अड़चने आ रही है तो इसके लिए होलिका की अग्नि में हवन सामग्री को घी में मिलाकर डाल दीजिए। इससे विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होंगी और शीघ्र विवाह के योग बनेंगे।

रोग बीमारी दूर करने के लिए

यदि घर-परिवार में कोई लंबे समय से बीमार है और इलाज के बावजूद सेहत में सुधार नहीं हो रहा है तो एक मुट्ठी पीली सरसों, एक लौंग, काला तिल, फिटकरी, एक सूखा नारियल। इन चीजों को एक साथ लेकर बीमार व्यक्ति के सिर से सात बार घुमाएं और फिर होलिका की अग्नि में डाल दें। ऐसा करने से शीघ्र स्वास्थ्य लाभ होता है।

सुखी वैवाहिक जीवन के लिए

पति-पत्नी के रिश्ते में मनमुटाव चल रहा है तो इसके लिए घी में 108 बाती को भिगोएं और इसे एक-एक कर परिक्रमा करते हुए होलिका की अग्नि में डालें। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आती है।

सुख-समृद्धि के लिए

होलिका दहन की अग्नि में अनाज की आहूति देने का महत्व है. इससे घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है। आप भुट्टा, दाल, चावल, गेहूं आदि जैसी चीजों को होलिका की अग्नि में अर्पित कर सकते हैं।

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रामनवमी 2023

ram navmi mehatav yog 2023 by graphologist arun ji

रामनवमी 2023

हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष कि नवमी तिथि को रामनवमी मनाई जाती है। वैसे तो रामनवमी का त्यौहार अपने आप में ही खास है, लेकिन इस वर्ष की रामनवमी हमारे लिए और भी अधिक खास होने वाली है, क्योंकि इस बार 30 मार्च को रामनवमी के दिन 3 बेहद शुभ योग बन रहे हैं, जो बहुत लाभकारी माने जाते है। दरअसल रामनवमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और गुरु पुष्य योग बन रहे हैं और इन शुभ योगों में की गई पूजा, उपाय और साधना का बेहद शुभ फल प्राप्त होता हैं।

सर्वार्थ सिद्धि योग-

सर्वार्थ सिद्धि योग, एक ऐसा योग है, जिसमें यदि किसी कार्य का आरंभ किया जाए तो उसमें विशेष लाभ मिलता है। जब हमें कोई विशेष मुहूर्त नहीं मिलता, तब इस योग में कार्य करने से सभी प्रकार के कार्यो में सफलता मिलती है।

अमृत सिद्धि योग-

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अमृत सिद्धि योग को बहुत शुभ माना जाता है। दिन और नक्षत्र के विशेष संयोजन से अमृत सिद्धि योग निर्मित होता है और इस दौरान किए गए सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। इस योग में भगवान राम की पूजन करने से आपके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

गुरु पुष्य योग-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नक्षत्र हर दिन बदलते हैं, इनमें पुष्य नक्षत्र भी शामिल है। हर 27 वें दिन पुष्य नक्षत्र होता है। यह जिस दिन भी आता है, उसी नाम से जाना जाता है। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र होने से गुरु पुष्य योग बनता है। इस योग में खरीदी गई वस्तु या संपत्ति से लंबे समय तक लाभ प्राप्त होते हैं।

भगवान विष्णु के 7वें अवतार माने गए श्रीराम हमारे इतिहास के सबसे महान आदर्श पुरुष माने जाते हैं। पुराणों में उन्हें श्रेष्ठ राजा बताया गया है। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। वह मनुष्य रूप में जन्मे और ऋषि विश्वामित्र से विद्योपार्जन के उपरांत पृथ्वी पर उन्होंने असंख्य राक्षसों का संहार कर किया। सत्य, धर्म, दया और मर्यादाओं पर चलते हुए राज किया। हमारे सनातन धर्मग्रंथ श्री राम के जीवन का महत्व बताते हुए हमें जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं।

क्या राम काल्पनिक है?

शुभ मुहूर्त-

नवमी तिथि प्रारंभ- 29 मार्च 2023 रात 09:07 बजे से

नवमी तिथि समाप्त- 30 मार्च 2023 रात 11:30 बजे तक

रामनवमी पूजा का मध्याह्न मुहूर्त – सुबह 11:17 से दोपहर 01:46 तक

यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है कि जिस भारत को भगवान श्री राम ने एक सूत्र में पिरोया था, उन्ही राम के अस्तित्व को झुठलाने के भीषण षड्यन्त्र रचे जा रहे हैं। यह तो सर्व विदित है कि हमारे भारत का जो स्वरूप और संरचना आज हम देख रहे हैं वह कतई इस तरह की नहीं थी। आज जो भारत के आसपास के पड़ोसी देश हैं, वे कभी भारत का हिस्सा थे, लेकिन विदेशी आक्रान्ताओं और कुकर्मियों के अत्याचारों के फलस्वरूप भारतवर्ष की अखंडता को खंड-खंड करने में कोई कसर नहीं रखी गई। हमारे वेद, पुराण, उपनिषद, पवित्र ग्रंथ और अखंड भारत का अद्भुत बखान करने वाली सदियों से एकत्र की गई संपदाओं को नष्ट किया गया

पावन ग्रंथों में भगवान राम के पावन चरित्र को धूमिल करने के लिए भरसक षड्यन्त्र स्थापित किए गए, जिसकी वजह से आज के अज्ञानी जन उनके अस्तित्व पर ही बड़ा सवाल उठाते हैं। इसी विषय पर हम बताने जा रहें हैं वे प्रमाण जो साबित करते हैं कि श्रीराम और रामायण काल का वास्तव में अस्तित्व रहा है।

श्रीराम और भाइयों के जन्म की तारीख-

वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम जी का जन्म चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथी को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में हुआ था। ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति को जब विश्व की सबसे बड़ी संस्था आई सर्व द्वारा खगोलीय घटनाओं के समय का  सटीक आँकलन करने वाले सॉफ्टवेयर प्लैनेटेरियम गोल्ड से मिलान किया गया, तब अंग्रेजी तारीख के अनुसार श्री राम का जन्म की तारीख 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व प्राप्त हुई। उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों में एक जैसी है। परिणामस्वरूप, रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि रामलाला का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ। इसके बाद भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के जन्म समय और ग्रह-नक्षत्रों के मिलान के अनुसार सही समय की प्राप्ति हो गई। आई सर्व के रिसर्चरों ने जब धार्मिक तिथियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चंद्र कैलेंडर की इस तिथि को आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो ये जान कर हैरान रह गए कि सदियों से भारतवर्ष में रामलला का जन्मदिन बिल्कुल सही तिथि पर मनाया जाता आया है। यही नहीं इसके बाद वनवास, रावण की मृत्यु और श्री राम के राज्याभिषेक की तारीखेँ भी उन्हीं तिथियों के अनुसार प्राप्त हो चुकी हैं।

रामसेतु-

आज के समय रामसेतु के बारे में कौन नहीं जानता, रामसेतु के बारे में सबसे बड़ी भ्रांति यह है कि यह रामायण काल के बहुत बाद में बनाया गया था। जबकि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट्स के अनुसार रामसेतु का निर्माण श्री राम के काल में ही हुआ था और इसकी बनावट भी पत्थरों से ही हुई थी। यह श्री राम के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण माना जाता है।

द्रोणागिरि पर्वत के अंश -

मेघनाथ के शक्ति बाण से मूर्छित होकर जब लक्ष्मण जी जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे थे तब हनुमान जी हिमालय से समूचा द्रोणागिरि पर्वत उठा लाए थे और लक्ष्मण जी के स्वस्थ होने पर वापस उसी स्थान पर रख दिया था। कहा जाता है कि हनुमान जी का संजीवनी बूटी लाना एक कहानी मात्र है। जबकि श्रीलंका में जिसे रामायण काल का युद्ध क्षेत्र कहा जाता है, उसी के समीप हिमालयीन जड़ीबूटी से युक्त पेड़ पौधे आज भी पाए जाते हैं जो पूरे श्रीलंका तो क्या हिमालय को छोड़कर भारत में भी नहीं पाए जाते। यह साक्षात उदाहरण है कि वर्षों पहले रची गई रामायण झूठ नहीं है।

अनेक रामायण-

श्रीराम जी के प्रमाण का प्रमुख सबूत वाल्मीकि रामायण है जो संस्कृत में लिखी गई है। लेकिन भारत की अनेकों भाषाओं में रामायण रची गई हैं।जैसे- तमिल भाषा में कम्बन रामायण, असम में असमी रामायण, उड़िया में विलंका रामायण, कन्नड़ में पंप रामायण, कश्मीर में कश्मीरी रामायण, बंगाली में रामायण पांचाली, मराठी में भावार्थ रामायण आदि। सबसे खास बात यह है कि इन भारतीय भाषाओं में प्राचीनकाल में ही सभी रामायण लिखी गई। मुगलकाल में गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में रामचरित मानस लिखी जो की हिन्दीभाषा और उससे जुड़े राज्यों में प्रचलित है।

वहीं विदेशी भाषाओं में कंपूचिया की रामकेर्ति रामायण, लाओस फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), मलयेशिया की हिकायत सेरीराम, थाईलैंड की रामकियेन और नेपाल में भानुभक्त कृत रामायण आदि प्रचलीत है। इसके अलावा भी अन्य कई देशों में वहां की भाषा में रामायण लिखी गई है।

आज भी मौजूद हैं रामायण के सबूत-

भारत के इतिहासकार और पुरातत्व विभाग के एक्सपर्ट्स ने भारत में 250 से भी अधिक ऐसे स्थान खोजे हैं जो रामायण काल के ही हैं। कई स्थानों पर आज भी स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय-काल की जांच-पड़ताल वैज्ञानिकों ने की जो कि सबूत हैं कि श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण वहाँ रुके या रहे थे। जैसे- सरयू और तमसा नदी के पास के स्थान, प्रयागराज के पास श्रृंगवेरपुर तीर्थ, सिंगरौर में गंगा पार कुरई गांव, प्रयागराज, चित्रकूट (मप्र), सतना (मप्र), दंडकारण्य के कई स्थान, पंचवटी नासिक, सर्वतीर्थ, पर्णशाला, तुंगभद्रा, शबरी का आश्रम, ऋष्यमूक पर्वत, कोडीकरई, रामेश्‍वरम, धनुषकोडी, रामसेतु और नुवारा एलिया पर्वत श्रृंखला आदि कई ऐसे स्थान रामायण के साक्षात प्रमाण हैं।

आज भी जीवित हैं रामायण का वानर वंश-

अधिकतर लोग यह बात जानते ही होंगे कि 7 अमर पुरुषों में श्री हनुमान जी, विभीषण और जामवंत आज भी जीवित हैं। कई लोग इस बात को झुठलाते हैं परंतु बाली द्वीप में आज भी वानर समुदाय के वे लोग जीवित हैं जो खुद को रामायण कालीन वानर समाज का वंशज मानते है और उनके पूर्वजों के बताए अनुसार किष्किन्धा (आंध्रप्रदेश) को अपनी पुरानी राजधानी कहते हैं। इन लोगों की शारीरिक बनावट आज भी थोड़ी बहुत वानरों की तरह है और कुछ लोगों की 3 से 6 इंच की पूंछ भी जन्मजात होती है। वानर समाज के लोग मानसिक रूप बहुत तेज, चतुर और उपद्रवी किस्म के होते थे इसलिए मनुष्यों और बाहरी आक्रांताओं ने प्रभुत्व पाने के लिए रामायण काल के बाद वानर समाज को खत्म कर दिया पर इनमें से कुछ वानरों ने अलग-अलग द्वीप में शरण लेकर अपनी जान बचाई। जिसका उदाहरण बाली द्वीप है।

अयोध्या नगरी-

अयोध्या श्रीराम की जन्मस्थली है और कर्मभूमि भी। मुगल काल के समय क्रूर मुस्लिम शासकों के अत्याचारों के फलस्वरूप कई देवालयों को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था और जो मुख्य देवस्थल हैं वहाँ मस्जिदें बनाई गईं, इस अपराध का शिकार पावन अयोध्या नगरी भी हुई, जहां सालों चले वैचारिक युद्धों के बाद आज श्री राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इस स्थान पर खुदाई में रामायण काल के कई अवशेष मिले साथ ही पुराने मंदिर के अंश भी प्राप्त हुए, जो श्रीराम की जन्मस्थली का सबसे बड़ा प्रमाण बने।

नेपाल और श्रीलंका में प्रमाण-

रामायण के प्रमाण केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल और श्रीलंका में भी मिलते हैं। बिहार के सीतामढ़ी और और जनकपुरी में माता सीता से जुड़े कई साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। जनकपुरी में माता सीता के चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं। वहीं श्रीलंका मे स्थित अशोक वाटिका में हनुमान जी के विशाल पग चिन्ह भी स्पष्ट रूप से मिलते हैं। जिन्हें भारत और श्रीलंका के पुरातत्ववेताओं के अनुसार रामायण काल का ही माना गया है।

विदेशियों के आराध्य श्री राम-

भगवान श्रीराम के अस्तित्व के प्रमाण विदेशी ग्रंथों में भी मिलते हैं जो मानते हैं कि भगवान श्री राम और रामायण काल्पनिक नहीं हैं। इंडोनेशिया, कंबोडिया, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, जापान और अन्य देशों के निवासी भगवान श्री राम को अपना आराध्य मानते हैं और अपनी भाषाओं में रामायण की तरह ही कई ग्रंथ रचे गए हैं, जो कि रामयुग के साक्षात प्रमाण हैं।

भगवान राम के जीवन से सीखें ये आदर्श सूत्र-

प्रभु राम का चरित्र सामाजिक जीवन को जीने के लिए संपूर्ण ज्ञान है। रामायण में दिये गये प्रसंग हमें जीवन जीने के तरीकों के बारे में बताते हैं। प्रभु राम के चरित्र के ये गुण अपना लेने से आपका जीवन भी एक सार्थक जीवन बन सकता है। तो आइये जानते है आज के इस लेख में रामायण और प्रभु राम के चरित्र से हमें क्‍या शिक्षा मिलती है-

बुराई पर अच्छाई की जीत

रामायण में राम जी के जीवन की सबसे बड़ी सीख है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की ही जीत होती है। जिस तरह माता सीता पर रावण ने बुरी नज़र डाली और अंत में भगवान राम ने महाज्ञानी रावण को पराजित कर माता सीता को वापस पा लिया। 

कहानी का सार है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली या बड़ी क्यों ना हो लेकिन अपनी अच्छी नियत और गुणों के कारण सच्चाई की ही जीत होती है।

विनय ही सर्वोत्तम नीति है

राम जी सर्वश्रेष्‍ठ तीरंदाज थे। उनको अस्त्रों- शस्त्रों का पूरा ज्ञान था। लेकिन अपनी सारी शक्ति और ज्ञान का उन्हें कभी अहंकार नहीं हुआ, जिसकी वजह उनकी अद्वितीय विनम्रता थी। 

उन्होंने कभी भी अपने जीवन में अहंकार को जगह नहीं दी, वो हमेशा विनय के ही मार्ग पर चलते रहे थे और कितनी ही विप‍रीत परिस्थितियाें में अपनी नीतियों को खोने नहीं दिया।

ऐश्‍वर्य से बढ़कर रिश्‍ते

श्री राम पर भाइयों का प्रेम, लालच, गुस्सा या विश्वासघात कभी घर नहीं कर पाया, ये एक बड़ा उदाहरण है। एक ओर जहां लक्ष्मण ने 14 साल तक भाई राम के साथ वनवास किया, वहीं दूसरे भाई कैकयी पुत्र भरत ने राजगद्दी के अवसर को ठुकरा दिया। इसके बजाय, उन्होंने भगवान राम से क्षमा मांगी और उनसे वापस लौटकर राजकाज संभालने का आग्रह किया।

भाइयों के प्यार की ये सीख हमें लालच और सांसारिक सुखों के बजाय रिश्तों को महत्व देने के लिए प्रेरित करती है।

अच्छी संगति का महत्व

रामायण हमें अच्छी संगति के महत्व को बताता है। कैकयी राम को अपने पुत्र राम से ज़्यादा चाहती थी लेकिन दासी मंथरा की बुरी सोच और गलत बातों में आकर वह राम के लिए 14 वर्षों का वनवास मांग लेती है।
इसलिए हमें सीख मिलती है कि हमें अच्छी संगति में रहना चाहिए ताकि नकारात्मकता हम पर हावी न हो।

पूर्वाग्रह का कभी समाधान नहीं होता है

जब रावण के भाई विभीषण राम के पास आए क्योंकि उन्हें अपने ही राज्य से भगा दिया गया था, राम को कभी भी उनके लिये कोई पूर्वाग्रह नहीं था, भले ही वहां कुछ लोग इसके बारे में निश्चित नहीं थे। परंतु जब वे सभी विभीषण के ज्ञान और विशेषज्ञता के मूल्य को समझ गए और उन्हें राम की दूरदर्शिता दिखाई दी।
पूर्वाग्रह किसी काम का हल नहीं होता है। आपने जो सामना किया है, उसके बारे में कुछ गलत लग सकता है, लेकिन सामान्य विशेषताओं को पहचानें तब आप लोगों और स्थितियों के वास्तविक मूल्यों को देखेंगे।

सच्ची भक्ति और समर्पण

हनुमान जी ने भगवान राम के प्रति अटल विश्वास और प्यार का परिचय दिया। उनकी अपार लगन और भगवान राम के प्रति निःस्वार्थ सेवा हमें सिखाती है, कि एक दोस्त की ज़रूरत के समय किस तरह मदद की जाती है।
यह बताता है कि हमें अपने आराध्य के चरणों में बिना किसी संदेह के अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए। जब हम अपने आपको उस सर्वव्यापक के चरणों में समर्पित कर देते हैं, तो हमें निर्वाण या मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण से छुटकारा मिलता है।

भगवान में विश्वास की शक्ति

राम, लक्ष्मण और वानर सेना द्वारा भारत और श्रीलंका के बीच तैयार किया गया रामसेतु पुल चमत्कार की ही निशानी है। जिस तरह से भगवान का नाम लिखने से ही पत्थर पानी में तैरने लगे, वैसे ही ईश्‍वर पर अटूट भरोसा असंभव काम को भी संभव कर देता है।
ये भी एक बड़ी सीख है कि जिस भगवान का नाम लेने से पूरी राम सेना हस्त निर्मित पुल से सागर पार कर गईं, वैसे ही भगवन नाम लेने से हम भी इस भवसागर से पार हो सकते हैं और हर क्षेत्र में जीत हासिल कर सकते हैं।

सबके साथ समान व्यवहार

भगवान राम ने सभी के साथ समान व्यवहार किया। शबरी के झूठे बेर खाना आज के जातिवादी समाज पर वह तमाचा है, जो सीख देता है कि जातियाँ या भेदभाव इंसान ने ही बनाए हैं। राम हमेशा लोगों के प्रति दयालु, विनम्र और समभाव रखते थे। हमें उनसे इस गुण को अपनाना चाहिए।
श्री राम ने घर, परिवार, समाज, राज्य और पूरे विश्व में सभी से प्यार और सम्मान अर्जित किया। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके प्रमुख गुणों में से एक था कि कोई व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा, गरीब या अमीर, अपना हो या पराया वह सभी के लिए एक जैसा है।

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गुड़ी पड़वा 2023| Gudi Padwa 2023| 22 March

gudi padwa mahurat 2023 by astrologer arun ji

गुड़ी पड़वा

हिन्‍दु नववर्ष की शुरूवात, हर हिन्‍दु के लिये होता है ये दिन खास

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस दिन से हिन्दू नव वर्ष आरंभ होता है। कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसी दिन से नया संवत्सर भी शुरू होता है। अतः इस तिथि को ‘नवसंवत्सर’ भी कहते हैं। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का आरंभ भी होता है।

प्रतिपदा तिथि- 

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 21 मार्च, 10:55 pm

प्रतिपदा तिथि समाप्‍त – 22 मार्च, 08:23 pm

चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं फलते-फूलते हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिए इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।

कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्रास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज (गुड़ी) फहराए। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को गुड़ी पड़वा नाम दिया गया।

गुड़ी पड़वा का त्योहार 22 मार्च 2023 को मनाया जाएगा। इस दिन को कर्नाटक में उगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी के नाम से मनाया जाता है। कश्मीर में ‘नवरेह’, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा कहा जाता है। वहीं गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो का पर्व मनाते हैं। सिंधि समुदाय के लोग इस दिन चेती चंड का पर्व मनाते हैं।

गुड़ी पड़वा या नव संवत्सर के दिन प्रातः नित्य कर्म कर तेल का उबटन लगाकर स्नान आदि से शुद्ध एवं पवित्र होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर देश काल के उच्चारण के साथ पूजन करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

 

चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा में, गुड़ी का अर्थ है विजय पताका, और पड़वा का अर्थ है प्रतिपदा। 

 

इस त्योहार पर लोग अपने घरों को पताका, ध्वज और बंधनवार से सजाते हैं। महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा के दिन पूरन पोली या मीठी रोटी बनाई जाती है। 

गुड़ी पड़वा मुख्य रूप से महाराष्ट्र में हिंदू नव वर्ष की शुरुआत या नए साल की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए मनाया जाता है।

पंचांग के अनुसार नए साल की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है और इस दिन इस पर्व को मनाने की परंपरा है। गुड़ी पड़वा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में खुशी के साथ मनाया जाता है। 

  • सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने की ख़ुशी में लोगों ने घरों पर गुड़ी को लगाया था।
  • कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।
  • यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है। इसे इन्द्र-ध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
  • वहीं पौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम ने इसी दिन बालि का वध करके लोगों को उसके आतंक से छुटकारा दिलाया था। इस दिन को लोग विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। यही वजह है कि इस खुशी के मौके पर घरों के बाहर रंगोली बनाई  हैं और विजय पताला लहराकर जश्न मनया जाता है।
  • भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की याद में भी कुछ लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते हैं।
  • माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।
  • गुड़ी को धर्म-ध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ है–उलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरु-दण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
  • किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
  • हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं। ये साढ़े तीन मुहूर्त हैं–गुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीपावली को आधा मुहूर्त माना जाता है।

हिन्‍दु नववर्ष का महत्‍व

हिन्दू नववर्ष हजारों वर्षो से हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण दिनों में शामिल रहा है। हिन्दू धर्म में नववर्ष को नवीनताऔर नवाचार का प्रतीक माना गया है एवं इस अवसर पर पूजा-पाठ एवं विभिन प्रकार के शुभ कार्यो को करने की परंपरा रही है। हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है जिसकी शुरुआत उज्जैन के महान शासक विक्रमादित्य द्वारा शकों को पराजित करने के उपलक्ष में 58 ई. पू. (58 B.C) में की गयी थी।

वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर आधारित है जहाँ नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में मनाया जाता है। चैत्र माह में प्रकृति में चारों ओर उत्साह एवं सौंदर्य प्रदर्शित होता है एवं बसंत ऋतु का आगमन होता है। हिन्दू नववर्ष के अवसर पर सम्पूर्ण प्रकृति ही नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार प्रतीत होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी हिन्दू नववर्ष को बहुत महत्‍वपूर्ण माना जाता है। 

हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। यह दिवस हिन्दू समुदाय में नवीन उत्साह का संचार करता है एवं नवीन वर्ष के अवसर विभिन प्रकार के नए संकल्प लिए जाते है। हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाने के पीछे ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्राकृतिक एवं नैसर्गिक कारण कारण है। 

चैत्र माह की शुक्‍ल पक्ष की प्रि‍तपदा तिथि को नववर्ष मनाने के पीछे महत्‍वपूर्ण बिन्‍दु निम्‍न प्रकार है-

ऐतिहासिक कारण

हिन्दू नववर्ष को विक्रम सम्वत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है। इस कैलेंडर की शुरुआत भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा शकों को पराजित करने एवं राज्याभिषेक के अवसर पर 58 ई.पू. में की गयी थी। प्रतिवर्ष विक्रम सम्वत के आधार पर हिन्दू नववर्ष चैत्र माह में शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।

पौराणिक कारण

ब्रह्मांड निर्माण का दिवस- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार नववर्ष के अवसर पर ही ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड का निर्माण किया था। यही कारण है की इस दिवस को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू नववर्ष के प्रारम्भ होने के पौराणिक कारणों में विभिन तथ्यों को माना जाता है जिनमे में कुछ कारण निम्न है-

  • माना जाता है की इस दिन प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक हुआ था।
  • इस दिवस के अवसर पर ही प्रभु राम द्वारा बाली का वध किया गया था।
  • धर्मराज युधिष्ठर का राज्याभिषेक दिवस भी हिन्दू नववर्ष के दिन माना जाता है।
  • लंकापति रावण के विजय के अवसर पर इस दिवस अयोध्यावासियों ने अपने घरो पर भगवान राम के सम्मान में विजय पताका फहराई थी।
  • नवरात्र की शुरुआत भी नववर्ष से मानी जाती है।

आध्यात्मिक कारण

हिन्दू नववर्ष के अवसर पर जीवन में नवीनता एवं उत्साह की शुरुआत मानी जाती है। भारतीय अध्यात्म में नवीनता एवं बदलाव को जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाग माना गया है ऐसे में नववर्ष को जीवन में नवीन शुरुआत के आरम्भ के रूप में भी माना जाता है।

प्राकृतिक कारण

हिन्दू नववर्ष हमारे देश में बसंत ऋतु के आगमन का अवसर होता है ऐसे में प्रकृति में चारों ओर हरियाली छायी रहती है। शरद ऋतु के पतझड़ के बाद वृक्षों पर नयी कोपलें जीवन की नवीनता का संदेश देती है। चारों ओर नए फूल, फल एवं पत्तियाँ मानों नए साल के स्वागत का संदेश लेकर आयी हुयी प्रतीत होती है।

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चैत्र नवरात्रि 2023| Chaitra Navratri 2023

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चैत्र नवरात्रि 2023

जानें शुभ मुहुर्त, महत्‍व और नौ देवियों के विशेष मंत्र

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र नवरात्रि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। साल में चार नवरात्रि मनाई जाती है दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष। चैत्र और अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना होती है वहीं आषाढ़ और माघ की गुप्त नवरात्रि में मां अंबे की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन गुड़ी पड़वा और चेती चांद का त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रि में देवी के भक्त घटस्थापना करते हैं, नौ दिनों तक व्रत रखकर शक्ति साधना की जाती है।

चैत्र नवरात्रि 2023 शुभ मुहूर्त-

चैत्र प्रतिपदा प्रारम्भ – 21 मार्च, मंगलवार, रात 10:55 से

चैत्र प्रतिपदा समाप्त – 22 मार्च, बुधवार, रात 08:23 तक

चैत्र नवरात्रि – 22 मार्च 2023 (उदया तिथि की मान्यता के अनुसार)

घटस्थापना, व्रत मुहूर्त – 22 मार्च सुबह 06:23 से 07:32 बजे तक

नवरात्रि व्रत पारण – 31 मार्च, शुक्रवार, सुबह 06:13 बजे के बाद

हर साल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होती है। यह भारतीय सनातन धर्म का सबसे प्रमुख त्यौहार है, इसी दिन से हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है। जिसकी स्थापना महाराज विक्रमादित्य ने की थी, इसलिए इसे विक्रम संवत कहा जाता है। इस दिन से ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन से सम्पूर्ण प्रकृति में भी नयी शुरुआत होती है। कई सकारात्मक परिवर्तन के साथ ही नव वर्ष की शुरुआत होती है। चैत्र प्रतिपदा से अगले 9 दिनों तक माँ भगवती के 9 रूपों की उपासना शुरू होती है जिसे चैत्र की नवरात्रि कहा जाता है। नवमी तिथि पर श्रीराम चन्द्र जी के जन्मदिवस रामनवमी के दिन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है और दशमी तिथि को व्रत पारण के साथ नवरात्रि का समापन होता है। इस पावन त्यौहार में कई तरह की आध्यात्मिक शक्तियों को पाने के लिए साधक गण माँ दुर्गा की विशेष पूजा-अनुष्ठान और साधना करते हैं।

पूजा विधि-

नवरात्र के दिन प्रातः जल्दी उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर 9 दिन तक व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर नव वर्ष की शुरुआत करनी चाहिए। पूरे वर्ष मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहने का संकल्प लेना चाहिए और माँ दुर्गा का मन ही मन स्मरण करते हुए प्रत्येक कार्य करने चाहिये। सुबह माता दुर्गा की घर या मन्दिर में जाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए। माता को खीर का भोग लगाना चाहिए और सभी को प्रसाद देना चाहिए। यदि नवमी तिथि दो दिन पड़ रही हो, तब उस स्थिति में पहले दिन उपवास रखा जाएगा और दूसरे दिन पारण होगा। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। जैसा की नवमी नवरात्रि पूजा का अंतिम दिन है, इसलिए इस दिन देवी दुर्गा की षोडषोपचार पूजा करके विसर्जन करना चाहिए।

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र नवरात्रि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। साल में चार नवरात्रि मनाई जाती है दो गुप्त और दो प्रत्यक्ष। चैत्र और अश्विन माह में आने वाली नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना होती है वहीं आषाढ़ और माघ की गुप्त नवरात्रि में मां अंबे की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है। इस दिन गुड़ी पड़वा और चेती चांद का त्योहार मनाया जाता है। नवरात्रि में देवी के भक्त घटस्थापना करते हैं, नौ दिनों तक व्रत रखकर शक्ति साधना की जाती है।

चैत्र नवरात्रि के नौ दिन-

22 मार्च 2023 – चैत्र प्रतिपदा तिथि- मां शैलपुत्री पूजा

23 मार्च 2023 – चैत्र द्वितीया तिथि- मां ब्रह्मचारिणी पूजा

24 मार्च 2023 – चैत्र तृतीया तिथि- मां चंद्रघण्टा पूजा

25 मार्च 2023 – चैत्र चतुर्थी तिथि- मां कुष्माण्डा पूजा

26 मार्च 2023 – चैत्र पंचमी तिथि- मां स्कंदमाता पूजा

27 मार्च 2023 – चैत्र षष्ठी तिथि- मां कात्यायनी पूजा

28 मार्च 2023 – चैत्र सप्तमी तिथि- मां कालरात्री पूजा

29 मार्च 2023 – चैत्र अष्टमी तिथि- मां महागौरी पूजा, महाष्टमी

30 मार्च 2023 – चैत्र नवमी तिथि- मां सिद्धीदात्री पूजा, दुर्गा महानवमी

नौ दिन नौ देवियां और सिद्ध मंत्र

चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा 2 अप्रैल 2022 को है। नवरात्रि व्रत कुल नौ दिन तक चलेंगे। नवरात्रि में पहले दिन से लेकर अंतिम दिन तक अलग -अलग देवियों की पूजा की जाती है। हर देवी का स्वरुप और महत्व अलग-अलग है। ऐसे ही देवियों की पूजा विधि और उन्हें प्रसन्न करने के मंत्र भी अलग-अलग है। एस्‍ट्रो अरूण पंडित के द्वारा यहां बताया जा रहा है चैत्र नवरात्रि में देवि के नौ स्‍वरूप और उन्‍हें प्रसन्‍न करने के विशेष मंत्र-

शैलपुत्री-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शैलपुत्री देवी, देवराज हिमालय की बेटी हैं। यही मां नव दुर्गा का प्रथम रूप हैं। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा अर्चना की जाती है।

शैलपुत्री का मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

मंत्र का फल- मान्यता के अनुसार, इस मंत्र के जाप से शरीर निरोगी रहता है और बीमारियां पास नहीं आती हैं।

ब्रह्मचारिणी -

नवदुर्गा का दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी हैं। इनके हाथों में कमण्डल और माला है। मान्यता के अनुसार, माता पार्वती के घोर तप करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इसी कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी देवी पड़ा।

ब्रह्मचारिणी माता का मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मंत्र का फल – इस मंत्र के सटीक जाप से सौभाग्य का वरदान मिलता है।

मां चंद्रघंटा-

मां चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। देवी अपने दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं और सिंह पर बैठी हुई असुरों के संहार के लिए तैयार रहती हैं।

मां चंद्रघंटा का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने। श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम्॥

मंत्र का फल – इस मंत्र के प्रभाव से जातक के पाप और परेशानियों का क्षय होता है।

मां कुष्मांडा-

देवी दुर्गा का चौथा रूप कुष्मांडा देवी का है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण जगत जननी भी कहा जाता है। मां की आठ भुजाएं हैं जिनमें वे कई शस्त्र धारण करती हैं और मां सिंह पर सवार रहती हैं।

कुष्मांडा माता का मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मंत्र का फल- इस मंत्र के प्रभाव से जातक के यश में वृद्धि होती है और व्याधियों का नाश होता है।

मां स्कंदमाता-

स्कंदमाता मां नव दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। स्कंदमाता की गोद में शिव जी के पुत्र कार्तिकेय बैठे रहते हैं। स्कंदमाता को कार्तिकेय की मां कहा गया है।

स्कंदमाता का मंत्र- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

मंत्र का फल – ये मंत्र भक्तों को शुभ फल देने वाला और उनकी इच्छा पूरी करने वाला माना जाता है।

मां कात्यायनी-

कात्यायन ऋषि की साधना और तप से उत्पन्न होने वाली कात्यायनी देवी को मां दुर्गा का छठा रूप माना गया है। कात्यायनी की उपासना से पापों का नाश होता है।

मां कात्यायनी का मंत्र- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 3। कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।

मंत्र का फल – विवाह में बाधा आ रही है तो इस मंत्र का जाप करें।

मां कालरात्रि–

मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। हाथ में खड्ग और नरमुण्ड धारण करने वाली कालरात्रि दुष्टों का नाश कर भक्तों की डर से मुक्त करने वाली मानी गई हैं।

मां कालरात्रि का मंत्र- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊँ कालरात्रि दैव्ये नम:।

मंत्र का फल- मान्यता है कि मंत्र के जाप से जातक को शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है।

मां महागौरी-

नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा के महागौरी स्वरुप की पूजा का विधान है। मान्यता के अनुसार, तपस्या के कारण देवी का शरीर श्याम हो गया था लेकिन शिव जी ने जब उन पर अभिमंत्रित जल छिड़का तो वे पुनः गौर वर्ण हो गईं।

मां महागौरी का मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

मंत्र का फल- ये मंत्र जातक की सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है।

मां सिद्धिदात्री-

दुर्गा माता का नवां रूप मां सिद्धिदात्री है। मान्यता है कि इनकी पूजा से सिद्धियों की प्राप्ति होती है साथ ही जीवन में सुख और सौभाग्य बना रहता है।

मां सिद्धिदात्री का मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

मंत्र का फल- मान्यताओं के अनुसार इस मंत्र के विधिवत जाप से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

chaitra navratri mahurat 2023 astro arun ji

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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म‍हाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार है, जो कि बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2023 की महाशिवरात्रि आप सभी के लिए बहुत खास होने वाली है, क्योंकि इस पावन अवसर पर Astro Arun Pandit आप सभी के लिए एक विशेष उपहार लायें हैं। आने वाली 17 और 18 फरवरी को आयोजित होने जा रहा है शिव दीक्षा इवेंट, जिसमें आप जानेंगे भगवान शिव से जुड़े अद्भुत रहस्यों को और पा सकते हैं शिव जी की प्राप्ति का मार्ग। साथ इस महाशिवरात्रि पर आपको दी जा रही है शिवदीक्षा E-Book जिसमें आपको मिल रहा है, भगवान शिव जी की पूजा का सम्पूर्ण विधान जिसके अनुसार आपको अपने घर पर शिव पूजन करनी हैं। इस E-Book में आपको मिलेगा-

  • महाशिवरात्रि 2023 का शुभ मुहूर्त
  • महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व
  • सम्पूर्ण शिव पूजा सामग्री
  • महाशिवरात्रि विशेष पूजन विधान
  • गौरी-गणेश पूजा
  • शिव अभिषेक विधान

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Monthly Horoscope Prediction February 2023-Astro Arun Pandit

February 2023 Monthly Horoscope Prediction | Rashifal | राशिफल | Astro Arun Pandit

इन राशियों के लिये बदलाव लेकर आया है ...... फरवरी महीना

मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह राशि,कन्‍या राशि | Aries, Taurus, Gemini, Cancer,Leo, Virgo February फरवरी 2023 Monthly Horoscope Prediction

Mesh, Vrushabh,Mithun,Kark, singh & Kanya | Kya Hai In 6 Rashiyon Ka Rashifal | February 2023 Horoscope Prediction

कुछ राशियों के लिए यह महीना सौगातें लाने वाला है, तो कुछ राशियों को सर्तक रहने की आवश्‍यकता है। आज के इस वीडियो में जानिये मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्‍या राशि का मासिक राशिफल। फरवरी  2023 राशिफल के साथ आपके मिलेगा ग्रहों के अनुसार आपके लिए बेस्‍ट समाधान भी, जिनका पालन करने से निश्चित ही आप अपना ये माह बेहतर कर सकते हैं।


For some zodiac signs, this month is going to bring gifts, while some zodiac signs need to be alert. In today’s video, know the monthly horoscope of Aries, Taurus, Gemini, Cancer, Leo and Virgo. With the February 2023 Horoscope, you will also get the best solution for you according to the planets, following which you can definitely improve your month.

मेंष राशि के लिये अनुकूल है फरवरी का माह /The month of February is favorable for Aries.

मेष राशि- मेष राशि के लिये फरवरी का यह माह सामान्‍य रहने वाला है। कार्यक्षेत्र में यह महीना अनुकूल है। सीखने की चाह से कुछ नये बदलाव आयेंगें। आप इस माह अपने मन से ज्‍यादा मेहनत करेंगें और आपके विचारों में कुछ त्‍याग की भावना आयेगी। आखों से संबंधित कुछ परेशानी हो सकती है। पिता या दादा जी के स्‍वास्‍थ्‍य का ध्‍यान रखें। प्रेमी संबंधों में या साथी के साथ थोड़ा अलगाव महसूस हो सकता है। परिवार को पूरा सहयोग रहेगा। फरवरी में कुछ पारिवारिक मांगलिक कार्य हो सकते हैं।

Aries- This month of February is going to be normal for Aries. This month is favorable in the workplace. Willingness to learn will bring some new changes. You will work harder than your mind this month and there will be some sense of sacrifice in your thoughts. There may be some problem related to the eyes. Take care of the health of father or grandfather. There may be a feeling of separation in a loving relationship or with a partner. There will be full cooperation of the family. Some family auspicious work can happen in February.

मेष राशि के लिये उपाय- खाने की चीज़ो का दान करें। बजरंगबली को लड्डुओं का भोग लगायें और उसका प्रसाद रूप में वितरण करें। 

Remedy for Aries – Donate food items. Offer laddoos to Bajrangbali and distribute it as Prasad.

मिथुन राशि, विद्यार्थियों के लिये सकारात्‍मक है यह माह/ Gemini, this month is positive for students

मिथुन राशि- शनि की ढ़ैय्या आपके राशि पर समाप्‍त हो रही है। दूसरों से सीखना, चीज़ों काे ऑब्‍जर्व करना अब आपकी आदत में आयेगा। जॉब से जुड़े हुये लोगाें का वर्कलोड बढ़ेगा। आर्थिक पक्ष में उतार-चढ़ाव रहेगा इस माह। शुक्र के प्रभाव से शुरूवात में खर्चे बढ़ेंगें वहीं बाद में कहीं से धन मिलने की संभावना भी है। प्रेमी संबंधों में झगड़े और थोड़े मनमुटाव हो सकते हैं वहीं वैवाहिक जीवन में ज्‍यादा आत्‍मियता बढ़ेंगी। मौसी, चाचा या बुआ की वज़ह से आपको कुछ परेशानी आ सकती है। विद्यार्थियों के लिये फरवरी का महीना बहुत सकारात्‍मक है,आप नई ऊर्जा महसुस करेंगें।

Gemini-Shani’s bed is ending on your zodiac sign. Learning from others, observing things will now become your habit. The workload of the people associated with the job will increase. There will be ups and downs in the economic side this month. Due to the effect of Venus, the expenses will increase in the beginning, while later there is a possibility of getting money from somewhere. There can be quarrels and little estrangement in loving relationships, while there will be more intimacy in married life. You may face some problems because of your aunt, uncle or aunt. The month of February is very positive for the students, you will feel new energy.

मिथुन राशि के उपाय- किसी बड़े काम के‍ लिये निकलने के पहले हथेली में हल्‍दी मलें। गुरू का आशिर्वाद लें। केले के पेड़ को जल दें और ‘ओम गुरूवे नम:’ मंत्र का जाप करें।

Remedies for Gemini- Rub turmeric in your palm before leaving for any big work. Take the blessings of the Guru. Water the banana tree and chant the mantra ‘Om Guruve Namah’.

सिंह राशि, विद्यार्थियों के लिये शुभ है यह माह/ Leo zodiac, this month is auspicious for students

सिंह राशि- सिंह राशि के जातकों को हर क्षेत्र में अपने काम की सराहना सुनने की आशा रहती है और इस माह आपको यही बात परेशान कर सकती है क्‍योंकि कार्यक्षेत्र में आपके काम को क्रिटिसाइज़ किया जा सकता है या आपके काम का क्रेडिट किसी और को मिल सकता है। इससे आपका मन अशांत हो सकता है। सातवे भाव में शनि बैठा है अत: अधिक खर्चों या उधार देने से बचे। शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों के लिये यह माह बहुत शुभ होने वाला है। स्‍वास्‍थ्‍य में थोड़े उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। कार्यसद्धि योग बन रहे हैं, पिता का सहयोग मिलेगा। प्रेम संबंधों में अधिक उत्‍तेजना होगी आप रिश्‍तों को और प्रागढ़ बनाने के लिये मेहनत करेंगें। 

Leo sun sign-The natives of Leo zodiac expect to hear appreciation for their work in every field and this month this may bother you as your work may be criticized in the workplace or someone else may get credit for your work. This can make your mind restless. Saturn is sitting in the seventh house, so avoid excessive expenses or lending. This month is going to be very auspicious for the students in the field of education. There can be slight ups and downs in health. Karyasiddhi Yoga is being made, father’s support will be available. There will be more excitement in love affairs, you will work hard to make the relationship stronger.

सिंह राशि के उपाय- पांच मुखी और एक मुखी रूद्राक्ष धारण करें। राजनीति के क्षेत्र में रूचि रखने वालों को मूंगा रत्‍न धारण करना चाहिये।

Remedies for Leo zodiac sign- Wear five faced and one faced Rudraksh. Those interested in the field of politics should wear coral.

वृषभ राशि, प्रेम संबंधों और वैवाहिक जीवन में खुशियॉं लायेगा यह माह/ Taurus, this month will bring happiness in love affairs and married life

वृषभ राशि- इस माह आपमें कुछ नया सीखने की उमंग व आध्‍यात्‍म की तरफ रूझान दिखाई देगा। जॉब व कार्यक्षेत्र में भी आप ज्‍यादा जुनून के साथ नये बदलावों के लिये उत्‍सुक दिखाई देंगें। पारिवारिक मामलों में इस माह शांति आयेगी। थोड़े बहुत मनमुटाव हो सकते है। माता- पिता या सास के साथ मनमुटाव महसूस करेंगें। निवेश इस माह आपके लिये लाभदायक है। स्‍टूडेंट के लिये इस माह मन भटकने जैसी परेशानी हो सकती है। जीवन साथी य प्रेमसंबंधों के लिये यह माह बहुत शुभ होने वाला है। स्‍वास्‍थ्‍य के मामले में यह माह सामान्‍य है। 

This month, you will see the enthusiasm to learn something new and the inclination towards spirituality. In job and workplace also, you will be seen eager for new changes with more passion. There will be peace in family matters this month. There can be some estrangement. Will feel estrangement with parents or mother-in-law. Investment is beneficial for you this month. There can be problems like wandering of the mind for the students this month. This month is going to be very auspicious for life partner and love affairs. This month is normal in terms of health.

वृषभ राशि के लिये उपाय- भ्रामरी योग और निद्रा योग करें। सूर्यास्‍त के पश्‍चात अपने घर के दक्षिण में तिल के तेल का दिया जलाये। दूर्गा मां की आराधना करें।

Remedy for Taurus- Do Bhramari Yoga and Nidra Yoga. After sunset, light a sesame oil lamp in the south of your house. Worship Durga Maa.

कर्क राशि, शनि की ढ़ैय्या के दिखेगें प्रभाव/ Cancer zodiac, effects of Saturn's bed will be seen

कर्क राशि- अपने साथियों और सीनियर्स से अच्‍छे संबंध बनायें। व्‍यवसाय में कोई नया प्रतिद्वंदी आपको परेशान कर सकता है। पैसे अपने पास न रखें, इस माह आपके पैसे चोरी होने या गिर जाने की संभावना है। विद्यार्थियों को इस माह मानसिक व शारीरिक स्‍वास्‍थ्य का ध्‍यान रखना होगा। कर्क राशि के जातकों पर शनि की ढ़ैय्या प्रांरभ हुई है अत: शनि का प्रभाव आपको दिखेगा। पारिवारिक माहौल अच्‍छाा रहेगा। प्रेमी संबंधों में खुशखबरी मिल सकती है। स्‍वास्‍थ्‍य में थोड़े उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। स्‍वास्‍थ्‍य की तरफ ध्‍यान दें क्‍योंकि बाद में स्‍वास्‍थ्‍य की लापरवाही महंगी पड़ सकती है। 

Cancer-Make good relations with your colleagues and seniors. A new rival in business can bother you. Do not keep money with you, there is a possibility of your money being stolen or dropped this month. Students have to take care of their mental and physical health this month. Shani’s bed has started on the people of Cancer, so you will see the effect of Shani. Family atmosphere will be good. Good news can be found in loving relationships. There can be slight ups and downs in health. Pay attention to health because later the negligence of health can be costly.

कर्क राशि के उपाय- सात मुखी रूद्राक्ष धारण करें। हर शनिवार को शनि निलांजन मंत्र का जाप करें।

Remedies for Cancer- Wear seven faced Rudraksh. Chant Shani Nilanjan Mantra every Saturday.

कन्‍या राशि इस माह शादी के बन सकते हैं संयोग/ Virgo can become a coincidence of marriage this month

कन्‍या राशि- राहु आपके कार्यक्षेत्र में प्रभाव डालेंगें। जॉब के क्षेत्र में परेशानी हो सकती है जबकी व्‍यापार का क्षेत्र सामान्‍य रहेगा इस माह। आर्थिक पक्ष अच्‍छा रहने वाला है। जिनका जन्‍म फरवरी में हुआ है उन्‍हें जॉब में अच्‍छी खबर या नये अवसर मिल सकते हैं। बड़ी बहन या माता के स्‍वास्‍थ्‍य में उतार-चढ़ाव हो सकता है। नये सौदे या निवेश के लिये यह माह अच्‍छा है। शिक्षा के लिये यह माह औसत रहने वाला है। प्‍लानिंग के साथ क्रियान्‍वयन करें। शुक्र का आपके प्रेम भाव में गोचर से आपका शादी के लिये पक्‍का विचार बन सकता है। 

Virgo sun sign-Rahu will make an impact in your workplace. There may be problems in the field of job whereas the business sector will be normal this month. The economic side is going to be good. Those born in February can get good news or new opportunities in the job. There can be ups and downs in the health of elder sister or mother. This month is good for new deals or investments. This month is going to be average for education. Execute with planning. With the transit of Venus in your love house, you can have a solid idea for marriage.

कन्‍या राशि के उपाय- चाँद के गिलास से पानी पियें, चॉंदी धारण करें। राहु के बीज मंत्र का जाप करें।

Remedies for Virgo- Drink water from the moon’s glass, wear silver. Chant the Beej Mantra of Rahu.

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Maha Shiv-Ratri 2023 | 18 Feb 2023 | Maha-Shivratri-part-2

म‍हाशिवरात्रि पूजा विधि

म‍हाशिवरात्रि पूजा विधि

सम्पूर्ण शिव पूजा सामग्री /Complete Shiva worship material-

सम्पूर्ण शिव पूजा सामग्री /Complete Shiva worship material-

  • घर की सामग्री-

    शुद्ध जल, एक बड़ा पटा या चौरंग, बैठने की आसान, बामी की मिट्टी या चिकनी काली मिट्टी शिवलिंग बनाने हेतु, दूध, पूजा थाल, पंचपात्र, तांबे का लोटा, फूल (धतूरा, अकोना, मोगरा), बेलपत्र, शमीपत्र, दूर्वा, पवित्री ( दूर्वा से बनी अंगूठी ) गंगाजल, पान, मिठाई, फल, प्रसाद, पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर, शहद का मिश्रण), अक्षत (चावल), दीपक और आरती, तेल, आम के पत्ते।

  • House material-

    Pure water, a big Pata or Chowrang, easy to sit, Bami soil or smooth black soil for making Shivling, Milk, Pooja Thal, Panchpatra, Copper Lota, Flowers (Dhatura, Akona, Mogra), Belpatra, Shamipatra, Durva, Pavitri (ring made of durva) Gangajal, paan, sweets, fruits, prasad, panchamrit (mixture of milk, curd, ghee, sugar, honey), akshat (rice), lamp and aarti, oil, mango leaves.

  • पूजा सामग्री-

    आसन कपड़ा, सुपारी, हल्दी गाँठ, बादाम, खारक, पंचमेवा, इत्र, गुलाबजल या केवड़ा जल, कुमकुम, हल्दी, भांग, भष्म, अबीर, गुलाल, अभ्रक, काला बुक्का, चंदन, केसर, शहद, पंचरत्न, जनेऊ, कच्चा धागा, मौली धागा, धूपबत्ती, नारियल, सिक्के, लौंग इलायची, कपूर, घी, रूई, 16 शृंगार, हवन, नवग्रह समिधा, आम की लकड़ी (हवन के लिए) और गोबर के कंडे।

  • Worship material-

    Aasan cloth, supari, turmeric knot, almond, kharak, panchmeva, perfume, rose water or kewra water, kumkum, turmeric, hemp, ash, abir, gulal, mica, black bukka, sandalwood, saffron, honey, pancharatna, janeu, raw thread , Molly thread, incense sticks, coconut, coins, cloves, cardamom, camphor, ghee, cotton, 16 Shringar, Havan, Navagraha Samidha, mango wood (for Havan) and cow dung cakes.

पूजा की तैयारी / Preparation for worship -

पूजा की तैयारी / Preparation for worship -

  • महाशिवरात्रि के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही नींद त्याग देना चाहिए, और दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर के स्नान आदि करने के बाद भगवान शिव के व्रत, पूजन और सुविचारों के ग्रहण करने का संकल्प मन में करना चाहिए। पूजा स्थल में साफ-सफाई करने के बाद पूजा की सभी सामग्रियों को एकत्र करके रख लेना चाहिए। घर के द्वार पर आम के पत्तों की तोरण, पुष्पहार और केले के पत्तों से सजावट करनी चाहिए। घर के आँगन को गाय  के गोबर से लीप कर रंगोली बनाकर आँगन को सजाना चाहिए। मिट्टी में दूध और गंगाजल मिलाकर स्वयं के हाथों से महामृत्युंजय मंत्र का लगातार उच्चारण करते हुए सुंदर शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए। यह सारे कार्य सुबह जल्दी कर लेना चाहिए, ताकि पूजा सही समय पर शुरू की जा सके। 

  • On the day of Mahashivratri, one should give up sleep in the Brahma Muhurta in the morning, and after retiring from daily activities and taking bath etc., one should make a resolution in the mind to fast, worship and receive good thoughts of Lord Shiva. After cleaning the place of worship, all the materials of worship should be collected and kept. The entrance of the house should be decorated with mango leaves, wreaths and banana leaves. The courtyard of the house should be decorated by making rangoli by leaping with cow dung. A beautiful Shivling should be made by mixing milk and Ganges water in the soil and reciting the Mahamrityunjaya mantra continuously with one’s own hands. All these works should be done early in the morning, so that the worship can be started at the right time.

  • अब पूजा स्थल में पूर्व की ओर मुख करके बैठना चाहिए और चौरंग या पटे पर आसन कपड़ा बिछाकर, अक्षत फैलाकर उस पर बड़े से बर्तन में शिवलिंग रखना चाहिए, शिवलिंग की जिलहरी उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए। नीचे एक और पटा बिछाकर उसपर भी एक स्वच्छ कपड़ा बिछाना चाहिए। पटे के दाहिने ओर थोड़े से अनाज (गेंहू या चावल) रखकर एक तांबा या कांसा का लोटा रखना चाहिए, उस पर स्वास्तिक का सुंदर प्रतीक चिन्ह बना कर, लोटे के कंठ में 3 बार कच्चा धागा लपेटना चाहिए। लोटे में एक सिक्का, अक्षत, एक हल्दी गाँठ, एक सुपारी और पंचरत्न डालकर गंगाजल मिला हुआ शुद्ध जल आधा भरना चाहिए। पाँच आम के पत्तों को लोटे में खड़े रखकर उसके ऊपर मौली धागा लपेटा हुआ नारियल उल्टा रखें। इस जल कलश के प्रमुख देव वरुण देव होते हैं। इसमें शास्त्रों में वर्णित 7 नदियों का जल, अनाज, औषधि और रत्न आदि शुद्ध प्राकृतिक तत्व मिलाए जाते हैं और सभी देवी देवताओं का आवाहन- निमंत्रण किया जाता है, जिससे यह सकारात्मक ऊर्जा का संचारक तत्व होता है, इसलिए इसका हर देव पूजा में अनिवार्य स्थान होता है।

  • अब चावल के नौ भाग बनाकर नवग्रह स्थापना के लिए कलश के बाजू चावल को नवग्रह के आकार में रखें अगर ऐसा संभव न हो तो चावल के 3-3 के 9 भाग रखें और इसपर मौली या कच्चा धागा 3 बार लपेट कर एक-एक सुपारी रखें, इसके साथ ही एक-एक हल्दी गाँठ, बादाम, खारक, लौंग-इलायची और सिक्के रखकर नवग्रह बनायें। साथ ही एक अन्य बर्तन में माता दुर्गा और गणेश जी की मूर्ति रखें। अगर न हों तो सुपारी में मौली धागा लपेट कर माता दुर्गा और गाय के गोबर से गणेश जी की मूर्त स्वरूप बनाकर स्थापना करें।

  • Now in the place of worship, one should sit facing the east and by spreading a seat cloth on the floor, a Shivling should be placed on it in a big pot, the water of the Shivling should be towards the north. A clean cloth should be spread on it by laying another belt below. A copper or bronze pot should be kept with some grains (wheat or rice) on the right side of the plate, a beautiful symbol of Swastik should be made on it, and a raw thread should be wrapped around the neck of the pot 3 times. Put a coin, Akshat, a turmeric knot, a betel nut and five gems in the pot and half fill it with pure water mixed with Ganga water. Keeping five mango leaves standing in a pot, keep a coconut wrapped with molly thread upside down on it. The main deity of this water urn is Varun Dev. Pure natural elements such as water, grains, medicines and gems etc. from 7 rivers mentioned in the scriptures are added and all the gods and goddesses are invoked, due to which it is a communicator of positive energy, therefore it is essential in every deity worship. There is a place.

  • Now make nine parts of rice and place the rice on the side of the urn in the shape of the Navagraha, if this is not possible, then keep 3-9 parts of rice and wrap Molly or raw thread 3 times on it and place one supari each. Along with this, make Navagraha by placing one turmeric knot, almond, kharak, clove-cardamom and coins. Along with this, keep the idol of Mata Durga and Ganesha in another vessel. If they are not there, wrap a molly thread in betel nut and make an idol of Goddess Durga and Ganesh ji with cow dung and establish it.

पूजा विधि / Worship method -

पूजा विधि / Worship method -

1. सबसे पहले स्वच्छ वस्त्रों को धारण करें और अपनी आसन पर पूर्व मुख करके बैठ जाएँ, हाथ धोकर पवित्री धारण करें और पंचपात्र के शुद्ध जल से सभी तरफ जल छिड़क कर इस मंत्र के साथ पवित्रीकरण करें-

1. First of all wear clean clothes and sit on your aasan facing east, wash your hands and wear the sacred thread and purify it by sprinkling water all over with the pure water of the panchpatra with this mantra-

पवित्री मंत्र-

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपिवा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्यात् भ्यन्तर: शुचि:।।

2. अपने माथे पर चंदन का तिलक करें, इसके बाद आप जहां बैठे हैं उस पृथ्वी देवी को सम्मान दें और धन्यवाद स्वरूप अपनी आसन के नीचे पुष्प और अक्षत समर्पित करके इस मंत्र से पृथ्वी पूजन करें-

2. Apply sandalwood tilak on your forehead, after that pay respect to the Goddess Earth where you are sitting and worship the earth with this mantra by dedicating flowers and akshat under your aasan as a thank you-

पृथ्वी पूजा मंत्र-

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वम् विष्णुना धृता।

त्वाम् च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्।।

3. अब हाथों में फूल और चावल लेकर भगवान शिव का ध्यान कर वेदों में लिखे शुभ के कारक स्वस्तिवाचन मंत्र का पाठ करें-

3. Now, taking flowers and rice in hands, meditate on Lord Shiva and recite the Swastivachan mantra written in the Vedas for auspiciousness-

स्वस्तिवाचन-

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः।

अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ॥

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।

स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ॥

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम।

पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः।

विश्वेदेवा अदितिः पंचजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु शनः कुरु प्रजाभ्यो भयं नः पशुभ्यः सुशांतिर्भवतु।।

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

4.  अब हाथ में गंगाजल लेकर अपना नाम, गोत्र, स्थान, तिथि और समय का मन में उच्चारण कर भगवान शिव के पूजन का विधि पूर्वक संकल्प करें-

4.  Now taking Gangajal in hand, pronounce your name, gotra, place, date and time in your mind and resolve to worship Lord Shiva.

संकल्प/ Resolution-

संकल्प/ Resolution-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ अद्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे, भू-लोके, जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, भारतवर्षे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2079 वैक्रमाब्दे , नल नाम संवत्सरे, सूर्य उत्तरायने, बसंत ऋतो, महामंगल्यप्रदे, मासानां मासोत्तमे फाल्गुन मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दशी तिथौ, शनि वासरे, अमुक नामा गोत्रोत्पन्नोऽहं (अपना नाम और गोत्र बोलें ) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया- श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं भगवान श्री साम्बसदाशिव रुद्राभिषेक पूजनं च अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे होमं क​रिष्ये।

5. अब हाथों में फूल और चावल लेकर माता गौरी और गणेश का ध्यान, आवाहन करें और अक्षत चढ़ा कर प्रतिष्ठा करें। इसके बाद तीन बार जल चढ़ाएं (पाद्य, अर्घ्य, आचमन हेतु), अब पंचामृत से स्नान करें और पुनः शुद्ध जल से स्नान करें। भगवान गणेश को जनेऊ- वस्त्र और माता गौरी को वस्त्र चढ़ाएं, अब षोडशोपचार विधि से पूजा करें, धूप और कर्पूर की आरती करें और अंत में पुष्पांजलि समर्पित करें। हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।

5. Now take flowers and rice in hands, meditate on Mother Gauri and Ganesha, appeal and worship them by offering Akshat. After this offer water thrice (for padya, arghya, aachaman), now bathe with Panchamrit and again bathe with pure water. Offer Janeu-cloth to Lord Ganesha and cloth to Mother Gauri, now worship with Shodshopachar method, perform aarti of incense and camphor and finally dedicate wreath. Pray with folded hands.

गणेश पूजा मंत्र / Ganesh Puja Mantra-

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लंबोदराय सकलाय जगद्धितायं।

नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।

गौरी पूजा मंत्र/ Gauri Puja Mantra-

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:। 

नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता:प्रणता:स्म ताम् ।।

6. जल कलश में भी उपरोक्त विधि से पूजन करें और सातों नदियों, त्रिदेवों और वरुण देव को ध्यान, आवाहन और प्रतिष्ठित करें और अंत में नीचे दिए गए मंत्रों से प्रार्थना करें-

6. Worship in the water urn also in the above method and meditate, invoke and worship the seven rivers, Tridev and Varun Dev and pray with the following mantras at the end-

7. इसके पश्चात नवग्रह की पूजन की ओर आगे बढ़ें और उपरोक्त विधि से ध्यान,आवाहन और प्रतिष्ठा करें। नौ ग्रहों का विधि पूर्वक मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करें और अंत में हाथ जोड़कर सकारात्मक दशाओं की अपेक्षा के साथ प्रार्थना करें।

7. After this proceed towards the worship of Navagraha and do meditation, invocation and prestige with the above method. Worship the nine planets methodically with mantras and at the end pray with folded hands expecting positive conditions.

कलश पूजन मंत्र/ Kalash worship mantra-

कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:।

मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।

कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।

ऋग्वेदोअथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:।।

अंगैच्श सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।

अत्र गायत्री सावित्री शांतिपृष्टिकरी तथा।

आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।

सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:।

आयांतु मम शांत्यर्थ्य दुरितक्षयकारका:।।

गंगे च यमुना चैव, गोदावरी सरस्वती। 

नर्मदे सिंधु कावेरी,जलेस्मिन संनिधि कुरु।। 

नवग्रहों के पूजन मंत्र/ Worship mantras of Navagrahas-

सूर्य मंत्र- ॐ घृणि: सूर्याय नम:

चंद्र मंत्र- ॐ सों सोमाय नम:

भौम मंत्र- ॐ अंगारकाय नम:

बुध मंत्र- ॐ बुं बुधाय नम:

गुरु मंत्र- ॐ ब्रं बृहस्पतये नम:

शुक्र मंत्र- ॐ शुं शुक्राय नम:

शनि मंत्र- ॐ शं शनैश्चराय नम:

राहु मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रों स: राहवे नम:

केतु मंत्र- ॐ स्रां स्रीं स्रों स: केतवे नम:

नवग्रह प्रार्थना मंत्र-

ब्रह्मा मुरारीत्रिपुरान्तकारी

भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च ।

गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः

कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥

8. अब भगवान शिव के पार्थिव शिवलिंग की पूजन करना प्रारंभ करें।

सबसे पहले नीचे दिए मंत्रों से हाथों में पुष्प और अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान, आवाहन और प्रतिष्ठा करें-

8. Now start worshiping the mortal Shivling of Lord Shiva.

First of all, meditate, invoke and worship Lord Shiva by taking flowers and Akshat in your hands with the following mantras-



भगवान शिव ध्यान मंत्र-

“ध्याये नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचंद्रां वतंसं।

रत्नाकल्पोज्ज्वलांगं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।।

पद्मासीनं समंतात् स्तुततममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं।

विश्वाद्यं विश्वबद्यं निखिलभय हरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।।”

आवाहन मंत्र-

ॐ भूः पुरूषं साम्ब सदाशिवमावाहयामि,

ॐ भुवः पुरूषं साम्बसदाशिवमावाहयामि,

ॐ स्वः पुरूषं साम्बसदाशिवमावाहयामि।

प्राणप्रतिष्ठा मंत्र /Invocation Mantra-ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य प्राणा इह प्राणाःl

ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं शिवस्य जीव इह स्थितः।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं शिवस्य सर्वेन्द्रियाणि,वाङ् मनस्त्वक् चक्षुः

श्रोत्र जिह्वा घ्राण पाणिपाद पायूपस्थानि इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।

अब भगवान शिव को पाद्य, अर्घ्य और आचमन के लिए 3 बार जल प्रदान करें, इसके बाद पंचामृत स्नान करवाएं और शुद्ध जल से पुनः स्नान करवाएं। इसके बाद भगवान शिव को जनेऊ धारण करवाएं। अब दुग्ध से रुद्राभिषेक करना प्रारंभ करें, ध्यान रखें कि इस समय भगवान शिव के पवित्र नाम मंत्र ॐ नमः शिवाय और महामृत्युंजय मंत्र का जाप लगातार करते रहें।

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।

अभिषेक करने के बाद पुनः शुद्ध जल से स्नान करवाने के बाद भगवान शिव की सभी पूजन सामग्रियों को बारी-बारी चढ़ाएं और षोडशोपचार पूजा करें। सुगंधित द्रव्य, पंचमेवा, पान, फल, दक्षिणा, नैवेद्य, वस्त्र और गौरी जी को शृंगार चढ़ायें।

After anointing, after taking bath again with pure water, offer all the worship materials to Lord Shiva one by one and perform Shodashopachar Puja. Offer fragrant liquid, Panchmeva, Paan, fruit, Dakshina, Naivedya, clothes and adornment to Gauri ji.

Now offer water to Lord Shiva 3 times for padya, arghya and aachaman, after that take panchamrit bath and again take bath with pure water. After this, make Lord Shiva wear the sacred thread. Now start doing Rudrabhishek with milk, keep in mind that at this time chant the holy name of Lord Shiva.Om Namah Shivaya And keep chanting the Mahamrityunjaya Mantra continuously.

अब प्रार्थना पूर्वक श्री रुद्राष्टकम का पाठ करें/ Now recite Sri Rudrashtakam with prayer:

नमामीशमिशान निर्वाण रूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरुपम् ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाश मकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥



निराकामोंकारमूलं तुरीयं गिरा ध्यान गोतीतमीशं गिरिशम ।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोअहम ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा लासद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ॥

चलत्कुण्डलं शुभ नेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकंठ दयालम ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

प्रचण्डं प्रकष्ठं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सच्चीनान्द दाता पुरारी ।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥

न जानामि योगं जपं पूजा न तोऽहम्‌  सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥

रुद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषा शंभो प्रसीदति ॥

॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

कर्पूर आरती/ Karpur Aarti-

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।। 

मंदार माला कलितालकायै, कपालमालंगित सुन्दराय।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय, नमः शिवायै च नमः शिवाय।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम मम् देव देव।। 

मंत्र पुष्पांजलि / Mantra Wreath-

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्रा पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।

ॐ सेवन्तिका बकुल चम्पक पाटलाब्जै, पुन्नाग जाति करवीर रसाल पुष्पैः।

बिल्व प्रवाल तुलसीदल मंजरीभिः, त्वां पूजयामि जगदीश्वर मे प्रसीद।।

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च। पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।

।। ॐ भूर्भुवः स्वः भगवते साम्ब सदाशिवाय नमः, मनसः वेदोक्त मंत्र पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।। 

नीचे दिए मंत्रों के साथ क्षमा प्रार्थना करे और मनोकामना मांग कर, हाथ में अक्षत लेकर विसर्जन मंत्र के साथ विसर्जन करें, फिर पार्थिव शिवलिंग को बहते पानी में ही प्रवाहित करें।

क्षमा प्रार्थना मंत्र/ Forgiveness prayer mantra-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर।। 

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव! परिपूर्णम तदस्त्वमेव।। 

विसर्जन मंत्र/ Immersion Mantra-

गच्छ गच्छ गुहम गच्छ स्वस्थान महेश्वर, पूजा अर्चना काले पुनरगमनाय च।

सबसे अंत में पूजन समाप्त होने के पश्चात सभी को प्रसाद वितरण करें और भजन और कीर्तन आदि का शुभ आयोजन करें। मंदिरों में जाकर अपना समय पवित्र करें, गरीब और असहायों की सेवा करें, जरुरतमन्द व्यक्ति को भोजन,वस्त्र आदि उपलब्ध करवायें और पूरे दिन अपने मन में ॐ नमः शिवाय का जाप करते रहें।

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Astro Arun Pandit is the best astrologer in India in the field of Astrology, Numerology & Palmistry. He has been helping people solve their life problems related to government jobs, health, marriage, love, career, and business for 49+ years.

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